फ़ुरसत में ...
सबसे बड़ा प्रतिनायक/खलनायक
मनोज कुमार
आज फ़ुरसत में हूं। मन में रह-रह कर ख़्याल आता है कि अगर किसी एक सबसे बड़े खलनायक का नाम लेने को कहा जाए तो सबसे पहले किसका नाम आएगा? अभी-अभी तो गुज़रा है विजय का पर्व, तो उत्तर भी हठात् ही सूझ गया – “रावण”। कहते हैं इसके एक-दो नहीं बल्कि पूरे दस सिर थे! और जब वह किसी सुर पर विजय प्राप्त करने की ख़ुशी में अट्टहास लेता था तो आकाश से लेकर पाताल तक पूरा ब्रह्मांड डोलने लगता था।
कल्पना कीजिए, कैसा लगता होगा वो दृश्य, बिल्कुल वैसे ही न, जैसे गब्बर शाकाल के अंदाज़ में कहे, “मोगाम्बो ख़ुश हुआ!”
तो आपको ले चलते हैं फ़्लैशबैक में ....
दस सिर वाला यह पौराणिक पात्र बड़ा सौभाग्यशाली था। इसको यह कालजयी नाम “रावण”, भी भगवान शिव के द्वारा ही प्राप्त हुआ था। पिता विश्रवा और माता कैकसी के इस पुत्र के बचपन का नाम तो दशानन था। ब्रह्मा के पुत्र महान् ऋषि पुलस्त्य का यह पौत्र था। यानी ब्रह्मा दशानन के प्रपितामह थे। मन में यह प्रश्न आना स्वाभाविक है कि इतने अच्छे कुल का यह पात्र नायक न हो कर इतने बुरे चरित्र वाला खलनायक कैसे बन गया?
फ़्लैशबैक .......
दशानन के पिता विश्वश्रवा बहुत बड़े तपस्वी थे। अपने तपबल से उन्होंने काफ़ी ज्ञान अर्जित किया था। उसकी विद्वता से भरद्वाज मुनि काफ़ी प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी बेटी का विवाह विश्रवा से कर दिया। इस दम्पत्ति के पुत्र थे कुबेर। कुबेर देवताओं के कोषाधीश थे।
उस समय असुरों के राजा थे सुमाली। उनकी पत्नी थी अप्सरा थाटक। इस दम्पत्ति की बेटी थी कैकसी। सुमाली अपनी बेटी की शादी दुनिया के सबसे बलशाली और ज्ञानी से करना चाहते थे। ... और उस समय इस योग्यता पर विश्रवा से अधिक कोई खड़ा नहीं उतरता था। अत: उन्होंने उससे ही कैकसी की शादी कर दी। कैकसी की संतानों में दशानन सबसे बड़ा था।
बचपन से ही दशानन बड़ा उत्पाती था। एक बार उसने अपने बड़े भाई कुबेर का अपमान किया। कुबेर इससे काफ़ी दुखी हुए। उसने अपनी मां के साथ पिता का महल छोड़ दिया और अलग रहने लगा।
कहते हैं अपने प्रपितामह ब्रह्मा से उसने शक्ति पाई। उस शक्ति का लाभ उठाकर उसने देवताओं को पराजित कर दिया। विजय और शक्ति के मद में चूर वह चला भगवान शंकर को ही आजमाने। उसने तो ताल ठोककर ऐलान कर दिया कि कैलास को उठा कर वह लंका ले जाएगा। यह खबर जब भगवान कैलाशपति के पास पहुंची तो उन्होंने उसे समझाया पर ख़ुद को सबसे अधिक बलवान समझने वाला किसी की बात मानने को तैयार होता है क्या? रावण भी नहीं माना।!
