सोमवार, 2 नवंबर 2009

लघुकथा सब प्रायोजित है

“प्रफुल्ल बाबू वो मेरिट लिस्ट में नहीं आ पाई।” प्रफुल्ल
बाबू का चेहरा जो अब तक प्रफुल्लित था, थोड़ा मुरझाया, फिर तमतमाया और तैश में वे
बोले, “॥ तो ... तो.. मैंने ही कौन मेरिट के आधार पर आपकी कविताएं रिकॉर्ड की थी
..?” अब मुझे जूस का स्वाद कड़वा लग रहा था और पकौड़े विषैले

--- मनोज कुमार

मैं, अपनी भावनाएं, कविताओं में उकेरता रहता हूं। यह जानने के लिए कि वे अच्छी हैं या नहीं, कोई श्रोता वर्ग मिले-या-ना मिले, मेरे मातहत काम करने वाले मेरा पहला निशाना होते हैं। मेरे लिये यह निर्णय करना कठिन हो गया है कि सचमुच मैं अच्छा रचता हूं या मेरे कर्मचारी बॉस और मातहत रिश्ते का धर्म निभाते हुए, उसे अच्छी ही नहीं बहुत अच्छी बताते और बनाते रहते हैं। इधर कुछ दिनों से तो शिवकुमार मेरी रचनाओं का ऐसा फैन हो गया है कि सिर्फ राष्ट्र कवि की उपाधि देना शेष रह गया है वरना हर विशेषणों से तो वह मुझे नवाज़ ही चुका है। साथ ही यह भी घोषणा कर चुका है कि आकाशवाणी पर मेरी कविता प्रसारित हो, यह उसकी दिली तमन्ना है। उसका मानना है कि जिसकी कविता ऑल इंडिया रेडियो पर प्रसारित हो गई, वह अखिल भारतीय कवि तो हो ही गया। एक दिन वह धमक आया मेरे दफ्तर में और बोलने लगा, “सर, सब फिक्स हो गया है। प्रफुल्ल बाबू से मेरी बात हो गई है। उन्हें आपकी कविताएं पसंद आ गई हैं। रविवार को आप मेरे साथ चलें, रिकॉर्डिंग है।” मेरे लिए तो शिवकुमार ख़ुशी का पैग़ाम बैठे-बिठाए ही ले आया। रविवार को तय कार्यक्रम के अनुसार रिकार्डिंग भी हुई। स्टुडियो से चलते वक़्त प्रफुल्ल बाबू ने जानकारी दी कि मेरी इस रिकार्डिंग का शुक्रवार को कवि और कविता कार्यक्रम में शाम आठ बजे प्रसारण होगा। शुक्रवार की शाम अपनी कविताओं का प्रसारण सुनकर अभी अपनी पीठ मैं ठोक ही रहा था कि फोन की घंटी बजी। मैं थोड़े इस मुग़ालते में कि अभी-अभी तो प्रसारण समाप्त हुआ है, अभी से बधाई ... ... फोन उठाया। दूसरी तरफ से फोन पर फ्रफुल्ल बाबू की चहकती आवाज़ आई, “सर, सुना। कैसा लगा हमारा प्रसारण?” ... “बेहद अच्छा।” ... ... “... और जो आपकी कविताओं की प्रस्तुत कर्ता थी, ... उसकी आवाज़ कैसी लगी?” ... “जी .. बहुत अच्छी।” ... “सर, उसे आप ले लीजिए। बड़े काम आएगी। आपके यहां जो चार कनिष्ठ अनुवादक के पदों की भर्ती की प्रक्रिया चल रही है, ... वह भी एक कैंडिडेट है। संगीता नाम है उसका, संगीता शर्मा।” मैंने कहा, “देखता हूं, मैं क्या कर सकता।” मैंने फोन रख दिया। पर तभी पड़ोस के कुछ मित्र आए और बधाइयां देकर मेरे फ्रिज की मिठाई आदि चट कर गए। हालाकि इन्हें हमने पहले से ही कह रखा था कि शाम आठ बजे रेडियो ज़रूर ऑन रखिएगा, वरना न-जाने कोई सुनेगा भी या नहीं। कुछेक हफ्ते यूं ही बीत गए। शिवकुमार फिर मेरे पीछे पड़ गया, “सर, आपने पिछले दिनों कुछ सुनाया नहीं?” मैंने मन-ही-मन सोचा मेरे श्रोताओं का वर्ग तो अब काफी विस्तृत हो गया है। मैं तो अब अपने बायो-डेटा में भी लिखने लगा हूं – आकाशवाणी पर प्रसारित ... हुं-ह तुम्हें ही क्यों सुनाऊं। जब रेडियो पर आएगा तो सुन लेना। पर प्रत्यक्ष में कुछ बोलता उससे पहले ही शिवकुमार का दूसरा प्रश्न सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ा था मेरे समक्ष, “क्या कुछ नया नहीं लिखा?” ... “नहीं-नहीं ऐसी बात नहीं है, छह-सात तो लिख ही चुका हूं।” ... “तो फिर चलते क्यों नहीं? प्रफुल्ल बाबू से मिल आते हैं। चर्चा भी हो जाएगी और रिकार्डिंग का प्रोग्राम भी तय कर आएंगे।” ... बात मुझे उसकी जंची। बांक़ी का इंतजाम उसने ही किया। मैं तो बस शनिवार के दिन तयशुदा रेस्तरां में समय पर हाजिर हो गया। वे दोनों पहले से ही उपस्थित थे। जूस और पकौड़ों के बीच प्रफुल्ल बाबू ने कविता की चर्चा के पहले ही अपना इरादा ज़ाहिर किया, “सर, आपके यहां जो कनिष्ठ हिन्दी अनुवादक की नियुक्ति का टेस्ट हुआ था उसका परिणाम नहीं आया अभी तक?” ... “बस आज ही उसकी मेरिट लिस्ट फाइनल की है, कल परिणाम प्रकाशित हो जाएगा।” ... “सर, वो संगीता का तो ... ?” ... “प्रफुल्ल बाबू वो मेरिट लिस्ट में नहीं आ पाई।” प्रफुल्ल बाबू का चेहरा जो अब तक प्रफुल्लित था, थोड़ा मुरझाया, फिर तमतमाया और तैश में वे बोले, “.. तो ... तो.. मैंने ही कौन मेरिट के आधार पर आपकी कविताएं रिकॉर्ड की थी ..?” अब मुझे जूस का स्वाद कड़वा लग रहा था और पकौड़े विषैले ... ... ! !
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21 टिप्‍पणियां:

