कविताउठ तोड़ पीड़ा के पहाड़मनोज कुमार |
पिछले सप्ताह प्रकृति द्वारा किए गए विध्वंस से आहत जो कविता लिखी थी, उसे प्रस्तुत किया था। यहां पढें। प्रकृति के द्वारा हुए विनाश के बावज़ूद भी जीवन चक्र तो चलता रहता है। आदमी को उठना पड़ता है, विपदाओं से लड़ना पड़ता है। अगर हम अतीत (बीती) को ही याद करते रहेंगे तो वर्तमान में जीना कठिन लगेगा व भविष्य असम्भव प्रतीत होगा। यदि हम मृत्यू से भयभीत होते हैं तो इसका अर्थ है कि हम जीवन का महत्व ही नहीं समझते। जन्म का अन्त है मृत्यु और मृत्यु का अन्त है जन्म। समस्याएं न सिर्फ़ आएंगी बल्कि हो सकता है संसार में समस्याएं बढ़ेंगी इसलिए हमें समस्याओं का सामना करने की अपनी क्षमता को बढ़ाना चाहिए। हमें समस्यायों से निपटने के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं होना चाहिए। यदि हम बहुत अधिक लोगों पर निर्भर रहते हैं तो इससे हमारे निराश होने के अवसर बढ़ जाते हैं। समस्याओं का डटकर मुक़ाबला करना होता है। अगर मुझे अन्धेरे से बहुत डर लगा है तो अपनी ऑंखे बन्द कर लेना समझदारी नहीं है। हमारी सच्ची परीक्षा तो कठिन परिस्थितियों में ही होती है। परीक्षा की घडी मनुष्य को महान बनती है, विजय की घड़ी नहीं। समस्यायें चाहे कैसी भी हों परन्तु इनसे घबराना नहीं चाहिए, बल्कि इन्हें परीक्षा समझ कर पास करना चाहिए। विपत्ति आने पर हिम्मत बनाये रखना सबसे अच्छा उपाए है। पहाड जैसी विपत्ति को दूर करने के लिए सिर्फ थोडा सा साहस ही पर्याप्त है। |
उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़ |
सोमवार, 18 अक्टूबर 2010
कविता - उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
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आदरणीय मनोज कुमार जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती..सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
......आपकी लेखनी को नमन बधाई
समय के साथ हालात बदले भी है लेकिन और अधिक बदलाव की जरूरत है.
जवाब देंहटाएंसकारात्मक ऊर्जा से ओत-प्रोत रचना। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंबेटी .......प्यारी सी धुन
कमाल के शब्द संयोजन ! बहुत सुन्दर कविता ! अंत में आशा और प्रत्यय की बात करती हुई ...
जवाब देंहटाएंदशहरा की शुभकामनायें !
जीवन का दर्शन और जीने की कला सिखाती रचना!!
जवाब देंहटाएंएक आदर्शोन्मुख और प्रेरक कविता।
जवाब देंहटाएंमुट्ठियों के पहार में प्रहार होना चाहिए। शायद टंकण त्रुटि है।
शुभकामनाएँ।
हरीश
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएं... bahut sundar ... behatreen !!!
जवाब देंहटाएंगज़ब की प्रेरक कविता जीवन दर्शन कराती है।
जवाब देंहटाएं@ हरीश जी
जवाब देंहटाएंभूल की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिए आभार! त्रुटि सुधार कर दिया है।
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbahut sundar post!
जवाब देंहटाएंinsaan ke haath mein sakal shaktiyon ka niwas hai...
prerak kavita aur satya bhi!!!!
Manoj ji,
जवाब देंहटाएंVajay Dashmi Ki Hardik Shubhkamnaayen.
Kavita Acchi lagi.Badhaai.
-GyanChand Marmagya
अनुकरणीय ! कविता का भाव पक्ष उत्कृष्ट है. शिल्प में और सुधार की गुंजाइश है. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर, भावप्रवण तथा जीवन दर्शन का बोध कराती कविता के लिए मनोज जी को आभार।
जवाब देंहटाएंसच कह मनोज जी कि आदमी होता प्रक्रिति का दास है.. सुन्दर कविता है.. छायावादी की खूबियो से भरी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही ओजपूर्ण कविता है .पढते हुए सकारात्मक ऊर्जा का अहसास होता है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
मनोज जी, इस ओजस्वी कविता को पढवाने का शुक्रिया। सचमुच शिराओं में रक्त दौड़ने लगा है और बाजू फड़कने लगे हैं। कविता की सार्थकता इससे स्वयं सिद्ध हो जाती है।
जवाब देंहटाएंमत भाग जलधि का ज्वार देख
जवाब देंहटाएंभर ले इसको निज आलिंगन में,
लहरों को लगा वक्ष से अपने,
भर ले शीतलता जीवन में।…
--
कमाल की अभिव्चक्ति को जन्म दिया है,
आपने!
