शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

शिव स्वरोदय-12

शिव स्वरोदय-12

आचार्य परशुराम राय

अथ स्वरं प्रवक्ष्यामि शरीरस्थस्वरोदयम्।

हंसचारस्वरूपेण भवेज्ज्ञानं त्रिकालजम्।।10।।

अन्वयः अथ शरीरस्थ स्वरोदयं स्वरं प्रलक्ष्यामिं।

हंसचाररुपेण त्रिकालजं ज्ञानं भवेत्।

भावार्थः हे देवि, इसके बाद मैं अब तुम्हें शरीर में स्थित स्वरोदय को व्यक्त करने वाले स्वर के विषय में बताता हूँ। यह स्वर “हंस” रूप है अर्थात् जब साँस बाहर निकलती है तो ‘हं’ की ध्वनि होती है और जब साँस अन्दर जाती है तो ‘सः (सो)’ की ध्वनि होती है। इसके संचरण के स्वरूप का ज्ञान हो जाने पर तीनों काल- भूत, भविष्य और वर्तमान हस्तामलवक हो जाते हैं।

English Translation : O Goddess , Now I am going to tell you about Swara which , existing the body, epresses the pattern of breathing. This swar Sounds Ham (हं) when it goes out of the body and ‘Sah’ (सः) when enters the body. A person who knows its existence as wel as it movement fully, he is aware of time factor- it may be present, past or future.

गुह्याद् गुह्यतरं सारमुपकार-प्रकाशनम्।

इदं स्वरोदयं ज्ञानं ज्ञानानां मस्तके मणिः।।11।।

अन्वयः- इदं स्वरोदयं ज्ञानं गुह्यात् गुहयतरम् सारम्

उपकार-प्रकाशनम् च ज्ञानानां मस्तके मणि (इन अस्ति)।

भावार्थः (हे देवि), स्वरोदय का ज्ञान अत्यन्त गोपनीय ज्ञानों से भी गोपनीय है। यह अपने ज्ञाता का हर प्रकार से हित करता है। यह स्वरोदय ज्ञान सभी ज्ञानों के मस्तक पर मणि के समान है, अर्थात् यह ज्ञानी के लिए अमूल्य रत्न से भी बढ़कर है।

English Translation : (O Goddess) this knowledge of Swaroday is the most secret knowledge among all secret knowledges. This is very beneficial to those who are in possession of this great knowledge. This knowledge has been said the greatest knowledge of all i.e. This is precious gem for a wise.

सूक्ष्मात्सूक्ष्मतरं ज्ञानं सुबोधं सत्यप्रत्ययम्।

आश्चर्यं नास्तिके लोके आधारं त्वास्तिके जने।।12।।

अन्वयः सूक्ष्मात् सूक्ष्मतरम् (इदं) ज्ञानं सुबोधं सत्यप्रत्ययं च (अस्ति)।

(इदं) लोके नास्तिके आश्चर्यं आस्तिके जने तु आधारम् (अस्ति)।

भावार्थः- सूक्ष्म से भी सूक्ष्म होने पर भी यह ज्ञान सुबोध और सत्य का साधन है अर्थात् सत्य का बोध कराने वाला है। यह नास्तिकों को आश्चर्य में डालने वाला और आस्तिकों के लिए उनकी आस्था का आधार है।

Enlish Translation: This is Subthiest knowledge of all subtle knowledges, but still easily intelligible and also realization of the Truth. This is the most wonder among the wonders for atheist and solid ground for transformation to the theist.

शांते शुद्धे सदाचारे गुरूभक्त्यैकमानसे।

दृढ़चित्ते कृतज्ञे च देयं चैव स्वरोदयम्।।13।।

अन्वयः- शांते शुद्धे सदाचारे गुरुभक्त्या एकमानसे

दृढ़चित्ते कृतज्ञे च स्वरोदयं (ज्ञानं) देयम्।

भावार्थः- (हे देवि) जिस व्यक्ति की प्रकृति शांत हो गयी हो, जिसका चित्त शुद्ध हो, सदाचारी हो, अपने गुरु के प्रति एकनिष्ठ हो, जिसका निश्चय दृढ़ हो, ऐसे पुनीत आचरण वाले व्यक्ति को स्वरोदय ज्ञान की दीक्षा देनी चाहिए या ऐसा व्यक्ति स्वरोदय ज्ञान का अधिकारी होता है।

English Translation: A person of tranquil nature, pure mind, virtuous conduct fidelity to his master and courage only can be initiated in this tradition of knowledge.

दुष्टे च दुर्जने क्रुद्धे नास्तिके गुरुतल्पगे।

हीनसत्त्वे दुराचारे स्वरज्ञानं न दीयते।।14।।

अन्वयः- दुष्टे, दुर्जने, क्रुद्धे, नास्तिके, गुरूतल्पगे,

हीनसत्त्वे दुराचारे च स्वरज्ञानं न दीयते।

भावार्थः- दुष्ट, दुर्जन, क्रोधी, नास्तिक, कामुक, सत्त्वहीन और दुराचारी को स्वरोदय ज्ञान की दीक्षा कभी नहीं देनी चाहिए।

English Translation: A person who is an unrighteous, wicked, wild, atheist, full of lust or an unspirited, should not be initiated in Swarodaya.

शृणु त्वं कथितं देवि देहस्थ ज्ञानमुत्तमम्।

येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्त्वं प्रणीयते।।15।।

अन्वयः- हे देवि, त्वं देहस्थम् उत्तमं ज्ञानं शृणु,

येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रणीयते।

भावार्थः- हे देवि शरीर में स्थित इस उत्तम ज्ञान को सुनो, जिसे विशेष रुप जान लेने पर (व्यक्ति) सर्वज्ञ हो जाता है।

English Translation: O Goddess listen this greatest knowledge available in this body and it makes its seer omniscient.

