बुधवार, 16 मार्च 2011

देसिल बयना – 72 : माल महाराज के मिर्ज़ा खेले होली

देसिल बयना – 72

माल महाराज के मिर्ज़ा खेले होली

करण समस्तीपुरी

सा...रा...रा....रा....रा......

हाय जोगीजी.... सा......रा.....रा.....रा.....

भैय्या रे सा....रा......रा.....रा... !

“गुड मार्निंग - गुड मार्निंग वेरी गुड सर,

कहना है वाजिब तो है किसका डर ?

लाया हूँ जोगिरा भैय्या, घर से बना कर,

सुन ले सकल पंच जरा कान लगा कर.....

जोगिरा सा...रा...रा....रा....रा..... !!

जोगिरा सा...रा...रा....रा....रा..... रा!! जोगिरा सा...रा...रा....रा....रा..... !!

जालिम ने जोर जुल्म किया जुल्फ़ बढाया !

पब्लिक के पैसा से खेल कराया !!

राजा खाया, रानी खायी, जोकर खाया,

जनता के माथा पर टैक्स ठोकाया.............

जोगिरा सा....रा....रा....रा....रा...... !!”

जोगिरा सा...रा...रा....रा....रा..... !! जोगिरा सा...रा...रा....रा....रा..... !!

होली खूम मची थी उ दफ़े रेवाखण्ड में। वैसे तो फ़गुनहट बहते ही होली के नशा में पूरा गांव-जवार मत्त हो जाता था।

“मालपुआ-भंग... फ़गुआ के रंग....

साजे अंग-अंग..... और बाजे मृदंग....

जोगिरा सा...रा...रा....रा....!”

और साल तो देसी पन्नी में ही टोला टुन्न हो जाता था... मगर उ बार का बाते कुछ और था। मिर्ज़ा इस्पांसर किया था पूरा टोला का होली। पहिचाने नहीं मिर्ज़ा को.... ? अरे वही गुलब्बा....! नाम तो सच्चे में उसका गुलब्बे था मगर कवित्त ऐसा काढ़ता था कि साथी-संगतिया सब मिर्ज़ा गालिब कहे लगा। अपर पराइमरी कर के दरभंगा महराज के दिवानगिरी करने लगा था।

होली दिन भिनसारे गुलब्बे के द्वार पर पूरी मण्डली जम के ठंडई छांकी। फिर ढोल-झाल लटकाय के चल दिये,

“अरे मयखाने से चली झूमती अलमस्तों की टोली है !

हो जाये गर बुरा-भला तो बुरा न मानो होली है!”

फिर उन्मत्त होके लगे रंग-गुलाल उड़ाने। एक पर एक स्वांग... ! नेता रहे कि अभिनेता... रेवाखण्ड की होली में कोई नहीं बच पाता है। घनटोलिया,चौबन्नी लाल, झमेलिया और घपुआ मियाँ स्वांग भरे में भारी उस्ताद है। सबका चरित्र को उघार देता है।

रंग-अबीर, इतर-गुलाल, भंग-मोदक, नचनिया-बजनिया सब फ़्री है। लगता है गुलब्बा दरभंगा महाराज का दरबारे खोल दिया है। उत्तरवारी टोला से चला मण्डली और मध्यकोठी आते-आते मंगरु काका बड़ी आस लगा के बोले थे, “मिर्ज़ा भाई ! ई सब तो हुआ... कनिक सोमरस हो जाता तब न होता... फ़गुआ के बहार !!!!”

मिर्ज़ा आव देखा न ताव झट-पट डांर से मोरलका नमरी (सौ का नोट) निकाल के पकौरी लाल को थामाते हुए बोला, “ले आ रे पकौरिया ललटेनमा के दुकान से।“

फिर गुलटेन चौधरी के गौहाली में बैठ कर पूरा मंडली रंग-विरंगा सोमरसपान किया। मिर्ज़ा के दरियादिली का किस्सा ठाकुर टोल तक दौड़ गया था। उधर से गोधन सिंघ, झपटु ठाकुर, खुरचन चौबे भी आ गये थे। पहिले तो इहां पसरा हुआ माल देख कर उन लोगों की आँखें फट गयी मगर गुलब्बा के आग्रह पर तुरत उ लोग भी गिलास उठा लिये। दु-चार गिलास रंगीन पानी भीतर गया तो पूरा दुनिये रंगीन दिखने लगा। फेर सब मिर्ज़ा के जय-जयकार करते उठे, “सदा आनन्द रहे एहि द्वारे मोहन खेले होली हो....!”

मंगरु कका फ़गुआये तो थे ही कुछ भकुआय भी गये थे। बोले, “अरे का गलत सलत गाता है? अरे ऐसे गाओ, ‘सदा आनन्द रहे एहि द्वारे मिर्ज़ा खेले होली हो.... !”

