सबसे पहिले, बंदे वाणी-विनायकौ। फिर बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा। फिर बंदऊँ संत-असज्जन चरना। और फिर,
हेल्लू एवरीबाडी,
हमरे बिलाग के बर्थडे का शुभ-कामना है जी !
इहां सब सकुशल है और आशा है कि उहां भी सब कुशल हुइगा। आगे बात-समाचार ई है कि 23 सितंबर आई गवा है। हम कल्हे से सोहर सुनि-सुनि के दोहर होय जा रहे हैं। चितरगुपत महराज का अमर-गीत अबहुँ कानों में बजि रहा है, “जुग-जुग जियसु ललनमा.... भवनमा के भाग जागल हो....! ललना रे लाल होइहैं अरहुल के फुलवा, की मनवाँ में आश लागल हो....!!”
ई बिलाग के साथ ई गीत का रिश्ता बड़ी पुराना है। उ का है कि दुई साल पहिले, दुई दिन मा, दुई-दुई खुशी आई रही, हमरे घर। हौ जी महराज, 22 सितंबर 2009, पुरुब क्षितिज पर अरुणिमा फूटे से पहिलहि, कोयलिया किलक पड़ी थी। प्रसूती-कक्ष से बहराई डाक्टरनी अंग्रेजी मा बोली थी... अंग्रेजी मा, “बधाई हो ! बिटिया रानी आयी है!” मन बरबस गाने लगा, “मन-मंदिर के मृदुल सतह में पली कल्पना एक बड़ी । कल्प-लोक से उतर धरा पर आई हो तुम कौन परी ॥”
बिटिया रानी के सुआगत में दिन-रैन गले से मिलने की तैय्यारी करि रहे थे। सौर-गतिकी के नियम से 23 सितंबर को दिन-रात बराबर हुइ जाते हैं। सांझ में हँसी-खुशी के साथ बिटिया को लई के घर आय गए। इहां भी बाजा-गाजा का परबंध। अउर उ गीत तो रिपिट बज रहा है, “जुग-जुग जियसु...........!” सबहि फोन खनखना रहा था। घंटा-दुई घंटा से शांत हमार फुनवा भी कांपने लगा। कलकत्ता से चचाजी कौल करि रहे थे। हम खबर दिये तौ उनकी खुशी दुगुनी हुई गई और उ कहिन तो हमरी खुशी चौगुनी। “हार हाल में” जाकर देखो। बिलाग शुरु करि दिये हैं।
“हार हाल में”, चचाजी श्री मनोज कुमार ऐसन तबियत से कंकड़ उछाले कि कौन कह सकता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता? काव्य-प्रसून, कथांजली, देसिल बयना, आँच, धारावाहिक उपन्यास ‘त्याग-पत्र’, फ़ुर्सत में और काव्य-शास्त्र...... महीने दिन में बिलाग पर सतरंगा इंद्रधनुष छाने लगा। पहिले साल में 300 से ज्यादे प्रस्तुती और 5000 से ज्यादे प्रतिक्रिया, आप-लोगों के पियार-मोहब्बत का गवाही दई रहा था। फिर तो हमरी टीम के उत्साह को भी पंख लगि गवा।
‘त्याग-पत्र’ की पुर्णाहुति के बाद आचार्यजी “शिव-स्वरोदय” वांचने लगे। मंगलवार की कथांजली थमी तो बिलाग को मिल गये श्री जितेन्द्र त्रिवेदी। तिरवेदी जी के “भारत और सहिष्णुता” शीर्षक के सिलसिलेवार आलेख साहित्यिक-ऐतिहासिक गांभिर्य के मिसाल हैं, कहो तो। ’काव्य-प्रसून’ में दिवंगत कवि श्री श्याम नारायण मिश्र जी के नवगीतों की शॄंखला आज के अतुकांत निरस काव्य की उमस भरी रात में ओस की बूंद-सी प्रतीत हुई रही है। और सभी स्तंभ यथावत चलि रहै हैं।
यदि पाठकों की टिप्पणियों को लोकप्रियता का पैमाना बनाया जाए तौ “फ़ुर्सत में” बाजी मार लेंगे श्री मनोज कुमार जी। आचार्य श्री परशुराम रायजी ने इस बिलाग पर पहली आँच जलाई थी, श्री हरीशप्रकाश गुप्तजी उसमें अनव्रत हविश डाल रहे हैं। बीच-बाच में और लोग भी फ़ूक-फ़ाक कर देते हैं। अचारजजी और गुपुतजी की जुगलबंदी में “आँच” की गरमी पाठकों को बहुत भा रही है।
