चिठियाना-टिपियाना संवाद-६(अनबन-बनबन)मनोज कुमार |
(१) चिठियाना-टिपियाना संवाद(२) चिठियाना-टिपियाना संवाद : द्वितीय अध्याय(३) चिठियाना-टिपियाना संवाद : तृतीय अध्यायः(४)चिठियाना-टिपियाना संवाद : अध्याय – 4 |
उस दिन छदामी लाल के क़दम मिलन पार्क के अंदर पड़े ही थे कि उसने देखा टिपियाना एक कोने में गुमसुम उदास बैठा है और चिठियाना उसकी तरफ़ बढ रहा है। |
चिठियाना-क्या हुआ भाई टिपियाना! आज मिलन पार्क के इस कोने में, गुमसुम, गंभीर, अकेले। |
टिपियाना-भाई! आज सच में बिल्कुल अलग-थलग और अकेला महसूस कर रहा हूं। |
चिठियाना-क्यों, क्या हुआ? |
टिपियाना-हमारे ऊपर गंभीर संकट छा गया है। |
चिठियाना-ऐसा क्या हुआ मेरे भाई? |
टिपियाना-भाई मत कहो! तुम्हारे मुंह से भाई का संबोधन, अच्छा नहीं लगता। |
चिठियाना-लो, कर लो बात! अब मुझसे क्यों ख़फ़ा हो रहे हो? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? |
टिपियाना-तुम्हारे मुंह से यह सब सुनना अच्छा नहीं लगता। तुम हमें आस्तीन के सांप समझते हो। गया था गले मिलने, दुआ-सलाम करने और तुम मेरी इस हरकत को यह समझ बैठे कि इसमें मेरा स्वार्थ है। निहितार्थ है। |
चिठियाना-ऐसा कब कहा हमने? यह क्यों कर आया तुम्हारे मन में? |
टिपियाना-सब कहने से ही होता है क्या? हम तो तुम्हारा हर लिखा, अन-लिखा सब पढते हैं, पढ लेते हैं! पर तुम …. तुम तो हमारी सीधे-सादे ढंग से कही बात का कुछ “और” ही अर्थ लगाते हो….! |
चिठियाना-कभी ऐसा कहा हमने? |
टिपियाना-….. और क्या? कहा नहीं तो ….. तुम ही बताओ जब तुम ख़ुद के बीमार होने की बात करोगे तो मैं तो यही कहूंगा ना कि … … ‘तुम्हारे साथ जीवन के हर पल का आनंद मिला है। तुम जल्दी स्वस्थ हो जाओ ताकि हम फिर से खुशियों को महसूस कर पाएं।’ … … या फिर … … ‘तुम्हारा आस-पास न होना बेहद अखर रहा है। जल्द ठीक हो जाओ।’ |
चिठियाना-हां। |
टिपियाना-पर मेरे इस कहे के पीछे तुम सोचोगे कि ….‘हां-हां तुम तो यही चाहते हो कि मैं स्वस्थ हो जाऊं ज़ल्द से ज़ल्द ताकि तुम्हारे यहां जाकर तुम्हारा मन बहलाऊं।’ |
चिठियाना-अरे-रे-रे—!! नहीं! नहीं!! भाई!!! ऐसा क्यों कहूंगा? कभी नहीं। |
टिपियाना-मैं समझता नहीं क्या? सब समझता हूं। अब जब तुम स्वस्थ और तरो ताज़ा दिखोगे तो यही तो कहूंगा कि बहुत अच्छा दिख रहे हो, स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट और सही-सलामत! |
चिठियाना-हां! इसमें ऐतराज़ वाली कोई बात नहीं है। |
टिपियाना-पर मैं जानता हूं कि मन ही मन तुम कह रहे होगे …. ‘हां-हां, बीमारी में मेरे पास आकर दो-चार सेव-फल लाते थे …. अब बच गया! … इसी लिए इतने चहक रहे हो!! खुद कितने प्रफुल्लित लग रहे हो कि मिला छुटकारा व्यर्थ के इस खर्च से!!’ |
चिठियाना-भाई टिपियाना ….. |
टिपियाना-भाई मत कहो! जब भी भाई कह कर मैं गले लगता हूं तो तुम इसका भी कोई और ही मतलब निकालते हो जैसे …. जैसे …. ‘आज तो गला दबाने के लिए ही गले पड़ रहा है।’ |
चिठियाना-यह सरासर आरोप है मुझ पर! ये आज तूने कौन सा मुद्रा अख़्तियार कर लिया है? |
टिपियाना-आरोप नहीं, मिस्टर चिठियाना! मेरा अब यही रूप तुम्हें देखने को मिलेगा। |
चिठियाना-क्या बकते हो? |