फिर तो पूरी मण्डली ही कह उठी, “वाह खिलाड़ी वाह-वाह..... वाह भाई वाह-वाह!”

मध्यकोठी से मण्डली बढ़ी पुरवारी टोल दिश। खुरचन चौबे घूरनबबाजी को चिढ़ा रहे थे, “बूढ़ा बा बेइमान... ढेंकवा में खोसेला टिकुलिया.... !”

उधर गुलटेन चौधरी अलगे बेमत्त होके झुम्मर गा रहे थे, “होली खेलन में झोली हेराया... बटुआ ले गये चोर हो....!” ऐसे करते-करते पदुमलाल गुरुजी के चौबटिआ पर पहुंचे कि उधर से दो-दो घोड़पुलिस टकाटक चला आ रहा था। चौबनिया बोला, “हई लीजिये, गुलटेन कका ! बटुआ ले गया चोर तो पुलिस भी आ गयी...!”

मण्डली के पास घोड़ा का लगाम खींच कर एगो पुलिस बोला, “आपलोग गुलाबदास का घर जानते हैं ?”

झमेलिया पूछा, “कौन गुलाबदास...?”

जवाब में मंगरु कका के मुँह का पिचकारी फूट पड़ा, “हई देखो.... अरे और कौन गुलाबदास फेमस है अपने मिर्ज़ा को छोड़ कर... पुलिस-दरोगा से और किसकी दोस्ती हो सकती है...? लाओ रे पकौरिया.... दरोगाजी को भी होली का परसाद दो।”

एक घुड़सवार तमक कर बोला, “खबरदार... ! हमलोग इहां होली खेलने नहीं आये हैं। चलिये बताइये कि गुलाबदास का घर कहाँ है ?”

खखनु राउत बोला, “हाकिम... घर जाकर का कीजियेगा हई... यही तो रहा गुलाबदास। कवित्त ऐसा गढ़ता है कि हमलोग परेम से मिर्ज़ा गालिब कहे लगे।“

घोड़पुलिस उतरकर बोला, “अच्छा.. ! तो ई है गुलाबदास उर्फ़ मिर्ज़ा गालिब। ई का नाम से खोजी वारंट है। हमलोग दरभंगा राज से आये हैं।“ फिर मिर्ज़ा से मुखातिब होकर बोले, “क्यों मिर्ज़ाजी ! अरे आपको तो महराज रैय्यत-रिवायत में बसंती तहसील के लिये भेजे थे और आप इहां होली खेल रहे हैं? उहां महाराज चिंता कर रहे हैं कि पता नहीं का हुआ जो गुलाबदास अभी तक आया नहीं। चलिये फटाफट...।”

मिर्ज़ा बोला, “उ का हुआ कि तहसील करके इधरे से जा रहे थे... गांव-घर की बात तो आप भी बूझते हैं दरोगाजी ! लोग-वाग रोक लिहिस... हम बिहाने-भोरे हाज़िर हो जायेंगे महराज के सेवा में।”

दरोगाजी बोले, “अच्छा ! आप आ जाइयेगा.... लेकिन तहसील के जो लाये हैं उ अभी दे दीजिये।”

एकाएक मिर्ज़ा के मुँह का पानिये उतर गया। दरोगाजी फिर आँख चमकाये तो डरते हुए बोला, “हजूर... ! तहसीली तो फ़गुआ में खर्च हो गया... !”

इतना सुनते ही दरोगाजी गुर्रा्ये, “नमकहराम... ! धोखेबाज... ! अरे... महराज तुम पर भरोसा कर के होली का तहसील करने भेजे... और तुम सारा का सारा खुदहि हजम कर लिये.... उधर राज में सब तुम्हारा इंतिजार कर रहे हैं और तुम इधर रंग लूट रहे हो...!”

दरोगाजी का साथी भी सुर में सुर मिलाया, “हाँ... ! ’माल महराज का मिर्ज़ा खेले होली...!’ देखो का मण्डली साज के निकला है.... मुफ़त का पैसा समझ के गुलाल के तरह उड़ा रहा है। ई के तो घसीट के महाराज के पास ले चलना चाहिये।”

पुलिस-दरोगा कुछ भी नहीं सुना। मिर्ज़ा को रस्ते से घोड़ा पर बैठाया और लेके चल दिया। कुछ आदमी इधर-उधर दौड़ा। चौबनिया और पकौरीलाल गया मिर्ज़ा के घर पर समाद कहे और कुछ वही चौबटिये पर रंग-अबीर उड़ाते रहे। मंगरु कका का नशा भी ढीला होने लगा, “अरे ससुर के नाती.... ई तो भारी धुरुत निकला... बताओ तो महाराज का माल भी गबन कर गया.... ! वही तो कहे कि ई ससुर कंगला के औलाद.... तो ई महराज के पैसा पर छुहुक्का उड़ाये हुए था।“ हमको मिर्ज़ा के लिये कनिक बुरा तो लग रहा था मगर हम का करते...? सोचे यही होता है। जौन दूसरे के साधन से नाजायज मौज-मस्ती करता है, उकी यही गति होती है।

उधर फ़गुआ का महौल ठंडाते देख कर झपटु सिंघ अपना जोगिरा शुरु किये,

“अरे हल्ला-गुल्ला शांत करो, सुनो हमारी वाणी जी !

