बुधवार, 2 मार्च 2011

देसिल बयना–70 :: मूँछ वाला सोये, निमोछिया गाये गीत

देसिल बयना–70

मूँछ वाला सोये, निमोछिया गाये गीत

करण समस्तीपुरी

हर जगह की अपनी कुछ मान्यताएं, कुछ रीति-रिवाज, कुछ संस्कार और कुछ धरोहर होते हैं। ऐसी ही हैं, हमारी लोकोक्तियाँ और लोक-कथाएं। इन में माटी की सोंधी महक तो है ही, अप्रतिम साहित्यिक व्यंजना भी है। जिस भाव की अभिव्यक्ति आप सघन प्रयास से भी नही कर पाते हैं उन्हें स्थान-विशेष की लोकभाषा की कहावतें सहज ही प्रकट कर देती है। लेकिन पीढी-दर-पीढी अपने संस्कारों से दुराव की महामारी शनैः शनैः इस अमूल्य विरासत को लील रही है। गंगा-यमुनी धारा में विलीन हो रही इस महान सांस्कृतिक धरोहर के कुछ अंश चुन कर आपकी नजर कर रहे हैं करण समस्तीपुरी।

'बहे ला बसंती बयार हो हमका हुलसे ला जियरा..... !' आह... याद आता है उ दिन सब....! गदराये सरसों और मदमाते महुआ.... बौरी अमराई में गूंजी शहनाई, 'होली खेलत शिव ससुराल, फागुन फाग मचे... !' जगेसर थान में भारी मेला लगा था। रात भर लाउडिस्पीकर पर शिव-विवाह कीर्तन चल रहा था, 'कि आ...रे रामा शम्भू चले ससुरारी.... ब्याहन गौरा नारी रे हरि...!"

भोरे से मेला देखने वाले का भीड़। का मरद का औरत.... का बूढा का बच्चा.... ! सब चले हांज के हांज ! और उधर से जौन लौटे तो केहू के हाथ में पिपही, केहू बांसूरी, केहू माटी वाला डिगडिगिया तो केहू चक्कर-घिरनी नचाये हुए आता था। ऊ सब को देखकर हम लोगों का जी भी मचल-मचल जाता था।

जोखू मामू का बेटा पकौरिया बड़ी खच्चर के गिरह। औरत का झुण्ड मेला देखे जा रही थी ई ससुर गाने लगा, "मेला वाली दाई गे.... हमरी भौजाई गे.... !!" हमलोग भी ताली पीट के हँसे थे। ज्यादा तर जनानी तो अपना मूरी झुका के चलती रही मगर एकाध गो खूब पियरगर आसिरबाद भी दी थी, "कोढ़िया, सरधुआ.... मुँहझौंसा.... तोहरे मुँह में लुत्ती लगे... देह पे बज्जर गिरे।" असिरबाद लगते देर नहीं हुई। पकौरिया के कान के नीचे बजा, झन्न्नाक....!' जैसे सच्चे में बज्जर गिर गया हो। फिर तो टपकू मामू सो धुनाई किये बचबा का कि सरफ़ इकसेल भी शरमा जाए।

पकौरिया तभी से पित्त के मरे पेटकुनिया लाद दिया था। मगर आज दुपहर में, "बम-शंकर कैलाशपति ! एक आँख में लाखपति !! तीसरी आँख में खाख-पति !!!" दरबाजे पर जैसे ही लटोरण भैय्या का ई नारा गूंजा सारा घर बहरा गया। ससुर पकौरिया भी दौड़ के आया।

लटोरण भैय्या बता रहे थे कि मेला में बनारस का नौटंकी आया है। का अलबत्त खेल करता है.... पूछो मत! अब तो सभे बाल-मंडली लगा जिद करे। बड़ी मोसकिल से हमलोग बड़का मामू को मना कर मेला जाए का औडर लिए। नानी चंगेरी लाल को साथे लगा दी थी, "ए चंगेरिया ! देखिहऽ.... बच्चा सब इधर-उधर न जाए। पकौरी लाल और गोधन के हाथ न छोड़िहऽ .... मेला में बड़ा भीर-भार रहेला... ओहिजा मुन्नी लाल के दूकान से सब के मुढ़ी-जलेबी दिला दिहऽ.... !" अंचरा के गेठी से पंचटकिया निकाल कर चंगेरी लाल को दिया था नानी ने। फिर लटोरण भैय्या को भी बुझा दिया था।

