पिछले दिनों फ़ुरसत से फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा “अक्षरों के साये” पढा। इसके प्रकाशन के बीस वर्ष पूर्व उन्होंने “रसीदी टिकट” (1977 ) लिखा था। यह आत्मकथा अध्यात्म से जुड़े धरातल पर उनके समग्र जीवन का विवरण प्रस्तुत करती है। उनके चिंतन का कमाल हमारे सामने एक नितांत नवीन दुनिया के भीतर झांककर देखने की उनकी अदम्य इच्छा के रूप में आता है। “दुनिया में रिश्ता एक ही होता है – तड़प का, विरह की हिचकी का, और शनाई का, जो विरह की हिचकी में भी सुनाई देती है – यही रिश्ता साहिर से भी था, इमरोज़ से भी है…”- हिंदी तथा पंजाबी लेखन में स्पष्टवादिता और विभाजन के दर्द को एक नए मुकाम पर ले जाने वाली अमृता प्रीतम ने अपने साहस के बल पर समकालीन महिला साहित्यकारों के बीच अलग जगह बनाई। अमृता जी ने ऐसे समय में लेखनी में स्पष्टवादिता दिखाई, जब महिलाओं के लिए समाज के हर क्षेत्र में खुलापन एक तरह से वर्जित था। एक बार जब दूरदर्शन वालों ने उनके साहिर और इमरोज़ से रिश्ते के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा,
अमृता जी का साहस और बेबाकी उन्हें अन्य महिला लेखिकाओं से अलग पहचान दिलाई। जिस जमाने में महिलाओं में बेबाकी कम थी, उस समय उन्होंने स्पष्टवादिता दिखाई। यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था। 1963 की बात है। विज्ञान भवन में एक सेमिनार था। उसमें लेखिका ममता कालिया ने उनसे पूछा कि आपकी कहानियों में ये इंदरजीत कौन है? इसपर अमृता जी ने एक दुबले पतले लड़के को उनके आगे खड़ा करते हुए कहा, “इंदरजीत ये है। मेरा इमरोज़।” उनके इस खुले तौर पर इमरोज को मेरा बताने पर वो चकित रह गई। क्योंकि उस समय इतना खुलापन नहीं था। इसी तरह से उनका बेबाकी से स्वीकार करना कि यह साहिर की मुहब्बत थी, जब लिखा … फिर तुम्हें याद किया, हमने आग को चूम लिया इश्क ज़हर का प्याला सही, मैंने एक घूंट फिर से मांग लिया और इमरोज़ की सूरत में – अहसास की इन्तहा देखिए, एक दीवनगी का आलम ही था, कलम ने आज गीतों का काफ़िया तोड़ दिया मेरा इश्क यह किस मुकाम पर आया है। उठो! अपनी गागर से-पानी की कटोरी दे दो मैं राहों के हादसे, उस पानी से धो लूंगी- अमृता जी की रचनाएं बनावटी नहीं होती थी। यह उनकी लेखिनी को खास बनाता है। अमृता जी जो भी लिखती थी, उसमें आम भाषा की सरलता झलकती थी। यही उनकी रचनाओं को लोकप्रिय बनाता था। “अक्षर-जो कागजों पर उतरते रहे, वे सबके सामने हैं-इसलिए मुझे और कुछ नहीं कहना। लगता है, मैं सारी ज़िंदगी जो भी सोचती रही, लिखती रही, वह सब देवताओं को जगाने का प्रयत्न था, उन देवताओं को जो इन्सान के भीतर सो गए हैं....” विभाजन के बाद अमृता लाहौर से भारत आई थी। लेकिन उन्हें दोनों देशों में अपनी रचनाओं के लिए ख्याति मिली। 1956 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली वो पहली महिला थी। 1969 में पदमश्री और पद्म विभूषण से नवाजा गया। 1982 में उन्हें कागज ते कैनवास के लिए साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार, ज्ञानपीठ मिला। 1986 से 1992 तक वो राज्यसभा की सदस्य रहीं। 