स्वरे वेदाश्च शास्त्राणि स्वरे गांधर्वमुत्तमम्।

स्वरे च सर्वत्रैलोक्यं स्वरमात्मस्वरुपकम्।।16।।

अन्वयः- स्वरे वेदाः च शास्त्राणि च स्वरे उत्तमं गांधर्वं,

स्वरे च सर्वत्रैलोक्यं स्वरम् आत्मस्वरूपकम्।

भावार्थः सभी वेदों, शास्त्रों, संगीत आदि उत्तम ज्ञान स्वर में ही सन्निविष्ट है। हमारे अस्तित्व की तीनों अवस्थाएँ- चेतन, अवचेतन और अचेतन स्वर मे ही संगुम्फित हैं। (और क्या कहूँ?) स्वर ही आत्म-स्वरूप है।

English Translation: This Swara includes knowledge of all Vedas, Shastras, music etc. Three levels of our existence remain in Swara. Moreover this is the soul itself.

स्वरहीनः दैवज्ञो नाथहीनं यथा गृहम्।

शास्त्रहीनं यथा वक्त्रं शिरोहीनं च यद्वपुः।।17।।

अन्वयः स्वरहीनः दैवज्ञः यथा नाथहींन गृहं (भवति),

यथा शास्त्रहींन वक्त्रं शिरोहीनः वपुः च।

भावार्थः- स्वरोदय विज्ञान के ज्ञान के अभाव में एक ज्योतिषी वैसे ही है, जैसे बिना स्वामी का घर, शास्त्र-ज्ञान के बिना मुख और बिना शिर के शरीर। अर्थात् एक ज्योतिषि के लिए स्वर-ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है।

English Translation: An Astrloger without knowledge of Swarodays is like the house without master, voice without knowledge and body without head. As such, the knowledge of Swaroday to him (an astrologer) is the most useful for his profession.

नाडीभेदं तथा प्राणतत्त्वभेदं तथैव च।

सुषुम्नामिश्रभेदं च यो जानाति स मुक्तिगः।।18।।

अन्वयः नाड़ीभेदं तथा प्राणतत्त्वभेदं च तथैव (तेषां)

सुषुम्नामिश्रभेदं यः जानाति सः मुक्तिगः।

भावार्थः- नाड़ियों, प्राणों तथा तत्त्वों के भेद का यथावत ज्ञान और सुषुम्ना के साथ उनके संयोग को जो व्यक्ति विवेक पूर्वक जानता है, वह मुक्ति पाने का अधिकारी होता है।

English Translation: The knowledge of Nadis, Life Energies, Tattvas and their relation with Sushumna if a person has in their nature he is liberated from the worldly bondage.

साकारे वा निराकारे शुभवायुबलात्कृतम्।

कथयन्ति शुभं केचित्स्वरज्ञाने वरानने।।19।।

अन्वयः हे वरानने, स्वरज्ञाने शुभवायुबलात् साकारे निराकारे वा

(किं) शुभं कृतम् इति केचित् कथयन्ति।

भावार्थः- हे सुमुखि, स्वर का ज्ञान होने पर शुभ स्वर के प्रभाव से विद्वान दृष्ट और अदृष्ट जो शुभ है, उसका कथन करते है, अर्थात् दृष्ट और अदृष्ट रुप से क्या शुभ और क्या अशुभ है, बताते हैं।

English Translation: O Beautiful Goddess, wise men have the knowledge of Swarodaya, can tell visible or invisible good or bad effect with the help of breathing pattern arising at the time of question put before them by anybody.

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!

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  2. .

    मनोज जी,

    इस अद्भुत जानकारी के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

    .

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  3. शिव स्वरोदय को समझाने का चुनौतीपूर्ण कार्य कर आप एक महान कार्य कर रहे हैं। इससे पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।

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  4. सही समय पर बहुत ही ज्ञानवर्धक पोस्ट लगाई है आपने!
    --
    ज्ञान बाँटने के लिए-
    बहुत-बहुत आभार!

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  5. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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  6. आध्यात्मिक सामग्री के अनुवाद की एक झलक मिली और कई ऐसे मंत्रों के अर्थ भी जान पाया जिन्हें लोग अमूमन यों ही जपते रहते हैं।

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  7. आपके श्रमसाध्य अमूल्य प्रयासों और अथक परिश्रम की सराहना करनी होगी।
    आभार।

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  8. शृणु त्वं कथितं देवि देहस्थ ज्ञानमुत्तमम्।

    येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्त्वं प्रणीयते।।15।।

    अन्वयः- हे देवि, त्वं देहस्थम् उत्तमं ज्ञानं शृणु,

    येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रणीयते।

    आपके ब्लॉग पर बहुत ज्ञानवर्धक आलेख. पढने को मिला... आभार.. ..बहुत ही मुश्किल होता है संस्कृत और हिंदी को इतने शुद्धता के साथ प्रस्तुत करने के लिए.. बहुत श्रमसाध्य काम को बहुत खूबसूरती से अंजाम देते है आप.. यह देखकर बहुत अच्छा लगता है .... आपके ब्लॉग पर टिप्पणी बहुत देर से और बहुत बार तो खुलता ही नहीं है ...... शायद कोई तकनीक प्रॉब्लम होगी...
    आपको और आपके परिवार को नवरात्र की हार्दिक शुभ कामनाएं

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  9. @ कविता जी
    हमें तो ऐसी दिक्क़्त नहीं दिखती। फिर भी इस ओर ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया। पूछता हूं और लोगों से।

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  10. राय जी की जितनी तारीफ़ की जाय कम है. ग्यानवर्धक पोस्ट.

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