कोस भर पैदल चल कर पहुंचे जगेसर थान। चंगेरी लाल बोला, “पहिले बाबा के मंदिर मे सर झुका लो।“ एह... करामा भीड़। चंगेरी लाल किसी तरह हम सब को एक-एक कर कंधा पर उठा-उठा कर बाबा का दर्शन कराये लगा। मगर बाबा तो देखाइये नहीं पड़ते थे खाली बेलपत्तर का पहाड़ लगा था। मंदिर के नीचा भी वैसने भीड़।

दो डेग आगे जा कर लटोरण भैय्या सबको मलाई-बरफ दिलाये थे। फ़िर हमलोग बाइस्कोप देखे। सच्चे में बाइस्कोप भी बड़ा बेजोर चीज होता है। 'आगरा के ताज देखो, बंबई की मुमताज देखो ! दिल्ली का क़ुतुब मीनार देखो.... घर बैठे सारा संसार देखो।"

घूम-घुमा के पहुंचे खेलौना वाला लाइन में। सबसे पहिले झिगुनिया खरीदा पिपही। फिर मनसुक्खा लिया गेंद। गज्जूलाल घड़ी लिया, रामबदन सिपाही, पकौरिया चश्मा, ठेठा बन्दूक, घुरना डिगडिगिया, चम्पैय्या बांसूरी, मुंगेरिया हाव और हम लिए एगो टरेन। खेलौना देखे से तो मने नहीं भर रहा था मगर लटोरण भैय्या बोले, 'अरे अब चले-चलो... चलो... नौटंकी का टेम हो रहा है।"

आइ हो दद्दा.... का नौटंकी था रे बप्पा...! बिजली रानी, चम्पा रानी, सकुन्तला रानी, चुलबुली रानी, छोटी जान, उमराव जान, बसंती रानी, मिस हेलन..... ऊँह.... एक पर एक नर्तकी सब पहिले तो छ्म-छ्म-छ्म-छ्म करती हुई आई और लगी इस्टेज तोड़े। लेकिन जब गाये के लिये गला फारी तो ले रे तोरी के.... मार बढ़नी ! ई आवाज़ तो मर्दाना है।

एक घंटा झम-झमौव्वल नाच के बाद शुरु हुआ खेल, ’शेरे बिजनौर सुल्ताना डाकू’। बड़ी मस्त खेल था। सुल्ताना के पाछे तो एगारह मुलुक का पुलिस पड़ा हुआ था मगर सुल्ताना को पकड़ना मोसकिल ही नहीं, नामुकिन भी था।

पुलिस सुल्ताना को नहीं पकड़ पायी तो उकी चहेती एगो बाईजी को ही उठा लायी थाने पे। फिर थाने में मुजरा शुरु, “हमका पीनी है, पीनी है, हमका पीनी है.... !” उ मोछुआ दरोगा, दंतटुट्टा हवलदार और कनहू सिपाही के साथे एकदम मूँछ पर ताव देके रस ले रहा था। गीत में कहते हैं कि थाना में बैठे दरोगाजी ले हिचकी... मगर दरोगाजी हिचकी का लेंगे.... ? लगता है प्रसाद कुछ ज्यादे ही चढ़ गया था। उ बेचारे कुर्सिये पर औंघिया (सो) गये।

उधर बाईजी के नाच से तो पूरा महफ़िल घमघमा गया मगर बाईजी बन के जौन नचनिया नाच रहा था उके चेहरा पर पुता हुआ पावडर पसीना में बहने लगा। आहि रे बलैय्या.... जैसे-जैसे एस्नो-पावडर उतरा... उ नचनिया के छिला हुआ मूँछ और दाढ़ी का हरियरी बहराने लगा।

