काव्यशास्त्रवाच्यार्थ और लक्षणाआचार्य परशुराम राय |
आज के अंक का प्रतिपाद्य विषय वाचक और लक्ष्यक शब्दों के भेदोपभेद हैं। आचार्य मम्मट ने वाचक शब्द की निम्नलिखित लक्षण (परिभाषा) की है- 'साक्षात्संकेतितं योऽर्थमभिधन्ते स वाचक:।
अर्थात् जो शब्द साक्षात संकेतित अर्थ व्यक्त करता है उसे वाचक शब्द कहा जाता है। और उसका अर्थ मुख्यार्थ कहलाता है तथा मुख्य अर्थ का व्यापार (बोध) जिस शक्ति से होता है उसे अभिधा व्यापार या शक्ति कहते हैं:- 'स मुख्योऽर्थस्तत्र मुख्यो व्यापारोऽस्याभिधोचते'
उपर्युक्त संकेतित अर्थ (शब्द भी) जाति, गुण, क्रिया और यदृच्छा, चार प्रकार का माना जाता है। 'जाति' का अर्थ शब्द द्वारा संकेतित सामान्य अर्थ-बोध है। 'गुण' धर्म उसे अपने सजातीय पदार्थों से अलग करता है। जैसे:- 'सफेद घोड़ा' में 'सफेद' शब्द संकेतित अर्थ घोड़ा को सजातीय सभी घोड़ों से अलग करता है। यहाँ 'घोड़ा' जाति है 'सफेद' गुण है। इन दोनों अर्थों को वस्तु के सिद्ध रूप का बोध होता है। 'क्रिया' और 'यदृच्छा' शब्द द्वारा संकेतित अर्थ के साध्य रूप को बोधित करते हैं। जैसे - 'दाल पकाना' में 'पकाना' शब्द चूल्हा जलाना, बर्तन में पानी डालना, उसमें दाल डालना और पुन: चूल्हे पर रखना आदि सभी को अपने सन्निविष्ट किए हुए है। यदि ऐसा कहा जाये कि अरहर की दाल पकी है, तो यहाँ 'अरहर' को 'यदृच्छा' माना जाएगा। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि ये उक्त भेद उपाधिगत भेद हैं, अर्थात् एक ही शब्द प्रयोग के अनुसार उक्त चार उपाधियाँ धारण कर अपना अर्थ-संकेत करता है। जैसे - एक व्यक्ति पुत्र, पिता, भाई, पति आदि उपाधिगत अवस्था के कारण कई रूप ले लेता हैं। मीमांसक केवल 'जाति' को ही स्वीकार करते हैं और अन्य तीन - गुण, क्रिया, यदृच्छा को इसी के अन्दर समातार कर लेते हैं। वैसे, यह एक बहुत बड़े शास्त्रार्थ का विषय है। परिहार्य होने के कारण उसे यहाँ छोड़ा जा रहा है। भाषा-विज्ञान की शाखा अर्थ-विज्ञान के अन्तर्गत इसका अध्ययन किया जाता है। संकेतित अर्थ के ग्रहण या बोध के निम्नलिखित साधन बताए गए हैं:- शक्तिग्रहं व्याकरणोपयानकोशाप्ततवाक्याद् व्यवहारतश्च। वाक्यस्य शेषाद् विवृतेर्वदन्ति सान्निध्यत: सिद्धपादस्य वृद्धा:॥
अर्थात् व्याकरण, उपमान, कोश, आप्तवाक्य, व्यवहार वाक्यशेष, विवृति (व्याख्या) और सिद्ध (ज्ञात) पद के द्वारा संकेत (अर्थ) का बोध होता है। वैसे लोक व्यवहार अर्थ-बोध का प्रधान साधन माना जाता है। |
जहाँ मुख्यार्थ का वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ के साथ अन्विति में व्यवधान हो अथवा उससे तात्पर्य की उपपत्ति (प्रतिपादन) न हो, वहाँ रूढ़िगत (प्रसिद्धिगत) अथवा विशेष प्रयोजन के प्रतिपादन लिए मुख्यार्थ से सम्बद्ध किसी अन्य अर्थ की प्रतीति हो उसे लक्ष्यार्थ कहते है। उस शक्ति को लक्षणा शक्ति और शब्द को लक्ष्यक या लक्ष्यवाचक शब्द कहते हैं। मुख्यार्थबाधे तद्योगे रूढ़ितोऽथ प्रयोजनति्। अन्योऽर्थों लक्ष्यते यत् सा लक्षणारोपिता क्रिया॥ जैसे 'काम में कुशल' में 'कुशल' का मुख्य अर्थ 'कुश लाने वाला' नहीं है, अपितु रूढ़ि के कारण 'दक्ष' लिया जाता है। वैसे ही संस्कृत काव्यशास्त्र में प्राय: सभी ने एक उदाहरण लिया है - 'गङ्गायां घोष:' अर्थात् गंगा के घोष (अहीरों की बस्ती)। अब गंगा के जल प्रवाह में किसी बस्ती का बसना सम्भव नहीं हैं, अतएव 'गङ्गायां (गंगा में)' का अर्थ 'गंगातटे' लिया जाता है। अर्थात् गंगा के तट पर अहीरों की बस्ती। लक्षणा के कुल छ: भेद किए गए हैं:- (क) शुद्धा लक्षणा - (1) उपादान - लक्षणा (2) लक्षण - लक्षणा (3) सारोपा (4) साध्यवसाना
