रविवार, 25 जुलाई 2010

आज गुरु पुर्णिमा है …..

IMG_0013 श्री गुरुवे नमः॥

आज गुरु पुर्णिमा है …..

 

IMG_0151 ---मनोज कुमार

"गुरुतर महत्ता का प्रतीयमान 'गुरु' शब्द स्वयं में ही अलौकिक श्रद्धा का प्रतीक है । विश्वगुरु भारत की समृद्ध गुरु-शिष्य परम्परा पर समय समय पर अपसंस्कृति की धूल जमने का प्रयास करती रही है किंतु इसकी शाश्वत उज्ज्वलता आज भी विद्यमान है। अब तो गुरु-वंदना में अखिल विश्व भारत का अनुसरण कर रहा है। जो अखंड ब्रह्माण्ड रूप में चर और अचर सब में व्याप्त है, जो ब्रह्मा, विष्णु और देवाधि देव महेश हैं, उन्हें हमरा सत सत नमन ! "

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पाय।

बलिहारी गुरु आपकी गोविन्द दियो मिलाय।।

संत कबीर दास की ये पंक्तियां हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति में गुरु के महत्व को अभिव्यक्त करती हैं।

अपनी बात मैं उपनिशद की एक कहानी से शुरु करता हूं। एक राजा का बेटा रास्ता भूल-भटक कर एक जंगल में पहुंच गया। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था। जंगली पशुओं के बीच रह कर वह दीन-हीन जीवन बिता रहा था।

PH01931J संयोग से उधर रहते एक साधु की नज़र उस पर पड़ी। उस साधु ने उसे राजा का बेटा होने की बात याद दिलाई। और उसे उसके पिता के राज्य तक लौटने का रास्ता बता दिया। बस क्या था! वह पूछते-पाछते अपने पिता के राज्य में पहुंच गया और पिता का उत्तराधिकार राज्य के रूप में पाकर सुखी जीवन बिताने लगा।

इस कहानी से यह स्पष्ट है कि भूला-भटका भी यदि समुचित मार्ग-दर्शन पा ले तो सही गंतव्य तक पहुंच सकता है। आज का मानव दुखी-दीन बना हुआ है। उसे अपने स्थान तक पहुँचाने वाला कोई मर्गदर्शक नहीं मिला है, अगर मिला है तो उस गुरु की वाणी पर सत्यनिष्ठा का अभाव है।

सन्त कबीरदास ने गुरु को कुम्हार और शिष्य को घड़ा का प्रतिरूप बताते हुए कहा है –

गुरु कुम्हार सिख कुंभ है, गढ़ि- गढ़ि काढय खोट।

अन्तर हाथ-सहार दय, बाहर- बाहर चोट॥

अर्थात सद्गुरु अपनी कृपा से सर्वथा तुच्छ और तिरस्कारपात्र व्यक्ति को भी आदर का पात्र बना देते हैं, जिस प्रकार कुम्हार घड़ा बनाते समय बांया हाथ घड़े के पेट में लगाए रहता है और दाएं हाथ से थापी पीट-पीट कर उसे सुडौल-सुघड़ गढ डालता है, ठीक उसी प्रकार गुरु करता है।

ऐसे गुरु को यदि सामान्य जन न समझे तो कबीर उसे अंधा मानते हैं।

कबिरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहि ठौर॥

गुरु की प्राप्ति सबसे बड़ी उपलब्धि है और गुरु के लिए कुछ भी अदेय नहीं है।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।

शीश दिये जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान॥

J0341455 इस संसार के विष से भरे जीवन को अपनी सिद्धि और करुणा के सहारे गुरु अमृतमय बनाकर हमें हमारे लक्ष्य तक पहुंचा देता है। इसीलिए हर साधक गुरु को ब्रह्मा, गुरु को ही विष्णु और गुरु को ही सदा शिव, बल्कि यहां तक कि गुरु को ही परब्रह्म के रूप में नमन करता है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः।

गुरुः साक्षातपरंब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः॥

गुरु की महिमा अपरंपार है। उसे मैं तुच्छ क्या समेट सकता हूं इस आलेख के द्वारा।

सब धरती कागद करूं, लेखनि सब बन राय।

सात समुद की मसि करूं गुरु गुन लिखा न जाए॥

J0145707 गुरु के अलावा साधक का पथ-प्रदर्शक कोई नहीं होता। सिद्धि दिलाना तो गुरु के हाथों में होता है। गुरु वही है जो शिष्यों को समझाने में दक्ष है। “गु” शब्द का अर्थ है, “अज्ञान” और “गुफा” और “रु” शब्द का अर्थ है “प्रकाश”। गुरु शिष्य के हृदय के अज्ञान के अंधकार को ज्ञान-रूपी प्रकाश से उज्ज्वल बनता है।

जो दिव्यात्मा हमें मनुष्यत्व से देवत्व में परिवर्तित कराने में सामर्थ्यवान होता है वही गुरु है। यदि शिष्य गुरु की आवश्यकता को सही प्रकार से समझता है और उसकी पूर्ति के लिए प्राणपण से संलग्न रहता है तो उसकी कोई विशेष अनुष्ठान व साधना की आवश्यकता नहीं पड़ती


ध्यानमूलं गुरोर्मूर्त्ति पूजामूलं गुरोःपदम।

मन्त्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा॥

हे गुरु आपको बार-बार नमस्कार है।

अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम।

तत्पददर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः॥

16 टिप्‍पणियां:

  1. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्‍वरः। गुरुः साक्षातपरंब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
    .... गुरु की महिमा भले ही स्कूल के समय पढ़ी थी लेकिन समय के साथ आज उसकी
    सार्थकता समझ में आती है .
    "सतगुरु के महिमा अनंत, अनंत कियो उपकार
    लोचन अनंत उघाड़ियाँ, अनंत दिखवान हार."
    ...इन्ही शब्दों से गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  2. गुरु को समर्पित आपकी पोस्ट सच में कमाल है ....
    इस पावन पर्व की बहुत बहुत बधाई ...

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  3. गुरु भक्ति का सार्थक चित्रण।
    कल (26/7/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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  4. बहुत सुंदर लेख लिखा, सच कहा कि गुरु के बिना गाण नही, लेकिन आज कल गुरु भी तो पहुचे हुये मिलते है.....
    गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ

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  5. aadarniya gurujano ko samarpit aaj ki post sarthak bhi hai aur prerak bhi. girate samajik moolyo ke beech aise lekh aaj bahut upyogi hai.
    samsamayik aalekho ke liye aapki jitani sarahana ki jaye kam hogi.
    dhanyavsd.

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  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  7. गुरु पूर्णिमा पर आपका आलेख प्रशंसनीय है..इसे हमने साभार 'उत्सव के रंग' में भी प्रकाशित किया है.

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. गुरुपूर्णिमा के अवसर पर गुरु वन्दन के लिए साधुवाद।

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  10. आदरणीय मनोज जी
    नमस्कार !
    "आज गुरु पुर्णिमा है ….."
    बहुत ही श्रम , लगन और विद्वता से तैयार पोस्ट है …
    कोटिशः बधाई !
    धन्य हैं आप , और धन्य हैं आपके गुरुजन !
    शत शत नमन है !


    बिना गुरु कृपा कुछ भी संभव नहीं …
    पुनः हार्दिक बधाई और आभार !

    शस्वरं पर आपका सदैव हार्दिक स्वागत है , आइए , आते रहिए …

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  11. आपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..


    http://charchamanch.blogspot.com/

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