गुरुवार, 17 जून 2010

आंच पर हाइकु

हरीश प्रकाश गुप्त के हाइकु


-- करण समस्तीपुरी



हाइकु हिंदी साहित्य में अभिनव आयातित पद्य विधा है। यह जापान से बरास्ते अंग्रेजी भारत आयी है। हाइकु का उद्गम स्थल जापान है। जापान में सतरहवी शताब्दी में 5-7-5 नाद वाले तीन पंक्तियों की कविता लिखने का प्रचलन हुआ। आरंभिक अवस्था में इसके प्रथम चरण में प्राकृतिक सौंदर्य/घटना या ऋतु-वर्णन होता था और अंत में उसे किसी सामजिक सन्दर्भ से जोड़ दिया जाता था। जापानी हाइकु की एक विशेषता यह थी कि यह सामान्य क्षैतिज पंक्ति में न होकर तीन उदग्र रेखाओं में लिखा जाता था। आशु-कविता की यह शैली हैकाई कहलाती थी। हैकाई का बहु-वचन होक्कू शब्द-विकास के दौर से गुजर कर कालांतर में हाइकु हो गया।


हाइकु की खोज करने का श्रेय मासाओका शिकी को जाता है। उन्नीसवी शताब्दी में उन्होंने ही सर्वप्रथम इसे हाइकु की संज्ञा दी थी और इसे विश्व साहित्य धरातल पर प्रतीष्ठित करने का श्रेय प्रसिद्द जापानी कवि बासोहो को है। अंग्रेजी में वर्ड्सवर्थ सरीखे कवियों ने हाइकु पर कलम चालाई है तो भारतीय साहित्य में हाइकु को प्रतीष्ठा दिलाई कवीन्द्र रविन्द्र नाथ टैगोर ने।


गागर में सागर भर लाना हाइकु की मूल-भूत विशेषता है फिर भी यह विधा हिंदी साहित्य में वह स्थान नहीं बना पायी है, जिसकी यह अधिकारी है। शायद हिंदी साहित्य अभी भी प्रबंध के मोह से नहीं निकल पाया है। टैगोर के बाद हाइकु की फुटकर रचना ही हो पायी है। इस ब्लॉग पर सर्व-प्रथम और अभी तक एक-मात्र श्री हरीश प्रकाश गुप्त के हाइकु प्रकाशित हुए हैं। तभी से इस पर कुछ लिखने की इच्छा थी जो संयोग से आज फलीभूत हो रही है।


गुप्त की प्रथम हाइकु है,


भरा उदधि
हुआ मधु विस्‍फोट
फूटी कविता ।


हाइकु के शैली-विज्ञान की दृष्टि से यह 5-7-5 नादबद्धता के धर्म का निर्वाह कर रही है। यहाँ ध्याताब्य यह है कि संस्कृत, हिंदी या अरबी-फारसी साहित्य के विपरीत हाइकु में 'ध्वनि की मात्रा' नहीं ध्वनि की गणना की जाती है।


सागर का उदर जब भर जाता है तो इसमें ज्वालामुखी विस्फोट (सुनामी) होता है और फिर एक नया सृजन। उसी प्रकार हृदय में भावनाओं के आवेग से मधु (आनंददायी) विस्फोट होता है जिस से कविता रूपी लावा का जन्म होता है। वर्डस्वर्थ ने भी कहा है, "Poetry is the spontenious overflow of powerfull minds." इसमें कविता के निर्माण प्रक्रिया को समुद्र के ज्वालामुखी-विस्फोट से जोड़ कर कवि ने हाइकु के स्वाभावगत धर्म का पालन भी किया है। हालांकि दो विपरीत प्रकृति और प्रभाव वाले उपमा और उपमानो को कवि ने बहुत ही सहजता और सुन्दरता के साथ जोड़ा है।


दुसरी हाइकु है,



उतर गई
अन्‍तस में, नैनन
पढ़ कविता ।


काव्य के प्रभाव का इन तीन पंक्तियों से विशद वर्णन क्या होगा ? कविता वह जो मन की ऑंखें खोल दे। वेद के 'तमसो मा ज्योतिर्गमय....' का प्रथम सोपान। काव्यानंद अंतर्मन को उजियार कर देता है।



एक और हाइकु है,



रात निठल्‍ली
सोई, दिन ने थक
बेबस ढोई ।


इसमें कवि ने वर्ग-भेद को उजागर किया है।


गली-गली में


घूमा, ठहरा, सोचा


लेकिन कहाँ ?


