शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

श्रद्धा सुमन गांधी दर्शनः आज भी उतना ही प्रासंगिक

 

 

श्रद्धा सुमन

गांधी दर्शनः आज भी उतना ही प्रासंगिक

हरीश प्रकाश गुप्त

गांधी बीसवीं सदी के विराट व्यक्तित्व हैं जिनके सामने दुनियाँ की समकालीन विभूतियां भी बौनी दिखाई पड़ती हैं। उस काल-खण्ड की शायद ही कोई ऐसी महान शख्सियत रही हो जिस पर गांधी का प्रभाव न पड़ा हो। इस कड़ी में लियो तॉलस्टाय से लेकर नेल्सन मन्डेला या फिर अल्बर्ट आइन्सटीन तक कितने भी नाम गिनाए जा सकते हैं जो गांधी के दर्शन से प्रभावित रहे। आइन्सटीन ने तो यहाँ तक कहा था कि आने वाली पीढ़ी शायद ही इस पर विश्वास करेगी कि इस धरती पर हाड़ मांस के शरीर का ऐसा पुरुष जन्मा था जिसने शक्तिशाली साम्राज्य के विरुद्ध बिना किसी हथियार के लड़ाई लड़कर अहिंसा के माध्यम से स्वराज की कल्पना की और उसे हासिल भी किया था। आज हमें यह सब कितना सहज लगता है, लेकिन सौ साल पहले की परिस्थितियों में इस कल्पना के बीज फूटना भी सहज न रहा होगा। आज गांधी धरती पर नहीं हैं लेकिन उनके सत्य, अहिंसा, स्वराज और अस्पर्श्यता का जीवन सन्देश न केवल हमारे देश को बल्कि देश की भौगोलिक सीमा से बाहर निकलकर जन-जन को अनुप्राणित कर रहा है।

गांधी का दार्शनिक दृष्टिकोण तथा आम जन-मानस की पीड़ा और व्यथा से उनका रागात्मक सम्बंध आम विषय की समझ को दिशा और विस्तार ही नहीं देता बल्कि आम जन के और करीब भी ले जाता है। उनका दर्शन प्रयोग और अनुभव से दीप्त है इसलिए वह व्याव्हारिक है, स्वीकार्य है और व्यापक है। उनका ‘सत्य’ केवल सत्य भर नहीं है। वह ईश्वर में अखण्ड विश्वास से प्रेरित है, धर्म से वह प्राण ग्रहण करता है। सदाचार, सर्वधर्म समभाव और समन्वय उसके अनुषंगी हैं। गांधी के सत्य की बुनियाद इतनी मजबूत है कि वह हिंसा और अन्याय को सत्याग्रह से हराने का संकाल्प करते हैं। लोगों के अविश्वास से वह डिगते नहीं हैं, बल्कि अपने संकल्प पर पूर्ण आत्म विश्वास रखते हुए उसे सफल करके दिखलाते भी हैं। गांधी की अहिंसा कायरता नहीं है। वे अहिंसा की व्याख्या में वीरता, निडरता, सद्भावना और दृढ संकल्प को इसका अपरिहार्य अंग मानते हैं। उनकी अहिंसा पुरषार्थ है, चेतनामय है। नीरस और जड़ नहीं है। यह आत्मा में धारण योग्य है। अहिंसा का संबंध केवल भौतिक शरीर से ही न होकर मन और वचन से किसी अन्य को पीड़ा न देने से है। नफरत हिंसा है तो प्रेम अहिंसा है। लेकिन, जो हमसे प्रेम करते हैं, केवल उन्हीं से प्रेम करना अहिंसा नहीं है। गांधी की अहिंसा प्रेम का वह स्वरुप है जो नफरत और द्वेष के होने पर भी उसी सुगंध के साथ पुष्पित और पल्लवित होता है।