इस परिस्थिति में भगवान आशुतोष ने अपने दाहिने पैर के अंगूठे से कैलास को दबा दिया। कैलास पर्वत के नीचे दब कर दशानन चीखने-चिल्लाने लगा। तब जाकर दशानन को अपनी शक्ति का एहसास हुआ। और वह शिव भगवान से बार-बार विनती और निवेदन करने लगा। वो तो थे भोलेनाथ। रावण की प्रार्थना से ख़ुश हो गए। जब औढरदानी ख़ुश हों तो कुछ न कुछ मिलना तय था। दशानन को उन्होंने “चंद्रहास” नामक तलवार दे दिया और कहा आज से तुम “रावण” हो! संस्कृत में रावण का अर्थ होता है – “रावयति भीषयति सर्वान् इति रावण:” अर्थात् जिसके चिल्लाने से ब्रह्मांड कांप उठे। इसके बाद से रावण महादेव का भक्त हो गया और जपने लगा, “हर-हर महादेव”।
इस फ़्लैशबैक के बाद फिर से हम पहुंचते हैं अपने मूल प्रश्न पर ...
... कि इतने अच्छे कुल का यह पात्र नायक न हो कर इतने बुरे चरित्र वाला खलनायक कैसे बन गया? मुझे नहीं पता। अगर आपको पता है तो टिप्पणियों के द्वारा हमे भी बताएं।
मुझे तो लगता है उसने ---- राजेश रेड्डी का यह शे’र पढ लिया होगा।
वैसे अपना तो इरादा है भला होने का
पर मज़ा और है दुनियां में बुरा होने का
ख़ैर ख़्याल अपना-अपना! अपन जब फ़ुरसत में होते हैं तो कुछ न कुछ सोच ही लेते हैं। पर रावण के खलनायक्त्व पर आज नहीं। फिर कभी। अभी तो आपको एक कविता भी सुनानी है, यानी अभी ..
“अभी तो हाथ में जाम है
तौवा कितना काम है ।
फुरसत मिलेगी तो देखा जाएगा ।
दुनिया के बारे में सोचा जाएगा।”
तो अब पेश है कविता ....
सबसे ऊंचा रावण
पुतला जब पूरा बन गया
कारीगर उसके सामने तन गया
“यह मेरे मन को खूब जंचा है
इसबार
रावण का क़द पहले से ऊंचा है
इसके ओज के सामने कौन टिकता है
यह रावण तो
दूर से ही दिखता है।”
कारीगरों की अब क़िस्मत जगी है
रावण को ऊंचा दिखाने की होड़ जो लगी है
मंडली वालों की ही सब यह दया है
इसीलिए तो रावण का कद
काफ़ी ऊंचा हो गया है,
इस बात की भी है सब जगह चर्चा
रावण पर किया गया है
पहले से अधिक ख़र्चा
कारीगरों ने पुतलों को बड़े कौशल से गढा है
इसीलिए रावण का कद
हर तरह से बढा है
वैसे तो
सबसे ऊंचा रावण होने के दावे कई करते हैं
पर दिल्ली के रावणों के सामने
सब पानी भरते हैं
यहां के रावण हैं
एक से एक मनभावन
और सच मानिए
दिल्ली में ही है
देश का सबसे ऊंचा रावण।
सबसे ऊंचा रावण।
सबसे ऊंचा रावण।
रावण का इतिहास और वर्तमान जान कर अच्छा लगा। व्यंग्य है, पर सच है।
जवाब देंहटाएंपौणारिक जानकारी के साथ साथ वर्तमान का संगम अच्छा लगा ,बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, रोचक आलेख. रावण के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त हुई . धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंपरन्तु वह बिगडा कैसे, जानने की इच्छा मन मन में है, आनुरोध है कि इस्से अवश्य अवगत करायें.
धन्यवाद.
आज का यह पोस्ट अपने मे बहुत कु्छ समेटे है. आपके द्वारा प्रस्तुत जानकारी साथ ही कविता भी मुझे पसन्द आयी, इसके लिये आपका आभार.
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी पोस्ट लगा कर जिज्ञासा बढ़ा दी आपने तो!
