आंच-39 (समीक्षा) परश्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ की कविताक्या जग का उद्धार न होगा!मनोज कुमार |
साधना वैद जी एक संवेदनशील, भावुक और न्यायप्रिय महिला हैं। अपने स्तर पर अपने आस पास के लोगों के जीवन में खुशियाँ जोड़ने की यथासम्भव कोशिश में जुटे रहना उन्हें अच्छा लगता है। “उन्मना” उनका एक ब्लॉग है। पिछले दिनों इस ब्लॉग पर पहुंचा तो वहां पोस्ट की गई एक ऐसी कविता पाया जिस पर छायावाद का स्पष्ट प्रभाव दीखता था। वैसे तो किसी कविता को वाद में बांधना उचित नहीं, पर इस कविता की विशेषता को रेखांकित करने के लिए इसे इस श्रेणी की कविता माना जा सकता है। इस ब्लॉग पर साधना जी अपनी माँ, श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’, की रचनाओं को हम तक पहुँचा रहीं हैं! कहती हैं,
जिन विषम परिस्थितियों और परिवेश में इन कविताओं का सृजन हुआ होगा उसके लिये यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि यह कार्य किसी असाधारण व्यक्तित्व के हाथों ही सम्पन्न हुआ होगा! इस ब्लॉग की कविताएं पढते हुए बरबस यह मन में आता है कि जिन विषम परिस्थितियों और परिवेश में इन कविताओं का सृजन हुआ होगा उसके लिये यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि यह कार्य किसी असाधारण व्यक्तित्व के हाथों ही सम्पन्न हुआ होगा! इस ब्लॉग पर प्रस्तुत कविताओं का अवलोकन एक समृद्ध और जीवंत साहित्यकार की लगभग चौथे दशक से लेकर आठवें/नौवें दशक तक की काव्य-यात्रा से रू-ब-रू होना है। जहाँ कविताओं के बीज विचारों की ऊष्मा से युक्त हैं, वहीं रचनात्मक सफलताओं की संपूर्ति काव्य कला की शर्तों पर ही होती है। वह भी अपने समय-समाज की परिवर्तन-कामी चेतना के साथ। श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ का जन्म 14 अगस्त 1917 को उदयपुर के सम्मानित कायस्थ परिवार में हुआ ! मात्र 6 वर्ष की अल्पायु में ही क्रूर नियति ने उनके सिर से पिता का ममता भरा संरक्षण छीन लिया और यहीं से उनके संघर्षों का जो सिलसिला आरम्भ हुआ वह आजीवन अनवरत रूप से चलता ही रहा ! 4 नवम्बर 1986 को उनका निधन हुआ। यह ब्लॉग और इस पर मां की कविताओं की प्रस्तुति साधना जी और उनकी बहन आशा जी की माँ की सृजनशीलता के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि है!
आज की आंच के लिए हमने चयन किया है श्रीमती ‘किरण’ की कविता * क्या जग का उद्धार न होगा * । कोई ज़रूरी नहीं कि कठिन समय को रूपायित करने के लिए कविता अपने विन्यास और बोधगम्यता में कठिन हो जाए। इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर जाते हैं। कोई ज़रूरी नहीं कि कठिन समय को रूपायित करने के लिए कविता अपने विन्यास और बोधगम्यता में कठिन हो जाए। कम-से-कम किरण जी की कविता इस तर्क को नकारती है। किरण जी की कविता * क्या जग का उद्धार न होगा * के सरोकार केवल फूल, पत्ते, कलि, उपवन, तितली, भंवरों से ही नहीं, कहीं न कहीं पूरे भूमंडल से जुड़े हैं। कवयित्री `किरण’ सरल और सहज मुहावरे में पिरो कर कठिन समय को कविता में साधती हैं। ओ निर्मम तव दमन चक्र से क्या जग का उद्धार न होगा ? कोई भी रचनाकार समय, समाज और परिवेश की उपेक्षा नहीं कर सकता है, क्योंकि जहाँ वह रहता है, जहाँ से वह पलकर बड़ा होता है, मनुष्य बनता है, उनके समस्त क्रियाकलाप, ऊहापोह, घात-प्रतिघात, संघर्ष आदि उनके मस्तिष्क में गुंफित होते हैं। अतः रचनाकार की संघर्षशीलता, जुझारूपन, संवेदनशीलता, मानवीय