भारत और सहिष्णुता-अंक-20
जितेन्द्र त्रिवेदी
अंक-20
इतनी स्पष्ट और इंसानियत भरी बातें जब मक्का वालों ने सुनी तो बहुत से लोग मुहम्मद साहब के मुरीद हो गये किन्तु जिन लोगों के कारनामों के खिलाफ ये बातें जाती थीं वे उनके विरोधी हो गये और उन्होंने उन्हें अपमानित करना शुरू कर दिया। जब हजरत मुहम्मद साहब रास्ते में निकलते तो उनके टखनों पर निशाना बना-बना कर पत्थर मारे जाते। फिर भी उन्होंने बाहर निकलना जारी रखा तो उनके मुँह पर खाक फेंकी जाती। इन जुल्मों से भी वे नहीं घबराये और अमन और शांति का पैगाम देते रहे तो मक्का में उन्हें मारने के लिये षड़यंत्र रचा गया जिसमें उन्हें आधी रात में घर के भीतर जिंदा जलाने की योजना थी, किन्तु दैवयोग से उन्हें इसकी जानकारी हो गई और आजिज आकर हिजरी संवत 01 (ई. सन् 622) को उन्होंने अपनी स्वरक्षा (Self Defence) और मिशन को पूरा करने के लिये एक जद्दोजहद शुरू की जिसे उन्होंने ‘जिहाद’ का नाम दिया और मक्का छोड़कर मदीना आ गये। अनाचर-अत्याचार के दम घोंटू वातावरण के खिलाफ उन्होंने भरसक तालमेल बिठाने की कोशिश की, बातचीत, सुलह-सफाई और समझाइश के सारे रास्ते इख्तिहार किये, किन्तु जब ‘कुरैश’ (मक्का का उनका विरोधी कबीला) ने उनके अस्तित्व को ही मिटाने की चाल चली तब उन्हें विवश होकर ‘जिहाद’ करना पड़ा और वे मदीना आकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने लगे। मदीना में उन्होंने अपने अनुकूल परिस्थियाँ तैयार कर ली और अपने समान विचारों वाले लोगों को संगठित कर मक्का पर 628 ई. में हमला बोल दिया। उनके साथ मात्र 10 हजार लोग थे जिन्होंने वीरता पूर्वक मक्का पर कब्जा कर लिया। मक्का की विजय के तुरंत बाद उन्होंने अपना ऐतिहासिक भाषण दिया जिसे यहाँ ताजा हवाले के ख्याल से दिया जा रहा है -
"मक्का वालो ! एक ईश्वर के अलावा कोई पूज्य नहीं। उसका कोई सहभागी नहीं। उसी ने अपने बंदों की सहायता की और समस्त झुंडों को तोड़ दिया। हाँ ! सुन लो। समस्त अभियान, पुरानी हत्याएं और खून के बदले एवं जो भी खून बहा वह मेरे पैरों के नीचे है। हे कुरैश वालों! ईश्वर ने अब जहालियत का घमण्ड तथा वंश पर गर्व करना खत्म कर दिया है। तुम सब लोग आदम की संतान हो और आदम मिट्टी से पैदा हुये थे।"
हजरत मुहम्मद के उपरोक्त भाषण से स्पष्ट होता है कि अपने विरोधियों पर जीत दर्ज करने के बाद भी न वे इतराये और न ही उस जीत में अपनी खुद की विलक्षणता दर्शायी, अपितु उन्होंने सबको खोलकर बता दिया कि जो कुछ हुआ है वह ईश्वर की कृपा से ही हुआ है।
इस तरह मक्का पर विजय करने के साथ इस्लाम दुनियां के धर्मों के बीच खड़ा हुआ और इन विजय अभियानों का सिलसिला पूरे अरब प्रायद्वीप से होता हुआ यूरोप, एशिया माइनर और अफ्रीका तक चला गया, किन्तु हमारे अध्ययन का विषय भारतीय प्रायद्वीप में इस्लाम के आगमन से संबंधित है, अत: हम उसी पर अध्ययन केन्द्रित करते हैं।
