बुधवार, 3 मार्च 2010

देसिल बयना - 20 : बिना ब्याहे घर नहीं लौटे..... !

-- -- करण समस्तीपुरी
जय हो ! जनता-जनार्दन !! कैसन रही होली ? सब कुशल है ना.... ? अरे मरदे का बताएं.... हमरे होली में तो ऐसन गुलाल उड़ा कि जिनगी भर नहीं भूलेंगे। बड़ी शौक से गए रहे गाँव होली खेले.... लेकिन वही हो गया, 'शौक में सोहारी [रोटी] ! आलू बैगन के तरकारी !!'
खैर चलिए, हफ्ता भर बाद आप लोगों से मिल रहे हैं। जिन्दा बच गए, बहुत ख़ुशी हो रही है। कहावतो है, 'जान बचे लाखो पाई !' अब पूछिये आप, क्या हुआ ? अरे मरदे का नहीं हुआ.... ? फागुन में गए रहे होरी खेले हो गया बलजोरी। ऊ कोठा पर वाले खखनु ठाकुर नहीं हैं..... अरे वही जिनका उजरल जमींदारी बचा है। उन्ही का बेटा है न बिगडुआ। भैंस चढ़ते बिगडु ठाकुर अधबयस [जिसकी आधी उम्र निकल गयी हो] हो गया था, लेकिन घोड़ी पर चढ़े का नसीब नहीं हुआ। ससुर के नाती न पढ़ा-लिखा, न कौनो गुण-ज्ञान सीखा...... खखनु ठाकुर जैसन पहलवानी भी नहीं कर सकता था..... ऊपर से डेढ़ गो आँख का मालिक। बसिया जमींदारी और दू-चार गो माल मवेशी पर गिरिहलछमी कैसे आयें।
बिगडुआ को अब चलिसमा लगने को आया तो बेचारे खखनु ठाकुर के गोरधरिया [आरजू-मिन्नत] पर घरजोरे पंडीजी पसीज [पिघल] गए। बंगाल बौडर के गाँव बिच्छुपुर में बिगडु ठाकुर का जोड़ी निकालिए दिए। बात तय हुआ कि दोतरफी खर्चा खखनुए ठाकुर करेंगे। पंडीयो जी बहुत खुश थे। दछिना अच्छा मिला था। इहे फागुन का सगुन धराया था। होली से दू दिन पहिले का। गाँव गए होली में तो पता चला। मंगल पेठिया पर बिगडुआ अपने तो कहबे किया था ठाकुरजी अपनों घर आ कर बाराती चले का न्योता दे गए थे।
भाई अधबयसे है तो का.... बाराती तो है ठाकुर का। जमींदारी न चला गया है, रोआब तो अभी हैय्ये है। राजा भोज जैसा बरियाती सजा था। हाथी-घोड़ा, ऊँट-बगेड़ा सब आया। बरातियो था झमटगर। आखिर ठाकुर जी का एकलौता कुलदीपक था। चला सज के रेवा-खंडी बराती।
जतरा था दूर का। पहुंचते-पहुंचते झल-फल सांझ होय गया। वैसे तो रास्ता में चूरा-दही होइए गया था लेकिन दूरे से जलबासा देख के 'मुदित बरातिन्ह हने निसाना....!' हई तोरी के..........जलबासा पर तो एगो बराती पहिलही से था। सोचे कि बिच्छुपुर में आज दू गो लगन है। बैंड बाजा और नाच में अच्छा कम्पटीशन होगा।
इधर बराती सब पानी, शरबत, चाह, नाश्ता के रास्ता देखे लगा। बड़ी देर हुआ। कुछ लोग सोचे कि चलो न उ तरफ वाला बाराती में बँट रहा होगा तो उधरे पा लेंगे। लेकिन ई का.... इहो तरफ ठक- ठक माला सीताराम। खैर, दुन्नु बराती में बात-चीत बढ़ा। आप कहाँ से आये हैं ? तो आप कहाँ से आये हैं ?? फिर आप किसके यहाँ आये हैं? तो आप किसके यहाँ ?? दुइये घड़ी तो बात हुआ कि सारा मजमा बिगड़ गया। अब आपको विश्वास नहीं होगा........... लेकिन का कहें..... अरे महाराज दुन्नु बराती एक्कहि लड़की पर आया था। अब समझ आया कि सरातिया सब काहे गायब था। उधर जिस तेजी से दुन्नु बराती हिल-मिल रहा था वैसे ही फटाक से दू फार हो गया।
अब नाश्ता-पानी तो दूर फिकिर तो था कि यहाँ भी बिगडु ठाकुर का मंगलम भगवान विष्णु होगा कि लठिया-सोहार ! इधर हम लोगों के बरियात का कुछ सुर्खुरू आदमी गए उ साइड के बराती को समझाने...... । लेकिन का मजाल कि मान जाएँ ! आखिर उहो तो ठाकुरे की बरात थी। फिर कुछ लोग खखनु ठाकुर को समझाने लगे। तलवार पुरान भले था लेकिन काट तो वही थी। राजपूती खून खौल उठा। जमींदारी रोआब दहार मारे लगा। ठाकुर जी बेंत चमका-चमका के कहे लगे, 'ससुरा.... हमरे दादा के रैय्यत-मोख्तारी करे वाला आज हमरा बेटा के सामने बराती लाएगा.... ? करेज तोड़ देंगे लेकिन पीठ नहीं दिखाएँगे।