हमार “देसिल बयना” भी 98 अंक पुराना हुइ गवा है मगर हम कहते हैं कि हम लिखना नहीं छोड़ेंगे और पाठक कहते हैं कि वे पढ़ना जारी रखेंगे। हई लागि हमैं अपनी नव-विवाहित जिंदगी में से सिरिमतिजी की नजर बचाकर कछु समय बिलाग की खातिर निकलना ही पड़ता है। उधर मिसिरजी के सरस-नवगीत भी बड़ी तेजी से लोकप्रियता की सीढियां चढ़ि रहे हैं।
इस बरिस के लिये हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि रही हैंगी, महाकवि आचार्य जानकी बल्ल्भ शास्त्री जी (अब गोलोकवासी) से भेंटवार्ता। यह आचर्यश्री के जीवन की अंतिम वृहत-वार्ता रही हैंगी। “एक दुपहरी निराला निकेतन में” को प्रसिद्ध साहित्यिक पत्र ’वागर्थ’ ने साभार प्रकाशित किया। सामयिक विद्रुपता पर कटाक्ष करती देसिल बयना का एक अंक “खेल-खिलाड़ी का पैसा मदारी का” का भोपाल से प्रकाशित दैनिक-पत्र ’नई दुनिया’ के पन्नों पर जगह बनाने में कामयाब रहा। अउर भी कई प्रस्तुतियाँ प्रिंट मिडिया की नजरें खींचती रही।
ई तरह से दुई साल पूरा हुई गवा। अभी बिलाग के खाते में कुल जमा, 762 प्रस्तुति और 14500 से अधिक टिप्पणियाँ हैं। अउर ई से भी जादे मूल्यवान आप जैसे पाठकों का संबंध है। ई दुई साल के सफ़र में हरेक कदम पर आपका सहयोग और प्रोत्साहन मिला, हम आपके आभारी हैं। अगर इस दुई साल मा बिलाग-जगत में हमरी कछु उपलब्धि है तो हम उसका सोलहो आना श्रेय आपहि दई रहे हैं। अउर ई आभाषी दुनिया में अउर अधिक मील का पत्थड़ पार करने के लिये आपकी शुभ-कामनाओं की निरंतर जरूरत होगी।
ई बिलाग के जनम-दिन पर हमरे कछु इष्ट-मित्र चिट्ठी लिखि कर हमैं मुबारकवाद दिये हैं। उको इहां साझा किये बिना ई पत्र पूरा नहीं होइगा।
राहुल सिंह, (रायपुर,छत्तीसगढ़, भारत)
“इस ब्लाग पर अच्छी, स्तरीय और पठनीय सामग्री होती है, आपकी टोली-प्रस्तुति ने ऐसा विश्वास कायम कर लिया है कि जो आगामी है, वह अच्छा ही होगा, भरोसा रहता है. मेरी रूचि के अनुरूप देसिल बयना लाजवाब है, मुहावरे का अर्थ खुल जाने के बाद उसकी व्याख्या होती है, वह पूरे आलेख के प्रभाव (संजीदगी और सहज चुटीलेपन) का काम करती है.
अन्य स्तंभ भी यदा-कदा देखता हूं और उनके भी स्तर का सम्मान करता हूं, उनमें कोई कमी कहूं तो वह अपनी रूचि (ओर मूल्यांकन) सीमा के चलते अधिक होगी.”
सलिल वर्मा (नोएडा/नई दिल्ली, भारत)
“इस ब्लॉग पर प्रकाशित सामग्रियों में मनोरंजन के साथ साहित्य की कई विधाओं की शास्त्रीय जानकारी भी प्रस्तुत की जाती रही है. विभिन्न स्तंभ अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं. इससे पाठकों को मनोनुकूल विषय सूचीबद्ध तौर पर मिल जाते हैं.
ब्लाग के वर्तमान स्तंभों में से किसी को बंद करने की जरूरत नहीं है मगर मेरे विचारानुसार आप ‘मेहमान का पन्ना’ शुरू कर सकते हैं, जिसमें किसी एक पाठक की रचना प्रकाशित करें. वह रचना उनके पसंद की कोई नयी रचना विशेष आपके लिए हो सकती है या फिर उनके ब्लॉग से आपके पसंद की कोई रचना हो सकती है. ‘यात्रा वृत्तांत’ से समबन्धी पोस्ट भी शुरू की जा सकती हैं.