भारत में मुसलमानों की सबसे पहली आवाजाही सन् 626 ई. में ही शुरू हो गई थी जब अरब सौदागरों का पहला बेड़ा भारत के पश्चिमी समुद्र तटों पर उतरा। उनका यह आगमन व्यापार के लिये और मित्रतापूर्ण था किन्तु हमले के रूप में मुसलमानों का आगमन हुआ सन् 712 ई. में जब खलीफा के अल्पव्यस्क 17 वर्षीय सिपहसालर मु0 बिन कासिम ने भारत का सीना छलनी कर दिया। मु0 बिन कासिम ने भारत पर अब तक हुये हमलों को मात दे दी किन्तु उसका प्रभाव क्षणिक रहा। मुसलमानों के दल के दल धर्म विजय के जोश में यहाँ आए किन्तु भारत के सीमावर्ती प्रदेशों से आगे नहीं बढ़ पाये। वे मात्र लूटमार करके चल जाते। उनकी यह आवाजाही अगले 200 वर्षों तक जारी रही और उल्लेखनीय सफलता हासिल की महमूद गजनी ने जो सन् 1001 ई. में भारत को लूटने के इरादे से यहाँ आया था और उसने यह प्रतिज्ञा की हुई थी कि वह हर साल भारत पर कम से कम एक हमला जरूर करेगा। उसे इस्लाम के खोखले साम्राज्य के लिये उसे धन की आवश्यकता सता रही थी। उसने हिन्दुस्तान पर लगभग 17 हमले किये और हर बार भारी माल यहाँ से लेकर गया। इन 17 हमलों में से किसी ने इतना दुख भारत को नहीं दिया जितना 1025-26 ई. में उसके सोमनाथ के हमले ने।
गजनी के चले जाने के बाद भी मुसलमानों की रिहाइश भारत में जारी रही और कई दल भारत में स्थायी रूप से बस गये। यहीं से एक अनोखी संस्कृति की शुरुआत हुई जिसे अब ‘गंगा-जमुनी तहजीब’ कहा जाता है। यद्दपि तुर्क हमलावरों ने भारत के कलेजे को भारी दुख पहुंचाया था तथापि इन हमलावरों के साथ ऐसे नायाब तत्व भी जाने-अनजाने में भारत आ गये जिनकी व्याख्या करने का प्रयास हम करेंगे। महमूद गजनी भारत के इतिहास में केवल तबाही के लिये ही याद नहीं किया जायेगा अपितु ‘अलबरनी’ जैसे विद्वान को भारत में लाने के लिये भी याद किया जोगा। अलबरनी एक ऐसा व्यक्ति था जो अपने समकालीनों में सर्वाधिक संतुलित और ज्ञानवान था। उसे ईश्वर ने बहुत बड़ा हृदय दिया था जो अपने-पराये के भेद को महत्व ही नहीं देता था और किसी के भी गुणों की प्रशंसा करने में सिद्धहस्त था। जिन भारतीयों को गजनी ने ‘काफिर’ कह कर दुत्कारा था उनके बारे में अलबरनी की यह राय थी कि हिन्दुस्तान की गली-गली में एक सुकरात रहता है। अलबरनी उस समय तक की ज्ञान की सभी विधाओं में निपुण था। क्या खगोलशास्त्र, क्या विज्ञान, क्या भूगर्भशास्त्र, क्या गणित, क्या दर्शन, क्या साहित्य, क्या इतिहास, ज्ञान की सभी विधाओं में वह पारंगत था और उसने अपने ज्ञान को दुनिया को बाटनें के उद्देश्य से सैंकड़ों किताबें लिखी जिन्हे पढ़कर आज भी उसकी प्रतिभा का लोहा मानना पड़ता है। वह एक निष्पक्ष व्यक्ति था जिसनें साफ-साफ लिखा है कि कुछ प्रारंभिक मुस्लिम शासकों के कार्य प्राय: धार्मिक भावनाओं पर आधारित न होकर केवल राजनीतिक स्वार्थों पर आधारित थे। लूटमार उनका प्रमुख धंधा था। इसीलिये उसके दिये गये विवरणों पर विश्वास होता है और इसीलिये उसके इस विवरण पर भी विश्वास किया जाना चाहिये जिसमें उसने यह महत्वपूर्ण तथ्य दिया है जिसे जानकर कई लोग चौंक सकते हैं, वह यह कि सुल्तान महमूद गजनी की सेना में कई कन्नड़ सैनिक थे जो कर्नाटक में भर्ती हुये थे। बड़ी ईमानदारी से उसने यह भी खुलासा किया है कि बार-बार के तुर्क हमलों से हिन्दू व मुसलमानों के बीच सैद्धांतिक और भावनात्मक शत्रुता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। अलबरनी मनोविज्ञान का भी अच्छा ज्ञाता था उसने ‘किताबुल हिन्द’ में लिखा है:
