वो नियमित समय से कार्यालय पहुँचते थे। सभी कार्य नियमानुकूल करते थे। हाकिम को उन्होंने कभी भी शिकायत का मौका नहीं दिया। लेकिन वही रमण बाबू जब घर पहुँचते थे तो पता नहीं उन्हें क्या हो जाता था...? पत्नी पर कड़क के बोलना... बच्चों से ऐसा व्यवहार मानो वे इनके आदेशपाल हों। उस पर से पचासों प्रश्न.... ! हमेशा तमतमाए हुए। उस दिन रमण बाबू संयमित थे। अवसर जान पत्नी ने मधुर स्वर में पूछा, "आपको घर आते ही क्या हो जाता है? ऐसे खिसियाये हुए और खिन्न क्यूँ रहते हैं?” रमण बाबू उस दिन सच में प्रसन्न थे। बोले, "असल में साहेब के साथ रहते-रहते मुझे भी कभी-कभी साहेब बनने का शौख चढ़ जाता है।" बोलते हुए रमण बाबू की मुख-मुद्रा फिर से तनावग्रस्त हो गयी थी। (मूल कथा मैथिली में 'अहीं के कहै छी' में संकलित 'शौख' से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित) |
ab samjh me aaya........tevar logo ke kyo chade rahte hai.........
जवाब देंहटाएंjo hai us post se khush nahee......?
bichare beebee bacche.........
sandesh detee laghu katha.
ऐसी लघुकथा और ऐसा अनुवाद कि पढने वाले को आप सोचने को मजबूर कर दें..बस यहीं देखने को मिलती है… एक साहब का एक कुत्ता घर के सारे काम करता था. एक रोज़ उनके किसी मेहमान ने उस कुत्ते को बॉस कह दिया..उस दिन से वो घर के कमरे में बैठा दुम हिलाता है और भौंकता रहता है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना!!
अच्छी लघुकथा है।
जवाब देंहटाएं"असल में साहेब के साथ रहते-रहते मुझे भी कभी-कभी साहेब बनने का शौख चढ़ जाता है।"... madhyam vargeey samaj me aisa hi hota hai.. sunder laghu katha! prabhavshali... aamtaur par hum sab aisa hi karte hian!
जवाब देंहटाएंye damit ichchayen hai jo kahin na kahin prasphutit hoti hai. chahe wo boss banana ho ya phir koi aur matvakanksha, roop bhinn ho sakata hai>
जवाब देंहटाएंachchi aur sandesh purn laghu katha ke niye satendra ji ko badhai.
हाहा हा अच्छी लगी लघु कथा। सही बात है आदमी को कभी तो लगना चाहिये कि वो भी बास है? वर्ना घर मे भी नौकर और बाहर भी। आभार।
जवाब देंहटाएंलगा अपनी आत्मकथा पढगया इस लघुकथा में।
जवाब देंहटाएंबहुत सही है ...बौस बनने का शौक तो पूरा हो जाता है पर बेचारे बीवी बच्चों से पूछिए ...
जवाब देंहटाएंअच्छी लघु कथा ...
ek achchi Laghukatha maanviya samvedana ki samwaahak hoti hai.
जवाब देंहटाएंchote me kahi baat ka badaa asar hi eski pahchaan hai.
etani sundar laghukatha padwane ke liye dhanyawaad.
-GyanChand Marmagya.
एकदम सटीक कहा है .बॉसपना झाड़ने के लिए बीबी बच्चों से बेहतर कौन मिलेगा.
जवाब देंहटाएंकम से कम ९५% घरों/परिवारों की कथा है यह....
जवाब देंहटाएंस्थिति और मनोविज्ञान का सटीक चित्रण किया गया है इस कथा में...
आभार आपका...
यह अनूदित लघुकथा तो बहुत प्रेरणादायी रही!
जवाब देंहटाएंअच्छी ... सच के करीब है बहुत ये लघु-कथा ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर लघुकथा है
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा
Kabhi - Kabhi Boss banane ke lie apne bibi aur bachchon per barash paro. Ek pathak k rup me Karan ji ke likh per barash paro.
जवाब देंहटाएंSach main vyakti ki manovegyanik stiti ka parikshsan kiya hai. aaj ke sandharve mai yeh laghu katha satik pratit hoti hai.
जवाब देंहटाएंSunder abhivyakti.........!
Dhanyavaad
संगत का असर आ ही जाता है. पर बीबी बच्चों को भी चाहिये की इन महाशय को चुपचाप झेलने की बजाये कुछ राशन पानी दिया करें तभी इनका इलाज हो पायेगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
यह मनोदशा चिन्तनीय है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया कथा है ।
जवाब देंहटाएंसंगत का असर
जवाब देंहटाएंकार्यस्थल का माहौल व्यक्तित्व को प्रभावित करता ही है।
जवाब देंहटाएंबीवी घोंचू लगती है। एक दिन अवसर मिला भी तो उसे भी तनाव में ही गुजार दिया। उस पल का सदुपयोग दोनों के दाम्पत्य जीवन का निर्णायक क्षण हो सकता था।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंयानी कि सारा दिन दफ्तर में जो दिल पर बीत रही है - वो परिवार के बाकी सदस्यों के दिल पर शाम को भी बीते.
अच्छी प्रस्तुति.
बहत अच्छी लगी यह लघुकथा........
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंकाव्य प्रयोजन (भाग-१०), मार्क्सवादी चिंतन, मनोज कुमार की प्रस्तुति, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
Bahut sundar laghukatha..hakikat ko bakhoobi bayaan kiya hai...
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