राजनीति उनका अभिप्रेत कभी नहीं रही। यह उनके लिए धर्मनीति का पर्याय रही। राजनीति में उनका महत्व राज पर कम, नीति पर अधिक रहा। इसीलिए उनकी राजनीति विश्व में मानवता की सेवा का उपकरण बनी। गांधी का अर्थशास्त्र धन संग्रह का विज्ञान नहीं है, बल्कि अधिक धन संग्रह धन की चोरी है। उनके अनुसार अर्थशास्त्र एक नैतिक विज्ञान है। धनार्जन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख-साधन से सम्पन्न होना भर नहीं है। इसका मूल उद्देश्य स्वयं का नैतिक और आत्मिक विकास करना है। समाज के विकास के लिए उन्होंने व्यष्टि से समष्टि की दिशा में निजी तौर पर आत्मिक उत्थान पर अधिक बल दिया और उस समय समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन का बीड़ा उठाया। अस्पृश्यता ने हिन्दू समाज को सबसे अधिक कलंकित किया था। उन्होंने कहा कि इसका सम्बंध केवल शरीर से नहीं है, बल्कि यह एक मानसिक विकार है। साथ उठने, बैठने और छू लेने भर से अस्पृश्यता नहीं मिटती। मैला उठाये व्यक्ति को छू लेना अस्पृश्यता मिटाना नहीं बल्कि मैलापन ही है। शरीर से भी और मन से भी। खोखलेपन के सिवाए कुछ भी नहीं है। उन्होंने कहा कि व्यावहारिकता अपनाए बिना अस्पर्श्यता दूर नहीं की जा सकती और जब तक हिन्दू समाज में अस्पृश्यता नहीं मिटती तब तक यह समाज को घुन की तरह ही भीतर ही भीतर चट करती रहेगी। समाज की एकजुटता के लिए भी यह परम आवश्यक है। वास्तव में अस्पृश्यता का मूल अर्थ ऊँच-नीच का भाव भूल जाना है। हम दैनिक चर्या में शौच और सफाई जैसे अस्पृश्य कर्म भी करते हैं। लेकिन मन में भाव और होता है। स्वयं की सफाई के पश्चात हम स्वच्छ हो जाते हैं। मन का यही भाव हर प्राणी के साथ लाना ही अस्पृश्यता मिटाने के गाँधी-दर्शन का मूल भाव है।

हमें स्वतंत्रता पाए 60 से भी अधिक वर्ष बीत चुके हैं। इन वर्षों में बहुत से सामाजिक राजनीतिक परिवर्तन हुए हैं और देश को अनेक झंझावातों का सामना करना पड़ा है। पुरानी परिभाषाएं बदली हैं, अर्थ बदले हैं और मिथक टूटे हैं, लेकिन गांधी दर्शन भारतीय समाज के उत्थान के लिए तथा विश्व शांति कायम रखने के लिए आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि 100 वर्ष पहले था। गांधी की क्रांतिकारी विचारधारा आज भी सार्थक और अनुकरणीय है। आज उनके जन्मदिवस के अवसर पर हम उन्हें श्रद्धा के साथ नमन करते हैं।

20 टिप्‍पणियां:

  1. आज उनके जन्मदिवस के अवसर पर हम उन्हें श्रद्धा के साथ नमन करते हैं।

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  2. बहुत सार्थक आलेख। समसामयिक प्रश्नों को उठाती यह रचना सार्थक है।
    बापू को शत-शत नमन!

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  3. Baapu par likhi gai rachna bahut hi sashakt aur thos hai. Aaj ke sandarbh mein rachna mein uthaye gaye tathyon ki prasangikata bahut hi adhik ho gai hai.

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  5. बहुत सार्थक आलेख।
    बापू को शत-शत नमन!

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  6. उत्साहवर्धन के लिए अपने सभी पाठकों का बहुत आभारी हूँ।

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  7. सार्थक लेख ... बापू का हर सिद्धांत आज भी उतना ही सार्थक है जितना कल था ...

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  8. बहुत सटीक .. आज भी गांधी जी के सत्य, अहिंसा, स्वराज और अस्पर्श्यता का जीवन सन्देश उतना ही प्रासंगिक है !!

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  9. सार्थक लेख। समसामयिक प्रश्नों को उठाती...
    बापू को नमन!

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  10. ..गांधी की क्रांतिकारी विचारधारा आज भी सार्थक और अनुकरणीय है। आज उनके जन्मदिवस के अवसर पर हम उन्हें श्रद्धा के साथ नमन करते हैं।
    ..उम्दा पोस्ट।

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  11. @ ललित शर्मा जी,

    ब्लाग 4वार्ता पर चर्चा का सम्मान प्रदान करने के लिए आपका आभारी हूँ।

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  12. @ अंजना जी, दिगम्बर नासवा जी, संगीता पुरी जी, एस एम हबीब जी, देवेन्द्र पाण्डेय जी,

    उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का आभारी हूँ।

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