2003 में उन्हें पाकिस्तान की पंजाबी अकादमी ने भी पुरस्कृत किया। इस पर उन्होंने कहा था , बड़े दिनों बाद मेरे मायके को मेरी याद आई। हालाकि अमृता जी का उपन्यास पिंजर भी विभाजन के दर्द को अलग तरह से दिखाता है, पर उन्हें सबसे ज्यादा उनकी कविता “अज अक्खां बारिस शाह नू” के लिए जाना जाता है। इसमें उन्होंने विभाजन के दर्द को मार्मिक तौर पर पेश किया है। ज़मीन पर लहू बहने लगा- इतना- कि कब्रें चूने लगीं और मुहब्बत की शहज़ादियां मज़ारों में रोने लगीं… सभी कैदों में नज़र आते हैं हुस्न और इश्क को चुराने वाले और वारिस कहां से लाएं हीर की दास्तान गाने वाले… तुम्हीं से कहती हूं-वारिस! उठो! कब्र में से बोलो और इश्क की कहानी का कोई नया वरक खोलो… उनकी आत्मकथा “रसीदी टिकट” उनकी कालजई रचनाओं में से एक है। “रसीदी टिकट” में दिए जीवन के ब्योरे में यथार्थ की अनुगुंज अधिक सुनाई पड़ती है और सबकुछ अपनी मुट्ठी में बंद करने की ऊर्जा भी सक्रिय दिखती है। लेकिन उनकी इस पुस्तक “अक्षरों के साये” तक आते-आते उनकी परिपक्वता चरमोत्कर्ष पर है। सबसे नायाब चीज़ उन्हें प्रेम का मोती मिला, उसकी चमक आध्यात्मिक चमक के रूप में आलोकित करने का प्रयास किया है। कहती हैं,
उन्होंने इस अत्मकथा में मानवता की स्थापना पर अपनी बेबाक टिप्पणी लिखी है। साम्प्रदायिकता को भी दरकिनार कर दिया है, और एक मुक्कमल लेखिका के रूप में हमारे सामने प्रकट होती हैं। कोई अपने हाथ में पत्थर उठाता है तो पहला ज़ख्म इंसान को नहीं, इंसानियत को लगता है। और सड़क पर जो पहली लाश गिरती है, वह किसी इंसान की नहीं होती, इंसानियत की होती है… उनका मानना है मज़हब के नाम पर जितना कत्लो-खून हुआ वह हमारे देश की स्वंतंत्रता का बहुत बड़ा उलाहना है … जैसे इश्क की ज़बान पर एक छाला उभर आया हो जैसे सभ्यता की कलाई से एक चूड़ी टूट गई हो इसी तरह इस पुस्तक में कलम के कर्म के बारे मे बताते हुए कहती हैं कि इसके अनेक रूप होता है: वह बचकाने शौक में से निकले तो जोहड़ का पानी हो जाता है; अगर सिर्फ़ पैसे की कामना में से निकले तो नकली माल हो जाता है; अगर सिर्फ़ शोहरत की लालसा में से निकले तो कला का कलंक हो जाता है; अगर बीमार मन में से निकले तो ज़हरीली आबोहवा हो जाता है; अगर किसी सरकार की ख़ुशामद में से निकले तो जाली सिक्का हो जाता है। वो एक मात्र कवयित्री हैं जो तुलिका से कविता को चित्रित करती हैं और उसके रंगों का चयन देख कर दांतों तले उंगली चली जाती है। बानगी देखिए ज़रा, लग रहा है मानों सारे अक्षर चांद पर से गिर रहे हैं। मेरी खामोशी की गली से अक्षरों के साए गुजरते रहे चांद की मटकी से जब- कतरे से कुछ गिरते रहे रात की दहलीज़ पर- तारे दुआ करते रहे… अज्ञेय रचित “शेखर एक जीवनी” उपन्यास की पंक्ति है “दर्द से भी बड़ा विश्वास है।” …. यही विश्वास अमृता प्रीतम के लेखन में दिखता है और यही बल उन्हें इस मुकाम पर पहुंचाता है। कभी तो कोई इन दीवारों से पूछे- कि कैसे इबादत गुनाह बन गई थी |
शनिवार, 11 सितंबर 2010
फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा “अक्षरों के साये”
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अमृताप्रीतम जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर सारगर्भित पोस्ट।
जवाब देंहटाएंबेहद आभार अमृता जी से जुड़े इस सुन्दर और रोचक आलेख के लिए.....
