शनिवार, 31 जुलाई 2010

मुंशी प्रेमचंद जयंती पर …

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मुंशी प्रेमचंद जयंती पर …

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मनोज कुमार

आज का सारा दिन हम मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर समर्पित कई पोस्ट इस ब्लॉग पर प्रस्तुत करेंगे! इसी श्रृंखला की पहली कड़ी पेश है।

इनकी कहानियों में जहां एक ओर रूढियों, अंधविश्‍वासों, अंधपरंपराओं पर कड़ा प्रहार किया गया है वहीं दूसरी ओर मानवीय संवेदनाओं को भी उभारा गया है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म एक गरीब घराने में काशी से चार मील दूर बनारास के पास लमही नामक गाँव में 31 जुलाई 1880 को हुआ था। उनका असली नाम श्री धनपतराय। उनकी माता का नाम आनंदी देवी था। आठ वर्ष की अल्पायु में ही उन्हें मातृस्नेह से वंचित होना पड़ा।  दुःख ने यहा ही उनका पीछा नहीं छोड़ा। चौदह वर्ष की आयु में पिता का निधन हो गया। उनके पिता मुंशी अजायबलाल डाकखाने में मुंशी थे।

घर में यों ही बहुत गरीबी थी। ऊपर से सिर से पिता का साया हट जाने के कारण उनके सिर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। ऐसी परिस्थिति में पढ़ाई-लिखाई से ज़्यादा रोटी कमाने की चिन्ता उनके सिर पर आ पड़ी।

१५ वर्ष की अवस्था में इनका विवाह कर दिया गया, जो दांपत्य जीवन में आ गए क्लेश के कारण सफल नहीं रहा। प्रेमचंद ने बाल विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह कर लिया तथा उनके साथ सुखी दांपत्य जीवन जिए।

इन कहानियों में उन्होंने मनुष्य के जीवन का सच्चा चित्र खींचा है। आम आदमी की घुटन, चुभन व कसक को अपनी कहानियों में उन्होंने प्रतिबिम्बित किया। इन्होंने अपनी कहानियों में समय को ही पूर्ण रूप से चित्रित नहीं किया वरन भारत के चिंतन व आदर्शों को भी वर्णित किया है।

विद्यार्थियों को ट्यूशन पढ़ा कर किसी तरह उन्होंने न सिर्फ़ अपनी रोज़ी-रोटी चलाई बल्कि मैट्रिक भी पास किया। उसके उपरान्त उन्होंने स्कूल में मास्टरी शुरु की। यह नौकरी करते हुए उन्होंने एफ. ए. और बी.ए. पास किया। एम.ए. भी करना चाहते थे, पर कर नहीं सके। शायद ऐसा सुयोग नहीं हुआ।

पूर्ण आकार की छवि देखेंस्कूल मास्टरी के रास्ते पर चलते–चलते सन 1921 में वे गोरखपुर में डिप्टी इंस्पेक्टर स्कूल थे। जब गांधी जी ने सरकारी नौकरी से इस्तीफे का नारा दिया, तो प्रेमचंद ने गांधी जी के सत्याग्रह से प्रभावित हो, सरकारी नौकरी छोड़ दी। रोज़ी-रोटी चलाने के लिए उन्होंने कानपुर के मारवाड़ी स्कूल में काम किया। पर वह भी ज़्यादा दिनों तक चल नहीं सका।

प्रेमचंद ने 1901 मे उपन्यास लिखना शुरू किया। कहानी 1907 से लिखने लगे। उर्दू में नवाबराय नाम से लिखते थे। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों लिखी गई उनकी कहानी सोज़ेवतन 1910 में ज़ब्त की गई , उसके बाद अंग्रेज़ों के उत्पीड़न के कारण वे प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। 1923 में उन्होंने सरस्वती प्रेस की स्थापना की। 1930 में हंस का प्रकाशन शुरु किया। इन्होने 'मर्यादा', 'हंस', जागरण' तथा 'माधुरी' जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया।

जीवन के अन्तिम दिनों के एक वर्ष छोड़कर, सन् (33-34) जो बम्बई की फिल्मी दुनिया में बीता, उनका पूरा समय बनारस और लखनऊ में गुजरा, जहाँ उन्होंने अनेक पत्र पत्रिकाओं का सम्पादन किया और अपना साहित्य सृजन करते रहे ।

8 अक्टूबर 1936 को जलोदर रोग से उनका देहावसान हुआ’

भारत के हिन्दी साहित्य में प्रेमचन्द का नम अमर है। उन्होंने हिन्दी कहानी को एक नयी पहचान व नया जीवन दिया। आधुनिक कथा साहित्य के जन्मदाता कहलाए। उन्हें कथा सम्राट की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने 300 से अधिक कहानियां लिखी हैं। इन कहानियों में उन्होंने मनुष्य के जीवन का सच्चा चित्र खींचा है। आम आदमी की घुटन, चुभन व कसक को अपनी कहानियों में उन्होंने प्रतिबिम्बित किया। इन्होंने अपनी कहानियों में समय को ही पूर्ण रूप से चित्रित नहीं किया वरन भारत के चिंतन व आदर्शों को भी वर्णित किया है। इनकी कहानियों में जहां एक ओर रूढियों, अंधविश्‍वासों, अंधपरंपराओं पर कड़ा प्रहार किया गया है वहीं दूसरी ओर मानवीय संवेदनाओं को भी उभारा गया है। ईदगाह, पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, नमक का दारोगा, दो बैलों की आत्म कथा जैसी कहानियां कालजयी हैं। तभी तो उन्हें क़लम का सिपाही, कथा सम्राट, उपन्यास सम्राट आदि अनेकों नामों से पुकारा जाता है।