जवाब देंहटाएं--
रावण के बारे में कुछ और भी तो लगाइए!
--
...यह मेरे मन को खूब जंचा है
इस बार रावण का क़द पहले से ऊंचा है
...
--
सुन्दर सटायर है!
@ शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंचर्चा को आपने पसंद किया। आगे भी बढाऊंगा फिर किसी फ़ुरसत के क्षण में। प्रोत्साहन के लिए आभार!
@ सुनिल जी
जवाब देंहटाएंकुछ बिम्ब मिल जाते हैं सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग्य करते। आपको हमारा फ़ुरसतनामा पसंद आया, धन्यवाद!
@ हास्यफुहार, शमीम, बूझो तो जाने
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद। रावण के बिगड़ने पर भी होगी फ़ुरसतनामा।
खल नायक बनना भी इतना सरल नहीं होता उसे तो नायक से भी अधिक पापड बेलने पड़ते हें |रोचक पोस्ट के लिए बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
@ आशा जी
जवाब देंहटाएंसही कहा। खलनायक बनने के लिए बहुत पंगे हैं। अनावश्यक सबसे पंगे लेते रहें, उसे पराजित करने के खतरे हैं कि अंत में उसके ही हाथों वीरगति की प्राप्ति होती है। धन्यवाद आपका।
रावण के बिगड़ने का राज शायद उसके असुरराज सुमाली से संबंध में छिपा हो। जो भी हो, विजयादशमी के अवसर पर पौराणिक जानकारी वाली ज्ञानवर्धक पोस्ट लगाई है आपने। कविता की व्यंजना अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंआभार।
@ हरीश जी
जवाब देंहटाएंबचपन से उसके शैतान होने में शायद यह भी एक कारण हो। कविता की व्यंजना अच्छी लगी, धन्यवाद।
पौराणिक रावण और आज के रावण के बारे में अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमहाखलनायक रावण के बारे में अच्छी जानकारी दी है ..और कविता के माध्यम से जो कटाक्ष किया है वो लाजवाब है
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति। तगड़ा कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंराम बोले सुनो मेरे भाई
जवाब देंहटाएंआना होगा कई बार वन में!
कैसे मारेंगे कलयुग का रावन,
वो छुपा होगा हर एक मन में!
मनोज जी,
आपकी कविता वर्तमान स्थिति पर करारा व्यंग्य है, सच का आईना इसी को कहते हैं !
बहुत बहुत धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
पौराणिक जानकारी ज्ञानवर्धक तो है ही रोचक भी है। कविता में व्यंग्य आकर्षक है। रावण आज के परिप्रेक्ष्य में बड़ा ही सार्थक बिम्ब है। इस दृष्टि से सामयिक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंकाफ़ी कुछ समेटा हुआ था इस पोस्ट मे ………………कल और आज के संदर्भ मे बेहद सुन्दर प्रस्तुति सोचने को मजबूर करती है।
जवाब देंहटाएंरावण का इतिहास बहुत रोचक है। कविता मे बहुत बडा व्यंग है। आजकल तो ऐसे लगता है जैसे कुछ लोग रावण से होड लेने के लिये मारे मारे फिर रहे हैं। फुरसत मे काम की बात। बधाई।
जवाब देंहटाएंरावणों का महिमामण्डन हो रहा है आजकल।
जवाब देंहटाएं... बहुत सुन्दर ... अदभुत अभिव्यक्ति !!!
जवाब देंहटाएंaadarniy sir
जवाब देंहटाएंaapke blog par aana kafi sukhad lagata hai ,karan itni
achhi achhi jankariyon se parichit hona.ravan brhmma ji ka poutra rawan tha.
yah sampurn gatha shyad bahuto ki jankaari me na ho .is bahumuly jankari dene ke liye aapko bahut - bahut hardik dhanyvaad.
poonam
मनोज जी, आपकी पोस्टें विशुद्ध चिंतन लगती हैं। यकीन जानिए जब कभी ब्लॉगिंग का इतिहास लिखा जाएगा, उनमें इनको विशेष स्थान मिलेगा।
जवाब देंहटाएंरावण के बारे में एक नई दृष्टि से देखना अच्छा लगा।
..............
