भारतीय काव्यशास्त्र-लक्षणा
आचार्य परशुराम राय
शुद्धा लक्षणा और गौणी लक्षणा के लिए भेदक रेखा आचार्य मम्मट 'उपचार' को मानते हैं। यहाँ 'उपचार' का अर्थ है -
अत्यन्त भिन्न दो पदार्थों में अत्यन्त सादृश्य गुणों के कारण अभेद की प्रतीति।
जब लक्षणा 'उपचार' रहित हो तो उसे शुद्धा लक्षणा और जब 'उपचार' सहित हो तो उसे गौणी लक्षणा माना जाता है।
जैसे - यदि किसी बच्चे में निडरता और पराक्रम आदि गुणों को देखकर कहा जाये कि 'यह बच्चा शेर है' तो 'बच्चा' और शेर दोनों अत्यन्त अलग-अलग हैं। किन्तु दोनों में निडरता और पराक्रम आदि गुणों के सादृश्य के कारण यहाँ उपचार-मूलकता होने के कारण गौणी लक्षणा होगी। जबकि 'फूल मुस्करा रहे हैं' में शुद्धा लक्षणा होगी। यहाँ 'मुस्कराना' 'खिलना' के अर्थ में आया है और उपचार रहित है। अर्थात् 'मुस्कराना' अपने अस्तित्व को छोड़कर 'खिलना' शब्द में समर्पित हो जाता है। दूसरे शब्दों में - शुद्धा लक्षणा वस्तुपरक होती है, जबकि गौणी गुणपरक। यहाँ गौणी को गुण से व्यूत्पन्न मानना चाहिए, गौण (secondary) से नहीं।
शुद्धा लक्षणा के चार भेद होते हैं - उपादान लक्षणा, लक्षण-लक्षणा, सारोपा और साध्यवसाना लक्षणा। गौणी लक्षणा के केवल दो भेद होते हैं - सारोपा और साध्यवसाना।
उपादान लक्षणा:- जहाँ शब्द अपने अन्वय की पूर्ति के लिए दूसरे अर्थ को ग्रहण करता है और स्वयं भी बना रहता है, वहाँ 'उपादान लक्षणा' होती है। जैसे - 'दो घरों में लड़ाई हो रही है' यहाँ 'घरों का अर्थ' 'घरों में रहने वाले लोगों' से है। चूँकि 'घर' आपस में नहीं लड़ सकते, अतएव अर्थ की बाधा को दूर करने के लिए उसमें 'रहने वाले लोग' को आक्षिप्त किया गया है और 'घर' शब्द भी अपना अस्तित्व बनाए हुए है। अतएव यहाँ 'उपादान लक्षणा' होगी।
लक्षण-लक्षणा:- उपादान लक्षणा के विपरीत जहाँ वाक्य में प्रयुक्त शब्द अर्थ की अन्विति के लिए, अर्थात् मुख्यार्थ में बाधा को दूर करने के लिए अपने अर्थ को छोड़कर दूसरे अर्थ का बोधक बन जाये, तो वहाँ लक्षण-लक्षणा होगी। जैसे:- 'फूलों का मुस्कराना' में 'मुस्कराना' शब्द अपना अस्तित्व छोड़कर अन्विति के लिए अर्थात् मुख्यार्थ की बाधा को दूर करने के लिए 'खिलना' अर्थ ले लेता है।
शुद्धा सारोपा और शुद्धा साध्यवसाना लक्षणाएँ
जहाँ उपमेय और उपमान दोनों साथ रहें और कार्य कारण भाव का सम्बन्धपूर्वक आरोप होने पर शुद्धा सारोपा लक्षणा मानी जाती है जैसे 'घी आयु है'। यहाँ घी प्रस्तुत है अर्थात् उपमेय है और आयु अप्रस्तुत उपमान है। परन्तु घी आयु नहीं हो सकता। दोनों भिन्न है। लेकिन 'घी' पौष्टिक और बलवर्द्धक होने के कारण 'आयु' को दीर्घ बनाने वाला है। अतएव इस अर्थ का घी में आरोप होने के कारण यहाँ सारोपा शुद्धा लक्षणा है।
जहाँ उपमेय को बिना कहे उपमान से ही उपमेय को अभिव्यक्त किया जाए, वहाँ साध्यवसाना शुद्धा लक्षणा होगी, जैसे- घी को कहा जाये कि 'यह आयु है'। यहाँ उपमेय छिप गया है और उपमान को उपमेय की संज्ञा दे दी गई है। अतएव इसमें साध्यवसाना शुद्धा लक्षणा मानी जाएगी।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि गौणी लक्षणा गुण मूलक है। यदि हम उदाहरण के तौर पर देखें 'तू गधा है' और 'गधा कहीं का'।