प्रेमचंद का रचना संसार - उनका कृतित्व संक्षेप में निम्नवत है-
उपन्यास- वरदान, प्रतिज्ञा, सेवा-सदन(१९१६), प्रेमाश्रम(१९२२), निर्मला(१९२३), रंगभूमि(१९२४), कायाकल्प(१९२६), गबन(१९३१), कर्मभूमि(१९३२), गोदान(१९३२), मनोरमा, मंगल-सूत्र(१९३६-अपूर्ण)।
कहानी-संग्रह- प्रेमचंद ने कई कहानियाँ लिखी है। उनके २१ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए थे जिनमे ३०० के लगभग कहानियाँ है। ये शोजे वतन, सप्त सरोज, नमक का दारोगा, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून, प्रेम द्वादशी, प्रेम प्रतिमा, प्रेम तिथि, पञ्च फूल, प्रेम चतुर्थी, प्रेम प्रतिज्ञा, सप्त सुमन, प्रेम पंचमी, प्रेरणा, समर यात्रा, पञ्च प्रसून, नवजीवन इत्यादि नामों से प्रकाशित हुई थी।
प्रेमचंद की लगभग सभी कहानियोन का संग्रह वर्तमान में 'मानसरोवर' नाम से आठ भागों में प्रकाशित किया गया है।
नाटक- संग्राम(१९२३), कर्बला(१९२४) एवं प्रेम की वेदी(१९३३)
जीवनियाँ- महात्मा शेख सादी, दुर्गादास, कलम तलवार और त्याग, जीवन-सार(आत्म कहानी)
बाल रचनाएँ- मनमोदक, कुंते कहानी, जंगल की कहानियाँ, राम चर्चा।
इनके अलावे प्रेमचंद ने अनेक विख्यात लेखकों यथा- जार्ज इलियट, टालस्टाय, गाल्सवर्दी आदि की कहानियो के अनुवाद भी किया।

आज 31 जुलाई को उनकी जयंती है। हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं।

अगली प्रस्तुति १२ बजे “ग्रामीण जीवन के चितेरे प्रेमचंद” डॉ. रमेश मोहन झा द्वारा।

28 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा किया , शेयर की बातें ! .. नमन !

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  2. उपन्यास सम्राट प्रेम्चन्द जी को नमन.

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  3. मेरी ओर से भी प्रेमचन्द जी को नमन.

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  4. aadhunik hindi sahitya ke yug pravartak amar kathakar munshi premchand ki jayanti ke avasar par unhe saadar naman.

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  5. premchand yugdrashta hai. unki rachanaye aaj bhi utni hi prasangik hai jitani 70-80 varsh pahle rahi hongi. unke paatra aaj bhi charo taraf dikhai padate hai. unki jayanti ke avasar par unhe saadar naman.

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  6. स्वागत है। सभी पोस्टों की उत्सुकता से प्रतीक्षा है।

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  7. मुंशी प्रेम चंद की जयंति पर आपका यह प्रयास सराहनीय है....कहानी सम्राट को मेरा नमन ....

    उनकी लिखी अधिकांश कृतियाँ मेरी पढ़ी हुई हैं ....फिर भी उनका रचित इतना विशाल भण्डार है की शायद कुछ रह गयी हों पढने से ..उनकी हर कहानी जो उन्होंने सामाजिक परिवेश से कथानक लिया है वो आज भी सार्थकता लिए हुए हैं ....आम आदमी के मनोविज्ञान को बखूबी समझते थे ...और दो बैलों की आत्मकथा में तो उन्होंने मूक प्राणियों के मन में उठने वाले भावों का सजीव चित्रण किया है...बड़े भाईसाहब ..कहानी घर में बड़े भई होने के एहसासों को बताती है ...बूढी काकी ...आज के सन्दर्भ में भी कही कही सटीक बैठती है...
    प्रेमचंद मेरे प्रिय लेखक रहे हैं ..इसलिए शायद इतना कुछ लिख गयी ....
    इस पोस्ट के लिए आभार

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  8. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    नमन कथा सम्राट को।

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  9. Sir ji .... Munshi Premchand ki Jayanti ke avsar par ye post padhkar dil baag-baag ho gaya.

    Sach men Premchand ji ek mahan saahitiykaar hi nahin the balki ve ek mahamaanav the .

    Unke liye mere man men appr shradhaa aur sammaan hai.


    Unki likhi rachnaon ko padh-padh kar hi men bada hua hun.

    Munshi Premchand ji ko mera shat-shat naman.

    Munshi Premchand ki jayanti per is post ke liye AApko haardik Dhanyabaad.

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  10. हिन्दी कहानी के पुरोधा को नमन!

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  11. प्रेमचंद जी को नमन और इस सराहनिय पोस्ट के लिये आपका आभार.

    रामराम

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  12. रोज की घटनाओं के दौरान कल अनजाने में ही प्रेमचंद जी पर फिर से ध्यान गया। जब पोस्ट करने लगा तो उनका जन्म खोजा पाया कि वो आज ही है। संयोग से एक ऐसी पोस्ट जो कभी भो लिखी जा सकती औऱ कभी भी पब्लिश की जा सकती थी, आज सुबह पोस्ट हो गई।

    WWW.BOLETOBINDAS.BLOGSPOT.COM

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  13. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 01.08.10 की चर्चा मंच में शामिल किया गया है।
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  14. महान साहित्यकार को सादर नमन |
    आशा

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