आंच-87
गदर की चिनगारियाँ
मनोज कुमार
इधर जब से एलेक्ट्रॉनिक मीडिया की क्रांति आई है पुस्तक लेखन और पठन का चलन कम हो गया है। साहित्य की एक-दो विधा को छोड़कर सारी विधाएं उपेक्षित पड़ी हुई हैं। इन उपेक्षित विधाओं में नाटक-एकांकी जैसी जीवन्त विधा को भी देखा जा सकता है। भारतेन्दु काल से आधुनिक नाटक विधा का आरंभ माना जा सकता है लेकिन 21वीं सदी तक आते-आते नाटक लेखन विधा-सरिता सूख-सी गई है। ऐसी अकाल बेला में डॉ. सुश्री शरद सिंह द्वारा रचित कृति “गदर की चिनगारियाँ” पहला पानी की तरह हमारे तप्त मनोभूमि पर शीतलता प्रदान करती है और यह आश्वास्त भी करता है कि नाटक लेखन फिर से नेपथ्य से उठकर मंच पर आ रहा है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के बाद इतिहास और साहित्य का सुंदर अंतरावलंबन देखने को नहीं मिलता है। डॉ. सुश्री शरद सिंह “गदर की चिनगारियाँ” नाटक लेकर उपस्थित हुई हैं जिसमें दबी-कुचली नारी का स्वर नहीं, वरन् वीरांगनाएं, जिन्हें भुला दिया गया था, उन्हें वे अपनी रचना के माध्यम से सच्ची श्रद्धांजलि देती नज़र आती हैं।
हम लोग कभी पढ़ते थे, ‘इति’ माने ‘बीती’, ‘हास’ माने ‘कहानी’। यानी इतिहास बीती कहानियों का नाम होता है। किन्तु ऐसा कहना उचित प्रतीत नहीं होता। इतिहास सिर्फ़ घटनाओं को गिनती तारीख़ों का नाम नहीं होता। यह तो ज़िन्दगी की छानबीन और ज़िन्दगी को समझने का ज़रिया भी होता है। डॉ. सुश्री शरद सिंह ने बहुत ही मेहनत से 1857 की क्रांति के इतिहास को खंगालते हुए उस क्रांति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली तेरह वीरांगनाओं के संघर्षों को एकांकी रूप में “गदर की चिनगारियाँ” नाम से प्रस्तुत किया है। मुझे पूरा विश्वास है कि इनमें से कई ऐसी वीरांगनाएं हैं जिनका नाम आप पहली बार सुन रहे होंगे। इन एकांकियों में इतिहास के अप्रतिम रूपायन डॉ. शरद की परिपक्व दृष्टि और कौशल की परिणति है। इस शोधपरक रचनात्मक लेखन में इतिहास की सटीक संदर्भों के साथ नाटकीय अभिव्यक्ति के लिए शरद जी को साधुवाद। जिस तरह से तथ्यों के आधार पर इन्होंने कथानक को गढ़ा है वह इनकी शोधपरक रचनात्मक लेखन का नायाब नमूना है।
परंपरागत ढंग से ब्रितानी शासन का विरोध करने की परिणति 1857 के विद्रोह में हुई। इसमें किसानों, कारीगरों, सैनिकों, स्त्रियों-पुरुषों आदि सभी ने लाखों की संख्या में भाग लिया। यह विद्रोह ब्रितानी शासक की जड़ें हिलाने के लिए काफ़ी था। मेरठ से शुरु हुआ गदर बाद में उत्तर में पंजाब, दक्षिण में नर्मदा, पश्चिम में राजपुताना और पूर्व में बिहार तक बढ़ता गया। आज के उत्तर प्रदेश और बिहार में किसानों, कारीगरों और आम आदमी ने उस आंदोलन में व्यापक पैमाने पर हिस्सा लिया और विद्रोह को वास्तविक शक्ति प्रदान की। एक अनुमान के मुताबिक अंग्रेज़ों से लड़ते हुए अवध में डेढ़ लाख और बिहार में एक लाख नागरिक शहीद हुए थे। इस पुस्तक को ‘उन सभी ज्ञात-अज्ञात स्त्रियों को जिन्होंने सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सशक्त भूमिका निभाई’ समर्पित करते हुए शरद जी कहती हैं,
नारी को न समझो अबला, है वो शक्ति का दूजा रूप
उसने सदा दिया है हंसकर, अपना सूरज, अपनी धूप।