कुछ सुझाव कुछ शिकायत : रचनाएँ बहुत जल्दी बदल जाती हैं. कई बार पाठक रचना को पढ़ने से वंचित रह जाते हैं. साथ ही आलेख का प्रारूप प्रकाशन के पूर्व सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए. क्योंकि कई बार टंकण की त्रुटि तथा वर्त्तनी का दोष दिखाई देता है. प्रकाशन के समय यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि उसका फोर्मेटिंग सही है. यह भी प्रायः देखने में आया है कि आलेख के पहले और दूसरे अनुच्छेद के फॉण्ट अलग-अलग हैं.
आपका यह ब्लॉग मेरे हृदय के अत्यंत समीप है और मेरे प्रिय ब्लॉग में से एक है. आपके दो साल पूरे होने पर हमारी (सलिल एवं चैतन्य) हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करें. साहित्य सेवा का यह मंच हमें इसी प्रकार प्रेरणा देता रहे यही हमारी मंगलकामना है!”
मंजू वेंकट (बैंगलोर, कर्णाटक, भारत)
“देसिल बयना जैसी रचनात्मक प्रस्तुतियों के कारण ब्लाग की सार्थकता समझ में आती है। दूसरे वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई।”
अरुणचन्द्र राय (ग़ाजियाबाद/नई दिल्ली, भारत)
“मनोज ब्लॉग अन्य ब्लोगों से भिन्न है. यहीं शुद्ध साहित्यिक लघुपत्रिका का आनंद आता है. देसिल बयना, फुर्सत में और आंच मेरे पसंदीदा स्तम्भ हैं. इनमें से आंच अपनी समीक्षा की गुणवत्ता के लिए सर्वाधिक पसंद है. किन्तु मनोज नाम से व्यकिगत ब्लॉग सा लगता है. कोई सामुदायिक नाम दिया जा सकता है. बाकी सब अच्छा है.
रंजना (जमशेदपुर, झारखंड, भारत)
यह चुनिन्दा उत्कृष्ट ब्लॉगों में यह एक है..जो मन और मस्तिष्क दोनों को ही अपने प्रत्येक प्रविष्टि में खुराक देती है. आजतक की एक भी प्रविष्टि ऐसी न लगी जिसे कमतर कहा जा सके. वैसे सबका अपना स्थान और अहमियत है,पर देसिल बयना पढ़ मन बस जुड़ा जाता है.
आपलोगों का अपार और ईमानदार प्रयास इसे उत्कृष्टता के नवीन आयाम दिए जा रहा है. प्रतिदिन की जगह एक दिन छोड़कर प्रविष्टि डालने से बेहतर होगा क्योंकि कई बार समयाभाव में कई प्रविष्टियाँ छूट जाती हैं. साधुवाद और शुभकामनाएं.