यहाँ 'गधा' 'मूर्खता' का द्योतक है जो उपमान है। व्यक्ति की मूर्खता गधे की 'मूर्खता' गुण के सादृश्य के कारण एक व्यक्ति (यहाँ 'तू' से सम्बोधित) को गधे के तुल्य बताया गया है। लेकिन आदमी गधा नहीं हो सकता। मुख्यार्थ की इस बाधा को दूर करने के लिए गधे के गुण 'मूर्खता' का अर्थ लेने के कारण यहाँ लक्षणा होगी। उपमेय 'तू' और उपमान 'गधा' दोनों के वर्तमान होने के कारण सारोपा गौणी लक्षणा होगी।
दूसरे वाक्य में उपमेय 'तू' या जिस व्यक्ति को उपमान गधे से सम्बोधित किया गया है, वह यहाँ अपहनुत कर लिया गया है अर्थात् प्रकट नहीं किया गया है। अतएव यहाँ साध्यवसाना गौणी लक्षणा होगी।
मनोज जी, इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकाव्यशास्त्र पर अच्छी जानकारी.धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंग्यानवर्धक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंकाव्यशास्त्र दी गयी यह जानकारी काफी लाभप्रद है, शब्द शक्तियों का बहुत अच्छे तरीके से विश्लेषण किया गया है ...!
जवाब देंहटाएंउपयोगी ग्यान । बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुंदर जानकारी के लिये आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत दिनों बाद लक्षणा के विषय में पढ़ा
जवाब देंहटाएंमनोज जी क्या कुछ हमार लिए लेकर आ रहे हैं आप अनुपम काम कर रहे हैं... नए लेखको और कवियों के लिए यह के अच्छी श्रृंखला है.. बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जानकारी जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंइन नकली उस्ताद जी से पूछा जाये कि ये कौन बडा साहित्य लिखे बैठे हैं जो लोगों को नंबर बांटते फ़िर रहे हैं? अगर इतने ही बडे गुणी मास्टर हैं तो सामने आकर मूल्यांकन करें।
जवाब देंहटाएंस्वयं इनके ब्लाग पर कैसा साहित्य लिखा है? यही इनके गुणी होने की पहचान है। अब यही लोग छदम आवरण ओढे हुये लोग हिंदी की सेवा करेंगे?
आचार्य जी, कितने विस्मृत अध्याय आपकी क्लास में आकर पुनः याद हो गए! धन्यवाद आपका!!
जवाब देंहटाएंSir,
जवाब देंहटाएंYou have done a commendable job by posting this article on your blog.It will serve as a reference article for learners. For this you really deserve kudo from my side.Many many thanks and happy return of the day.
उपयोगी और ज्ञानवर्द्धक प्रस्तुति के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएं@Ustad ji: Aise kai ustad ji numbering karnewale blogs pe baithe hote hain....apne limited knowledge ko hi sab kuch maante hain....aise log koop mandook hote hain...aur aise logon par dhyan na hi diya jaye toh acha hai.....@Acharya ji: aapke inn gyanvardhak posts se umeed hai ke pathak bahut kuch seekh rahe hain aur iska poora laabh bhi utha rahe hain...@All: yah prakriya swasthya rehene mein bahut hi sahayak hai...Dhanyawaad
जवाब देंहटाएंउम्दा जानकारी..
जवाब देंहटाएंउदाहरणों और भाषिक सहजता के कारण बात एकदम से समझ में आती है। जारी रहे।
जवाब देंहटाएंज्ञान वर्द्धक पोस्ट के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंthanks a lot Mr. Manoj. I am a student of M.A Sanskrit and lakshana seems to be very hard topic for me . But u explained it in a very simple way .
जवाब देंहटाएंthanks a lot Mr. Manoj. I am a student of M.A Sanskrit and lakshana seems to be very hard topic for me . But u explained it in a very simple way .
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