रविवार, 3 अक्तूबर 2010

काव्य शास्त्र :: काव्य भेद

काव्य शास्त्र :: काव्य भेद


आचार्य परशुराम राय

काव्य की परिभाषा के बाद आचार्य मम्मट ने काव्य के भेदों का निरूपण किया है। हालाँकि अन्य आचार्यों ने इस प्रकार का भेद नहीं किया है। काव्य प्रकाश में काव्य के तीन भेद बताए गए है:-

(1) उत्तम (2) मध्यम और (3) अधम काव्य

उत्तम काव्य की परिभाषा करते समय आचार्य मम्मट लिखते हैं:-

'इदमुत्तममतिशायिनि व्यङग्ये वाच्याद् ध्वनिर्बुधै: कथित:।

अर्थात वाच्यार्थ (मुख्यार्थ) की अपेक्षा व्यंग्यार्थ जब काव्य में अधिक चमत्कारयुक्त हो, तो उसे उत्तम काव्य कहा जाता है और सुधीजन उसे ध्वनि-काव्य कहते हैं। यथा:-

परिरम्भ कुंभ की मदिरा

निश्वास मलय के झोंके।

मुख-चन्द चाँदनी जल से

मैं उठता था मुँह धोके॥ ऑसू॥

यहाँ स्मरण से संयोग शृंगार की व्यंजना है जो वास्तव में कवि का अभीष्ट है। यद्यपि कि 'परिचय कुंभ', 'निश्वास मलय' और 'चॉदनी जल' में रूपक अलंकार हैं। लेकिन कविता में विभाव नायक-नायिका, अनुभाव-परिरंभ आदि और संचारी भावों के संयोग से यहाँ शृंगार रस ही प्रधान है और यही कवि का अभीष्ट है। अतएव इसे उत्तम काव्य कहा जाएगा।

जब काव्य में व्यंग्यार्थ वाच्यार्थ की अपेक्षा उतना अधिक चमत्कारपूर्ण नहीं होता, अर्थात् जहाँ व्यंग्यार्थ गुणीभूत होता है, उसे गुणीभूत व्यंग्य काव्य अथवा मध्यम काव्य कहते हैं।

'अतादृशि गुणीभूतव्यङग्यं व्यङग्ये तु मध्यमम्।'

जैसे:-

ग्रामतरुणं तरुण्या नववञ्जुलमञ्जरीसनाथकरम।

पश्यन्त्या भवति मुहुर्नितरावं मलिना मुखच्छाया॥

अर्थात् वेतस-वृक्ष की ताजी मंजरी को हाथ में लिए गाँव के एक युवक को बार-बार देखकर युवती के मुख की आभा मलिन होती जा रही है।

यहाँ वेतस के लतागृह में गाँव के तरुण से मिलने का संकेत करने के बावजूद (काम में फँसाव या अन्य लोगों की उपस्थिति के कारण) युवती देर से पहुँची और युवक पहले पहुँच गया यह सोचकर युवती उदास हो गयी। ‘ग्रामतरुण’ का अर्थ है गाँव में एक ही युवक है। अनेक युवतियोंके आकर्षित होने के कारण उससे दुबारा मिलना कठिन होगा। इसलिए उसका अतिशय उदास होना यह व्यंग्य वाच्यार्थ के उस व्यंग्य से अधिक चमत्कार पूर्ण होने के कारण वह गुणीभूत हो गया है। अतएव इसे गुणीभूत व्यंग्य काव्य माना गया है।

तीसरे भेद के अन्तर्गत चित्र-काव्य लिए गए हैं अर्थात् व्यंग्य-रहित शब्द और अर्थ केवल चित्रण हो अथवा कवि का उद्देश्य अलंकारों को प्रदर्शित करना हो, उसे चित्र काव्य कहा गया है। इसके दो भेद किए गये हैं:- (1) शब्द-चित्र काव्य और (2) अर्थचित्र काव्य –

‘शब्दचित्रं वाच्यचित्रमव्यङ्यं त्ववरं स्मृतम्’

जहाँ केवल शब्दालंकारों द्वारा शाब्दिक चमत्कार ही कवि का अभिप्रेत हो, उसे शब्द-चित्र काव्य कहा जाता है:-

चंचला चमाके चहुं ओरन ते चाह भरी

चरजि गई थी फेरि चरजन लागी री।

घुमड़ि घमंड घटा घन की घनेरे आयी

गरजि गई थी फेरि गरजन लागी री।

कहें 'पदमाकर' लवंगन की लोनी लता

लरजि गई थी फेरि लरजन लागी री।

यहाँ वर्षा ऋतु के वर्णन में केवल अनुप्रास अलंकार की छटा से काव्य में चमत्कार उत्पन्न करना कवि का अभीष्ट लगता है। अतएव इसे शब्द चित्र काव्य की श्रेणी में रखा जा सकता है।

जहाँ अर्थालंकारों द्वारा अर्थ में चमत्कार उत्पन्न किया जाए, उस काव्य को अर्थालंकार कहते हैं:-

चेतना के स्खलन का भूल जिसे कहते हैं।

एक बिन्दु जिसमें विषाद के नद उमड़े रहते हैं

(कामायनी)

यहाँ एक बूँद में नदों का उमड़ना विरोधाभास अलंकार है और दोनों पंक्तियों को साथ लेने पर शब्द-लुप्तोपमा अलंकार है। यहाँ 'मानो' उपमा वाचक शब्द लुप्त है। अर्थात् चेतना का च्युत होना ही भूल है और वह ऐसा लगता है मानो एक बिन्दु में अवसाद के नद उमड़ रहे हों।

17 टिप्‍पणियां:

  1. काव्यशास्त्र की सारगर्भित जानकारी लिए आभार।

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  2. कम से कम मेरे लिये तो बहुत उपयोगी सामग्री है आपके ब्लाग पर। बूकमार्क कर के रख रही हूँ दोबारा पढने के लिये। धन्यवाद।

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  3. @Nirmala Kapila: Achalaga jaankar ke aap inhe bookmark kar ke rakh rahi hain...wakeyi yah ek upyogi jankari hai... Protsahan ke liye saadhuwaad..

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  4. उपयोगी ओर ग्याणबर्धक लेख, धन्यवाद

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  5. 400 वीं पोस्ट की हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें। अल्पावधि में उपलब्धि यह ब्लाग के लिए मील के पत्थर की तरह है। इस अवसर पर ब्लाग के समस्त सहयोगियों, पाठकों को हृदय से धन्यवाद।

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  6. Kavyeshaster ke vishye main itni rochak or sargarvhit jaakari dekr aap kavya prampra ko jivit hi nahi ,walki uski upyiogita ki jaankari pathkon tak pauncha rahe hain .....!

    Sunder post ke liye Dhayavaad

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  7. चमत्कृत करती है आपकी विवेचना आचार्य परशुराम जी. जितना सरल आपका लेखन है उतना ही गहन विवेचन. पद्माकर और प्रसाद का उद्धरण विस्मृत पाठों को स्मृति पटल पर पुनः अंकित कर गया.

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  8. सटीक उदाहरणों के साथ ज्ञानवर्धक आलेख...आभार।

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  9. भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपूर्ण कार्य कर आप एक महान कार्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।

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  10. अपने सभी पाठकों को उत्साहववर्धन के लिए साधुवाद.

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  11. यहां तो बहुत ज्ञान की बातें हो रही हैं बार बार आना पडेगा । सुंदर आलेख ।

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