बुंदेलखंड की राबिया बेगम, अवध की बेगम हज़रत महल, दिल्ली की बेगम ज़ीनत महल, रामगढ़ राज्य की रानी अवंतीबाई लोधी, गढ़ा मंगला की रानी फूलकुंवर, ग्राम भोजला की झलकारी बाई, झांसी की लक्ष्मीबाई, लखनऊ की ऊदा देवी पासी, कानपुर की अजीजनबाई, झांसी नैमिषारण्य की महारानी तपस्विनी, सिसौली, मुज़फ़्फ़रनगर की मामकौर बीवी, धार मालवा की रानी द्रौपदीबाई और कानपुर की मैनाबाई वे नाम हैं जो इस आन्दोलन में शरीक हुए। इनमें से कई न किसी रियासत से जुड़ी थीं, और न ही रानी थीं। पर उनके मन में अंग्रेज़ी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ आक्रोश था। बस ज़रूरत थी एक चिनगारी की। मिली और वह भड़क उठी। ऐसे लोगों द्वारा अंग्रेज़ों की क्रूरता का साहसपूर्वक विरोध बेमिसाल है और स्वर्णाक्षरों में दर्ज़ किया जाना चाहिए। उन्होंने ऐसे उदाहरण प्रस्तुत किए कि आज भी उनके योगदान के बारे में पढ़कर मन आंदोलित हो उठता है। इस नाटक संग्रह में इनके आत्मबलिदान को बहुत ही गंभीरता से रेखांकित किया गया है। कहीं-कहीं उन्होंने किवदंतियों का सहारा लिया है, वह भी तब जब प्रमाणिक जानकारी कम उपलब्ध थीं, अन्यथा काफ़ी शोध के उपरान्त लिखे गए इस नाटक संग्रह में इतिहास और साहित्यिक रचनात्मकता का ऐसा सुंदर और सजीव चित्रण शरद जी ने किया है कि ये हमारे मानस-पटल पर दीर्घावधि के लिए अंकित हो जाते हैं।
आज के साहित्य में इतिहास लेखन वैसे ही हाशिए पर है। उस पर से नाटक लेखन तो बहुत ही कम हो रहा है। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि शरद जी ने उस महान क्रांति में अपनी आहुति देनेवाली वीरांगनाओं के बलिदान को इतिहास के अंधेरे से परिश्रम से निकाल कर उसे प्रकाश में लाया है।
वास्तविक घटनाओं को केन्द्र में रखकर, ठीक उन्हीं चरित्रों को पात्र बनाते हुए कथानक बुना गया है। उस पर से डेढ़ सदी से भी अधिक पुरानी, स्मृति विलुप्त घटना का वृत्तांत! यह सचमुच गहरे कौतुक का विषय बनता है। शरद जी का “गदर की चिनगारियाँ” एक विलक्षण कौतुक की बानगी है। यह एक अत्यंत सफल कृति है। विषय-निर्वाचन, कथा-वस्तु, क्रम-विकास, संवाद, ध्वनि, मितव्ययिता आदि दृष्टियों से यह एक अद्भुत कला-कृति है। तेरहों नाटक में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का स्पंदन गागर में सागर की तरह छलक उठता है। यह कृति लेखिका के अत्यंत मौलिक प्रयोग की तरह है, जिसमें स्वतंत्रता के संघर्ष का क्रांतिकारी स्वरूप, अग्रेज़ी हुक़ूमत के प्राति विद्रोह की भावना, उद्वेलित होकर साकार हो उठती है। यह एक अद्भुत साफ़-सुथरी संतुलित कला-कृति है। सुश्री डॉ. शरद सिंह इस उत्कृष्ट नाट्य-कृति के लिए हार्दिक बधाई की पात्र हैं और आशा की जा सकती है कि भविषय में भी वे इसी प्रकार अपनी विशिष्ट देन से हिन्दी-साहित्य के इस उपेक्षित अंग को शक्ति और गौरव प्रदान करती रहेंगी।
पुस्तक का नाम – गदर की चिनगारियाँ
रचनाकार – डॉ. शरद सिंह
सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन
पहला संस्करण : 2011
सस्ता साहित्य मंडल
एन-77, पहली मंज़िल,
कनॉट सर्कस,
नई दिल्ली-110 001, द्वारा प्रकाशित
मूल्य : 150 रु.
देखी रचना ताज़ी ताज़ी --
जवाब देंहटाएंभूल गया मैं कविताबाजी |
चर्चा मंच बढाए हिम्मत-- -
और जिता दे हारी बाजी |
लेखक-कवि पाठक आलोचक
आ जाओ अब राजी-राजी |
क्षमा करें टिपियायें आकर
छोड़-छाड़ अपनी नाराजी ||
वाह.बहुत आभार आपका मनोज जी इस पुस्तक से परिचय कराने का. डॉ शरद सिंह को ब्लॉग पर पढ़ा है.अब ये नाटक भी पढ़ने की इच्छा है.
जवाब देंहटाएंजिसदिन आपको यह पुस्तक सस्ता साहित्य मंडल में मिली थी मैं आपके साथ ही था. कैसे कार्यालय के रिनोवेशन के दौरान अस्त व्यस्त सस्ता साहित्य मंडल में आप किताब को ढूंढ रहे थे वह आपके पुस्तक प्रेम को दर्शाता है. मैं तो अभिभूत हो जाता हूं. शरद जी के लेखन से परिचित हूं. इन दिनों उनका एक स्तम्भ नई दुनिया में रविवार को आ रहा है. अच्छा लगता है उनको पढना. ग़दर की कहानियों का जिस तरह आपने समीक्षा की वह उनके लेखन को नई दृष्टि दे रहा है. इस पुस्तक को खरीद कर पढना है. अच्छी समीक्षा वही है जो पुस्तक के प्रति रूचि जगा दे. आंच का एक और उत्कृष्ट अंक.
