शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

शिवस्वरोदय-30

शिवस्वरोदय-30

-आचार्य परशुराम राय

इस अंक में वे श्लोक आए हैं जिसमें पंच महाभूतों की पहिचान से सम्बन्धित विचार किया गया है।

श्रुत्योरङ्गुष्ठकौ मध्याङ्गुल्यौ नासापुटद्वये।

वदनप्रान्तके चान्याङ्गुलीयर्दद्याच्च नेत्रयोः।।150।।

अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय नहीं दिया जा रहा है।

भावार्थ – इस श्लोक मे षण्मुखीमुद्रा (योनिमुद्रा) की विधि बतायी गयी है। इस मुद्रा के अभ्यास से रंगों द्वारा तत्त्वों की पहिचान की जाती है। इसमें हाथ के दोनों अंगूठों द्वारा दोनों कान, माध्यिका अंगुलियों से दोनों नासिका छिद्र, अनामिका और कनिष्ठिका अंगुलियों से मुख और तर्जनी अंगुलियों से दोनों आँखें बन्द करनी चाहिए। इसे षण्मुखी मुद्रा कहा गया है।

वैसे महान स्वरयोगी परमहंस सत्यानन्द जी महाराज ने इसके अभ्यास की निम्नलिखित विधि बतायी है-

  1. सर्वप्रथम किसी भी ध्यानोपयोगी आसन में बैठें।
  2. आँखें बन्द कर लें, काकीमुद्रा में मुँह से साँस लें, साँस लेते समय ऐसा अनुभव करें कि प्राण मूलाधार से आज्ञाचक्र की ओर ऊपर की ओर अग्रसर हो रहा है।
  3. साँस को जितनी देर तक आराम से रोक सकते हैं, अन्दर रोकें। साथ ही जैसा श्लोक में आँख, नाक, कान आदि अंगुलियों से बन्द करने को कहा गया है, वैसा करें, खेचरी मुद्रा (जीभ को उल्टा करके तालु से लगाना) के साथ अर्ध जालन्धर बन्ध लगाएँ (थोड़ा सिर इस प्रकार झुकाना कि ठोड़ी छाती को स्पर्श न करे) और चेतना को आज्ञाचक्र पर टिकाएँ।
  4. सिर को सीधा करें और नाक से सामान्य ढंग से साँस छोड़ें।
  5. यह एक चक्र हुआ। ऐसे पाँच चक्र करने चाहिए। प्रत्येक चक्र के बाद कुछ क्षणों तक विश्राम करें, आँख बन्द रखें। अभ्यास के बाद थोड़ी देर तक शांत बैठें और चिदाकाश (आँख बन्द करने पर सामने दिखने वाला रिक्त स्थान) को देखें। इसमें दिखायी पड़ने वाले रंग से सक्रिय तत्त्व की पहिचान करते हैं, अर्थात् पीले रंग से पृथ्वी, सफेद रंग से जल, लाल रंग से अग्नि, नीले या भूरे रंग से वायु और बिल्कुल काले या विभिन्न रंगों के मिश्रण से आकाश तत्त्व समझना चाहिए।

English Translation – In this verse practice of Shanmukhi Mudra has been suggested to recognize Tattvas during the flow of breath by the colour appearing thereafter. According to this verse in Shanmukhi Mudra, we should close both ears with thumbs, both nostrils with middle fingers, mouth with ring finger and little finger and both eyes with index finger. This is called Shanmukhi Mudra.

However, the great Swara Yogi Paramahansa Satyananda Saraswati has described the method of Shanmukhi Mudra for this purpose as under:

1. At the outset, we should sit in any comfortable meditative posture.

2. Then we should close our eyes, shape our lips like crow-beak, breathe through mouth with feeling that vital energy is moving from Muladhara Chakra (the place in the spinal column at the level of anus) towards Ajna Chakra (place between eyebrows).

3. We should hold breath inside as long as we can hold comfortably, simultaneously close ears, nose, mouth etc as mentioned in the verse, touch palate with tongue by folding it back side (Khechari Mudra), bend head a little down but chin should not touch the upper chest and feel our consciousness between eyebrows.

4. After that we should breathe out keeping our head straight.

5. This one cycle of this practice. We should practise it at least five times daily. After every cycle we may relax for few seconds, but eyes should be kept closed. After completion of the practice, we should sit silently with closed eyes and observe colour appearing before the eyes. The colour, which appears at that time, indicates the appearance of Tattva in the breath, i.e. appearance of yellow colour indicates earth, white indicates water, red- the fire, blue or grey- air and appearance of black colour or combination of different colours indicates ether.

अस्यान्तस्तु पृथिव्यादि तत्त्वज्ञां भवेत्क्रमात्।

पीतश्वेतारुणश्यामैर्विनदुभिर्निरूपाधिकम्।।151।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय आवश्यक नही है।

भावार्थ – षण्मुखी मुद्रा के अभ्यास के अंत में तत्त्व प्रकट होते हैं, अर्थात् चिदाकाश में रंग पीला, सफेद, लाल, नीला तथा अनेक वर्णों का मिश्रण (बिन्दुदार) दिखायी देता है।

English Translation – At the end of the practice of Shanmukhi Mudra, Tattvas, active in the breath at that time, appear in the form of colours, i.e. yellow, white, red, blue or grey and combination of different colours in dots, before the closed eyes. Here Chidakash means appearance of blank scene of darkness.