जवाब देंहटाएंregards
ांअमृ्ता जी को शत शत नमन और उनके व्यक्तित्व को लिखने वाली कलम को भी नमन।अपको भी ईद मुबारक हो।
जवाब देंहटाएंkalam ki baadshahiyat thi amrita ji ke paas
जवाब देंहटाएंAmrita ji ki atmakatha parichay karane ke liye sadhuvad. Id ki sabhi ko mubarakvad.
जवाब देंहटाएंअमृता प्रीतम जी के बारे में
जवाब देंहटाएंआपने जनकारीपरक पोस्ट लगाई है!
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बहुत-बहुत बधाई!
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ईद और गणेशचतुर्थी की शुभकामनाएँ!
अमृता जी से रु - ब रु कराने के लिए आभार ...बहुत अच्छा वर्णन ...
जवाब देंहटाएंअमृता जी के बारे में इस आलेख के लिये आभार, गणेश चतुर्थी एवम ईद की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अमृता प्रीतम जी के बारे में इतनी बढ़िया जानकारी के लिए आभार. बहुत रोचक अभिव्यक्तियों से रु-ब-रु करवाया .
जवाब देंहटाएंईद और गणेशचतुर्थी की शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंएक उपयोगी और सार्गर्भित पोस्ट.
जवाब देंहटाएंईद की बधाई.
यह आलेख प्रस्तुत करने के लिये आभार.ईद की बधाई और शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंसारगर्भित बढिया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंअमृता प्रीतम जी के बारे में लिखने वाली कलम को नमन....
जवाब देंहटाएंबधाई !
अमृता जी के बारे मे जहाँ भी पढा और जो भी पढा हमेशा ही उनके व्यक्तित्व का एक नया चेहरा ही सामने आता है………………उनकी लेखनी को सलाम और आपका आभार जो आपने यहाँ प्रस्तुत करके हमे अनुगृहीत किया।
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंआपसे हुई पिछली मुलाक़ात में जब आपके हाथ में वो किताब देखी थी तभी से इंतज़ार में था कि कब आप हमारी मुलाक़ात करवाएँगे अमृता प्रीतम जैसी महान विभूति से. और आज जब आपने फुर्सत में यह लिखा तो लगा जैसे कि आपने इस महान साहित्यकार को एक ब्लॉग पोस्ट में समेट दिया हो मानो एक रसीदी टिकट के पीछे के कोरे हिस्से पर लिखी बात. उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को जिस प्रकार आपने एक पोस्ट में समेटा है वो निश्चित तौर पर प्रशंसा के योग्य है.
मेरे होठों पर यह सब लिखते हुए एक मुस्कान भी फैली है...जानते हैं क्यों?? यह सोचकर कि जो व्यक्ति एक हाथ में अमृता प्रीतम और दूसरे हाथ में सुरेंद्र मोहन पाठक लिए घूमता हो उसकी लेखनी का विस्तार का अनुमान लगाना कठिन ही नहीं असम्भव है!!
... ab kyaa kahen ... bas doob ke jaa rahe hain ... behatreen post !!!
जवाब देंहटाएंईद,तीज और गणेशचतुर्थी की आपको भी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ,अमृता जी जैसे महान हस्ती के बारे में जानकारियां देने के लिए आभार ...
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें ! भगवान श्री गणेश आपको एवं आपके परिवार को सुख-स्मृद्धि प्रदान करें !