"अपने हाव-भाव व्यवहार आदि को लेकर भारतीय हम लोगों से बहुत ही अलग हैं – यहाँ तक कि हमारी बात, पहनावा और रस्मों आदि की चर्चा कर वे अपने बच्चों को डराते भी हैं। वे हमारा चित्रण शैतान की औलाद के रूप में करते हैं और हमारे प्रत्येक कार्य को सद्कार्य और सद्व्यवहार के एकदम विपरीत मानते हैं किन्तु हमें यह भी मान लेना चाहिये कि विदेशियों के बारें में ऐसे भ्रांतिपूर्ण विचार केवल हमारे देश और भारत में ही प्रचलित नहीं हैं – ये तो दुनियां के सभी देशों में व्याप्त होते हैं।" स्व-अलोचना (अपने भीतर झांकना) और सामान्यीकरण के ऐसे उदाहरण कम ही मिलेंगे।
एक ईश्वर के अलावा कोई पूज्य नहीं। उसका कोई सहभागी नहीं। उसी ने अपने बंदों की सहायता की और समस्त झुंडों को तोड़ दिया। हाँ ! सुन लो। समस्त अभियान, पुरानी हत्याएं और खून के बदले एवं जो भी खून बहा वह मेरे पैरों के नीचे है। हे कुरैश वालों! ईश्वर ने अब जहालियत का घमण्ड तथा वंश पर गर्व करना खत्म कर दिया है। तुम सब लोग आदम की संतान हो और आदम मिट्टी से पैदा हुये थे।" हजरत मुहम्मद के उपरोक्त भाषण से स्पष्ट होता है कि अपने विरोधियों पर जीत दर्ज करने के बाद भी न वे इतराये और न ही उस जीत में अपनी खुद की विलक्षणता दर्शायी, अपितु उन्होंने सबको खोलकर बता दिया कि जो कुछ हुआ है वह ईश्वर की कृपा से ही हुआ है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
सरलता सदा ही आकर्षित करती है।
जवाब देंहटाएंभगवत्ता का एक बार पूर्णरूपेण अंगीकार हो जाने पर अहंकार सार्वभौमिक अहंकार में परिवर्तित हो जाता है। यही कारण है कि व्यष्टिगत अहंकार का लोप हो जाता है। मौलिक लेखन के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंजानकारी पूर्ण आलेख ... पढकर अच्छा लगा ... बहुत कुछ जान पाया और तर्क प्रभावित कर गया ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया आलेख सहज सरल शोध परक शैली में .बधाई .
जवाब देंहटाएंTuesday, September 20, 2011
महारोग मोटापा तेरे रूप अनेक .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
बहुत स नयी जानकारी मिली इस पोस्ट को पढ़ने के बाद ... अच्छा लेखन ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही शोधपूर्ण विश्लेषण!!
जवाब देंहटाएंजानकारी परक आलेख.धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंइतिहास की परतों को खोलती हुई पोस्ट बहुत प्रासंगिक है- वर्तमान परिवेश में!
जवाब देंहटाएं19,20 दोनो अंक पढ़ा। शानदार आलेख है। पढ़वाने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंअत्यंत तथ्यपरक एवं सारगर्भित लेख के लिये आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंसार्थक और अद्भुत जानकारी देती पोस्ट |आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक और अद्भुत जानकारी देती पोस्ट |आभार
जवाब देंहटाएंलेख के मध्यम से कई नवीन जानकारियां प्राप्त हुई!
जवाब देंहटाएंउल्लेखनीय कार्य!
जानकारी पूर्ण आलेख ... पढकर अच्छा लगा ...
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