गुरुवार, 13 मई 2010

आंच-१६

आंच १६ . आचार्य  परशुराम राय

 

Maple leaves in Autumn. आंच का यह अंक ऑंच के पिछले अंक (आंच पर है लक्षणा शक्ति) से अभिप्रेरित है। करण समस्‍तीपुरी ने शब्‍द शक्तियों का परिचय देते हुए हिंदी के मुहावरों में लक्षणाशक्ति के एकाधिकार की चर्चा की है। जो निस्‍सन्‍देह सत्‍य है। करण जी ने यहां अपने मुहावरों के प्रति नए दृष्टिकोण का रहस्‍योद्घाटन किया है। उसमें जो बातें स्‍पष्‍ट नहीं हो पाई हैं उनकी ओर कुछ पुनरावृत्ति करते हुए मुहावरों के संरचना विज्ञान पर प्रकाश डालने का प्रयास आंच के इस अंक का उद्देश्‍य है।

काव्‍यशास्त्रियों ने शब्‍द की तीन शक्तियां बताई है – अभिधा, लक्षणा और व्‍यंजना। इन शक्तियों से निकलने वाले अर्थो के भी इसी प्रकार क्रमशः तीन भेद बताए गए हैं – अभिधार्थ या वाच्‍य, लक्ष्‍य और व्‍यंग्य। अभिधार्थ या वाच्‍यार्थ वाक्‍य के या शब्‍द के यथावत अर्थ को कहते हैं, जैसे- सूर्योदय हो गया अर्थात् सूर्य का उदय हो गया या सूर्य दिखने लगा। जब शब्‍द अभिधार्थ देने में सक्षम न हों तो लक्षणा वृत्ति से या शक्ति से अर्थ लिया जाता है, जैसे दो घरों में लड़ाई हो गई। यहां विचारणीय है कि घर मिट्टी ईट या पत्‍थर के बने हैं और वे आपस में झगड़ा नहीं कर सकते। इस प्रकार क्रिया के साथ ‘घर’ शब्‍द अभिधार्थ व्‍यक्‍त करने में असमर्थ है। अतएव यहां घर शब्‍द का अर्थ घर में रहने वाले लोग से है जो लक्षण शक्ति से लिया गया है। व्‍यंग्‍यार्थ इन दोनों से भिन्‍न अर्थ होता है, जैसे उक्‍त दोनों वाक्‍यों में व्‍यंगयार्थ देखने का प्रयास करते है। यदि किसान अपने बेटे या नौकरों से कहता है कि सूर्योदय हो गया तो यहां व्‍यंगार्थ है कि नाश्‍ता-पानी करो, खेत पर जाने का समय हो गया है आदि। दूसरे वाक्‍यों में “घर” शब्‍द का अर्थ है – घर में रहने वाले सभी लोग अर्थात् आबाल – वृद्ध (लड़ाई में उलझे हुए हैं।) विज्ञान सम्‍मत या विधि सम्‍मत आदि साहित्‍य में अभिधार्थ या वाच्‍यार्थ की प्रधानता होती है, जबकि सामान्‍य लोक व्‍यवहार या ललित साहित्‍य में वाच्‍यार्थ के साथ-साथ अन्‍य दो वृत्तियों की प्रधानता भी पाई जाती है।

उक्‍त परिप्रेक्ष्‍य में हिंदी मुहावरों की समीक्षा करने पर देखा गया है कि अधिकांश मुहावरों का अर्थ लक्षणा वृत्ति से ही लिया जाता है। अपवाद स्‍वरूप कुछ मुहावरें है जिनका अर्थ व्‍यंजना वृत्ति से लेने की आवश्‍यकता पड़ती है। कहावतों में अवश्‍य व्‍यंजना वृत्ति से अर्थ लिया जाता है या यों कहा जाए कि जिस प्रकार अधिकांश मुहावरें लक्ष्‍यार्थ बोधक है, वैसे ही अधिकांश कहावतें व्‍यंग्यार्थ बोधक।