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण रचना से अवगत करवाया है आपने.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी मिली ..पुस्तक पढने की रूचि जाग्रत कर दी है ... डा० शरद सिंह को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा प्रस्तुत की गई है!
जवाब देंहटाएंडॉ. शरद सिंह का नाटक-गदर की चिनगारियाँ-का परिचय कराने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंManoj ji
जवाब देंहटाएंsundar prastuti ke liye badhai sweekaren.
मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं
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ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल
सर जी, इस पुस्तक से परिचय कराने के लिए आभार ! पुस्तक समीक्षा बेहद पसंद आई !
जवाब देंहटाएंपुस्तक से परिचय करवाने के लिये आभार, शरद जी को ब्लाग पर नियमित पढते आये हैं, यह नाटक भी उनकी ब्लाग रचनाओं की तरह अत्यंत सशक्त होगा, पुस्तक मंगवाते हैं. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंडॉ शरद सिंह द्वारा रचित नाट्य कृति 'गदर की चिंगारिया' का थोड़ा सा अंश आज ही पढा एवं लगा कि वास्तव में सुश्री शरद सिंह ने उन महान नारियों को अपना पात्र बनाया है जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अहम भूमिका का निर्वाह किया है । ज्ञानपरक पुस्तक के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए धन्यवाद । 'आँच' पर की गयी प्रस्तुति भी अच्छी लगी ।
जवाब देंहटाएंडॉ. शरद सिंह का नाटक-गदर की चिनगारियाँ-का परिचय कराने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंलेखिका को बधाई और परिचय कराने के लिए आपका भी। ज़रुर पढ़ेंगे।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंडॉ. शरद सिंह को बधाई और धन्यवाद तथा आपको विशेष धन्यवाद जो ऐसा समीक्षात्मक विवरण पुस्तक के बारे में प्रस्तुत किया
शुक्रवार-http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंdr sharad singh ko hardik shubhkamnayen , aapka abhaar is pustak ke vishay mein batane ke liye
जवाब देंहटाएंशरद सिंहजी को बधाई एवं इस नाटक से परिचय कराने के लिए आभार आपका ....
जवाब देंहटाएंमनोज कुमार जी,
जवाब देंहटाएंआप जैसे मनीषी के द्वारा की गई अपनी पुस्तक की समीक्षा पढ़ कर मन गदगद हो गया. जब आप जैसे विद्वतजन मेरे लेखन को सराहते हैं तो ऐसे ही अमूल्य पलों में अपने लेखन की सार्थकता का बोध होता है.
अत्यंत कृतज्ञ हूं और इस बात के लिए वचनबद्ध भी कि भविष्य में भी आपकी समीक्षात्मक आशाओं पर खरी उतरने का प्रयास करूंगी.
पुनः हार्दिक आभार.
मनोज जी!
जवाब देंहटाएंहिन्दी दिवस समारोह की व्यस्तताओं के मध्य कब यह पोस्ट मुझसे छूट गयी पता ही नहीं चला... क्षमा प्रार्थना के उपरांत आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ..
इतिहास कभी मेरा विषय नहीं रहा, कभी रूचि भी नहीं रही. लेकिन ऐतिहासिक नाटकों से मेरा परिचय पुराना है.. प्रसाद के नाटकों की बात न करते हुए भी मैं पटना के श्री चतुर्भुज का नाम उल्लेख करना चाहूँगा, जिन्होंने सिर्फ ऐतिहासिक नाटक लिखे, रेडियो व् मंच के लिए.
डॉ. शरद सिंह की पुस्तक की समीक्षा ने पढ़ने की जिज्ञासा बढ़ा डी है और इसका श्री आपको जाता है. एक अनोखा विषय है और यह कालखंड मुझे व्यक्तिगत रूप से अत्यंत प्रभावित करता है! अवश्य पढूंगा इस पुस्तक को! आपका आभार इस परिचय के लिए "आंच" के माध्यम से!!
मनोज जी.बहुत आभार आपका डॉ. शरद सिंह जी का नाटक-गदर की चिनगारियाँ-का परिचय कराने के लिए .....डा० शरद सिंह जी को बधाई...
जवाब देंहटाएंइस रचना के लिए शरद जी बधाई की पात्र हैं...यह एक बड़ी उपलब्धि है...और उनकी लेखनी का सम्मान है...हार्दिक बधाइयाँ...
जवाब देंहटाएंडॉ. शरद सिंह का नाटक-गदर की चिनगारियाँ के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंडॉ शरद सिंह की इस पुस्तक से परिचय कराने का आभार। 1857 की क्रांति और भारत व विश्व पर उसके प्रभाव को समझने-समझाने का हर प्रयास स्वागतयोग्य है।
जवाब देंहटाएं