  1. श्लिष्ट भाषा में मारक व्यंग्य ! कथा में आद्योपांत प्रवाह व बेवाकी, प्रभाव को कई गुणा बढा देती है !! धन्यवाद !!!

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  2. जबरदस्त कटाक्ष!! यही आज की सच्चाई है. बधाई.

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  3. Aapki yeh rachna koi katha na hokar maano aaj ke vartmaan satya ko ujagar karti hai.Aaj koi bhi vyakti kisi ki sahayta karta hai to isme uska suarth chipa rahta hai.Par aaj bhi aise logo ki kami nahi hai jinke andar manavta na ho.Katha bahut hi sundar lagi.

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  4. बहुत बढ़िया मनोज जी,
    हिंदयुग्म सर्वश्रेष्ठ पाठक विजेता के लिए हार्दिक बधाई!!

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  5. Aapki yeh rachna kaafi gambhir hai....Wasie v kya jamana aa gaya hai log har jagah apni hi bhalayi dhundte hai.....Shaayd kuch aisa hi tha prafull babu k sath....Log har jagah apna kaam nikaalne k baare mein hi sochte hain......

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  6. Ye kewal kahani nahi aaj kee reality hai !

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  7. You've hit right in the bull's eye. An impressive story. Thanks !!

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  8. Apki yeh kahani aaj ke kathor samajit satya ko ujagar karti hai. Kya kaha jaaye... ye duniya hee matlabi hai !

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  9. a very good satire, it is a harsh reality that there are selfish motives behind ........ moves of people in todays society ! Keep it up !!

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  10. ye vartman ki vastavikata hai ...give and take policy .....yahan par quality koi mayne nahin rakhti .....

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  11. यहीं पहुँच कर तलवार की धार बोथरी हो जाती है शब्दों के आगे....
    एकदम बेधक व्यंग्य....
    सादर...

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  12. bahut achcha kataksh kiya hai aajkal samaaj me ye hi to prachlan hai is haath de us haath le.sachchaai ko ukera hua lekh.aabhar.

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  13. आह! बहुत बढ़िया कटाक्ष.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  14. यथार्थता का चित्रण करते हुए बेहतरीन कटाक्ष किया है आपने,उत्कृष्ट प्रस्तुति हेतु बधाई !

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