मूल्यों के प्रति चेतना और दिशाबोध, उसे यहीं से मिलते हैं। डॉ. `किरण’ भी अपने समय, समाज और परिवेश की उपज है। स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय-फलक पर हताशा है, निराशा है, भूख है, गरीबी है, शोषण है, अशिक्षा है, टूटन है और मोहभंग भी है। मुरझाये फूलों का यौवन आज धूल में तड़प रहा है, काँटों के संग रह जीवन में कितना उसने कष्ट सहा है, किन्तु देवता की प्रतिमा पर चढ़ने का अधिकार न होगा ? उनकी लेखनी में हम आग और शीतलता आक्रोश और सरलता, निर्भीकता तथा स्पष्टता, भावुकता तथा कठोरता सभी भाव पायेंगे! उनका रुझान समाजपयोगी साहित्य के सृजन की ओर है। कारुणिक, त्रासद, शक्तिहीनों के विकल्प को दर्शाने वाली रचना होते हुए भी यह कविता नये आशावाद की सूचक है और यह आशावाद आने वाली पीढ़ी के जरिये व्यक्त होता है। जहाँ कविताओं के बीज विचारों की ऊष्मा से युक्त हैं, वहीं रचनात्मक सफलताओं की संपूर्ति काव्य कला की शर्तों पर ही होती है। वह भी अपने समय-समाज की परिवर्तन-कामी चेतना के साथ। ओ माली तेरी बगिया में आ वसंत कब मुस्कायेगा, कब कोकिल आग्रह के स्वर में स्वागत गीत यहाँ गायेगा, क्या तितली भौरों के जीवन में सुख का संचार न होगा ? शब्द सामर्थ्य, भाव-सम्प्रेषण, संगीतात्मकता, लयात्मकता की दृष्टि से कविता अत्युत्तम है। `किरण’ जी एक समर्थ सर्जक हैं। कविता की पंक्तियां कभी सादगी के अंदाज में ताना मारती है....... तो कभी अनुरोध और विनती करती प्रतीत होती हैं तो कभी सांत्वना के स्वर सुनाई पड़ते हैं। मुरझाये फूलों का यौवन आज धूल में तड़प रहा है, काँटों के संग रह जीवन में कितना उसने कष्ट सहा है, किन्तु देवता की प्रतिमा पर चढ़ने का अधिकार न होगा ? बिल्कुल अपठनीय और गद्यमय होते जा रहे काव्य परिदृश्य पर ..... `किरण’ जी की यह कविता इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वे कविता की मूलभूत विशेषताओं को प्रयोग के नाम पर छोड़ नहीं देतीं। बेहद संश्लिष्ट इस कविता में उपस्थित लयात्मकता इसे दीर्घ जीवन प्रदान करती है। कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है। कविता काफी अर्थपूर्ण है, और ज्यादा समकालीन भी। उन्मादिनी हवा ने आकर सूखे पत्तों को झकझोरा, मर्मर कर धरिणी पर छाये सुखद वृक्ष का आश्रय छोड़ा, कुम्हलाई कलियों के उर में क्या जीवन का प्यार न होगा ? इनकी काव्यभाषा सहज है। यह कविता तरल संवेदनाओं से रची गई है, जो दिल से पढे जाने की अपेक्षा रखती है। भाषा की सादगी, सफाई, प्रसंगानुकूल शब्दों का खूबसूरत चयन, जिनमें सटीक शब्दो का प्राचुर्य है, आकर्षक है। ओ माली तेरी बगिया में आ वसंत कब मुस्कायेगा, कब कोकिल आग्रह के स्वर में स्वागत गीत यहाँ गायेगा, तितली भौरों के जीवन में क्या सुख का संचार न होगा ? कविता महज कवयित्री का बयान भर नहीं है। इसमें कवयित्री की भावनाएं सीधे-साधे सच्चे शब्दों में बेहद ईमानदारी से अभिव्यक्त हुई हैं। कविता इतनी लयात्मक है कि इसे बार-बार पढने का मन करता है। इस कविता में कवयित्री ने प्रकृति का सहारा लेकर अपनी बात कही है। अगर यह कहें कि उन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है तो अनुचित नहीं होगा। इस रचना में प्रकृति के बहाने जीवन के मर्म को समझाने की कोशिश की गई है। जैसे ‘अज्ञेय’ का - “दुख हृदय को मांझता है ज़्यादा रगड़ने से बर्तन का मुलम्मा छूट जाता है।” - वैसे ही इस कविता को पढने से भौतिकता की चमक-दमक का मुलम्मा छूट