सोमवार, 4 अक्टूबर 2010

आयी हो तुम कौन परी...

आयी हो तुम कौन परी...

केशव कर्ण

मन-मंदिर के मृदुल सतह में,

पली कल्पना एक बड़ी !

कल्प-लोक से उतर धरा पर,

आयी हो तुम कौन परी ?

अकथ-अतुलनीय, अश्रुत, सुन्दर,

उस असीम की जादूगरी !

कल्प-लोक से उतर धरा पर,

आयी हो तुम कौन परी !!

रवि की प्रथम-रश्मि से सुरभित,

        जैसे तरुण-अरुण जलजात !

     परम रम्य विधु-वदन मनोहर,

    और सुकोमल सुन्दर गात !!

     ब्रह्मानंद सरिस हो तुम,

प्रति अंग पियूष-पराग भरी !

कल्प-लोक से उतर धरा पर,
आयी हो तुम कौन परी !!

आयी हो तुम किस गिरी-सर से,

भूतल घन-वन या अम्बर से !

लाई हो क्या वर इश्वर से,

कुछ तो कह अभिराम अधर से !!

सार सरस निज शीघ्र बताओ,

बीते न अनमोल घड़ी !

कल्प-लोक से उतर धरा पर,
आयी हो तुम कौन परी !!

रति सम सुन्दर, सत्य सती सम,

वैभव विष्णुप्रिया सी !

शील गुणों में शारद जैसी,

सबल शैल तनया सी !!

क्षमाशीलता वसुधा जैसी,

निर्मल जैसे देवसरी !

कल्प-लोक से उतर धरा पर,
आयी हो तुम कौन परी !!

अधरों पर पुष्प का हास रहे,

कर्मों में सदा सुवास रहे !

पड़े न दुःख की परछाईं,

नयनों में हर्ष-प्रकाश रहे !!

ममता के कोमल आँचल में,

रहो सदा तुम हरी-भरी !

कल्प-लोक से उतर धरा पर,
आयी हो तुम कौन परी !!

32 टिप्‍पणियां:

  1. ताजा हवा के एक झोंके समान बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  2. सुंदर शब्द चयन । मनभावन रचना ।

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  3. कवित्त पढ़ते हुए लग रहा था जैसे कामायनी का कोई अध्‍याय पढ़ रहे हों। बहुत ही श्रे
    ष्‍ठ रचना। बधाई।

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  4. करण जी, क्षेत्रीय भाषा पर आपकी सिद्धि देसिल बयना के माध्यम से देख ही चुका हूँ। इस सुन्दर गीत से आपने बाल गीत रचना में भी अपनी सशक्त उपस्थति दर्ज करवा दी है।

    उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं।

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  5. खूबसूरत शब्दों से सजी ...
    उत्सुकता हो गयी है उस परी से मिलने की जिसने इतनी खूबसूरत कविता लिखवा ली ..
    बहुत सुन्दर ...!

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  6. बहुत सुन्दर, निर्मल आनन्द के झरने के समान .

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  7. वाह वाह्………………बिल्कुल बच्चे की निश्छल मुस्कान सी मासूम कविता ……………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  8. बहुत सुन्दर शब्दों का चयन ...नन्ही परी की कल्पना ने उत्कृष्ट रचना को जन्म दिया ...

    बहुत सुन्दर

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  9. इस नन्हीं परी को हमारा ढेर सारा आशीर्वाद पहुंचे। कविता भी बहुत सुंदर बन पडी है।
    ................
    …ब्लॉग चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।

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  10. वाह बहुत ही प्यारी कविता ..और बहुत ही सुन्दर तस्वीरें भी ..उस परी को बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  11. मन-मंदिर के मृदुल सतह में,
    पली कल्पना एक बड़ी !
    कल्प-लोक से उतर धरा पर,
    आयी हो तुम कौन परी ? !
    .......मनभावन......

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  12. बेहतरीन कविता ... ये तो आपकी शब्दों कि जादूगरी है

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। धन्यवाद

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  14. प्रोत्साहन के लिए सभी पाठकों को हृदय से धन्यवाद ! आने इस व्यक्तिगत अनुभूति को भी इतनी शिद्दत से सराहा..... हम आपके आभारी हैं. याद रखिये आपकी प्रतिक्रिया ही हमारी रचनात्मक ऊर्जा का इंधन है ! धन्यवाद !!!!

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  15. बहुत ही सुन्दर शब्द संयोजन...
    ख़ूबसूरत कविता...और उतनी ही ख़ूबसूरत तस्वीरें

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  16. सुंदर शब्दों से सजी निर्मल भावो से परिपूर्ण प्यार से लबालब कोमल रचना.

    बधाई.

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  17. मन-मंदिर के मृदुल सतह में,

    पली कल्पना एक बड़ी !

    कल्प-लोक से उतर धरा पर,

    आयी हो तुम कौन परी ?

    अच्छी रचना प्रस्तुति...

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  18. केशव जी, व्यस्तता और कुछ अवसाद के कारण विलम्ब हुआ आने में..क्षमा प्रार्थी हूँ. आपकी इस कविता का मोल वही समझ सकता है जिसने आठ साल इस पल की प्रतीक्षा में अपलक बिताए हों. और इस अनुभूति के बाद आपको लगता है कि वह कुछ भी कहने की स्थिति में होगा. आपने मुझे उस अनुभूति के क्षण दुबारा जीने का मौक़ा दिया. कैसे आभार व्यक्त करूँ.

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  19. कन्या के प्रति यह भाव आजीवन बना रह सके,तो समझिए,देश की आधी से ज्यादा समस्या स्वतः समाप्त।

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  20. केशव जी यह गीत कुछ मैथली शरण गुप्त के स्वर सा लग रहा है.. मानो साकेत के किसी सर्ग से उठाया गया हो.. गंभीरता से छंदबद्ध कविता लिखेंगे तो इसका युग पुनः आ जायेगा.. बहुत बढ़िया !

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  21. कितने कोमल मनमोहक शब्दों का चयन है आपकी रचना में और रचना भी अति सुंदर बन पडी है । आपकी इस खूबसूरत परी के चित्र देख कर और भी अच्छा लगा । ईश्वर करे इस परी को आपके हमारे सबके आशिर्वाद मिलें ।

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  22. वाह वाह मनोज भाई !
    कन्या पर यह प्यारी रचना देख मुझे अपनी लिखी एक लम्बी रचना की कुछ लाइनें याद आ गयी
    बहुत सुन्दर रचना के लिए आपका आभार ....
    http://satish-saxena.blogspot.com/2008/10/blog-post_14.html

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  23. बहुत खूब .. इस सुंदर परी को मेरा स्‍नेहाशीष !!

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  24. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना एवं चित्र प्रस्‍तुति अनुपम ।

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  25. Pyari rachna jisme sundar chitro ne chaar chaand laga diye... :)

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  26. अधरों पर पुष्प का हास रहे,

    कर्मों में सदा सुवास रहे !

    पड़े न दुःख की परछाईं,

    नयनों में हर्ष-प्रकाश रहे ..

    इस सार गर्भीत रचना को पढ़ कर आनंद आ गया ... महक सी उठ आई है जैसे ...

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