टिपियाना-बकता नहीं हूं! तुम्हें आगाह कर रहा हूं। जब तुम बीमार पड़ोगे तो कहूंगा --- ‘अच्छी और तगड़ी बीमारी है! थोड़ी और तगड़ी और अच्छी हो जाए यह बीमारी तो मज़ा आ जाए! शायद फिर उसका ईलाज इंडिया में संभव ही न हो। फिर तो इसी बहाने विदेश यात्रा का तुम्हारा भी योग बन जाएगा!’ |
चिठियाना-अरे! शुभ-शुभ बोलो! |
टिपियाना-हां-हां, जब तुम तरो-ताज़ा दिखोगे तो शुभ-शुभ ही बोलूंगा … कहूंगा …. ‘इतने दिनों के बाद यह चमक तुम्हारे चेहरे पर अच्छी नहीं लगती। आंखों को खटक रही है। इसकी तेज को कम करो। फिर से बीमार पड़ो। बीमार थे तो कितना ऐश-ओ-आराम था। कितने सारे लोग पूछने आते थे। अब स्वस्थ हो गए हो, तो कोई पूछने भी नहीं आएगा। फिर इधर-उधर घूमते-भटकते फिरोगे। |
चिठियाना-भाई तुम्हारा आज सिर फिर गया है। |
टिपियाना-फिरा नहीं है, अब होश आया है। हमारा क्या है, हम तो फिर भी कुछ न कुछ टिपिया लेंगे। आपस में ही बतिया लेंगे। तुम अपना सोचो, दुकान सजा कर बैठे रहोगे, हम सामने से गुज़र जाएंगे। न दुआ, न सलाम, फिर …. … |
चिठियाना-बहुत हुआ! अब बस करो …! |
टिपियाना-हां-हां! बस ही करता हूं…. |
चिठियाना-हुंह! |
टिपियाना-हुंह!! |
चिठियाना-….. ….. |
टिपियाना-…. …… |
चिठियाना-???? |
टिपियाना-???? |
चिठियाना-!, @, #, $, \, ~ |
टिपियाना-!, @, #, $, \, ~ |
चिठियाना-%, ^,-*, (, ), /, |
टिपियाना-%, ^,-*, (, ), /, |
चिठियाना-<, > |
टिपियाना-<, > |
अब छदामी लाल से रहा नहीं गया। सामने आया और बोला, “यार! तुम दोनों मिलजुल कर रहो। वरना हमारे ब्लॉगियाना के आंगन में सिर्फ़ संकेत ही रह जाएंगे, कोई संवाद नहीं रहेगा …..” |
(इतिश्री ब्लोगर-खंडे नवरात्रोपलक्ष्ये चिठियाना-टिपियाना अनबन-बनबन वार्ता नाम षष्ठो अध्यायः !!) |
शनिवार, 16 अक्तूबर 2010
चिठियाना-टिपियाना संवाद-६
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम एक मर्या्दित कुलीन टिप्पणी
उत्तम प्रस्तुति, मनोज जी ।
आपका आभार
द्वितीय एक चुटीली टिप्पणी
सर.. यदि आप लगे हाथ चिठियाना और टिपियाना के लिंग विवेचन भी कर देते..
तो हम मिलन पार्क में बैठे टिपियाना की उदासी का हेत जान लेते । न हो तो इस पर एक खुली बहस आमँत्रित कर ली जाये... क्या सोचते है, आप ?
@ डॉ. अमर जी
जवाब देंहटाएंआपका आगम .... धन्य हुआ।
प्रथम एक मर्यादित अभिव्यक्ति -- सर आपका आभार।
एक चुटीली उक्ति सर इतना तो लगता है कि उभयलिंग नहीं है।
सर बहस से ही तो हम डरते हैं। आयोजन तो हो जाए, पर मेरी तरफ़ के भी संवाद आपको ही बोलने होंगे।
आगम = आगमन
जवाब देंहटाएंnice..............................
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक!!
जवाब देंहटाएंदशहरा की हार्दिक बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ..
मनोज बाबू.. सबसे पहिले हमहूँ एगो मर्जादित टिप्पनी लिखते हैं कि चिठियाना परसाद अपने को एतना स्मार्ट समझते हैं कि जैसे ऊ इण्डिया के इण्डियन है रेसमी अऊर टिपियना बाबू भारत का हैं एही से रेसम पर टाट का पैबंद ... भारत अऊर इण्डिया का त ई बिबाद चलता रहेगा. मगर इसमें ऊ जो सांकेतिक अमर्जादित प्रतीक चिह्न का जो आप प्रयोग किए हैं उस पर नियंत्रन रखना चाहिये. अब एगो चुहलबाजी डॉ. अमर कुमार परः
जवाब देंहटाएंडॉ. साहब लिंग निर्धारन के लिए त सिम्पुल फण्डा है. एगो आदमी कबूतर लाया, मगर पते नहीं चलता था कि ऊ कबूतर है कि कबूतरी... उसका दोस्त बोला दाना डाल कर देखो चुगेगा तो कबूतर अऊर चुगेगी तो कबूतरी...
