गुरुवार, 2 जून 2011

आंच-71 :: कविता का उजाला

आंच-71

[19012010014[4].jpg]पुस्तक समीक्षाclip_image001[4]    

                       डॉ. रमेश मोहन झा 

डॉ० रमेश मोहन झा जे.एन.यू नई दिल्ली से एम.ए, एम.फिल प्राप्त प्रसिद्द आलोचक प्रो० नामवर सिंह के निर्देशन में पीएच.डी कर संप्रति हिंदी शिक्षण योजना, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, कोलकाता से संबद्ध हैं !! वागर्थ, दस्तावेज, प्रतिविम्ब, कथादेश, कथाक्रम, साक्षात्कार प्रभृति हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में आलेख समीक्षा आदि का नियमित प्रकाशन! संपर्क संख्या 09433204657

geet1कविता स्‍वतः स्‍फूर्त अंतःप्रवाह है” कविता की इस परिभाषा की पुष्टि में कवयित्री संगीता स्‍वरूप “गीत” की सद्यः प्रकाशित उजला आसमाँ” काव्‍य-कृति रखी जा सकती है।

उक्‍त संग्रह की कविताओं को पढ़ने और गुनने के बाद मुझे लगा कि इनकी सबसे अंतरंग सखी कविता ही रही है। कविता के साथ इनका अतिशय भावनात्‍मक लगाव और रागत्‍मक संबंध इनको बचाए रखता है। श्रीकांत वर्मा के शब्‍दों को उधार लूँ तो जो रचेगा नहीं, वह बचेगा क्‍या? अर्थात् अपने अस्तित्‍व को बचाए रखने के लिए इन्‍होंने कविता का सहारा लिया है और कविता इनकी शरणस्‍थली बन जाती है। कविता-लेखन इनका ऐसा बंकर है, जो आज के विध्‍वंस (बाहर और भीतर) और आत्‍महीनता से इनको बचाता है। वे लिखती है-

मन के

अशांत सागर में

भावना की लहरें

उद्वेग में आकर

kitaab ujala aasmaan (1)ज्‍वार सा

उठा देती है

............

आशा किरण

चारों और फैलकर ए

क उजला-सा

आसमॉं दें …

संकलन में छोटी-बड़ी 72 कविताएं है। इनमें कोई विभाजन रेखा नहीं खींची गई है। अर्थात्‌ इसे कविता की प्रकृति के अनुसार खंडों में नहीं बांटा गया है। सारी कविताएं एक साथ परोस दी गई हैं। खंडो में बांटकर उसके दायरे को छोटा करने का मन नहीं हुआ होगा शायद। यूँ भी कविता की व्‍याख्‍या या संकेत देना कवि का अभिष्‍ट नहीं होता। अच्‍छी कविता को पाठक अपने-अपने ढंग से हृदयंगम करते हैं।

नारी-मुक्ति के इस दौर में गांधारी के पौराणिक मिथक का सहारा लेकर नारी सशक्तिकरण की चेतना से उर्ज्‍वसित कविता “सच बताना गांधारी” को अनूठे अंदाज में प्रस्‍तुत किया है। इसकी कुछ पंक्तियां द्रष्‍टव्‍य है –

आक्रोशित मन के उद्वेलन को

तुमने चुपचाप सहा था।

आजीवन दृष्टि विहीन रहने में

मुझको तुम्‍हारा आक्रोश दिखा है।

मर्मस्‍पर्शी भावों के साथ-साथ सुचिन्तित विचारों का भी गुंजन कविता में हुआ है। हालांकि वैचारिक पक्ष थोड़ा कमजोर है, क्‍योंकि बदलते परिवेश और घटनाओं को अपने सोच के केंद्र में रखकर जो कविताएं लिखी गई है, वे वकृत्‍य बन कर कर रह गई हैं। काव्‍यत्‍मकता उसमें आ नहीं पाई है। तथापि तन्‍मय होकर कविता लिखने से कविता हमें भावुक जरूर बना देती हैं। वृद्धाश्रम, विडम्‍बना, आदि इसी श्रेणी की कविताएं है। इन कविताओं को चंद पंक्तियाँ देखें