उपयुक्‍त युक्तियों की पुष्टि हेतु कुछ मुहावरें यहां लिए जा रहे हैं। कानपुर आने के बाद एक नया मुहावरा सुनने को मिला जो आज भी मुझे चमत्‍कृत करता है – पानी में पकौड़ी तलना। यहां, यदि ध्‍यान से देखा जाए तो इस मुहावरें में ’पानी’ शब्‍द मुहावरे के अर्थ का प्रतिनिधित्‍व करता है और इसी शब्‍द से यहां लक्ष्‍यार्थ प्रस्‍फुटित होता है क्‍योंकि पानी के स्‍थान पर तेल प्रयोग होता तो यहां लक्षणा अपनी जगह नहीं बना पाती। इस प्रकार यह मुहावरा अर्थ देता है – निरर्थक कार्य करना।

कुछ मुहावरें ऐसे है जिनमें प्रयुक्‍त सभी शब्द मिलकर समष्टिगत रूप से अर्थ प्रदान करते हैं। इस संदर्भ में यहां संख्‍याओं से संरचित दो मुहावरें उदाहरण के रूप में दिए जा रहे हैं जो इस श्रेणी में रखने योग्‍य हैं - नौ दो ग्‍यारह होना और तीन-पांच करना इन मुहावरों में कोई शब्‍द विशेष निहितार्थ को द्योतित नहीं कर रहा है बल्कि सभी शब्‍द एक साथ मिलकर निहितार्थ की सृष्टि करते हैं।

नौ दो ग्‍यारह होना इस मुहावरे का अर्थ देखते-देखते भाग जाना है। यह अर्थ कैसे सृष्‍ट होता है एक विचारणीय प्रश्‍न है। नौ से दो पर आना और ग्‍यारह तक चले जाना, क्या इस प्रकार से अर्थ ’भागना’ लेना उचित होगा? शायद। क्योंकि दूसरा तरीक़ा दिखता नहीं। दूसरी संभावना किसी घटना से उत्‍प्रेरित होकर ’नौ दो ग्‍यारह होना’ मुहावरे का सृजन हो सकता है। इसके लिए इसकी ऐतिहासिक पृष्‍ठभूमि तलाशनी होगी। इसी प्रकार ’तीन-पांच करने के अर्थ इधर-उधर की बात करना, दंगा देना, झगड़ा करना आदि है। मुझे लगता है कि ’तीन-पांच का समास विग्रह भेद से अलग-अलग तरह के अर्थ किए गए हैं जैसे ’तीन का पांच’, ’तीन और पांच’, ’तीन को पांच’ आदि।

अंको से जुड़े कुछ और मुहावरे लेते हैं। क्‍योंकि अंक निर्मित मुहावरों का अर्थ खोजना काफी कठिन है, यदि आपको उनका अर्थ मालूम न हो। ’तीन और तेरह से बने इसी प्रकार ये मुहावरे यहां विवेचना के लिए लेते हैं – तीन तेरह करना” अर्थात अस्‍त व्‍यस्‍त करना, ’तीन-तेरह होना’ अर्थात् तितर बितर होना, न तीन में न तेरह में” अर्थात बिल्‍कुल बेकार। पहले दो मुहावरों में समास विग्रह द्वारा क्रमशः तीन का तेरह करना और तीन को तेरह (जगह) होना अर्थ समझने में सुविधा हो सकती है। लेकिन न तीन में न तेरह में इस मुहावरे का अर्थ खोजने में कठिनाई है। प्रिय मित्र श्री हरीश प्रकाश गुप्‍त जी ने चर्चा के दौरान इसका अर्थ खोजने का अनोखा तरीका बताया। जिसका तात्‍पर्य यह है कि तीन और तेरह दोनों अंक अशुभ सूचक है, अतएव ऐसा व्‍यक्ति या ऐसी वस्‍तु जो इससे भी गया-गुजारा हो अर्थात् बिल्‍कुल बेकार। वैसे इस मुहावरे का जन्‍म तीन घर और तेरह घरों में विभक्त सरयूपारीय ब्राह्मणों के वर्गो से हुआ है।