इस हाइकु में कवि चलायमान जीवन की नश्वरता का संकेत किया है, तो



गली में शाम
नुक्‍कड़ में रोशनी
मीना बाजार ।


उपर्युक्त हाइकु में कवि ने स्थान-भेद अथवा दृष्टि भेद से एक ही बात के अलग-अलग मायने बताया है। गली में जब शाम होती है तो नुक्कर पर बत्ती जल जाती है। वहाँ छिट-पुट रौशनी हो जाती है और ऐश्वर्या और विलासिता का प्रतीक मीना बाज़ार गुलजार हो जाता है। वक़्त एक ही है पुनश्च यह अंतर उस स्थान विशेष की हैसियत से आता है।



गुप्तजी के हाइकु शल्यगत सौन्दर्य से परिपूर्ण और गहन अर्थ से आप्लावित हैं। किसी भी पद में मात्र-दोष नहीं है। इन पदों की एक और खासियत यह कि यह एक दूसरे से बिलकुल स्वतंत्र हैं। पूरी हाइकु पढने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।

16 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत!
    इतनी अच्छी आंच जलाई है आपने करण जी कि तबियत खुश हो गई।
    पहले तो तो इस विधा (हाईकू) का इतिहास बताया, जो मैं नहीं जानता था, फिर इसके शैली-विज्ञान की जानकारी दी। और फिर हरीश जी के हाईकु की समीक्षा। कुल मिलाकर एक पूरा पैकेज।
    यह समीक्षा हम जैसे लोगों को निश्चित ही प्रेरित करेगी हाइकु रचने को।
    आभार! साधुवाद!!

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  2. वाह हाइकू पर इतनी उम्दा जानकारी पहले कभी नहीं देखी बहुत बढ़िया.

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  3. जानकारी बहुत अच्छी लगी.धन्यवाद.

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  4. हाइकू पर यह पोस्ट ग्यान्वर्धक रहा. वाकई बहुत बढ़िया.

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  5. हाईकु पर बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद।

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  6. हाइकु बड़ी ही रोचक शैली है ,कुछ हाईकू पिछले साल मैं ने भी लिखे थे.
    इस विषय पर आप ने बहुत अच्छी जानकारी दी है .
    गुप्त जी के सभी हाइकु सुन्दर है और गहन अर्थ लिए हुए हैं.
    पसदं आये.

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  7. आभार आप तमाम पाठकों का और साधुवाद गुप्तजी को !! याद रखें, आपकी प्रतिक्रिया ही हमारी रचनात्मक ऊर्जा का इंधन है!!! धन्यवाद !!!!!

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  8. रोचक समीक्षा....वाकई बहुत बढ़िया.

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  9. करण जी, मैं आपका बहुत ही आभारी हूँ कि आपने हाइकू विधा पर पर्याप्त आधारभूत सामग्री हम सब पाठकों को उपलब्ध कराई, कयोंकि हाइकू अपने यहाँ एक अनजान सी विधा रही है और इस पर अधिक काम नहीं हुआ है. कारण मेरी हाइकू बनीं इसलिए मझे विशेष खुशी है.

    समीक्षा में भाषा पर आपका अधिकार तो है ही, आपकी पैनी दृष्टि और वर्णनात्मक शैली का मैं कायल हूँ.

    समग्र में कहूँ तो - अतिउत्तम.

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  10. हाइकू पर इतनी उम्दा जानकारी !

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  11. हाईकु पर बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद।

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  12. हाइकू पर इतनी उम्दा जानकारी पहले कभी नहीं देखी बहुत बढ़िया!

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  13. Main Harishji evam Manoj kumar ji ke vicharon se shat-pratishat sahamat hun. Karan ji ne mujhe apani pratibha ka kayal bana diya hai. Itani achchi samiksha to main nahin kar sakata.

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