शुक्रवार, 18 मार्च 2011

शिवस्वरोदय-35

शिवस्वरोदय-35

आचार्य परशुराम राय

पृथिव्यां बहुपादाः स्युर्द्विपदस्तोयवायुतः।

तेजस्येव चतुस्पादो नभसा पादवर्जितः।।181।।

अन्वय – श्लोक अन्वित क्रम में है, इसलिए अन्वय नहीं दिया जा रहा है।

भावार्थ – जब स्वर में पृथ्वी तत्त्व सक्रिय हो तो अनेक कदम चलिए। जल तत्त्व और वायु तत्त्व के प्रवाह काल में दो कदम चलें तथा अग्नि तत्त्व के प्रवाहित होने पर चार कदम। किन्तु जब आकाश तत्त्व स्वर में प्रधान हो, अर्थात सक्रिय हो, तो एकदम न चलें।

English Translation - When Prithivi Tattva is active in the breath we may walk as much as we need, but when other tattvas, i.e. Jala Tattva, Vayu Tattva and Agni Tattva, are active, we may walk a little. During the appearance of Akash Tattva we avoid walking.

कुजोवह्निः रविः पृथ्वीसौरिरापः प्रकीर्तितः।

वायुस्थानास्थितो राहुर्दक्षरन्ध्रः प्रवाहकः।।182।।

अन्वय – यह स्वर भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ - सूर्य स्वर (दाहिने स्वर) में अग्नि तत्त्व के प्रवाहकाल में मंगल, पृथ्वी तत्त्व के प्रवाह काल में सूर्य (ग्रह), जल तत्त्व के प्रवाह में शनि तथा वायु तत्त्व के प्रवाह काल में राहु का निवास कहा गया है।

English Translation – Here in two verses locations of Grahas in breath have been indicated. When breath flows through right nostril and Agni Tattva appears therein, this is the place of Mars and when Prithivi Tattva appears, it is Sun. Saturn is placed in Jala Tattva, whereas Rahu in Vayu Tattva.

जलं चन्द्रो बुधः पृथ्वी गुरुर्वातः सितोSनलः।

वामनाड्यां स्थिताः सर्वे सर्वकार्येषु निश्चिताः।।183।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में ही है।

भावार्थ – पर बाएँ स्वर (इडा नाड़ी) में जल तत्त्व के प्रवाह काल में चन्द्र ग्रह, पृथ्वी तत्त्व के प्रवाह में बुध, वायु तत्त्व के प्रवाह में गुरु और अग्नि तत्त्व में शुक्र का निवास मना जाता है। उपर्युक्त अवधि में उक्त सभी ग्रह सभी कार्यों के लिए शुभ माने गये हैं। एक बात ध्यान देने की है कि यहाँ केतु का स्थान नहीं बताया गया है, पता नहीं क्यों।

English Translation – Similarly, when breath flows through left nostril and Jala Tattva appears, the Moon is placed there. If Prithivi Tattva appears therein, this the place of Murcury. Appearance of Vayu Tattva in the breath is indicated as place of Jupiter, whereas Venus is placed in Agni Tattva. The period of these Grahas according to the above position is always auspicious. Here why Ketu has been ignored is unknown.

पृथ्वीबुधो जलादिन्दुः शुक्रो वह्निरविकुजः।

वायुराहुः शनी व्योमगुरुरेव प्रकीर्तितः।।184।।

अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।

भावार्थ – इस श्लोक में भी उपर्युक्त श्लोक की ही भाँति कुछ बातें बताई गयी हैं। इस श्लोक के अनुसार पृथ्वी तत्त्व बुध के, जल तत्त्व चन्द्र और शुक्र के, अग्नि तत्त्व सूर्य और मंगल के, वायु तत्त्व राहु और शनि के तथा आकाश तत्त्व गुरु के महत्व को निरूपित करते हैं। अर्थात इन तत्त्वों के अनुसार काम करनेवाले को यश मिलता है।

English Translation - Here in this verse also certain important informations regarding Grahas in the breath have been provided. According to this verse, Mercury in Prithivi Tattva, Moon and Venus in Jala Tattva, Sun and Mars in Agni Tattva, Rahu and Saturn in Vayu Tattva and Jupiter in Akash Tattva are always auspicious for the work. It brings name and fame to the person who works according to these Tattvas.