यौन शोषण : सिर्फ पुरूष दोषी?
क्या मल्लिका शेरावत की 'हिस्स' पर रोक लगनी चाहिए?
बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने रावण के बारे, वेसे मेरा ख्याल हे कि रावण के दस सर नही थे बल्कि उस के पास दिमाग बहुत ज्यादा था, शायद द्स विद्धुनाओ के समान, इस लिये उसे दस सिर वाला कहते हे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपढना शुरू किया तो बहुत कुछ आने लगा मन में...सोचा इस पर चर्चा करुँगी,उस पर चर्चा करुँगी...पर अब जब पूरी पोस्ट पढ़ ली है तो सारे शब्द , प्रश्न चुक गए हैं...
जवाब देंहटाएंफिलहाल तो यही स्थिति है कि कुछ देर कुछ भी बोलने बतियाने की इच्छा नहीं...
कविता ने कुछ कहने योग्य न छोड़ा है..
रावण यानि महाज्ञानी. दस सर का मतलब, दस लोगों जितना दिमाग .
जवाब देंहटाएंलेख अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंरावण के सम्बन्ध में वृहद् जानकारी मिली.
जवाब देंहटाएंकविता भी अच्छी लगी.
उसका खलनायक बनना शायद सबसे अलग दिखने की चाह हो....शायद हर खलनायक की यही मंशा होती है कि ऐसा कुछ करें कि सबकी नज़रों में आ जाएँ
दसशीश रावण और आज के रावण में कोई अंतर नहीं रह गया है अब तो एक सर वाले भारी पड़ रहे हैं ...... जिसमें दिल्ली के रावणों का कोई सानी नहीं है ....
जवाब देंहटाएंसभी खलनायको में रावण की बात अलग है शायद उसकी शिव भक्ति और उसके विद्वान् होने के कारण और खलनायक होने के बाद भी उसके इन दोनों गुणों को आज भी सम्मान दिया जाता है और उस समय राम ने भी दिया था | पर आज के ज़माने में उसके क्लोन सिर्फ उसके अवगुणों को लेकर ही धरती पर आये है |
जवाब देंहटाएंहमारे पौराणिक ग्रंथों में या शास्त्रीय महाकव्यों से लेकर हमारी फिल्मों तक में जितने भी प्रतिनायक, खलनायक या विलेन के चरित्र गढ़े गए हैं, चाहे रावण, कंस, दुर्योधन हों या शाकाल, गब्बर और मोगैम्बो हों, सब के सब क्रूर, विद्रूप और खल दर्शाए गए हैं. मुझे हमेशा लगता है कि इनके समस्त निगेटिव गुणों को इसलिए हाईलाईट किया गया ताकि उन नायकों के चरित्र अत्यंत उभरकर सामने आए. इसलिए परोक्ष में तो यही असली नायक हैं. कैकेयी राम के वनवास का कारण बनी,तो राम मर्यादा पुरुषोत्तम हो गए और कैकेयी कुमाता. किसी भी कःउबसूरत पेंटिंग के शेड्स की तरह किसी रंग विशेष के चारों ओर गहरा रंग फैला दें तो हल्के से हल्का रंग प्रमुख रूप से दिखने लगता है.
जवाब देंहटाएंख़ैर यह थी विचारों की उड़ान. अच्छा लगा वर्त्तमान संदर्भ में रावण को चित्रित करना. सच कहा आपने रावण का बढता क़द और उसका निवास.
Delhi mein sabse bade ravan ka nivas ke madhyam se rajnitik bhrastachar ki bahut sundar abhivyakti ki gayi hai kavita mein....Punah aabhar.