बहुत-बहुत बधाई!
इस भाव को ह्रदय में धारण कर सतत स्मरण में संरक्षित रखने की आवश्यकता है...यही उर्जा जीवन नैया पार लगा सकती है..
जवाब देंहटाएंउर्जा से परिपूर्ण अतिसुन्दर रचना..
.
जवाब देंहटाएंA zealous presentation !
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सच्ची परीक्षा तो कठिन परिस्थितियों में ही होती है. परीक्षा की घडी मनुष्य को महान बनती है
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना अभिव्यक्ति ..... आभार
ओशो सिद्धार्थ भी कहते हैं-
जवाब देंहटाएंहम अपना लिखते भाग्य स्वयं
पर समय बीत जब जाता है
खुद का ही लिखा ना पढ़ पाते
अक्षर धुंधला हो जाता है
इसलिए,नियति को मत मानो
अपना हस्ताक्षर पहचानो.........
सुंदर, सटीक और सार्थक रंचना ....
जवाब देंहटाएंआभार ............................
बहुत ही प्रेरणादायक कविता , इसके लिए कुछ और देखें.
जवाब देंहटाएंमन को न कभी निराश करो,
बस कर्म करो और कर्म करो.
इतिहास तुम्हें ही पूजेगा,
बस पूरा मानव धर्म करो.
बहुत गजब की रचना...वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत गजब की रचना...वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत गजब की रचना...वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आशावादी रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरक रचना...आभार .
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
हौसला रखना अच्छा है मगर कई बार हम सचमुच प्रकृति के दास ही साबित होते हैं। पिछले दिनों मैंने डेंगू के कुछ केस देखे। परिजन अस्पताल दर अस्पताल भागते रहे। रोगी के गुज़र जाने की ही संभावना पैदा हो गई थी। पैसे की कमी नहीं थी,मगर प्लेटलेट्स कहीं उपलब्ध नहीं। एक बूंद प्लेटलेट्स बनने में घंटो लगते हैं। आप खरबपति होकर भी क्या कर लीजिएगा?
जवाब देंहटाएंमनोज जी
जवाब देंहटाएंकमाल के शब्दों का प्रयोग किया है आपने , जो भाव सम्प्रेषण में पूरी तरह से सार्थक हैं . इतिहास तो इतिहास होता यूँ समझ लीजिये हमारे आगे बढ़ने का आधार .वही हमें शक्ति देता है और वही दृष्टि कि वर्तमान पल को कैसे सुंदर बनाया जा सकता है .
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंरास्ते में आने वाले हर गतिरोध और अवरोधों के भंवर में फ़ंस छटपटाते रहने की बजाय हिम्मत बटोर किनारे तक पहुंचने का प्रयास ही जीवन है. समूची रचना इस प्रेरणादायक संदेश को बेहद खूबसूरती से उकेरती है. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
manoj jee ye hai meree nazaro mr sarthak lekhan.......prarana se ot prot........
जवाब देंहटाएंTareefekabil lekhan v prastuti........
Aabhar
सुन्दर भाव सुन्दर आह्वान
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता
उत्साह और ऊर्जा से ओत-प्रोत रचना!
जवाब देंहटाएंbahut achchhi rachna ..prerna deti hui ..sakaaraatmak soch liye huye ...
जवाब देंहटाएंसच है ... अपने हाथों से ही इतिहास को गाढ़ना पड़ता है .... मारने के लिए पत्थर खुद ही उतना पड़ता है ...
जवाब देंहटाएंaapki kavita bahut hi prerna dayak hai...
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 12- 01 -20 12 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज... उठ तोड़ पीड़ा के पहाड़
संगीता जी आपका बहुत-बहुत आभार।
हटाएंप्रातस्मरणीय रचना । बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना...
बधाई.
वाह ...बहुत ही बढि़या भाव संयोजन ...आभार ।
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना इंसान अगर कुछ ठान ले तो क्या नहीं कर सकता ॥बहुत सुंदर प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...सकारात्मकता से भर पूर आभार
हटाएंसार्थक प्रेरक और सकारात्मक ...आभार
जवाब देंहटाएंThanks for writing this blog, You may also like the Maha shivratri ,Maha shivratri Festival
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