नहीं सुनेगा तो भरो जाकर सूखी नदी में पानी जी !!

बात है आज का, सच्ची हमरी बोली जी !

माल महाराज का मिर्ज़ा खेले होली जी !!”

मिर्ज़ा धरा गया.... चोरी पकरा जाय रे....

जेल में खिचड़ी खाय -खाय...रे खाय रे....

जोगिरा सा....रा...रा...रा...रा..... !

ई तो रही उ साल के होली का किस्सा। आज-कल तो चारों तरफ ऐसेही मिर्ज़ा भरे पड़े हैं जो महाराज के माल पर रोजे होली खेलते हैं। इसी बात पर बोल जोगिरा सा...रा....रा....रा...रा.....रा....रा....रा....रा....... !! जोगिरा सा...रा...रा....रा....रा..... !! जोगिरा सा...रा...रा....रा....रा..... !!

17 टिप्‍पणियां:

  1. होली पर एक सुन्दर प्रस्तुति!
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  2. होलो पर मज़ेदार प्रस्तुति.

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  3. आगत-अनागत सभी पाठकों को धन्यवाद एवं होली की अनन्त शुभ-कमनायें !

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  4. करन याद दिला दिया आपने जोगीरा गाने वाले मंडली में झाल बजाते हुए ब्रहम बाबा के यहाँ से पूरे गाँव की परिक्रमा करते हुए फिर ब्रहम बाबा के पास आके raat भार होली, चैता गाना ... ये सब उत्सव इतिहास हो जायेंगे... देसिल बयना ने याद दिला दिया गाँव की होली... आपकी प्रस्तुतीकरण अदभुद हो रही है इन दिनों... फगुआ में आपके झक झक सिल्क कुरते पर भौजी का थप्पा पड़े... इन्ही कामना के साथ होली की शुभकामना...

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  5. होली के सुन्दर रंग बरस रहे हैं पोस्ट मे। होली की हार्दिक शुभकामनायें।

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  6. होली के इस रंग में, है माटी का रंग !
    चोखा रंग गुलाल का 'देसिल बयना' संग !
    करन जी,
    आज का देसिल बयना पढ़कर सचमुच होली खेलने का मज़ा आ गया !
    शब्दों में दृश्य को जीवंत करने की अदभुत क्षमता है !
    मेरी बधाई और शुभकामनाएँ स्वीकार करें !

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  7. बहुत मजेदार पोस्ट ...देसिल बयना का अपना ही अलग अंदाज़ है ...

    होली की शुभकामनायें

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  8. वाह..बहुत खूब ...

    निराली होली..निराला प्रस्तुति....

    होली की हार्दिक शुभकामनाएं !

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  9. बहुत अच्छी ओर सुन्दर प्रस्तुति!

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  10. करन बाबू, आज तो आपके लिए मेरे पास एक ही टिप्पणी है- सदा अनन्द रहे एहि द्वारे, मोहन खेले होरी।
    आभार।

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  11. हाय जोगीजी.... सा......रा.....रा.....रा...

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  12. होली पर मनभावन प्रस्तुति के लिए बधाई।

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  13. घर की परिस्थिति होली के अनुकूल बन नहीं रही इसलिए आपके आलेख पर भी देरी से आया, और आकर भी वह अनुभूति नहीं ले पा रहा जो समान्य परिस्थिति में ले पाता।
    जोरदार कहानी, सरस विवरण और सुंदर मनोरम दृश्य उकेरते हुए आपने देसिल बयना के मर्म को हम तक पहुंचाया है।
    शुभ होली।

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  14. बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
    यदि दरभंगा के जगह दरिभंगा होए तो कैसा रहेगा और टकाटक के जगह टकाटक - टकाटक.

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  15. जालिम ने जोर जुल्म किया जुल्फ़ बढाया !

    पब्लिक के पैसा से खेल कराया !!

    राजा खाया, रानी खायी, जोकर खाया,

    जनता के माथा पर टैक्स ठोकाया.............

    जोगीरा.....

    क्या बात कही....

    अब का कहें...

    आनंत शुभकामनाएं रंगोत्सव की...

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  16. सभी पाठकों को कोटि-कोटि धन्यवाद एवं रंगोत्सव की सरस शुभकामनाएं। सदा अनन्द रहे एहि द्वारे मोहन खेले होरी हो..... !

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