पूरा महफ़िल वाह-वाह कर के ताली-सीटी पीट रहा था मगर चंगेरी लाल हमरा और पकौरीलाल का हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोला, ’चलो...! ई कौनो खेल हुआ.... ! देख लिये बनारस का नौटंकी। “मूँछ वाला सोये, निमोछिया गाये गीत”।’

चंगेरी लाल जो तमक के ई बात बोला था कि हमलोगों के अलावे अगल-बगल का दर्शक लोग भी खिलखिला दिये थे। हमलोग तो पलट-पलट कर देख रहे थे मगर चंगेरी लाल हमारा हाथ नहिंये छोड़ा। घसीट कर बाहर लाया और ले चला घर के रस्ता पर।

रस्ता भर हमलोग नौटंकी का ही खिस्सा बतिया रहे थे। ’ओह... का कमाल खेल था।’ चंगेरी लाल फिर बमकते हुए बोला, “हाँ-हाँ... देख लिये नौटंकी...! ’मूँछ वाला सोये निमोछिया गाये गीत।’ ईमें खेल का है.... अरे ई हाल तो पूरा देश का ही है। जौन मूँछ वाला है मतलब कि जिसके उपर जिम्मेदारी है और जिसमें सामर्थ्य है उ तो अपने कर्तव्य से विमुख कान में तेल डाल के सोया रहता है और निमोछिया मतलब कि सामर्थ्यहीन सब अपने अस्तित्व बचाने के लिये बहुरुपिया के तरह भेष बदल-बदल के नाच-गाना करते रहता है।

तभी तो नाच छूटे के गम में हमलोगों को चंगेरीलाल की बात माथा के ऊपर से निकल गया मगर आज देश-दुनिया का दशा देख कर उकी कहावत फिर याद आ गयी। बेचारा केतना दरद से कहा था, “मूँछ वाला सोये, निमोछिया गाये गीत”।

23 टिप्‍पणियां:

  1. कहावत के साथ-साथ मेले का वर्णन और उसके माध्यम से अभिव्यक्त कहावत का अर्थ बहुत ही आकर्षक लगे। साधुवाद।

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  2. बहुत सुन्दर लगा मेले का वर्णन | धन्यवाद|

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  3. करन आज तो सोच रहे थे कि भोलाबबा के वियाह का बरनन होगा... हर्मारा लटोरण बाराती में जायेगा लेकिन यहाँ तो गज़बे समा छाया हुआ है... अच्छा लगा... आम जीवन तो दरद से भरा है... देख नहीं रहे कि देस में सब मुछ वाले कान में तेल डाले सोये हुए हैं... बढ़िया .. बहुत बढ़िया... शिवरात्रि की बहुत शुभकामना.. ये तो आपके कुमरेपन की आखरी शिवरात्रि होगी ...

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  4. karn ji mazaa aa gaya, aapki likhi padh kar.laukik hindi me itna sundar likha hua bahut arse baad padaha,ant ka punch line bahut sateek laga. dhanywaad.

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  5. 'कि आ...रे रामा शम्भू चले ससुरारी.... ब्याहन गौरा नारी रे हरि...!"

    अच्छी प्रस्तुति।
    शिव-विवाह की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  6. सभी पाठकों को महाशिवरात्रि की अनंत शुभ-कामनाएं ! हम आपके अपार स्नेह के परम आभारी हैं ! उम्मीद है भविष्य मे भी याह प्यार मिलता रहेगा ! धन्यवाद !!!

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  7. EH KARAN BHAI ............. SARIPAHUN
    MON PRASANN BHAI GEL....

    HAR-HAR-MAHADEV-BHOLESHANKAR-KAILASHPATI......

    SADAR

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  8. Mai desil bayana ka niyamit pathakon ke list me sabse uper ka pathak hun. Mera isi record se pata lagaya ja sakta hai ............


    Comment nahin likhane ka karan yah hai ki hum isi men bhav - vibhor ho jate hai aur comment padh kar comment karna mushkil ho jata hai, mere lie.

