शुक्रवार, 4 मार्च 2011

शिवस्वरोदय-33

आचार्य परशुराम राय

पीतवर्णं चतुष्कोणं मधुरं मध्यमाश्रितम्।

भोगदं पार्थिवं तत्त्वं प्रवाहे द्वादशाङ्गुलम्।।169।।

अन्वय - पार्थिवं तत्त्वं पीतवर्णं चतुष्कोणं मधुरं मध्यमाश्रितम् भोगदं प्रवाहे (च) द्वादशाङ्गुलम्।

भावार्थ – पृथ्वी तत्त्व का पीला, वर्ग का आकार, मधुर स्वाद, गति मध्य और प्रवाह बारह अंगुल (लगभग नौ इंच) होता है। इसे भोग-विलास के लिए उपयुक्त बताया गया है।

English Translation – Prithvi Tattva has yellow colour, shape of square, sweet taste, motion in the middle and twelve fingers (about nine inches) length of breath during its appearance. It is considered to be suitable for worldly enjoyment.

श्वेतमर्धेन्दुसंकासः स्वादु काषायमार्द्रकम्।

लाभकृद्वारुणं तत्त्वं प्रवाहे षोडशाङ्गुलम्।।170।।

अन्वय - वारुणं तत्त्वं श्वेतमर्धेन्दुसंकासः स्वादु काषायमार्द्रकं लाभकृत् प्रवाहे षोडशाङ्गुलम्।

भावार्थ – जल तत्त्व का रंग श्वेत होता है, आकार अर्धचन्द्र की तरह, स्वाद कषाय और स्वभाव शीतल होता है। इसके प्रवाह काल में साँस की लम्बाई सोलह अंगुल (लगभग बारह इंच) होती है। यह हमेशा लाभकारी होता है।

English Translation – Jala Tattva got white colour, semi-circled moon shape, astringent taste and cool nature. The length of breath at its appearance becomes sixteen fingers (about 12 inches). It is always beneficial.

रक्तं त्रिकोणं तीक्ष्णं च उर्ध्वभागप्रवाहकम्।

दीप्तं च तेजसं तत्त्वं प्रवाहे चतुरङ्गुलम्।।171।।

अन्वय - तेजसं तत्त्वं रक्तं त्रिकोणं तीक्ष्णं च उर्ध्वभागप्रवाहकं दीप्तं च प्रवाहे चतुरङ्गुलम्।

भावार्थ – अग्नि तत्त्व का रंग लाल (रक्त जैसा लाल), आकार त्रिभुज, प्रवाह ऊपर की होता है। इस तत्त्व के प्रवाह काल में साँस की लम्बाई चार अंगुल (लगभग तीन इंच) होती है। इसकी प्रकृति गरम होती है और यह अशुभ कार्य का प्रेरक होता है तथा सदा अहितकर फल देता है।

English Translation – Agni Tattva got colour like blood, triangular shape and upward motion, length of breath, when this tattva appears in it, becomes four fingers (about three inches). Its nature is warm. It always inspires for inauspicious work and always gives harmful results.

नीलं ववर्तुलाकारं स्वादाम्लतिर्यगाश्रितम्।

चपलं मारुतं तत्त्वं प्रवाहेSष्टाङ्गुलं स्मृतम्।।172।।

अन्वय - मारुतं तत्त्वं नीलं ववर्तुलाकारं स्वादाम्लतिर्यगाश्रितं चपलं प्रवाहेSष्टाङ्गुलं स्मृतम्।

भावार्थ – वायु तत्त्व का रंग नीला, गोल आकार और अम्लीय स्वाद होता है। इसकी गति तिरछी होती है और इसके प्रवाह काल में साँस की लम्बाई आठ अंगुल (लगभग छः इंच)। इसकी प्रकृति चंचल होती है। इसके प्रवाहकाल में प्रारम्भ किये गये कार्य का परिणाम विनाशकारी होते हैं।

English Translation – Vayu Tattva has blue colour, circular shape and acidic taste. Its motion is angular and length of the breath while this appear in it becomes eight fingers (about six inches). The work started during its flow in the breath is always disastrous.

वर्णाकारं स्वादवाहे अव्यक्तं सर्वगामिनम्।

मोक्षदं नभसं तत्त्वं सर्वकार्येषु निष्फलम्।।173।।

अन्वय - नभसं तत्त्वं वर्णाकारं स्वादवाहे अव्यक्तं सर्वगामिनं मोक्षदं सर्वकार्येषु निष्फलम्।

भावार्थ – आकाश तत्त्व का रंग पहचानना कठिन होता है। यह स्वादहीन और प्रत्येक दिशा में गतिवाला होता है। यह मोक्ष प्रदान करता है। आध्यात्मिक साधना के अतिरिक्त अन्य कार्यों में कोई फल नहीं प्राप्त होता है।

English Translation – It is difficult to recognize the colour of Akash Tattva because of appearance of different colour simultaneously. It is tasteless and its motion is in all directions. It is enlightening, but gives no results in any work other than the spiritual practices.

*******

10 टिप्‍पणियां:

  1. उऊपयोगी एवं ज्ञानवर्धक पोस्ट पढ़वाने के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. आचार्यजी,
    धन्यवाद एवं आग्रह कि यह उपयोगी श्रृंखला जारी रहे !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ज्ञानवर्धक श्रृंखला ..आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक शृंखला है। प्रयोग करने पर यह हमारे दैनंदिन जीवन में लाभकारी साबित हो सकती है। आभार,

    जवाब देंहटाएं
  5. अत्यंत महत्वपूर्ण आलेख शृंखला है... सीखने को मिलरहा है एक दुर्लभ ज्ञान!!

    जवाब देंहटाएं
  6. इस श्रृंखला का एक एक लेख बहुत उपयोगी है

    जवाब देंहटाएं
  7. एक ज्ञानवर्धक आलेख शृंखला जिसके हर अंक सहजने लायक।
    आभार इस प्रस्तुति के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  8. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं
  9. पीतवर्णं चतुष्कोणं मधुरं मध्यमाश्रितम्।
    भोगदं पार्थिवं तत्त्वं प्रवाहे द्वादशाङ्गुलम्।

    इस श्लोक को आपने एक नए दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया है....लेख बहुत अच्छा है। आपको बहुत-बहुत बधाई !
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी बहुमूल्य टिपण्णी दें.

    जवाब देंहटाएं
  10. आचार्य परशुराम राय जी,

    गहन चिन्तनयुक्त विचारणीय लेख....
    इस महत्वपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको बधाई।

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।