प्रश्वासप्रश्न आदित्ये यदि राहुर्गतोSनिले।

तदासौ चलितो ज्ञेयः स्थानांतरमपेक्षते।।185।।

आयाति वारुणे तत्त्वे तत्रैवास्ति शुभं क्षितौ।

प्रवासी पवनेSन्यत्र मृत्युरेवानले भवेत्।।186।।

अन्वय – ये दोनों श्लोक भी अन्वित क्रम में हैं। अतएव इनका भी अन्वय नहीं दिया जा रहा है। साथ ही दोनों श्लोकों में प्रश्नों से सम्बन्धित हैं। इसलिए इनका अर्थ एक साथ किया जा रहा है।

भावार्थ – यदि कोई आदमी कहीं चला गया हो और दूसरा व्यक्ति उसके बारे में प्रश्न करता है, तो स्वर और उनमें तत्त्वों के उदय के अनुसार परिणाम को जानकर सही उत्तर दिया जा सकता है। भगवान शिव कहते हैं कि दाहिना स्वर चल रहा हो, स्वर में राहु हो (अर्थात पिंगला नाड़ी में वायु तत्त्व सक्रिय हो) और प्रश्नकर्त्ता दाहिनी ओर हो, तो इसका अर्थ हुआ कि वह व्यक्ति जहाँ गया था वहाँ से किसी दूसरे स्थान के लिए प्रस्थान कर गया है। यदि प्रश्न काल में जल तत्त्व (शनि हो) सक्रिय हो, तो समझना चाहिए कि गया हुआ आदमी वापस आ जाएगा। यदि पृथ्वी तत्त्व की प्रधानता के समय प्रश्न पूछा गया हो, तो समझना चाहिए कि गया हुआ व्यक्ति जहाँ भी है कुशल से है। पर प्रश्न के समय यदि स्वर में अग्नि तत्त्व (मंगल हो) का उदय हो, तो समझना चाहिए कि वह आदमी अब मर चुका है।

English Translation – If someone asks about a person who has gone some where, correct answer can be given by observing appearance of Tattvas in the breath. Suppose the questioner is in the right side, the breath is flowing through the right nostril and Rahu is placed therein (appearance of Vayu Tattva), it indicates that the person has left his earlier place and has moved some other place. In case, at the time of query Jala Tattva (Saturn’s place) is active, it indicates arrival of the individual. Appearance of Prithivi Tattva at the time of query indicates that the person is well wherever he is. But any query made during the period of Agni Tattva, it is understood that the person is no more.

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12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक शृंखला है। प्रयोग करने पर यह हमारे दैनंदिन जीवन में लाभकारी साबित हो सकती है। आभार,

    आयुध निर्माणियों की दो सौ से भी अधिक वर्षों की समृद्ध विरासत सभी भारतीयों के लिए गौरव का विषय है। इस अवसर पर ब्लाग से जुड़े समस्त जनों को हार्दिक शुभकामनाएं।

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  2. उपयोगी जानकारी ...और प्रतुतिकरण का अनूठा अंदाज

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  3. आचार्य जी ! ॐ नमोनारायण !
    कृपया जिज्ञासा शांत करने की कृपा करेंगे कि शरीर में कोई तत्व कब और कितनी मात्रा में सक्रिय है इसके क्या लक्षण होंगे ....इसको भी बता दें तो यह ज्ञान और भी व्यावहारिक हो जाएगा.

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  4. अनूठी और उपयोगी जानकारी. व्यवहार में लायें तो जीवन सुखमय हो जाय. कौशालेंद्रजी की जिज्ञासा का भी समन हो. धन्यवाद !! श्री मनोज कुमारजी, श्री परशुराम राय जी एवं श्री हरीश प्रकाश गुप्तजी को आयुध निर्माणी दिवस की शुभ-कामनाएं !! सभी पाठकों को होली मुबारक !!!

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  5. आयुध निर्माणी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं!

    जब स्वर में पृथ्वी तत्त्व सक्रिय हो तो अनेक कदम चलिए। जल तत्त्व और वायु तत्त्व के प्रवाह काल में दो कदम चलें तथा अग्नि तत्त्व के प्रवाहित होने पर चार कदम। किन्तु जब आकाश तत्त्व स्वर में प्रधान हो, अर्थात सक्रिय हो, तो एकदम न चलें।...

    बहुत महत्वपूर्ण शिक्षाप्रद...
    अत्यंत तथ्यपरक एवं सारगर्भित जानकारी के लिये बहुत बहुत आभार !

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  6. आयुध निर्माण दिवस पर शुभकामनाएँ.

    ज्ञानवर्द्धक उपयागी जानकारी के लिये आभार...

    कडवा सच जीवन का....

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  7. आयुध निर्माणी दिवस की शुभकामनायें! ज्ञानवर्धक आलेख.. होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  8. बहुत ही अच्छी व जानकारी परख प्रस्तुति.

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    आयुध निर्माणी दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें. सच यह संगठन देश की सुरक्षा में अहम् योगदान देता है.

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  9. कौशलेन्द्र जी,
    सादर नमस्कार,
    तत्त्वों का सूर्य नाड़ी और चन्द्र नाड़ी में किस क्रम में उदय होता है, इनकी पहिचान करने का तरीका आदि जानने के लिए कृपया पिछले अंकों में श्लोक संख्या-71,72 तथा 156 से 180 तक देखे। मैं आशा करता हूँ कि आपके प्रश्नों का समाधान मिल जाएगा। हार्दिक आभार।

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  10. होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  11. होली की शुभकामनायें स्वीकार करें !!

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