बुधवार, 14 अप्रैल 2010

देसिल बयना-26 : : गयी जवानी फिर नहीं लौटे !

गयी जवानी फिर नहीं लौटे !

-- करण समस्तीपुरी

हा.....हा....हा..... आ....हा.... हा...हा......... ! अरे बाप रे बाप ! आज भोरे-भोर ऐसन दिरिस देखे कि का बताएं......... एँ.... हें...हें...हें..... ! बाप रे बाप...... अभी तक हंसी नहीं रुक रही है..... एँ.... हें...हें...हें..... !! सुन तो रहे थे कितना दिन से। मगर आज अपने आँख से देखियो लिए।

J0302953 हमरे बाबा कहे रहे कि भोरे-भोर ओस पर नंगे पांव चले से आँख का रौशनी बढता है। तो हम भोरे-भोरे चौबनिया के साथे चले जा रहे थे परवत्ता। गौरी पोखर के भीरा से लग्गा भर ही रहा था तो देखे उ तरफ का दिरिस.... ! हें.....हें...हें..... !!! अब का बताएं हंसी से दमे नहीं धरा जा रहा है। अरे उ खादी-भंडार वाला सेठ जी नहीं है.... चासनी लाल.... उ का बापू है न बूढा कड़की सेठ........ अरे बाप रे बाप........ ! बूढा डाँर (कमर) में लंगोटा बांधे पोखर के भीरा पर उछल रहा था...... हा...हा...हा.... हा..... । कभियो दाहिना पैर आगे फेंके तो कभियो बायाँ पैर। कभी-कभी हाथो छिरिया देता था। हम लोग स्थिर से भीरा पर वाला झोपरी के टाट के बगल में छुप के देखे लगे बुढौ का खेल।

हाथ-पैर भांज के बूढा थक गया तब दो मिनिट के लिए आँख मूंद, पालथी मार के बैठ गया। फेर धरतीये पर पेट के बल लेट गया और जमीन में कलेजा सटा-सटा के लगा मूरी उठाए। बूढा जितना बार कलेजा झुकाता था उतना बार पोपली मुँह से एक-एक हाथ का लड़-बड़ जीभ बाहर निकल आता था। हम लोग किसी तरह हंसी रोक के दम साधे सब खेल देख रहे थे।

अब ई सब कसरत ख़तम हुआ तो बुढौ उठा और एगो लोहा के पाइप में दुन्नु छोड़ पर गेहूं पीसे वाला चक्की बंधा हुआ था, लगा उ को उठाए। बूढ़ी हड्डी में दू-दू गो बीसकिलवा (20 किलो वाला) चक्की उठाए का ताव कहाँ से आये ? बेचारे कड़की सेठ फिर भी जोर लगाए। बिना दांत वाला मुँह के भीतर दोनों होंठ दबा के बुढौ चक्की उठाने के लिए ऊपर जोर लगाया कि नीचे से आवाज़ निकल गया ......... पूर्र....र्र.....!

खी.... खी....खी..... खी...... ! ससुर चौबनिया से रहा नहीं गया। दिहिस खिखियाय..... !

"कौन है रे छिनरी घर.... ? पकड़ तो रे बेलचनमा.... !" कड़की सेठ हांफते हुए बोले।

हमलोग भागे-भागे कि बेलचन महतो झोपरी के पीछे से आ कर पकर के कड़की सेठ के कचहरी में हाज़िर कर दिहिस। हम लोग का तो दम-प्राण सूख रहा था।

सेठ जी कड़क के बोले, "का रे ! का चुराने आया था ? महुआ उठा रहा था पथार पर से का ?"

हम और चौबनिया दोनों एक साथ ही गिरगिरा के बोले, "नहीं सेठ जी ! हम लोग महुआ नहीं उठा रहे थे। सच कहते हैं..... अप्पन किरिया (कसम) ..... !" दाहिना हाथ के पांचो अंगुली से गले को छू के हम लोग बोले।

सेठ जी फिर कड़के, "सच-सच बताओ, नहीं तो...!"

ई बार हम पूरा भोलापन का नाटक करते हुए बोले, "नहीं सेठ जी ! सच्चे कहते हैं..... हम लोग तो वैसे ही टहल रहे थे। आप टेलीविजन वाला पलटन जैसे लफ़-राइट कर रहे थे वही देखे लगे.... !"

J0341344शायद पलटन से अपनी तुलना सुन कर सेठजी का मूडे बदल गया। बेचारे होंठ बिदोर के बोले, "हें...हें..हें.... ! मार बुरबक..... ई को बर्जिश कहते हैं। लफ़-राइट तो खाली टहलना होता है।"

सेठ जी की हंसी निकली तो समझे कि जान बची। फिर कड़की सेठ अपना बर्जिश का महातम्य बता कर हम दोनों को एक-एक छुहारा दिए और बोले कि तुम लोग भी बर्जिश किया करो..... एकदम ठहक्का जुआन हो जाओगे।" हाँ, सेठ जी ! हाँ, सेठ जी !! कह के हम लोग भी दक्खिन बगल का रास्ता पकड़ लिए। हमरे पीछे ही सेठ जी का चिलमची बेलचन महतो भी आ रहा था। हम लोग भी एक घड़ी रुक के उ के साथ हो लिए।

बेलचन महतो से कदम-ताल मिलाते हुए हम बड़ी शराफत से पूछे, "अहो बेलचन काका ! ई सेठ जी बुढ़ापा मे का बियाम करते हैं ?"