परशुराम राय (कानपुर, उत्तर प्रदेश, भारत)
हिन्दी ब्लॉग जगत में अभी तक मुझे कोई ब्लॉग देखने में नहीं आया, जिस पर प्रतिदिन बिना किसी व्यवधान के लगातार दो वर्षों से पोस्टें लग रही हों। नए स्तम्भ भारत और सहिष्णुता के लिए हम श्री जितेन्द्र त्रिवेदी, उपमहाप्रबन्धक, आयुध निर्माणी कानपुर के ऋणी हैं, जिन्होंने ऐतिहासिक पृष्ठ-भूमि की आधार शिला पर अपने मौलिक चिन्तन को उत्कीर्ण किया और हमें प्रकाशन का सुअवसर प्रदान किया। इस ब्लॉग का सर्वाधिक प्रिय स्तम्भ आँच है, जिस पर श्री हरीश जी ने अपनी व्यक्तिगत गुरुतर दायित्वों के होते हुए भी आँच नहीं आने दी। स्थायी और सन्दर्भ लेखन और प्रकाशन की दृष्टि से देसिल बयना, भारतीय काव्यशास्त्र, शिवस्वरोदय तथा भारत और सहिष्णुता उल्लेखनीय हैं। पाठकों की दृष्टि से देखें, तो सबसे अधिक पाठकों को आकर्षित करता है फुरसत में......।
होमनिधि शर्मा, (हैदराबाद, आंध्र प्रदेश, भारत)
'मनोज' की दूसरी सालगिरह मुबारक हो. इन दो सालों का मेरा अनुभव कहता है कि आपने अपने आपको रिडिस्कवर किया है. आपके इस प्रयास ने ब्लाग जगत में एक नया ट्रेंड स्थापित किया है. आज आप सबके निरन्त परिश्रम का नतीजा है कि आप सभी की एक राष्ट्रीय पहचान है. आपकी लघु कथाएं, कविकर्म और साहित्यकारों के प्रति सोच का नजरिया, 'जानकीवल्लभ शास्त्री जी' के वह पॉंच भागों में लिखे गये संस्मरण, वहीं राय साहब की ऑंच, शिवस्वरोदय तथा काव्यशास्त्र का तात्विक विश्लेषण,श्री करण का देसिल बयना और जितेन्द्र के देश के इतिहास-दर्शन पर सिलेसिलेवार लेखन ने पाठकों में साहित्य के प्रति फिर से रुझान पैदा करने में सफलता प्राप्त की है. युवाओं में जानकारी और जागरुकता की कमी आज साहित्य के पिछड़ने का कारण है जिसे आपका ब्लाग एड्रेस करता है. आप सभी के परिश्रम को नमन एवं साधुवाद!
हरीश प्रकाश गुप्त (कानपुर, उत्तर प्रदेश, भारत)
सात सौ तीस दिनों में इस ब्लाग पर लगभग साढ़े सात सौ से भी अधिक पोस्टें लगीं। अर्थात, प्रतिदिन एक पोस्ट से भी अधिक। वह भी बिना एक भी दिन के अन्तराल के। देखने में ये आँकड़े भले ही छोटे लगते हों, लेकिन जब भी हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो सीमित जनों के सहयोग से यह एक बड़ी उपलब्धि से कम नहीं लगता। प्रतिदिन एक आलेख तैयार करना सहज नहीं था लेकिन उद्देश्य के प्रति प्रतिबद्धता ने हमको ऊर्जा दी और पाठकों की अपेक्षाओं ने आत्मविश्वास। केवल पाठकों की टिप्पणियों को लोकप्रियता का मानक माना जाए तो इस ब्लाग की लोकप्रियता का आकलन सतही ही होगा। हमें पता है कि ब्लाग को पसन्द करने वालों, पढ़ने वालों की संख्या उनसे कई गुना अधिक है। सीधे प्रतिक्रिया देने वाले पाठकगण हमारे प्रत्यक्ष मार्गदर्शक हैं। वे हमारे बहुत करीब आ चुके हैं और ऐसा करके वे अपने दायित्व का साधिकार निर्वाह कर रहे हैं। हम उनके बहुत-बहुत आभारी हैं।
हिन्दी का एक साहित्यिक ब्लाग शुरू करने की परिकल्पना आदरणीय मनोज कुमार जी की थी और वही इस पूरे प्रयोजन के सूत्रधार हैं तथा केन्द्र विन्दु भी हैं। ब्लाग पर आए आलेखों की बड़ी संख्या आचार्य राय जी की रही है। नियमित स्तम्भ “काव्यशास्त्र” और “शिवस्वरोदय” के अतिरिक्त “आँच” की लौ भी उन्होंने समय-समय पर थामी है। करण जी ने अपनी रचनाओं से, अपनी भाषा-शैली से ब्लाग पर अत्यधिक प्रशंसा पाई है। “भारत और सहिष्णुता” नामक अपनी पुस्तक के माध्यम से अभी हाल में हम सबसे जुड़े श्री जितेन्द्र त्रिवेदी जी से हमारी अपेक्षाएं बढ़ गई हैं। सभी को हार्दिक धन्यवाद।