(ख) गौणी लक्षणा - (1) सारोपा (2) साध्यवसाना।
इनकी परिभाषाएँ उदाहरण सहित अगले अंक में दी जाएगी। |
रविवार, 17 अक्तूबर 2010
काव्यशास्त्र- वाच्यार्थ और लक्षणा
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भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपूर्ण कार्य कर आप एक महान कार्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोsस्तु ते॥
विजयादशमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
काव्यशास्त्र
अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविजया दशमी की शुभकामनायें..
बहुत सुंदर लेख,
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की बहुत बहुत बधाई
आचार्य जी, आज बहुत शांति के साथ यह पोस्ट पढी मैंने और सचमुच ऐसा अनुभव हुआ मानो बरसों बाद कक्षा में बैठकर पढाई कर रहा हूँ.. छात्र का प्रणाम स्वीकार करें!
जवाब देंहटाएंखेदसहित कहना है कि व्याख्या कठिन है। जो विद्वज्जन हैं,उन्हें समझाने की ज़रूरत नहीं और जो अनभिज्ञ हैं,उनके लिए यह सहज ग्राह्य नहीं है।
जवाब देंहटाएंमनोज कुमार जी आपके सम्मानजनक टिप्पणी के लिये धन्यवाद और विजयादशमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंसम्वेदना के स्वर जी आपके सम्मानजनक टिप्पणी के लिये धन्यवाद और विजया दशमी की शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंभाषा के पाठकों के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत ही उत्कृष्ट पोस्ट है यह!
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असत्य पर सत्य की विजय के पावन पर्व
विजयादशमी की आपको और आपके परिवार को
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
काव्यशास्त्र भाषा-साहित्य का एक अनिवार्य किंतु थोड़ा क्लिष्ट-सा भाग है। प्रायः,छात्र उदाहरणों को रट कर ही परीक्षा पास करते रहे हैं। आपके सद्प्रयासों से,भूले-बिसरे तथ्य फिर से ताज़ा हो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं .
यहं एक बहुत ही गहन विषय को आप हमारे जैसे ब्लॉगरों को समझा रहे हैं इसका आपको अनेक धन्यवाद । विजयादशमी की शुभ कामनाएँ । इस पोस्ट को एक बार और समय लगा कर पढूंगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंबेटी .......प्यारी सी धुन
विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंसाहित्य के क्षेत्र में आपका प्रयास सराहनीय है। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी।
जवाब देंहटाएंआभार,
"शिक्षामित्र ने कहा…
जवाब देंहटाएंखेदसहित कहना है कि व्याख्या कठिन है। जो विद्वज्जन हैं,उन्हें समझाने की ज़रूरत नहीं और जो अनभिज्ञ हैं,उनके लिए यह सहज ग्राह्य नहीं है।"
---पूर्ण सत्य है, पर शास्त्रों व कठिन को समय समय पर द्रष्टि में लाते रहना चाहिये, ’रस्सी आवत जात ते .....”
सुन्दर. अब शास्त्र के अनुशीलन के लिए निरंतर अध्ययन की आवश्यकता तो होगी ही. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंKavya Shastra sahitya se anbhigyan logon ko abhigyan banane ka karyakarta hai.Koi bhi vigyan ho ya shastra ho lalitya se hatkar hota hai aur bar bar uske abhyas ki jaroorat hoti hai, Dr.Shyam gupt ji ke vichar swagat karne yogya hain...dhanyaswaad.
जवाब देंहटाएंएक बार फिर आपकी लेखनी को नमन! सप्ताह दर सप्ताह आपके इन आलेखों से ज्ञान वर्धन हो रहा है।
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