ये मंजर उस जगह का

जहां बहुते से बूढ़े लोग

पथरायी सी नजर से

आस लगाये जीते हैं

जिसे हम जैसे लोग

बड़े सलीके से

वृद्धाश्रम कहते हैं।”

नारी की संघर्ष यात्रा के बदले स्‍वरूप पर तीखी और तल्‍ख कविता- है चेतावनी.....” पुरूष वर्चस्‍व को चुनौती देती हुई प्रतीत होती है। पुरूष की मानसिकता पुरूषत्व के वर्चस्‍व से उत्‍पन्न स्थितियाँ नारी के स्‍वप्‍न-संभावनाओं को किस प्रकार लील जाती है इन पंक्तियों में द्रष्टव्य है ..

पूजनीय कह नारी को

महिमा-मंडित करते हो

…. 

वन्‍दनीय कह कर उसके

सारे अधिकारों को छीन लिया।”

कवयित्री निरंतर आशा और विश्‍वास का दामन थामे रहती है। उसके मन में आस्‍था की लौ स्थिर है। “जीवन-फूल और नारी का” कविता में वे लिखती है-

फूलों की तरह मुकुराती है

लोगों में हर दिन

जीने का उत्‍साह जगाती है।

संगीता स्‍वरूप जी की सभी कविताएँ भावपूर्ण प्रांजल और मर्मस्‍पर्शी हैं। आश्‍वासित और आस्‍था जगाने का प्रयास करती हैं। बावजूद इसके इनमें कुछ कविताएं तो मन के पोले गुबार की तरह प्रकट हुई है। हालाकि कहीं-कहीं भावों की पुनरावृति तथा उपदेशात्‍मकता का समावेश है, और कुछेक कविताएं कच्‍ची हैं, इसे पुष्‍ट और पकने में थोड़ा और समय लगेगा फिर भी आद्यांत कविताएं हमें अपने से जोड़े रखती हैं। सादगी, सहजता, अभिव्‍यक्ति की स्‍पष्‍टता इसकी मुख्‍य विशेषता है। संवेदना से लबरेज इनकी कविताएं पढ़ी जरूर जाएंगी, भले ही याद न रखी जाएं।

पुस्‍तक का नाम – उजला आसमाँ 

रचनाकार – संगीता स्वरूप ‘गीत’  

पहला संस्‍करण : 2011

शिवना प्रकाशन

पी.सी. लैब,

सम्राट कम्प्लैक्स बेसमेंट

बस स्टैंड, सीहोर –466001 (म.प्र.)

द्वारा प्रकाशित

मूल्‍य : 125 रु.

28 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम समीक्षा...इन्तजार है इस पुस्तक को पढ़ने का.

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  2. समीक्षा अच्छी है... आंच ने पुस्तक को और भी स्वादिष्ट बना दिया है...पढने की इच्छा जगी है...

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  3. bahut achchi sameeksha ki hai,baaki to pustak padhne ke baad hi pata chalega.sageeta ji ke to blog se hi is pustak ko padhne ki ichcha jaagrit ho gai thi.vo bahut achchi lekhika hain.

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  4. बेहतरीन समीक्षा..... संगीताजी की लेखनी बहुत प्रभावित करती है .

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  5. एक एक रचनाओं के मध्य से गुजरते हुए ऐसे ही एहसास हुए......बहुत ही अच्छी समीक्षा , बधाई

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  6. उजला आसमान मैंने पढ़ी है , संगीता जी रचनाओ से प्रभावित रहा हूँ . आपकी समीक्षा इतनी सटीक और रोचक है कि दुबारा आपकी नजर से पढना पड़ेगा इस काव्य संकलन को . आभार .

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  7. भावपूर्ण काव्य रचना की ओजपूर्ण समीक्षा. स्फूर्त लेखन के साथ भावपूर्ण समीक्षा. मन बेचैन, भाव भूख जागृत.. चावल का एक दाना तो चखा, पूरी थाली की प्रतीक्षा है.. आभार दोनों का...