जाता है। लोग नैसर्गिक स्थिति में आ जाते हैं और मन संवेदनशील हो जाता है। जब संवेदना का जल हृदय में डोलता है तो वाणी अवाक हो जाती है। कविता सचमुच विभोर करने वाली है। कविता को पढते वक़्त इसपर ‘बच्चन’ की और उनकी कविता की छाप दिखाई देती है। “इस पार प्रिये मधु है तुम हो उस पार न जाने क्या होगा?” कुछ लोगों को इसमें शैलीगत कमज़ोरियां दिख सकती है, पर मुझे नहीं दिखती क्योंकि फॉर्म और कंटेंट में बिखराव बिल्कुल नहीं है। मैं यह नहीं कहता कि यह कविता एकदम ताज़ी है, और आज के ताजा प्रसंगों पर आधारित है, न ही यह कि इन्हें प्रतिमान मानकर आज की हिन्दी कविता के संबंध में कोई निर्णायक बात कही जाय। हाँ, इतना तो कहा ही जा सकता है कि इस कविता के माध्यम से कवयित्री ने कुछ ऐसी समस्याओं की ओर हमारा ध्यान खींचा है, जो आज से 20-25 वर्ष पहले भी थीं, आज भी हैं और तब तक रहेंगी जब तक कि सामंती एवं पूँजीवादी आधारों पर टिकी व्यवस्था खत्म नहीं हो जाती। |
गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010
आंच-39 (समीक्षा) पर श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ की कविता क्या जग का उद्धार न होगा!
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सुंदर समीक्षा, बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु शान्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
साहित्यकार-6
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंश्रीमती ज्ञानवती सक्सेना ‘किरण’ की कविता की
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही निष्पक्ष होकर समीक्षा की है! साथ ही उनके व्यक्तित्व को भी पाठको के सामने प्रस्तुत किया है! बहुत-बहुत धन्यवाद!
कविता की तरह समीक्षा भी श्रेष्ठतम है। बहुत ही सहज और सधे हुए अंदाज से की गई संतुलित समीक्षा के लिए मनोज जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंसार्थक, सटीक और संतुलित समीक्षा। आपकी आँच समीक्षा के प्रतिमानों की ओर अग्रसर है। शुभकामनाएं। समीक्षा के साथ कवयित्री का संक्षिप्त परिचय लगाकर आपने कवयित्री से भी परिचय करवा दिया। इसके लिए आभार।
जवाब देंहटाएंसाधना जी का अपनी माता जी के कृ्तृ्त्व को सब के सामने लाने का प्रयास सराहनीय है। वो तो खुद भी बहुत अच्छा लिखती हैं और मै उनकी कविताओं की फैन हूँ। आपने अच्छी समीक्षा की है। धन्यवाद। उनकी माता जी को भी नमन।
जवाब देंहटाएंसुन्दर समीक्षा । आपका प्रयास सराहनीय है। साधना जी एवं आशा जी की नियमित पाठक हूँ। अच्छा लगता हैं उन्हें पढना। माताजी की भी प्रस्तुत सभी रचनायें बेहद उम्दा हैं।
जवाब देंहटाएंbeautiful critical appreciation!!!!
जवाब देंहटाएंnice to know about the poetess!
this poem is really mesmerising, will read others too from the mentioned blog!
regards,
सुंदर समीक्षा, बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर जाते हैं। आपने बहुत ही निष्पक्ष होकर समीक्षा की है!
जवाब देंहटाएंबहुत सधी हुई और निष्पक्ष आलोचना की है आपने कविता की ! जिसके लिये आप नि:संदेह रूप से साधुवाद के पात्र हैं ! मेरा हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार स्वीकार करें ! सधन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआह....... ! बहुत दिनों बाद ऐसी कोमल कान्त कविता पढ़ कर "कविता" की कुछ परिभाषाएं याद आ गयी,
जवाब देंहटाएं"सरसा सालंकारा सुपदन्यासा सुवर्णमयमूर्तिः !