हाँ तो जी ई तरह से ई डाकखाना अब बंद हुई रहा है। तौ एक बार फिर से धन्यवाद अर्पित करि देत हैं। सबसे पहिला धन्यवाद तो उनहि को जौन साफ़-साफ़ मना करि दिये रहे। दूसरा धन्यवाद उनका जौन सहयोग का भरोसा दिलाए रहे मगर कौनो कारण से करि नहीं पाए। तीजा धन्यवाद उन्हैं, जौन यदा-कदा ही सही मगर नजर-ए-इनायत करते रहे। धन्यवाद की झोलिया अबहि खाली तो नहीं हुई है मगर उन पाठक-शुभचिन्तक का धन्यवाद हम कैसे दें जौन कदम-कदम पर हमरे साथ रहिन। धन्यवाद की अगली कड़ी मा हम उईका नाम लेव जौन-जौन भाई-बहिन इ बिलाग के जनमदिन की शुभकामनाएं भेजी हैं। हमें आपकी शुभांशा और सुझाव बहुतहि पसंद आएन। अरुण भैय्या के सामुदायिक नाम वाला सुझाव “इस्टैंडिंग कमिटी” को भेज दिया गया है और सलिल चचा वला “मेहमान का पन्ना” के लिये हम हाथ-पैर फ़ैला के आप लोगों से रचनाएं माँगते हैं। ज्यादा का लिखें? कम लिखना, अधिक समझना। बड़ों को प्रणाम और हम-उम्रों को सलाम। छोटे को स्नेह और माता-बहिन को राम-राम! विशेष अगले पत्र में।
पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में,
आपका,
करण समस्तीपुरी
मेरी भी बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंइस ब्लाग के दूसरे वर्षगांठ पर आप लोगों को बहुत-बहुत बधाई। यह ब्लाग आगे भी कई वर्षों तक इसी तरह चलता रहे। इन्हीं शुभ-कामनाओं के साथ,
जवाब देंहटाएंरचना कर्ण
अति सुन्दर ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
आप के ब्लॉग के हॅप्पी हॅप्पी बर्थ डे पर हमारी भी शुभ कामनाएँ। आपने खूब हँसाया है, हुलराया है, विचारों के सागर में गोते लगवाये है और बड़े बड़े को छ्काया भी है, उत्तरोत्तर प्रगति हेतु बधाइयाँ।
जवाब देंहटाएंnischay.....karan babu.....bahut neek
जवाब देंहटाएंlagal..........apan amad naih darz ka
pabait chee muda 'desil bayna nahi chorait chee'........
anekone badhai.......
sadar
ई लोउ भईया , वइसे हम तो बहुतै छोटी सी चीज हैं .पर , आपका इस लगन को हमरो सलाम पहुंचे, आप दिन दूनी अउर रात चौगुनी सफलता पाएं , टिप्पणियां अर्जित करें , इहै सुभकामना है !
जवाब देंहटाएंब्लॉग की वर्षगाँठ पर मनोज ब्लॉग की पूरी टीम को बधाई और शुभकामनयें ..
जवाब देंहटाएंयहाँ हमेशा ही पढ़ने के लिए स्तरीय सामग्री उपलब्ध होती है .. यह निरन्तर चलता रहे यही शुभकामनायें हैं ..
सही मायने में आपका ब्लॉग स्तरीय है ,हार्दिक शुभकामनाएं सफल और सार्थक दो वर्ष पूर्ण होने पर
जवाब देंहटाएंमनोज जी ब्लॉग जगत में दो वर्ष सफलता पूर्वक बिताने पर हार्दिक बधाई स्वीकारें...आपका ब्लॉग ऐसा है जिसे जब पढ़ें जितना पढ़ें आनंद देता है...ये लेखनी सतत यूँ ही चलती रहे...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत बहुत बधाई सर!
जवाब देंहटाएंसादर
ब्लोग की दूसरी वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई।ये सफ़र अनवरत चलता रहे।
जवाब देंहटाएंब्लॉग की दूसरी वर्षगांठ पर बधाई स्वीकार करें आर्य..
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ही नहीं टिप्पणियाँ भी प्रभावित करती हैं.. दूसरी वर्षगाँठ पर बधाई..
जवाब देंहटाएंसंभव है मेरे मेल में चूक हुई हो, लिखना चाहा था- ''वह पूरे आलेख के प्रभाव (संजीदगी और सहज चुटीलेपन) को कम करती है''. मुझे, मेरी राय सहित शामिल किया, आभार.
जवाब देंहटाएंयहाँ आकर पाठन का अद्भूत सुख मिलता है . बधाई .
जवाब देंहटाएंब्लॉग की वर्षगाँठ पर मनोज ब्लॉग की पूरी टीम को बधाई और शुभकामनाएं. ..
जवाब देंहटाएंयह निरन्तर चलता रहे यही दुआ हैं ..