जवाब देंहटाएंअमृता जी से जुड़े सुन्दर और शानदार आलेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा!
शानदार, सारगर्भित आलेख। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं@ प्रवीण जी,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
मनोज
@ सीमा जी
जवाब देंहटाएंआलेख को आपने पसंद किया।
धन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
मनोज
@ निर्मला दीदी
जवाब देंहटाएंसच में उनका कलम नमन करने वाला ही है।
धन्यवाद! प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ रश्मि जी
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा कि कलम की बदशाहियत थी अमृता जी के पास।
धन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ परशुराम जी
जवाब देंहटाएंआशीर्वाद बनाए रखें।
@ शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंआपकी उपस्थिति ऊर्जा प्रदान करती है।
धन्यवाद! प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ संगीता जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ ताऊ जी
जवाब देंहटाएंआपका आना बल प्रदान कर गया।
धन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
अमृता जी जैसी हस्ती का परिचय करने के लिए धन्यवाद| अब में उनकी कुछ रचनाएँ ढूंढता हूँ|
जवाब देंहटाएं@ अनामिका, राज जी, शमीम,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ बुझो तो जाने, गोदियाल जी, हरदीप जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद! प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ वन्दना जी,
जवाब देंहटाएंआपका आभार धन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
@ सलिल जी,
जवाब देंहटाएंआपके संवेदना के स्वर भीजा गए।
आब इस पर "एक हाथ में अमृता प्रीतम और दूसरे हाथ में सुरेंद्र मोहन पाठक " का कहें ....
बस हम तो ऐसे ही है।
@ उसय जी, बबली जी, नीलन जी, झा जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
अमृता प्रीतम जी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर जनकारीपरक पोस्ट प्रस्तुत करने के लिये आभार....
जवाब देंहटाएंगणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ
अमृता जी के बारे में इस आलेख के लिये आभार..!
जवाब देंहटाएंअमृता जी को और अच्छे से जानकर और आपकी पारखी नज़र से जानकर अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंबस निम्न पंक्ति के साथ अपनी एक बात जोडनी/कहनी थी..
" जिस जमाने में महिलाओं में बेबाकी कहीं नहीं थी,
उस समय उन्होंने स्पष्टवादिता दिखाई। यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था। "
इस दौर की शुरुआत शायद इस्मत चुगताई कर चुकी थीं.. ’कमला दास’ ने भी तब तक केरला में एक अनामी नाम से बेबाक लेखन शुरु कर दिया था इसलिये महिलाओं की बेबाकी ’कहीं नहीं थी’ की जगह शायद ’कम थी’ कहना सही हो..
उपयोगी ज्ञानवर्धक आलेख।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
jankari kai liya sadhanavad
जवाब देंहटाएंमेल से प्प्तराप्त हुआ पंकज उपाध्याय के विचार
जवाब देंहटाएं010/9/12 Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय)
Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने आपकी पोस्ट " फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा “अक्षरों के... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
अमृता जी को और अच्छे से जानकर और आपकी पारखी नज़र से जानकर अच्छा लगा..
बस निम्न पंक्ति के साथ अपनी एक बात जोडनी/कहनी थी..
" जिस जमाने में महिलाओं में बेबाकी कहीं नहीं थी,
उस समय उन्होंने स्पष्टवादिता दिखाई। यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था। "
इस दौर की शुरुआत शायद इस्मत चुगताई कर चुकी थीं.. ’कमला दास’ ने भी तब तक केरला में एक अनामी नाम से बेबाक लेखन शुरु कर दिया था इसलिये महिलाओं की बेबाकी ’कहीं नहीं थी’ की जगह शायद ’कम थी’ कहना सही हो..
@ पंकज जी
जवाब देंहटाएंअच्छी जनकारी दी आपने। सुधार कर देता हूं।
मेल द्वारा
जवाब देंहटाएंfrom Pankaj Upadhyay
बहुत अच्छा लगा आपका यूं सहजता से मुझे लिखना वरना लोग बुरा मान जाते हैं.. थैंक्स मनोज जी..
