खामोश यूँ लेटे हुए….मनोज कुमार |
तेरे अक्स ख़्वाबों में समेटे हुए खामोश यूँ लेटे हुए यादों में सोचता हूँ उस गुलशन में तेरे साथ गुज़रे पल और झर रहे फूलों के बीच दबे पांव तेरा आना। कभी देखा था ख़ाब कि तमाम उम्र इसी बगिया में हम साथ चलते रहेंगे..... पर हाथ छुड़ा कर जो गुम हुए तुम तबसे थम से गए हैं कदम। बिस्तर पर तन्हां से हम लेटे ज़रूर पर तुम्हारी यादों की सरसराहट बन्द पलकों को खोल देती है या मानों तेरी यादें आंखों में अंटक-सी गईं हैं!! |
ये अदा बड़ी अच्छी है ...चलो आशिक सा हो जाता हूं
जवाब देंहटाएंदिल को छू गई आपकी ये रचना...बेहतरीन
very nice ....really nice
जवाब देंहटाएंacchaa jee aap tp chupa rustum nikle................
जवाब देंहटाएंप्यार के गहरे एहसास
जवाब देंहटाएंइस उमर में ये एह्सास..लगता है दर्द ने करवट ली है!!
जवाब देंहटाएंआँखों में अटकी यादों की सुन्दर कविता ...!
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव निकल रहे हैं आपकी लेखनी से।
जवाब देंहटाएंआभार।
लेटे लेटे कभी कभी कितने आसमां नाप डालते हैं हम।
जवाब देंहटाएंगजब!
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल से भावों को संजोये है यह नज़्म ...
जवाब देंहटाएंसच यही लग रहा है कि किसी दर्द ने करवट ली है ...कुछ यादों में अटकी अटकी ..और यादों को भटकाती सी नज़्म
कई बार सोचती हूँ कि आँखें चेहरे या होठों की तरह सूखी क्यों नही होती? लगता है पलकें बिना बरसे चली गयी घटाओं की कुछ नमी खुद मे समेटे रहती हैं। ये मेरी अगली पोस्ट का विषय है।बहुत अच्छी लगी रचना शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंप्रसाद की पंक्तियाँ याद आ गईं -
जवाब देंहटाएंजो घनीभूत पीड़ा थी .मस्तक में स्मृति सी छाई ...
या मानों तेरी यादें आंखों में अंटक-सी गईं हैं!!
जवाब देंहटाएंवाह्………………जज़्बातों को बखूबी पिरोया है।
बहुत सुंदर जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंsach yaden hi hain to hain jo rah jati hain hamare pas
जवाब देंहटाएंवाह...वाह!
जवाब देंहटाएंआपने तो बहुत ही हसीन ख्वाब देखा है!
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और इस ख्वाब से भी ज्यादा
हसीन रचना को जन्म दे दिया!
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इस कलाम को सलाम!
तुम्हारी यादों की सरसराहट
जवाब देंहटाएंबन्द पलकों को खोल देती है
या मानों तेरी यादें
आंखों में अंटक-सी गईं हैं!!
ये पंक्तियाँ जैसे सब अनकहा बयान करती हैं ...बहुत सुन्दर
कोमल भावों की मोहक अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
तुम्हारी यादों की सरसराहट
जवाब देंहटाएंबन्द पलकों को खोल देती है
या मानों तेरी यादें
आंखों में अंटक-सी गईं हैं!!
बहुत सुंदर
वाह , क्या अभिव्यक्ति है , खूबसूरत रचना और भाव .
जवाब देंहटाएंवाजी वाह, आज तो आपने क़त्ल कर दिया मनोज जी !
जवाब देंहटाएं@ संजय जी,
जवाब देंहटाएंज़रूर हो जाइए आशिक़-सा! ज़िन्दगी को फिर से जीने के लिए बहुत ज़रूरी है।
@ अपनत्व जी,
जवाब देंहटाएंकभी-कभी मेरे दिल में भी ख़्याल आता है, तो बस यह सब निकल आता है।
@ अजय कुमार जी,वाणी जी, हरीश जी,
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आभारी हूं।
@ सलिल जी,
जवाब देंहटाएंआपतो बड़े भाई हैं, आपसे क्या कहें? एक शे’र अर्ज़ कर देते हैं,
बिछुड़े हुओं की याद कहीं आस-पास है
बारिश की पहली शाम का मंज़र उदास है
---"सायों के साये में" -- शीन काफ़ निज़ाम, इन्हीं का ज़िक्र किया था आज जब आपके दफ़्तर में मिले थे।
@ प्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंएक शे’र में कहूं तो ये लेटे-लेटे आसमां मापने के ख़्यालात इसलिए कि
जब से गई है छोड़कर आवारगी मुझे
मैं ज़िन्दगी को ढूंढता हूं ज़िन्दगी मुझे
@ समीर जी, राज जी, गजेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद।
@ प्रतिभा जी,
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन की इन पंक्तियों के लिए आभार।
तन्हां से हम
जवाब देंहटाएंलेटे ज़रूर
पर
तुम्हारी यादों की सरसराहट
बन्द पलकों को खोल देती है
यादें तो ऐसी ही होती हैं जी...लगता है पहली बार अनुभव हुआ है...:)
सुंदर रचना.यादो में लिपटी सी.
