अंक-9
स्वरोदय विज्ञान
आचार्य परशुराम राय
आवश्यकतानुसार स्वर को बदलने के कुछ सरल तरीके नीचे दिए जा रहे हैं।:-
(क) जिस स्वर को चलाना हो उसके उलटे करवट सिर के नीचे हाथ रखकर लेटने से स्वर बदल जाता है, अर्थात् यदि दाहिनी नासिका से स्वर प्रवाहित करना हो तो बायीं करवट थोड़ी देर तक लेटने से पिंगला नाड़ी चलने लगेगी। वैसे ही, दाहिनी करवट लेटने से इडा नाड़ी चलने लगती है।
(ख) जिस नासिका से साँस प्रवाहित करना चाहते हैं एक नाक बंद कर उस नाक से दस-पन्द्रह बार साँस दबाव के साथ धीरे-धीरे छोड़े और लें तो स्वर बदल जाता है।
(ग) फर्श पर बैठकर एक पैर मोड़कर घुटने को बगल में थोड़ी देर तक दबाए रहें और दूसरा फर्श पर सीधा रखें तो थोड़ी देर में जो पैर सीधा है उस नासिका से साँस चलने लगेगी।
(घ) फर्श पर बैठकर एक हाथ जमीन पर रखें और उसी ओर के कंधें को दीवार से लगाकर थोड़ी देर तक दबाए रखने से स्वर बदल जाता है।
(ड.) लम्बे समय तक यदि किसी एक स्वर को चलाने की आवश्यकता पड़े तो उक्त तरीकों से स्वर बदल कर शुध्द रूई की छोटी गोली बनाकर साफ कपड़े से लपेट कर सिली हुई गुलिका द्वारा एक नाक को बन्द कर देना चाहिए।
जिस प्रकार विभिन्न कार्यों का सम्पादन करने के लिए स्वर बदलने की आवश्यकता पड़ती है, वैसे ही तत्वों को बदलने की भी आवश्यकता भी पड़ती है। स्वरोदय विज्ञान के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति में एक स्वर की एक घंटें की अवधि के दौरान सर्वप्रथम वायु तत्व आठ मिनट तक प्रवाहित होता है, जिसकी लम्बाई नासिका पुट से आठ अंगुल (6 इंच) मानी गयी है। इसके बाद अग्नि तत्व बारह मिनट तक प्रवाहित होता है जिसकी लम्बाई चार अंगुल या 3 इंच तक होती है। तीसरे क्रम में पृथ्वी तत्व 20 मिनट तक प्रवाहित होता है और इसकी लम्बाई बारह अंगुल या नौ इंच तक होती है। इसका विवरण इसके पहले दिया जा चुका है। यहाँ संदर्भ के लिए इसलिए लिया गया है ताकि यह समझा जा सके कि तत्वों के प्रवाह को बदलने के उनकी लम्बाई का ज्ञान और अभ्यास होना आवश्यक है और यदि हम स्वर की लम्बाई को तत्वों के अनुसार कर सकें तो स्वर में वह तत्व प्रवाहित होने लगता है।
स्वरोदय विज्ञान अत्यन्त सूक्ष्म एवं जटिल विज्ञान है। इसका अभ्यास इस विज्ञान के सुविज्ञ गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। क्योंकि इसके अभ्यास द्वारा अत्यन्त अप्रत्याशित और अलौकिक अनुभव होते हैं, जो हमारे मानसिक संतुलन को बिगाड़ सकते है। इस निबन्ध का उद्देश्य मात्र स्वरोदय विज्ञान से परिचय कराना है और साथ ही यह बताना कि अपने दैनिक जीवन में, जैसा कि ऊपर संकेत किया गया है, इसकी सहायता निरापद ढंग से कैसे ली जा सकती है अर्थात् जिसके लिए इस विज्ञान के गहन साधना की आवश्यकता नहीं है।
एक अच्छा पोस्ट/आलेख .स्वरोदय विग्यान से परिचय कराने के लिये राय जी आपका आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और उपयोगी पोस्ट। हमारे रिशी मुनी सही मायने मे बहुत बडे साईस विग्य थे जिन्होंने बिना किसी मशीनों के इतने अच्छे अच्छे अविश्कार किये। नमन है उन महान आत्माओंको। धन्यवाद और शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी और जनकारी से भरा पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
मशीन अनुवाद का विस्तार!, राजभाषा हिन्दी पर रेखा ष्रीवस्तव की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंमशीन अनुवाद का विस्तार!, राजभाषा हिन्दी पर रेखा श्रीवास्तव की प्रस्तुति, पधारें
स्वरोदय विज्ञान के माध्यम से आपने हमारे प्राचीन चिकित्सा पद्धति से परिचय कराया.. निवेदन है कि ऐसी ही कोई और श्रृंखला शुरू करें
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर और शानदार समीक्षा प्रस्तुत किया है आपने! सार्थक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंUthsah badhane ke liye sabhi paathkon ko dhanyavad
जवाब देंहटाएंआचार्य श्री परशुराम राय जी और मनोज जी
जवाब देंहटाएंशृंखला स्वरोदय विज्ञान के लिए आप दोनों को बधाई और आभार !
और भी उपयोगी तथा ज्ञानवर्द्धक आलेखों तथा शृंखलाओं के लिए आपसे प्रत्याशाएं हैं ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
स्वरोदय विज्ञान के सभी अंक बहुत ही शिक्षाप्रद रहे!
जवाब देंहटाएं@ राजेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंआप जैसे सुधीजनों की हौसला अफ़ज़ाई से हमारा मनोबल बढता है। टिप्पणी की कम संख्या होना हमें हतोत्साहित नहीं करता। कुछ ऐसी ही चीज़ों को हम पेश करते रहेंगे जिसका ब्लॉग पर अभाव है।
इस समस्त जान्कारी को श्रंखलाबद्द करने के लिये आपको हार्दिक बधाई और आभार. बहुत ही महती कार्य किया है आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
saarthak post!
जवाब देंहटाएंtreasurable knowledge shared:)
thanks and regards,
पूरी श्रृंखला ज्ञानवर्द्धक और एक हद तक चमत्कृत करने वाली थी। आभार।
जवाब देंहटाएंमुझे उम्मीद है कि इस श्रृंखला से नए पाठक तो लाभान्वित हुए होंगे ही,जो थोड़ा-बहुत परिचित थे,उनके लिए भी यह रिफ्रेशर कोर्स जैसा रहा होगा। मुझे लगता है,सरकार को इसके पेटेंट की ओर ध्यान देना चाहिए।
जवाब देंहटाएंपूरी श्रृंखला ज्ञानवर्द्धक और एक हद तक चमत्कृत करने वाली थी। आभार।
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