आपः श्वेतं क्षितिः पीता रक्तवर्णो हुताशनः।

मरुतो नीलजीमूत आकाश सर्ववर्णकः।।152।।

अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है।

भावार्थ - जल तत्त्व का रंग सफेद, पृथ्वी तत्त्व का पीला, अग्नि तत्त्व का लाल, वायु तत्त्व का नीला या भूरा और आकाश तत्त्व का मिश्रित रंग होता है।

English Translation – Thus appearance of yellow colour stands for the earth, white for water, red for fire, blue or grey for air and combination of different colours for ether.

दर्पणेन समालोक्य तत्र श्वासं विनिक्षिपेत्।

आकारैस्तु विजानीयात्तत्त्वभेदं विचक्षणः।।153।।

चतुरस्रं चार्धचन्द्रं त्रिकोणं वर्त्तुलं स्मृतम्।

विन्दुभिस्तु नभो ज्ञेयमाकारैस्तत्त्वलक्षणम्।।154।।

अन्वय – ये श्लोक भी अन्वित क्रम में हैं, अतएव अन्वय आवश्यक नही है।

भावार्थ – इन श्लोकों में दर्पण के माध्यम से आकार द्वारा तत्त्वों को पहचानने का तरीका बताया गया है। एक क्रम में होने के कारण दोनों श्लोकों को एक साथ लिया जा रहा है।

इसके अनुसार दर्पण चेहरे के पास लाकर उसपर साँस छोड़ते हैं। परिणाम स्वरूप वाष्प-कण से दर्पण पर आकृति बनती है। उस आकृति से सक्रिय तत्त्व की पहिचान होती है, अर्थात् चतुर्भुज की आकृति बनने पर स्वर में पृथ्वी तत्त्व को सक्रिय मानना चाहिए, अर्द्धचन्द्र सी आकृति बने तो जल तत्त्व, त्रिभुजाकार हो तो अग्नि तत्त्व, वृत्ताकार वायु तत्त्व और बिना किसी निश्तित आकृति के वाष्प-कण इधर-उधर बिखरे हों तो आकाश तत्त्व को सक्रिय मानना चाहिए।

English Translation – In this verse, a way to identify Tattvas appearing in the breath by using a mirror has been described. For the purpose of convenience in understanding the meaning as whole, both the verses have been taken together here.

According to the verses herein, we should take mirror and throw our breath on it. After doing so some shapes are formed by vapour on the mirror. In case, a shape of rectangle appears, it indicates the earth, semi-circle moon indicates water, triangle indicates fire, circle indicates the air and scattered dots of vapour without any definite shape indicates ether.

मध्ये पृथ्वी ह्यधस्चापश्चोर्ध्वं वहति चानलः।

तिर्यग्वायुप्रवाहश्च नभो वहति सङ्क्रमे।।155।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है, अतएव अन्वय आवश्यक नही है।

भावार्थ – इस श्लोक में स्वर के प्रवाह की दिशा में विचलन से तत्त्वों की पहिचान का तरीका बताया गया है। वैसे यह विधि काफी सजग निरीक्षण के लम्बे अभ्यास के बाद ही इस विधि से स्वर में सक्रिय तत्त्व की पहिचान सम्भव है।

इसमें यह बताया गया है कि पृथ्वी तत्त्व का प्रवाह मध्य में, जल तत्त्व का नीचे की ओर, अग्नि तत्त्व का ऊपर की ओर तथा वायु तत्त्व का प्रवाह तिरछा होता है। जब साँस दोनों नासिका-रन्ध्रों से समान रूप से एक साथ प्रवाहित हो, तो आकाश तत्त्व को सक्रिय समझना चाहिए।

English Translation – This verse describes to identify Tattvas by deviation in the direction of their flow. However, one can identify Tattvas by this method only after a long practice and careful observations.

Here it has been stated that the flow of breath in the middle indicates earth, downward flow indicates water, upward flow indicates fire, angular flow indicates air and flow of breath through both the nostrils at a time indicates ether.

14 टिप्‍पणियां:

  1. आसनों के बारे में शास्त्रीय जानकारी प्रदान करने के लिए आपका धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. अत्यंत उपयोगी पोस्ट। आपका महती कार्य ब्लाग जगत और साहित्य जगत के लिए धरोहर है। जो लोग इससे शिक्षा ग्रहण कर रहे उनके लिए बहुत ही लाभकारी है। आपका यह सार्थक प्रयास हमेशा स्मरण किया जाएगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय मनोज कुमार जी
    नमस्कार !
    ..........उपयोगी पोस्ट जानकारी प्रदान करने के लिए आपका धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. ब्लॉग जगत को समृद्ध करती ज्ञान वर्धक पोस्ट !

    जवाब देंहटाएं
  5. आपका कार्य ब्लाग जगत और साहित्य जगत के लिए धरोहर है।

    जवाब देंहटाएं
  6. इतने उपयोगी ज्ञान को हम तक पहुँचाने के लिए आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (12.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

    जवाब देंहटाएं
  8. शिवस्वरोदय का विस्तारपूर्वक हिंदी,इंग्लिश और संस्कृत में प्रस्तुत कर लाभान्वित करने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. हिंदी साहित्य कों समृद्ध करता एक बेहतरीन लेख ।

    जवाब देंहटाएं
  10. आपका कार्य ब्लाग जगत और साहित्य जगत के लिए धरोहर है।

    जवाब देंहटाएं
  11. हमेशा की तरह एक बेहतरीन जानकारी, धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  12. उपयोगी पोस्ट जानकारी प्रदान करने के लिए आपका धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  13. उपयोगी जानकारी ......
    हार्दिक धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।