शिवस्वरोदय – 59
आचार्य परशुराम राय
09956326011
मासादौ चैव पक्षादौ वासरादौ यथाक्रमम्।
क्षयकालं परीक्षेत वायुचारवशात् सुधीः।।326।।
भावार्थ – सुधी लोगों को क्रम से प्रत्येक माह, पक्ष, दिन के प्रारंभ में (सूर्योदय के समय) और मृत्यु के समय तत्त्व की परीक्षा करनी चाहिए। इसे समय-ज्ञान कहा गया है।
पञ्चभूतात्मकं दीपं शिवस्नेहेन सिञ्चितम्।
रक्षयेत्सूर्यवातेन प्राणी जीवः स्थिरो भवेत्।।327।।
भावार्थ – इस भौतिक शरीर की रचना पंचमहाभूतों से होती है और वह शिवरूपी प्राण से सिंचित होता है। सूर्य-नाड़ी में प्राण का प्रवाह जीव की मृत्यु से रक्षा करता है, अर्थात् शक्ति प्रदान करता है। इसीलिए प्राण को इस पंचभूतात्मक शरीर में दीप कहा गया है।
मारुतं बन्धयित्वा तु सूर्य बन्धयते यदि।
अभ्यासाज्जीवते जीवः सूर्यकालेSपि वंचिते।।328।।
भावार्थ – यदि सूर्यनाड़ी में प्राण को रोकने का अभ्यास किया जाय, तो पिंगला नाड़ी शक्तिशाली होती है और व्यक्ति को लम्बी आयु प्राप्त होती है।
गगनात्स्रवते चन्द्र कायपद्मं विकासयेत्।
कर्मयोगसदाभ्यासैरमरः शशिसंश्रयात्।।329।।
भावार्थ – इस कर्मयोग के सदा अभ्यास करके शरीर में स्थित सहस्रार चक्र को विकसित करना चाहिए। क्योंकि इससे अमृत का स्राव होता है, जो व्यक्ति को अमर बना देता है।
शशाङ्कं वारयेद्रात्रौ दिवावायोर्दिवाकरः।
इत्यभ्यासरतो नित्यं स योगी नात्र संशयः।।330।।
भावार्थ – जो व्यक्ति रात में चन्द्रनाड़ी के प्रवाह को और दिन में सूर्यनाड़ी के प्रवाह को नियमित रूप से रोकता है, वह निस्संदेह योगी होता है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंसादर बधाई ||
एक नवीन प्रकार की गहन अर्थयुक्त पोस्ट. आभार.
जवाब देंहटाएंहमारे ज्ञान की जड़ें कितनी गहन,समृद्ध और मज़बूत हैं ,इस बात का अंदाज़ा शिवस्वरोदय पढ़कर लगाया जा सकता हैं !
जवाब देंहटाएंइस विलक्षण ज्ञान को पाठकों तक पहुंचाने का आपका प्रयास प्रणम्य है !
आभार आचार्य जी !
बहुत महत्वपूर्ण प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंgyaanvaradhak
जवाब देंहटाएंसुन्दर.ज्ञान की बातें.
जवाब देंहटाएंअद्भुत ज्ञान है यह आचार्य जी!!
जवाब देंहटाएंबहुत महत्वपूर्ण प्रस्तुति ....
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