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  9. करण जी, कहावत के अनुरूप कथानक की रचना समसामयिक घटनाक्रम के अनुकूल रचने में आप सिद्धहस्त हैं। बधाई.

    महाशिवरात्रि के पावन एवं मांगलिक अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।

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  10. एक साँस में पढ़ने के बाद निशब्द हूँ !
    इतना सजीव चित्रण कि पढ़कर देखने का आनंद आ गया !
    महाशिवरात्रि की अनंत मंगलकामनाएं !

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  11. बहुत-बहुत धन्यवाद, मनीषजी, हरीशजी, एवं मर्मज्ञजी !

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  12. Ram Ram Karan Ji...Aj bahute din bad apka likha desil bayna padhne ka moka mila aur humko bahute maja aaya..
    Aur Kahawat k madhaym se jo apka sandesh hai na wo to sahiye hai..ajkal aisane to hota hai,jinke upar jimedari hota hai u log kan mai tel dal soiye jate hai..
    Ek bat bataiye e sab.. "झिगुनिया मनसुक्खा, गज्जूलाल , रामबदन , पकौरिया , ठेठा, घुरना, चम्पैय्या, मुंगेरिया, लटोरण" nam ap kaha se late hai? Humko to ek ek nam padhkar hasi chhut jata hai..
    Chaiye haste haste Ap sabhi ko Mahashivratri ki bahooooooooooooooooooooooooooooooooooot sari Subhkamnayen...

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  13. हम त मेला में हेराइये गए थे कि इयाद आया कि इहाँ तो हम देसिल बयना सुनने आए हैं,थेटर देखने थोड़को आए हैं.. मगर निमोछिया का नाच देखकर त हमको दिल्ली दर्सन हो गया जहाँ मोंछ दाढ़ी वाला का मालूम कऊन ठण्डई पीकर औंघियाए हुये हैं और निमोछिया सब बेतलवा का नाच नाच रहा है!
    जाए दीजिये! हम त देसिल बयना घोंट के बौराए हुये हैं!!

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  14. विलम्ब से आये सभी पाठकों को फिर से महाशिवरात्रि की शुभ-कामानाएँ एवं धन्यवाद! लेकिन सांझ-सबेरे आये सलिल चचा की प्रतिक्रिया के बाद लगता है कि ई पोस्ट अब पूरा हो गया. धन्यवाद !

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  15. आइ हो दद्दा.... का नौटंकी था रे बप्पा...! बिजली रानी, चम्पा रानी, सकुन्तला रानी, चुलबुली रानी, छोटी जान, उमराव जान, बसंती रानी, मिस हेलन..... ऊँह.... एक पर एक नर्तकी सब पहिले तो छ्म-छ्म-छ्म-छ्म करती हुई आई और लगी इस्टेज तोड़े। लेकिन जब गाये के लिये गला फारी तो ले रे तोरी के.... मार बढ़नी ! ई आवाज़ तो मर्दाना है। ......

    बहुत दिलचस्प .... बहुत रोचक ....

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  16. ब्लॉग के बहाने हमारा भी मेला घूमना हो गया. बढ़िया प्रस्तुति, इसे जारी रखें |

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. “मूँछ वाला सोये, निमोछिया गाये गीत”
    bahut sunder --
    jai baba banaras--

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  19. अरे आज तो मेले का मजा भी आया ओर इस गीत ने झुमने पर मजबूर कर दिया, बहुत सुंदर
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.

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  20. कमाल की रचना। शब्द चित्र खींच दे रहे हैं। और एक देसिल बयना से परिचय हुआ।

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  21. एक बार फिर भूले-बिसरे पाठकों को भी महाशिवरात्रि की शुभ-कामनाएं एवं प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद !

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  22. फकरे फकरे में केतना गहरा बात बोल दिए...एकदम सार्थक है यह फकरा आज के हालात के हिसाब से....

    लेकिन मेला जोरदार घुमाए...एकदम सजीव...

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