इस ब्लाग के दूसरे वर्षगांठ पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें....!
जवाब देंहटाएंहम तो बस यही कामना करते हैं कि आपका योगदान ब्लॉग जगत के लिए समय के सन्दर्भ में "शून्य" हो... घबराइए मत.. अभी दो साल हुए हैं.. आप बस शून्य जोडते चलिए...
जवाब देंहटाएंहम मित्र-द्वय आपके इस महा-यज्ञ में संमिलित हैं!!
बधाई और शुभकामनाएं!!
Bahut,bahut badhayee ho!
जवाब देंहटाएंदो वर्ष पूरे करने पर हार्दिक बधाईयाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई .........
जवाब देंहटाएंबिहारी बाबू के ब्लॉग से आपके ब्लॉग का पता चला...आपके ब्लॉग की दूसरी वर्षगांठ पर आपको हार्दिक बधाई!
जवाब देंहटाएंकरन बाबू,
जवाब देंहटाएंसाधुवाद,
वार्षिक चिट्ठी बड़ी मस्ती भरी है। अच्छी है। दूसरी वर्ष-गाँठ पर आप सभी को हार्दिक बधाई और सुन्दर चिट्ठी के लिए साधुवाद।
मनोज जी आपसे मुलाकात को एक बर्ष हो गया. इतनी आत्मीयता आपसे मिली कि लगता है कि वर्षों से जानते हैं आपको और कभी पूछा ही नहीं कि ये मनोज ब्लॉग कब बना था. इसी तरह एक बार करण से भी मिला और लगा कि कई साल से जानता हूं. यह आत्मीयता मनोज ब्लॉग से ही मिली है. इसकी रचनाओं से मिली है. विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका का आनंद आता है इस ब्लॉग पर. इसकी गुणवत्ता और रचना का स्तर कहीं से हंस, पाखी, वागर्थ आदि से कम नहीं है. व्यक्तिगत रूप से मुझसे फिर से कविता लिखने की प्रेरणा आपके आंच से ही मिली. बधाई नहीं दूंगा दो साल पूरे होने पर क्योंकि मुझे आपके और इस ब्लॉग से वर्षो जुड़े रहना है. आपसे आशीष चाहूँगा, सानिध्य चाहूँगा.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । बधाई स्वीकार करें । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग की दूसरी वर्षगांठ पर आपको हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंसमय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागता है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंblog ke dusre varshgaanth par badhai. bahut rochak shaili mein aapne khushi jaahir ki hai, bahut achchha laga. shubhkaamnaayen.
जवाब देंहटाएंkaran ji dusre saal ki varshgaanth par aur lakshmi ke aagman par aapko hardik shubhkaamnayen. aapne tippanikaro/pathakgano ka is safalta me 16 aane haath hona kah kar sab ko sadhuwad de diya.aabhar.
जवाब देंहटाएंमनोज कुमार,
जवाब देंहटाएंएक बार फ़िर से बधाई।
दो साल के समय में आपने अपने ब्लागों के माध्यम से बहुत काम किया हिंदी ब्लागिंग में। काफ़ी सामग्री जमा की। कई लोगों को जोड़ा ब्लागिंग से और उनसे नियमित लिखवाया भी। यह अपने में काबिले तारीफ़ बात है।
आपको और आपके साथियों को एक बार से बधाई और मंगलकामनायें। :)
बधाई और बधाई।
जवाब देंहटाएं*
आदत से मजबूर हूं सो कह रहा हूं 'दूसरे' की जगह अगर 'दूसरी' ही लिखते तो बेहतर होता।
बधाई हो जी!
जवाब देंहटाएंब्लाग के दो वर्ष सफलतापूर्वक पूरा करने पर सभी जनों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंइस अवसर को स्मरणीय बनाने के लिए रोचक एवं मनोरंजक प्रस्तुति के लिए करण जी को विशेष धन्यवाद।
hriday se badhayee.......
जवाब देंहटाएंइस दूसरी वर्षगाँठ पर बहुत-बहुत बधाई देते हुये कामना करती हूँ कि यह ब्लाग ऐसे ही चलता रहे और ऐसी ही रोचक और जानकारी से पूर्ण सामग्री हम लोगों को मिलती रहे!
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई। ढेरों शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंविस्तृत आलेख अच्छा लगा।
बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएँ.
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