कभी
जवाब देंहटाएंदेखा था ख़ाब
कि तमाम उम्र
इसी बगिया में हम
साथ चलते रहेंगे.....
sunder panktiyan!
Beautiful imagination !
जवाब देंहटाएं@ संगीता जी
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर सम्मान देने के लिए आभार।
बाक़ी दर्द की करवट पर अर्ज़ है
उन को हमारे वास्ते फ़ुर्सत नहीं रही
यानी उन्हें हमारी ज़रूरत नही रही
सन्नाटे शोर करते हैं जाएं कहीं पे हम
अब ख़्वाब में भी हम को तो ख़िल्वत नहीं रही
@ अनामिका जी
जवाब देंहटाएंआभार आपका। बस आख़री बार है.. पहली का तो नहीं कह सकता
अब कोई दोस्त नया क्या करना
भर गया ज़ख़्म हरा क्या करना
मनोज जी… होता है , होता है!
जवाब देंहटाएंन हाथ थाम सके, ना पकड़ सके दामन,
बहुत क़रीब से उठकर चला गया कोई.
समेट कर रखिए इन यादों को, ये ख़ज़ाने तुम्हें मुमकिन है ख़राबोंमें मिलें!!!
... bahut sundar !!!
जवाब देंहटाएं@ उदय जी, दिव्या जी, गुडिया जी,
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आभार।
@ संवेदना के स्वर
जवाब देंहटाएंआभार आपका,
इस तरह से जीते हैं इस दौर में डरते डरते
ज़िन्दगी करना भी अब एक ख़ता हो जैसे
Kavita ke baav badehe komal hain... Dhanyawaad...
जवाब देंहटाएं@ राय जी,
जवाब देंहटाएंआशीष और स्नेह बनाए रखें
आभार आपका।
@ वीना जी, प्रेम नारायण जी, रंजना जी, शिखा जी
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आभार।
@ निर्मला दीदी,
जवाब देंहटाएंआशीष बनाए रखें।
@ वंदना जी, राज भाटिया जी, रचना जी,शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।
आभार आपका।
बहुत सुंदर कल्पना .. अच्छी अभिव्यक्ति !!
जवाब देंहटाएंदिल को छू गई आपकी ये रचना...
जवाब देंहटाएंपुरानी यादें समेटे यह रचना दिल को छूने में कामयाब रही है भाई जी ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति। दिल को छू गई आपकी ये रचना..!
जवाब देंहटाएंबड़ी मासूम सी कविता है भाई ।
जवाब देंहटाएंमानों तेरी यादें
जवाब देंहटाएंआंखों में अंटक-सी गईं हैं!!
WAH, MANOJ JI behatareen.
बड़ी ही सुन्दर व स्मृतियों को झकझोर देने वाली कविता!!
जवाब देंहटाएंकई भावों को एक साथ समेटा है आपने कविता में ..किसी के होने और न होने के अहसास की सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंDil ko chune me samarth behatarin rachana.
जवाब देंहटाएंGyanChand Marmagya
Dil ko chune me samarth behatarin rachana.
जवाब देंहटाएंGyanChand Marmagya
ek seedhi-saadi, bholi-si aur isi vajah se kasak paida karti kavita..
जवाब देंहटाएंयादें ..... अक्सर यादें पलकों में अटकी रहती हैं ... प्रेम के गहरे एहसास लिए लिखा है आपने इसे ...
जवाब देंहटाएंबिस्तर पर तन्हां से हम लेटे ज़रूर पर तुम्हारी यादों की सरसराहट बन्द पलकों को खोल देती है.....
जवाब देंहटाएंbeeti yaadon ka bahut sundar safar..dil ko chhoo liya..bahut sundar..aabhar.
Bahut khoobsurati se bhavon ko prakat kiya hai aapne iss kavita ke zariye...bahut sundar rachna...sadhuwaad.
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