अंक-7
स्वरोदय विज्ञान
आचार्य परशुराम राय
स्वरोदय विज्ञान के अनुसार स्वरों के प्रवाह की तिथियाँ, अवधि आदि का जो विवरण ऊपर दिया गया है वह केवल स्वस्थ शरीर होने पर ही सम्भव है। यदि इसमें विपर्यय हो अर्थात् शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, द्वितीया और तृतीया को सूर्योदय के समय बाएँ स्वर के स्थान पर दाहिना स्वर चले तो समझना चाहिए कि शरीर में ताप का संतुलन बिगड़ गया है और यदि कृष्ण पक्ष में उक्त तिथियों को इड़ा नाड़ी चले अर्थात् बायीं नासिका से स्वास प्रवाहित हो तो समझना चाहिए कि शरीर का शीतलीकरण तंत्र असंतुलित हो गया है। स्वासों में उत्पन्न यह विपर्यय बुखार या सर्दी-खाँसी से ग्रस्त होने का संकेत देता है। इसके अतिक्ति यह असंतुलन उसमें निराशा और चिड़चिड़ापन को जन्म देता है। यदि यह क्रम तीन पखवारे तक बना रहे तो व्यक्ति गंभीर बीमारी का शिकार बनेगा।
अगर किसी को बुखार आ जाये या ऐसा लगे कि बुखार आने वाला है, तो उसे अपने स्वर की जाँच करके मालूम करना चाहिए कि साँस किस नासिका से प्रवाहित हो रही हैं। जिस नासिका से साँस चल रही हो उसे तुरन्त बन्द कर दूसरी नासिका से साँस तब तक चलायी जाये जब तक बुखार उतर न जाये या व्यक्ति सामान्य अनुभव न करने लगे। इस प्रकार स्वरों के माध्यम से बीमारियों की चिकित्सा उनके उग्र होने के पहले ही की जा सकती हैं।
स्वरोदय विज्ञान की जानकारी से हम दैनिक जीवन में काफी लाभान्वित हो सकते हैं। इसके लिए स्वरोदय विज्ञान के अनुसार हमें विभिन्न कार्य किस स्वर के प्रवाह काल में करना चाहिए यह जानना बहुत आवश्यक है। स्वर विशेष के प्रवाह काल में निर्धारित कार्य करने से हमारा स्वास्थ्य ठीक रहेगा और साथ ही हमें कार्य विशेष में सफलता भी मिलेगी। इसके लिए सबसे पहले हम लेते हैं सूर्य नाड़ी अर्थात् पिंगला को।
जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि सूर्य नाड़ी अपने प्रवाह काल में हमें शक्ति प्रदान करती है इसलिए जब साँस दाहिनी नासिका से प्रवाहित हो उस समय कठिन कार्य करना चाहिए। इसमें गूढ़ और कठिन विद्याओं का अध्ययन, शिकार करना, वाहनों की सवारी, फसल काटना, कसरत करना, तैरना आदि सम्मिलित हैं। पिंगला के प्रवाह में जठराग्नि प्रबल होती है। इसलिए जब दाहिनी नासिका से स्वर चले तो भोजन करना चाहिए और भोजनोपरान्त कम से कम दस से पन्द्रह मिनट तक बाँई करवट लेटना चाहिए, ताकि सूर्य नाड़ी प्रवाहित हो। शौच और शयन पिंगला के प्रवाह काल में स्वास्थ्यप्रद होता है। वैसे स्वरोदय विज्ञान के अनुसार यात्रा के लिए कहा गया है कि जो स्वर चल रहा हो वही पैर घर से पहले निकालकर यात्रा की जाये तो वह निर्विघ्न पूरी होती है। किन्तु दाहिना स्वर चले तो दक्षिण और पश्चिम दिशा की यात्रा नहीं करनी चाहिए। वैसे लम्बी दूरी की यात्रा पिंगला नाड़ी के चलने पर शुरू नहीं करनी चाहिए। स्त्री समागम आदि के लिए पिंगला नाड़ी का चयन करना चाहिए। कुल मिलाकर संक्षेप में यह कहना है कि अधिक श्रमसाध्य अस्थायी कार्य पिंगला नाड़ी के प्रवाह काल में प्रारम्भ करना चाहिए।