जवाब देंहटाएंरावण का प्रतिनायक बनना नियति है।
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
अभिनव निर्विकार चिंतन, विवेचन॥
3/10
जवाब देंहटाएंसामान्य
कहीं से भी पोस्ट प्रभावित नहीं करती.
कविता का भाव भी घिसा-पिटा सा है.
रावण का कद
जवाब देंहटाएंकाफ़ी ऊंचा हो गया है,
truth expressed satirically!
nice post!
regards,
मनोज जी सुबह से आपके फुर्सत को पढने की इच्छा थी लेकिन पढ़ नहीं पाया. अब दिन बदल जाने के बाद रात को एक बजे आ पाया हूँ.. आया तो रावण का चरित्र चित्रण पढने को मिला.. जानकारी बढ़ी और कविता पर जाके तो मन मुग्ध हो गया.. वास्तव में व्यंग्य में मुझे हार्श ट्रुथ दिखाई देता है इसलिए हंस नहीं पाता बल्कि मन व्यथित हो जाता है.. आज हम सब अपने भीतर के रावण को पोषित ..संपोषित करने में लगे हैं.. वही बाहर भी हो रहा है...चिंता की बात यह है कि मेरे दो बेटे में युद्ध हो जाता है इन दिनों और दोनों ही रावण बनान चाहते हैं.. यह सामाजिक संवेदना और प्रविती को दर्शाती है.. बदलते मूल्यों को दर्शाती है जिस से सावधान रहने की जरुरत है.. सुन्दर और विचारनीय पोस्ट...
जवाब देंहटाएंकाफी चिंतन परक पोस्ट लग रही है मनोज जी !.फुर्सत में आकर पढ़ती हूँ.
जवाब देंहटाएंSIr,
जवाब देंहटाएंYou have created an excellant post in your leisure time and tried your best to refurbish our mind about the knowledge of RAVAAN.I term it VERY SPECIAL OF ITS KIND. GOOD MORNING,SIR.
आपने व्यंग की तीखी धार बहुत तेज़ है ... वैसे दिल्ली ही क्यों ... सबके अंदर का रावण भी बहुत ऊँचा ही रहता है हमेशा ...
जवाब देंहटाएंManoj Ji, kafi late hoon
जवाब देंहटाएंlekin der aye durust aye.
Pehli to ye:
hamein ravan ke khalnayak hone ki jankari itihas deta hai, aur itihas ka nirman vijeta karta hai. isiliye ravan khalnayak tha ya nahi iske liye to hamein wapis jakar valmeeki ji se hi poochhna padega ki ravan ke bare mein sab kuchh bataiye.
:)
dusra,
itna to sarvatra vidit hai ki ravan ek bahut hi bada rajneetigya tha aur shayad kootnitigya bhi, itna mahan gyata ki swayam ram ji bhi jiske samaksha gyan ke liye upasthit hue. aise mein agar usne seeta mata ka haran kiya to isme jaroor koi na koi sochne wali bat jaroor rahi hogi.
kuchh aur bhi batein hain lekin tippani post se chhoti ho to hi achha,
shesh phir...
उस्ताद जी ने ही सच कहने की हिम्मत की है बाकी सब तो हांजी-हांजी....
जवाब देंहटाएं---आश्चर्य है इतने बडे महानायक के बारे में टिप्पणीकारों को इतना कम ग्यान...
---माता के आसुरी कुल का प्रभाव था कि रावण ग्यानी होते हुए भी अहन्कारी व खलनायक बना, इसके साथ ही कैकसी ने दिन के समय रिषि से प्रणय निवेदन किया था अतः यह उन्हीं का कथन था कि तुम्हारी सन्तान सदाचारी नहीण होगी...साथ ही कैकसी के साथ ही उसकी अन्य ४ बहिनों ने भी विश्रवा रिषि से ही विवाह कर लिया था ...यही सब कारण थे रावण के अनाचारी होने के...