मनोज बाबू, महानवमी की शुभकामनाएँ आपको एवम् आपके समस्त परिवार तथा परिजनों को..!
interesting post!
जवाब देंहटाएंyah samvad 6 hai, arthat 5 samvad already ho chuke hain...
abhi padhte hain unhe bhi..
regards,
मैंने तो शुरू में ही सुझाव दिया था कि टिपियाना को इतना भाव न दीजिए। आप माने नहीं। अब देखिए यह दिन।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक सिक्सर.
जवाब देंहटाएंदुर्गा नवमी एवम दशहरा पर्व की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं.
रामराम.
Blog ki awadhati ki samasyaon par vicharpoorn prastuti..Aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रहा ये प्रोग्राम तो।
जवाब देंहटाएंहमारे तरफ एक कहावत है कि कनवा साथ रहा भी ना जाये और उसके बिना भी रहा ना जाये | सटीक बात |
जवाब देंहटाएंअच्छी रही ये नोक झोंक सही है हा....हा...
जवाब देंहटाएंयह नोंक झोकं तो चलती रहेगी,जब तक ब्लांगिग हे, दशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ!!!!
जवाब देंहटाएंसच्चाई और प्रश्न उठाता संवाद।
जवाब देंहटाएं:) :)
जवाब देंहटाएंbahut zordaar vyang mujhe lagta hai ki vyang to sab samjh rahe hain par park men baith kar bahas bhi karna chaate hain, chithiyaana to bina tipiyane ke udaas hoga hi na ..pakaa mitr hai .
achchhe vyang ke liye badhai..
मनोज जी ,
जवाब देंहटाएंये व्यंग्य बहुत अच्छा लगा, सिर्फ व्यंग्य ही नहीं है बल्कि कुछ सन्देश देता हुआ ये संवाद अपने में कुछ छिपाए हुए है. समझाने वाले समझ ही जायेंगे और जो न समझे वो ........
इस प्रकार की दुनिया में बहुत से फ़िल्टर काम करते हैं कुछ बनाए हुए, कुछ अपनाए हुए. इसलिए ख़ामख़्वाह बहुत ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत नहीं होती कि किस-किसने क्या-क्या कहा. कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगता है.
जवाब देंहटाएंअलबत्ता, मेरे जैसे, कुछ-कुछ कहने वालों को भले ही लगता रहे कि अगर उन्होंने कुछ नहीं कहा तो क्या होगा या फिर कुछ कह दिया तो क्या होगा...
बहुत सटीक!!
जवाब देंहटाएंदशहरा की हार्दिक बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ..
मनोज बाबु हमारी सलाह तो ये है की अगर इतना ही समझ का फेर है की कहा कुछ जाये और समझा कुछ जाये तो टिपियाना बाबु को कुछ दिन अपनी चोंच ही बंद कर लेनी चाहिए...भयी आफ्टर आल यहाँ स्पेस का मामला है...तनिक चिठियाना बाबू को स्पेस मिलेगा तबही तो चिठियाना बाबू को टिपियाना बाबु की कमी महसूस होगी.
जवाब देंहटाएंऔर दूसरा जब टिपियाना बाबु नहीं आयेंगे उनके हाल पूछने तो चिठियाना बाबु की अकल ठिकाने आएगी. और तब चिठियाना जी बोलेंगे..-बहुत हुआ! अब बस करो …!
टिपियाना-हां-हां! बस ही करता हूं….
चिठियाना-हुंह!
टिपियाना-हुंह!!
चिठियाना-….. …..
टिपियाना-…. ……
चिठियाना-????
ये व्यंग्य बहुत अच्छा लगा, सिर्फ व्यंग्य ही नहीं है बल्कि कुछ सन्देश देता हुआ!
जवाब देंहटाएंन न ऐसा ना हो । चिठियाना और टिपियाना दोनो मिलजुल कर रहें स्नेह प्रेम के साथ ।
जवाब देंहटाएं... बहुत खूब !
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी मनोज जी . लक्षणा , व्यंजना जान कर बहुत मदद मिलेगी बात को समझने में। और कमेन्ट का नया अंदाज भी पसंद आया।
.
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंबेटी .......प्यारी सी धुन
यह नोक झोंक चलती रहे। इसमें भी रस है। वर्ना एकरस में तो नीरसता समाने लगती है।
जवाब देंहटाएंअंत की सांकेतिक भाषा भी बहुत सुंदरता से अभिव्यक्ति कर जाती है।
सभी को दशहरा की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ..
संवाद की पृष्ठभूमि जो भी हो, यह अंक बेजोर संवाद-अदायगी के लिए याद किया जाएगा. बहुत ही सुन्दर. संवादों का प्रवाह मनोहारी है. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंयह व्यंग्य नहीं व्यंग्य की पीड़ा है! कल हमारे ब्लॉग भी देखिएगा यह पीड़ा।
जवाब देंहटाएं