जब इडा नाड़ी चले तो सभी शुभ एवं स्थायी कार्य प्रारम्भ करने चाहिए। जैसे लम्बी यात्रा, गृह निर्माण, नयी विद्याओं का अध्ययन, बीज वपन, सामान एकत्र करना, जनहित का कार्य, चिकित्सा कराना आदि। इडा नाड़ी के प्रवाहकाल में लम्बी यात्रा के प्रारम्भ करने का उल्लेख किया गया है। लेकिन उत्तर और पूर्व दिशा की यात्रा का प्रारम्भ करना वर्जित है। इसके अतिरिक्त जल पीना, लघुशंका करना, परोपकार, श्रेष्ठ एवं वरिष्ठ व्यक्तियों से सम्पर्क, गुरू दर्शन, मंत्र-साधना, पुरूष समागम आदि कार्य के लिए इडा नाड़ी का प्रवाह काल चुनना चाहिए। वैसे, स्वरोदय विज्ञान के अनुसार भोजन के लिए पिंगला नाड़ी सर्वोत्तम कहीं गयी है, लेकिन अधिक मसालेदार, वसायुक्त नमकीन या खट्टे भोजन के लिए इडा नाड़ी का प्रवाह काल उत्तम माना गया है, क्योंकि यह शरीर में चयापचय से उत्पन्न विष को उत्सर्जित करने में सक्षम है।
सुषुम्ना नाड़ी का प्रवाह काल आध्यात्मिक साधना अर्थात् ध्यान आदि के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इसके अतिरिक्त यदि कोई अन्य कार्य इस काल में प्रारम्भ करते हैं तो उसमें सफलता नहीं मिलेगी। यदि अभ्यास द्वारा ऐसा कुछ किया जा सके जिससे सुषुम्ना नाड़ी का प्रवाह-काल बढ़ सके और उस समय आध्यात्मिक साधना की जाये, विशेषकर उस समय आकाश तत्व का उदय हो (यह एक विरल संयोग है), तो साधक को दुर्लभ और विस्मयकारी अनुभव होंगे।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिन्दी की प्रगति से देश की सभी भाषाओं की प्रगति होगी!
स्वरोदय विज्ञान की जानकारी प्रदान कर आप एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंआभार।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआभार।
महत्वपूर्ण जानकारी पढ़ने को मिली ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी पढ़ने को मिली
बहुत अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी है । धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंउपयोगी आलेख के लिए आचार्य को शत-शत नमन !
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति के लिये, आप का धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंbahut upyogi jaankari prastut karne hetu dhanyavaad..
जवाब देंहटाएंआपका स्वरोदय विज्ञान हमेशा की तरह ही मह्त्वपूर्ण एवं उपयोगी जानकारी दे रहा है ।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी .
जवाब देंहटाएंस्वरोदय विज्ञान की जानकारी प्रदान कर आप एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंउपयोगी आलेख के लिए आचार्य को शत-शत नमन !
जवाब देंहटाएंश्रीराम शर्मा आचार्य ने श्वास पर नियंत्रण कर मनचाही सन्तान प्राप्त करने के उपाय बताए हैं। क्या आप इस बारे में कुछ लिखना चाहेंगे?
जवाब देंहटाएंस्वरोदय विज्ञान
जवाब देंहटाएंमैं तो इसे सीखना चाहूंगा
बतलाइये कब आऊं
आ भी सकता हूं
या नहीं।
स्वर-नियंत्रण से उम्र को थामने की बात भी कही गई है। इस पर कभी सविस्तार लिखें। बीच-बीच में यह भी बताया जाए कि किताबी बातों में से कौन-कौन सी बातें आपके स्वयं के द्वारा भी अनुभव-सिद्ध हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी ...आभार
जवाब देंहटाएंKuchh pathakon ne swar-sadhana evam isake bare men anubhav ke vishay men pucha hai. Unake uttar 9th ank ke bad dene ki koshish karunga.
जवाब देंहटाएंवाह !!!! कमाल की जानकारी बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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