यमकश्लेषानन्दैः आर्य भार्या वशीकुरूते !!"
"तया कविताया किं वा तया वनितया च किम् !
माधुर्यरसदानेन यया नाप्लावितं मनः !!"
अब समीक्षा पर,
समीक्षा की शब्दावली नूतन एवं वल्कल है। कवयित्री के प्रति समीक्षक का सम्मान अनुकरणीय है. कविता के स्वर से इसमें उत्तर छायावाद की झलक मिलती है. समीक्षा में उद्धरणों की पुनुरुक्ति खटकती है.
"क्या तितली भौरों के जीवन में सुख का संचार न होगा.... " -- इस पंक्ति के आरम्भ में "क्या" शब्द प्रवाह को वाधित कर रहा है. इसे अगर "तितली भौरों के जीवन में, क्या सुख का संचार न होगा...." लिखा जाता तो प्रवाह बना रहता. समीक्षक की दृष्टि से इसका बचना...... ? कवयित्री ने यही प्रयोग फिर अनुवर्ती पंक्ति मे किया है, "कुम्हलाई कलियों के उर में "क्या" जीवन का प्यार न होगा ?"
कुल मिला कर एक साधु समीक्षा ! कवयित्री एवं समीक्षक दोनों को कोटिशः साधुवाद !!
मनोज जी, साहित्यिक समीक्षा के क्षेत्र में आप ब्लॉग जगत में नए-नए मानदण्ड स्थापित कर रहे हैं। हम सबके लिए यह गर्व की बात है।
जवाब देंहटाएं................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
बहुत सुन्दर कविता और उतनी ही सुन्दर समीक्षा ...आभार
जवाब देंहटाएंकवयित्री का पूर्ण परिचय यहाँ देने के लिए आभार ...किरण जी द्वारा लिखी हर रचना सच ही मन को छूती है ...इनकी कविताओं में मुझे महादेवी वर्मा की छाप लगती थी ..आज आंच पर पढ़ कर इसकी पुष्टि हुयी ...
जवाब देंहटाएंसमीक्षा सटीक है ..कहीं कहीं पुनरावृति हुई है ..
कुल मिला कर कविता और समीक्षा दोनों ही उत्तम ..
ऐसी रचना की समीक्षा के लिए आभार
बेहद सुन्दर समीक्षा।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (15/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
ज्ञानवती जी से मिलाने का आभार.कवितायेँ बहुत अच्छी हैं और समीक्षा संतुलित और सहज.
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई आपको.
Bahut hi sundar,sateek aur nispakch sameeksha.
जवाब देंहटाएं-Gyan Chand Marmagya
... बहुत सुन्दर ... शानदार पोस्ट !
जवाब देंहटाएंसाधना जी का प्रयास सराहनीय है जो माता जी कवितायेँ पोस्ट करी हैं. आपका आभार इस प्रस्तुति को हम तक पहुँचाने के लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर समीक्षा जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएं@ वंदना जी
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर इसे सम्मान प्रदान करन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया। समीक्षा को तो कहीं स्था्न ही नहीं मिलता।
@ शिखा जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
प्रोत्साहन के लिए आभारी हूँ...
संदर्भ बदलते रहते हैं,मगर जीवन और जगत को बेहतर बनाने की आकांक्षा हर युग में रही है। अपने परिवेश के प्रति सजगता हर जागरूक कवि से अपेक्षित होती है।
जवाब देंहटाएंएक सर्जक की मनोभूमि की विकसन-प्रक्रिया और सृजना का परिचय अच्छा रहा ! आभार !
जवाब देंहटाएंइस महान कवियित्री को पढवाने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंpadhkar man ko bahut achcha laga.sadhnajee ne wakayee sarahniy kary kiya hai.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा ...आदरणीय किरण जी का परिचय प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे
हे माँ दुर्गे सकल सुखदाता
सुन्दर समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंऐसी समीक्षाएं कविता के भाव और अर्थ को स्पष्ट कर देती हैं ...
आभार ...!
A fine peace of post.Appreciable and
जवाब देंहटाएंthought provoking .congratulations.
Asha