इधर न लड़की वाले का पता ना... पंडित घरजोरे का। इधर अभी तक चुप-चाप मौरी पहिने बैठा बिगडुआ भी जुद्ध का संख नाद कर दिहिस. हमको आल्हा-रुदाल के नाच वाला फकरा याद आ गया, "बिना ब्याहे घर नहीं लौटें, चाहे जान रहे या जाय.....!" कुछ इसी टोन में बोला था बिगाडुआ। उहो बेटा नाच का पक्का शौक़ीन था बच्चे से। अब हो गया ऐलान तब.... कौन पीछे हटे ? उधर से भी लाठी-भाला निकले लगा। इधर भी बल्लम-बरछी तैयार हो गया। फिर गौंवा सब टपक पड़ा। पहिले दुन्नु बराती को समझाया। लेकिन समझे कौन ? फिर शुरू हो गया........ 'अथ श्री महाभारत कथा'। वहाँ तो दुतारफिए होता था यहाँ तो तीनतरफ़ा हो गया। दे दनादन....ले टनाटन...! हम तो गत्ते से जान बचा कर सामने एगो झोपरी में छुप के सारा दिरिस देखे लगे। मौरी उतार के फेंका और फिर 'आल्हा' वाला फकरा दोहराया, "बिना ब्याहे घर नहीं लौटें चाहे जान रहे या जाए....!" बगल वाला से एगो लाठी झपटा और और जो ही सामने आये सबको संध भैंसा के तरह हांकने लगा।

इधर घनासान मचा हुआ था। तभी बिच्छुपुर के मुखिया सरपंच सब जुट गए। गहमा-गहमी के बीचे में दुन्नु पाती से बात किये। लडकियों वाला के बुला कर बड़ी बात कहे। लड़की वाला अंत मे तैयार हो गया कि भाई, हमरे कौनो ऐतराज नहीं। हमसे भारी गलती होय गया। अब ई दुन्नु बराती अपने में फरिया ले। जिस से कहें हम कन्यादान कर देंगे। अभी एक मोडल झगरा-झंझट हुआ ही था। हम सोचे अभी शांत होगा। लेकिन बिगडुआ फिर से बादल के तरह फट पड़ा, "अब आ गए हैं बराती लेकर तो दुल्हन लेकर ही जायेंगे ! बिना ब्याहे घर नहीं लौटें.....!!" हालांकि गौंवा सब का मन भी उधरे के लड़का पर डोल रहा था लेकिन उ साइड का बरातिये हिम्मत हार दिया। उधर के लड़का के बापू बोले, 'हमरा लेन-देन लौटा दें, हम अपने बेटे को कहीं और ब्याह लेंगे। बेचारा दूल्हा मन-मसोस के रह गया।

बात पटरी पर आ गयी तो हम भी झोपरी से निकले। इधर खखनु बाबू भी खुश थे। बोले, लेन-देन तो हमहि लौटा देंगे। और तरातर बटुआ खोल के गिनियो दिए। इस तरह से उधर का बरियात बेचारा खालिए लौट गया। और बिगडुआ को लड़की वाले नहियो पसंद कर रहे थे तैय्यो दुल्हन लेके लौटा।
तो ई था कहावत का कमाल, "बिना ब्याहे घर नहीं लौटे ! चाहे जान रहे या जाय !!" देखिये बिग्दुआ था बजरमुरख लेकिन बात किहिस बड़ी दूर का। और जो कहिस उ किहिस भी। आखिर उसके कहावत का मतलबे है पुरषार्थ से लबालब। अर्थात "जिस काम के लिए आये हैं वो कर के ही जायेंगे। जोखिम के डर से लक्ष्य से नहीं भूलेंगे।" जब ऐसा दृढ निश्चय था तब लक्ष्य भी मिलिए गया। आखिर ब्याह हो गया न। और उधर के बराती में यही निश्चय नहीं था। थोड़ा सा भड़की देखा के फुफुसा गया तो समर्थन के बावजूदो दुल्हन माने कि लक्ष्य से वंचित रहना पड़ा। तो भैय्या यही थी अद्भुत बारात की बात। अब आप लोग टिपिया के बताइयेगा कैसी लगी !!!

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपका यह देसिल बयना पढ़कर अच्छा लगा, शुभकामनाएं.

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  2. बहुत बढ़िया,शानदार लगा आपका देसिल बयना.

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  3. जिस काम के लिए आये हैं वो कर के ही जायेंगे। जोखिम के डर से लक्ष्य से नहीं भूलेंगे।" जब ऐसा दृढ निश्चय हो तो लक्ष्य भी प्राप्त होगा ही। जिनमें निश्चय की कमी होती है उन्हें लक्ष्य से वंचित रहना पड़ता हई। बहुत ही प्रेरक देसिल बयन जो आदि से अंत तक पठनीयता से भरपूर है और बहुत सरस और रोचक है।

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  4. क्या बात है मित्र बहुत सुन्दर देसी भाषा में पोस्ट........रोचकता लिए हुए है....

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. जिस काम के लिए आये हैं वो कर के ही जायेंगे।

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