शिवस्वरोदय – 58
- आचार्य परशुराम राय
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प्रश्ने चाध: स्थितो जीवो नूनं जीवो हि जीवति।
ऊर्ध्वचारस्थितो जीवो जीवो याति यमालयम् ।। 321 ।।
भावार्थ – यदि प्रश्न के समय स्वर की गति नीचे की ओर हो, अर्थात् स्वर में जल तत्त्व के प्रवाह काल में (जल तत्त्व के प्रवाह के समय स्वर की गति नीचे की ओर होती है) प्रश्न पूछा गया हो, तो समझना चाहिए कि रोगी स्वस्थ हो जाएगा। लेकिन रोगी के स्वास्थ्य के विषय में प्रश्न के समय यदि स्वर की गति ऊर्ध्व (ऊपर की ओर) हो, अर्थात् स्वर में अग्नि तत्त्व सक्रिय हो, तो समझना चाहिए कि रोगी की मृत्यु निश्चित है।
English Translation – At time of enquiry about the health of a patient if breath flow is down wards, (i.e. Jala Tattva is active in the breath), it indicates that the patient will recover. But if the breath flow is upward, (i.e. presence of Agni Tattva in the breath) at that time, it should be understood that death of patient is inevitable.
विपरीताक्षरप्रश्ने रिक्तायां पृच्छको यदि।
विपर्ययं च विज्ञेयं विषमस्योदये सति।। 322 ।।
भावार्थ – प्रश्न पूछनेवाला खाली स्वर की दिशा में हो तथा उसकी बात समझ में न आए और यदि विषम स्वर प्रवाहित होने लगे, तो किए गए प्रश्न का उत्तर उल्टा समझना चाहिए।
English Translation – When the person who enquires about the health of a person is standing or sitting on the side of inactive breath and his talk is not clear and sudden opposite breath sets in, negative result should be predicted.
चन्द्रस्थाने स्थितो जीव: सूर्यस्थाने तु पृच्छक:।
तदा प्राणवियुक्तोऽसौ यदि वैद्यशतैर्वृत: ।। 323 ।।
भावार्थ – प्रश्न करनेवाला यदि दाहिनी ओर हो और उत्तर देनेवाले का चन्द्र स्वर सक्रिय हो, समझना चाहिए कि सैकड़ों चिकित्सकों से घिरा होनेपर भी रोगी के प्राण नहीं बच सकते। कुछ विद्वान इसका अर्थ इस प्रकार करते हैं- उत्तर देनेवाले का चन्द्र स्वर और प्रश्नकर्त्ता का सूर्य स्वर प्रवाहित हो रहा हो, तो सैकड़ों चिकित्सकों से घिरा होनेपर भी रोगी की मृत्यु निश्चित है।
English Translation – The person, who enquires about the health of a patient, is on the right side and the person who is to respond, has active breath in is left nostril, then it should be predicted that the patient will die even hundreds of doctors are around him to help. Some wise persons interpret this in other way, i.e. if the enquirer has his breath active right nostril and the responding person in left nostril, the death of the patient is inevitable.
पिङ्गलायां स्थितो जीवो वामे दूतस्तु पृच्छति।
तदाऽपि म्रियते रोगी यदि त्राता महेश्वर: ।। 324 ।।
भावार्थ – यदि प्रश्न के समय उत्तर देनेवाले का दाहिना स्वर चल रहा हो और प्रश्न पूछनेवाला (दूत) बायीं ओर खड़ा हो, समझना चाहिए कि उस रोगी को भगवान भी नहीं बचा सकता।
English Translation – If at the time of enquiry about the health of a patient, the person who enquires is on the left side of the responding person who has breath active in his right nostril, the patient will die, even God cannot save his life.
एकस्य भूतस्य विपर्ययेण रोगाभिभूतिर्भवतीह पुंसाम्।
तयोर्द्वयोर्बंधु सुहृद्विपत्ति: पक्षद्वये व्यत्ययतो मृति: स्यात्।। 325 ।।
भावार्थ – इस श्लोक में तत्त्वों के क्रम में परिवर्तन होने पर अपने तथा सम्बन्धियों के स्वास्थ्य के विषय में संकेत किया गया है।
अर्थात् जब एक ही तत्त्व का विपरीत क्रम में प्रवाह हो, तो वह रोग द्वारा होनेवाले कष्ट का संकेत है। लेकिन यदि दो तत्त्व विपरीत क्रम में प्रवाहित हों, तो वे सगे-सम्बन्धियों और मित्रों के लिए विपत्ति के संकेत हैं। परन्तु यदि एक ही तत्त्व एक माह तक निरन्तर प्रवाहित हो, तो मृत्यु का संकेत है।
English Translation – In this verse it has been stated that how change in the order of Tattvas indicates about our health and as well as that of relatives and friends.
When a person has flow of one Tattva in opposite order, he is to get sickness and when two Tattvas are active in opposite order, his relatives or friends are to face problems in days to come. But if one Tattva becomes active continuously for one month, this indicates death.
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Good pronosis based upon inhalation and exhalation of breath ie breath and breath out .Thanks for this diagnostic procedure .
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