 

अब कुछ ऐस मुहावरे लेते हैं जिनका अर्थ सीधे व्‍यंजना से आता है, जैसे – गंगा नहाना, नौबत बजना आदि। यहां गंगा नहाने का अर्थ लक्ष्‍य प्राप्‍त करना या किसी बड़ी जिम्‍मेदारी से मुक्‍त होना। इसी तरह नौबत बजना अर्थात मांगलिक उत्‍सव होना। इन मुहावरों में कहीं भी मुख्‍यार्थ (अभियार्थ या वाच्‍यार्थ) बाधित नहीं हो रहा है, फिर भी “गंगा” और “नौबत” शब्दों से नए अर्थ प्रस्‍फुटित हो रहे हैं।

 

इस प्रकार यह अंक मुहावरों के प्रति लोगो में एक नई दृष्टि देगा, ऐसी आशा है। वैसे यह एक शोध-प्रबन्‍ध का कार्य है, जिसके अंतर्गत मुहावरों का भाषा-वैज्ञानिक अध्‍ययन किया जाए और विभिन्‍न आधारों पर इनका वर्गीकरण किया जाए। हो सकता है कि इस प्रकार कार्य हुआ हो और लेखक उनसे अनभिज्ञ हो।

8 टिप्‍पणियां:

  1. इस विषय पर इतना विस्तृत और जानकारी से भरा आलेख देने के लिए राय जी आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छा लगा पढकर, बहुत सारी जानकारी मिली !

    जवाब देंहटाएं
  3. मुहावरों की शास्त्रीय और उपयोगी विवेचना -- आंच की आंच में चार चांद लगा रहा है।
    अरे ! मैं भी मुहावरा मय हो गया!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर लगा आप का यह लेख धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. यह अंक मुहावरों के प्रति लोगो में एक नई दृष्टि देगा।

    जवाब देंहटाएं
  6. साहित्य की सीमा अपार है. शास्त्र सम्मत विवेचन सामने आने पर ही हम अपनी जानकारी को विस्तार दे पाते हैं. जितना अधिक जानकारी हम पाते जाते हैं, उतना ही हमें स्वयं के अज्ञानी होने का पता चलता जाता है.

    राय जी को आभार, ज्ञानवर्धक विवेचन के लिए. साथ ही मनोज जी को ब्लाग पर अनवरत साहित्यिक सामग्री जुटाने के लिए भी आभार .

    जवाब देंहटाएं
  7. मुहावरों पर .विस्तृत जानकारी देता ये लेख बहुत अच्छा लगा..इस जानकारी के लिए शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  8. मुहावरों के गठन और अर्थापन्न प्रक्रिया की सुगम विवेचना शास्त्रीय सौरभ के साथ. हमारे मिथिलांचल में एक मुहावरा "तीन में न तेरह में" का अर्थ गुट-निरपेक्ष के सम्बन्ध मे लगाया जाता है. अर्थात न इस से मतलब न उस से. रायजी द्वारा निर्दिष्ट "तीन और तेरह घरों में विभक्त सरयूपारीय ब्रह्मण वर्ग' से उद्भव के कारण "तीन में न तेरह में" मुहावरे का अर्थ 'गुट-निरपेक्ष' के अधिक समीप प्रतीत हो रहा है. अर्थात न तीन घर में से ना ही तेरह घर में से.... !!! सच कहते हैं, "लोहा लोहे को काटता है !" आंच का यह अंक इस निदाघ ग्रीष्म में भी शीतलता दे गया. कोटिशः धन्यवाद !!!

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।