सोमवार, 5 सितंबर 2011

गुप्त गोदावरी होकर बहो मुझमें बहो!


नवगीत
गुप्त गोदावरी होकर बहो मुझमें बहो!

Sn Mishraश्यामनारायण मिश्र



गुप्त गोदावरी होकर,
बहो मुझमें
बहो भीतर बहो!

हम उजड़े तट हैं,
अपनी पहचान यही
कंधों पर शव
       वक्ष पर चिता है,
पर्वत हैं वे
नदियों को फेंकना-पटकना
आता है इनको
       ये पिता हैं,
झरने से झील हो
सर पटकती रहो!
गुप्त गोदावरी होकर,
बहो मुझमें
बहो भीतर बहो!


रेत-रेत होकर
घुलना, फिर बहना तुममें
सदा-सदा साथ-साथ
             बहने के प्रण हम।
नित्य  नए मेलों पर
पर्वों पर उत्सव पर
छोटी सी पंखुरी
             छोटे से कण हम।
तुम्हें भी कुछ याद है,
याद है तो कहो
कुछ तो कहो!
गुप्त गोदावरी होकर,
बहो मुझमें
बहो भीतर बहो!

16 टिप्‍पणियां:

  1. मिश्र जी के नवगीतों में जो प्रवाह देखने को मिलता है वह अद्भुत है और यह गीत तो गोदावरी की तरह प्रवाहित होता है ह्रदय की घाटियों से होकर!!

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  2. रेत-रेत होकर
    घुलना, फिर बहना तुममें
    bahut sunder gahan abhivyakti ...marmsparshi..

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  3. गोदावरी सी प्रभावमयी रचना.

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  4. हम उजड़े तट हैं,
    अपनी पहचान यही
    कंधों पर शव
    वक्ष पर चिता है,

    ... बहुत सुंदर प्रभावमयी प्रस्तुति॥

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  5. सुनद्र नवगीत!
    --
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
    --
    शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ!

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  6. बहते झेरने सा यह प्रवाहमयी कविता जीवन संघर्ष की राग गाती है ...
    अच्छा लगा...

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  7. सुन्दर गीत जो अपने साथ भाव के लहरों पर तैरा रही है.. बहुत सुन्दर...

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  8. नदी सी ही प्रवाहित हो कर बहो ...सब कलुषित भाव धाराओं के साथ बह जाए , जो बच गया शांत , उज्जवल ,स्निग्ध !

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  9. बेहतरीन ........

    पता नहीं क्यों कुछ नयापन लगा कविता में : जैसे कुछ नया प्रयोग...

    गुप्त गोदावरी होकर, बहो मुझमें

    सुंदर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  10. बेहद प्रवाहमयी शानदार रचना।

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  11. एक नवीन भावभूमि पर रचा गया सुंदर नवगीत।
    मिश्र जी भावों के धनी हैं।

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  12. बहुत ही सुन्दर प्रवाहमयी रचना
    चित्र भी बहुत ही ख़ूबसूरत लगाए हैं.

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