@ पंकज जी
जवाब देंहटाएंयहां तो हम एक दूसरे से जनने-सीखने के लिए आए हैं, इसमें हर्ज़ क्या है कि मान लिया कि मैं यह नहीं जानता था।
बल्कि आपने बता कर अच्छा ही किया और इसे मैं दुरुस्त कर लूंगा। न सिर्फ़ ब्लॉग पर अपनी जानकारी में भी।
बल्कि मुझे तो आपको आभार प्रकट करना चाहिए था, पहली बार में ही।
अभी कर लेता हूं।
धन्यवाद!
रोचक आलेख. अमृता प्रीतम जी के बारे में इतनी बढ़िया जानकारी के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंअमृता जी के बारे में इतनी जानकारी देना का आभार ..
जवाब देंहटाएंसारगर्भित पोस्ट.
वाह! बहुत सुंदर। अमृता जी के बारे में बहुत अच्छी जनकारी प्राप्त हुई।
जवाब देंहटाएंमेल से प्राप्त टिप्पणी
जवाब देंहटाएंAshish Verma to me
show details 1:02 PM (7 hours ago)
मनोज जी, कुछ posts पढ़े आपके ब्लॉग पर. वाकई उम्दा थे. खासकर अमृता प्रीतम जी पर आपका post.
पढने का शौक तो मुझे बचपन से है पर अभी तक ज्यादा तर अंग्रेजी किताबें ही पढ़ी थी. हाल ही में हिंदी साहित्य पढना शुरू किया है. अमृता प्रीतम जी को नहीं पढ़ पाया हू अब तक, अब आपकी post पढने के बाद उनको भी पढूंगा.
हिंदी में जिन लेखकों को मैंने अभी तक पढ़ा है वो हैं रही मासूम रज़ा, धरमवीर भारती, प्रेमचंद, भगवती चरण वर्मा. इनके उपन्यास काफी पसंद आए मुझे.
कृपया बताएं की और कौन कौन से लेखक हैं जिन्हें मै पढू. दरअसल अंग्रेजी उपन्यासों के reviews के लिए हजारों sites हैं लेकिन हिंदी उपन्यासों और लेखकों के बारे में जानकारी कम उपलब्ध है. मेरे दोस्तों और जानकारों में भी हिंदी साहित्य के शौक़ीन कम हैं. अगर आप मेरा मार्गदर्शन करें तो बहुत मेहेरबानी होगी.
मेरा blog 'आवारा सजदे' पढने और टिप्पणियां देने के लिए तहे दिल से आभार.
- आशीष
बेहद आभार अमृता जी से जुड़े इस सुन्दर और रोचक आलेख के लिए..!
जवाब देंहटाएंअमृता प्रीतम जी के बारे में इतनी बढ़िया जानकारी के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंअमृता प्रीतम जी के बारे में
जवाब देंहटाएंआपने जनकारीपरक पोस्ट लगाई है!
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बहुत-बहुत बधाई!
बहुत बढ़िया, सार्थक और रूचिवर्द्धक. अब तो रसीदी टिकट कता के अक्षरों के साए में आना ही पड़ेगा... ! सुन्दर !! धन्यवाद !!!
जवाब देंहटाएं@ अमृता जी, अदा जी, हास्यफुहार जी, करण जी, रीता जी, जुगल जी, प्रेमसरोवर जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
ये सच है विभाजन के सच को जीतने सहज रूप से अमृत जी ने लिखा है ..... कोई सानी नही है उसका ...
जवाब देंहटाएंसारगर्भित उम्दा पोस्ट के लिए आभार। अमृता प्रीतम की किसी पुस्तक को जब भी पढ़ कर खतम करता . ..लगता कि पूरी पढ़ ली..तभी मन कहता...अभी और पढ़ो!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएं