शरद का चांद
एक चुल्लू चांदनी भी पी नहीं पाए
रात भर छलका शरद का चांद।
मन भ्रमर दुबका रहा संशय तले
रात भर महका शरद का चांद।
क्या नहीं बीती, घटा क्या क्या नहीं
जंगलों से हम गुजर कर आ रहे,
भर न पाए एक गहरा घाव भी
रात भर पिघला शरद का चांद।
अस्मिता जिसमें झुलसकर रह गई
यह किसी से दूरियों की है जलन।
भाप जैसी चांदनी तिरती रही
रात भर उबला शरद का चांद।
अनछुई इच्छा अंगुलियों की रही
मौन गुंबद ताज के हिलते रहे।
थरथराकर झोल से हम रह गए
रात भर मचला शरद का चांद।
सामने प्याला अधर में प्यास थी
और हम ठहरे हुए मजबूर से।
बांह तो फैली प्रतीक्षा में रही
रात भर फिसला शरद का चांद।
सामने प्याला अधर में प्यास थी
जवाब देंहटाएंऔर हम ठहरे हुए मजबूर से।
बांह तो फैली प्रतीक्षा में रही
रात भर फिसला शरद का चांद।
ग़ज़ब की प्रस्तुति,
वाह.
अस्मिता जिसमें झुलसकर रह गई
जवाब देंहटाएंयह किसी से दूरियों की है जलन।
भाप जैसी चांदनी तिरती रही
रात भर उबला शरद का चांद।
सुन्दर पंक्तियाँ !
एक और शानदार
जवाब देंहटाएंऔर
प्रभावी प्रस्तुति ||
बधाई ||
कविता बन मचला शरद का चाँद..
जवाब देंहटाएंअस्मिता जिसमें झुलसकर रह गई
जवाब देंहटाएंयह किसी से दूरियों की है जलन।
भाप जैसी चांदनी तिरती रही
रात भर उबला शरद का चांद।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
अनछुई इच्छा अंगुलियों की रही
जवाब देंहटाएंमौन गुंबद ताज के हिलते रहे।
थरथराकर झोल से हम रह गए
रात भर मचला शरद का चांद।
.....उत्कृष्ट भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
एक चुल्लू चांदनी भी पी नहीं पाए
जवाब देंहटाएंरात भर छलका शरद का चांद।
मन भ्रमर दुबका रहा संशय तले
रात भर महका शरद का चांद।
बहुत सुंदर रचना ......
शरद का चाँद ... बहुत सुन्दर गीत .. आभार
जवाब देंहटाएंchaand lubhaa kar chala gaya hum haath malte rah gaye
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar jajbaat bahut khoob.
waah behtreen bahut hee umdaa rachnaa ..maza aagaya padh kar abhaar....samay milekabhi to zarur aaiyegaa meri post par aapk svagat haihttp://mhare-anubhav.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंसामने प्याला अधर में प्यास थी
जवाब देंहटाएंऔर हम ठहरे हुए मजबूर से।
बांह तो फैली प्रतीक्षा में रही
रात भर फिसला शरद का चांद।
bahut sunder prastuti.
सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंसामने प्याला अधर में प्यास थी
जवाब देंहटाएंऔर हम ठहरे हुए मजबूर से।
बांह तो फैली प्रतीक्षा में रही
रात भर फिसला शरद का चांद।
बांह तो फैली प्रतीक्षा में रही
जवाब देंहटाएंरात भर फिसला शरद का चांद।
वाह! खुबसूरत खयालात.....
सादर...
बांह यूं ही फैली रहे, चांद आयेगा देर सबेर उनमें!
जवाब देंहटाएंहल्के फुल्के तथा जन साधारण को सहज ही समझ आ जाने वाले शब्दों से सजा यह गीत मन की वीणा के तारों को झंकृत कर जाता है। मनोज जी, आ. श्याम नारायण जी के इस गीत को पढ़वाने के लिए बहुत बहुत आभार।
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