बेलचन महतो मुँह बना कर बोला, "धुर्र....... बूढा सठिया गया है। सेठाइन को गए सालो नहीं लगा.... और पोता-पोती के शादी करे के उम्र में बुढौ अपने बियाह करे खातिर उमतायेल है।"

हम कहे, "आएं ! ई बात सच्चे है का....?"

"धुर्र.... ! सच का और झूठ का..... धन-संपत अकूत हैय्ये है..... होगी कौनो गरीब के कन्या जान पर..... बाँध देगा ई कसाई के खूटा में। घरजोरे पंडित जैसा दलाल लगा ही हुआ है।" बेलचन महतो जैसे भरास निकाल के बोले।

चौबनिया को बात कुछ जांचा नहीं। उ बोला, "लेकिन काका ! बियाह में तो गीत-नाद होता है। ई बुढौ लफ़-राईट काहे करता है ?"

बेलचन महतो मुँह से तम्बाकू का थूक फ़ेंक कर बोला, "अरे समझा नहीं... ! बियाह के मंडप और लड़ाई के मैदान में कौन जाता है.... ? जवान ही जाता है न.... ? तो वही घरजोरे पंडित कह गया है कि बियाम-उयाम कर के जुआनी लौटाइये। तब न मंडप पर चढ़ना होगा..... ।"

"आएँ....!" अब हमरे और चौबनिया के मुँह से एक साथ निकल पड़ा, "सच में काका ! बियाम करे से बूढा आदमी भी जुआन हो जाता है का ?"

"धुर्र बकलोल कहीं के.... ! अरे, 'गयी जवानी फिर नहीं लौटे ! कितनो घी-मलीदा खाए' !!"

बेलचन महतो एगो कहावत फेंका फिर बतलाने लगा, "देखा नहीं... ? दंड पेलते महीना से ऊपर निकल गया और कन्धा-पुट्ठा का बनेगा एगो झुर्री तो कसाया ही नहीं...... ! अरे छुहारा किसमिस फांक के दंड-बैठक करने से जुआनी आता तो दुनिया में कोई बूढा होता का...... ? दुनिया में जन्म, जवानी और मौत एक्कहि बार मिलता है। जो समय बीत गया उ कहाँ से लौट के आएगा.... ? सेठ जी को बुढ़ारी में घिढारी का शौक चढ़ा है तो पेल रहे हैं दंड... लेकिन उ जवानी थोड़े न लौट आयेगी !"

J0099190 "हूँ..... !" आज-तक सब लोग बेलचन महतो को गाय-गोरु चराने वाला मुरुख आदमी ही समझते थे। लेकिन देखिये, कैसन जोरदार कहावत कहा.... और उ का समझाय भी दिया कितना बढ़िया। अब आप नहीं समझे तो इतना ही समझ लीजिये कि "कोई भी यत्न करने से बीता हुआ वक़्त वापस नहीं आ सकता है। 'गयी जवानी फिर नहीं लौटे ! कितनो घी-मलीदा खाए' !!"

14 टिप्‍पणियां:

  1. rochak .

    par baccho ka khilee udane ka andaz mujhe shobniy nahee laga.

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  2. Manoj jee meree 100th post par aapke hastakshar kee kamee ujagar hai...............DARPAN..........

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  3. आज की प्रस्‍तुति भी बहुत अच्‍छी लगी !!

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  4. बहुतहि अच्छा लगा पढ़कर... आपने ठेठ भाषा में मजेदार तरीके से प्रस्तुत किया यह प्रकरण और ...हा हा हा ...

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  5. बहुत बढ़िया प्रस्तुति....मज़ा आ गया पढ़ कर..:):)

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  6. 'गयी जवानी फिर नहीं लौटे ! कितनो घी-मलीदा खाए' !!
    E kahawat to sacho kah gaye belchan kakkaa...aur e kadki seth to katno kasrat kar leta jawaniya thode na wapas aane wala tha...gana ni sune honge kadki seth isliye unko pata ni hoga ki.....EK BAR JO JAYE JAWANI FIR NA AAYE... HE HE HE
    Karan ji e ho desil bayna padhkar maja aa gaya....sabse acha e me humko sabka nam laga....CHOBANIYA...CHASNI LAL...KADKI SETH AUR BELCHAN MAHTO...pata nai ap kaha kaha se nam chun chun kar late hai...humko to nam me padhkar hasi aa raha tha....
    Ha ha ha :)

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  7. Achchha post hai.

    aaj - kal ke aadmi ka jane बियाम ka hota hai.

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  8. "कोई भी यत्न करने से बीता हुआ वक़्त वापस नहीं आ सकता है। 'गयी जवानी फिर नहीं लौटे ! कितनो घी-मलीदा खाए' !!"

    सौ टके पक्की बात.....
    लाजवाब बयना...लाजवाब....आनंद आ गया...

    बहुत बहुत आभार.

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