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  8. बहुत अच्छी समीक्षा ...धन्यवाद

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  9. संगीता स्वरुप जी को कई बार ब्लॉग पर पढ़ने का अवसर मिला है ! उनकी कवितायें भावनाओं की गहरी संवेदना से उपजी होती हैं !
    डा. रमेश मोहन झा जी द्वारा उनकी काव्य कृति ' उजला आसमाँ ' की बेबाक समीक्षा कवियित्री के काव्य- सृजन क्षमता के विभिन्न आयामों से परिचित कराती है !
    गहन समीक्षा के लिए झा जी बधाई के पात्र हैं !

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  10. संगीता जी मानवीय भावनाओं और व्यवहार के विस्तृर दायरे की अच्छी समझ रखती हैं। उनकी कोशिशों में ईमानदारी की झलक दिखती है।

    आपने सही कहा है कि कविता इनकी सबसे अंतरंग सखी कविता ही रही है और अपने अस्तित्‍व को बचाए रखने के लिए इन्‍होंने कविता का सहारा लिया है और कविता इनकी शरणस्‍थली बन जाती है।

    आपकी समीक्षा में संतुलन है और यह एक उत्कृष्ट कोटि की समीक्षा है।

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  11. संगीता जी किएक एक पोस्ट लाजवाब होती है ऊपर से इस समीक्षा ने उस पर और चंद लगा दिए हैं
    अब बस पुस्तक को पढ़ने की इच्छा है

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  12. संगीता जी की पुस्तक की बहुत ही सटीक और शानदार चर्चा की है………हर कविता सोच को नयी दिशा देती है……………अब तो आँच पर पक कर और खरी हो गयी है।

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  13. मनोज जी ,

    मेरी पुस्तक डा० रमेश मोहन झा जैसे समीक्षक की नज़रों से गुज़री .. यही मेरे लिए एक बड़ी उपलब्धि है ..
    रचनाओं के माध्यम से रचनाकार के अंतस तक पहुंचना ही समीक्षक की पैनी दृष्टि को दर्शाता है ..
    सच तो यह है कि मुझे नहीं मालूम कविता का शिल्प .. बस जो भाव मन में उठते हैं उनको ज्यों का त्यों लिख जाती हूँ ..
    अंतरजाल पर पाठकों का सहयोग मिला ..वर्ना तो सब भाव डायरी के पन्नों में ही सिमटे हुए थे ..झा जी ने सही कहा है कि अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ही शायद कविता मेरे लिए शरणस्थली बनी ...

    "कुछ कविताएं तो मन के पोले गुबार की तरह प्रकट हुई है। "
    यह वो कविताएँ होंगी जब मन कुछ आहत होगा .. क्यों कि जीवन में हमेशा तो वो नहीं मिलता जो चाहा जाये .. खुद से जद्दोजहद करते हुए ऐसी रचनाएँ भी बन जाती हैं .

    "और कुछेक कविताएं कच्‍ची हैं, इसे पुष्‍ट और पकने में थोड़ा और समय लगेगा फिर भी आद्यांत कविताएं हमें अपने से जोड़े रखती हैं। "
    इस पुस्तक में कुछ प्रारंभिक रचनाये भी शामिल हैं ... और कुछ भावों के अतिशय प्रवाह में भी कच्चापन रहा होगा ... आगे प्रयास रहेगा कि कुछ पुष्ट और पकी हुई रचनाएँ दे सकूँ ..बस मन को सुकून है तो ये कि पाठक रचना के माध्यम से जुड़ा हुआ महसूस करता है .

    पुस्तक की सूक्ष्म समीक्षा के लिए मैं डा० रमेश मोहन झा के सामने नत मस्तक हूँ ..

    और आपका आभार .. "आंच" पर इस पुस्तक के विषय में बताने के लिए ..

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  14. इनकी सबसे अंतरंग सखी कविता ही रही है.
    कितना सटीक विश्लेषण..
    संगीता जी कि कवितायेँ अपनी सहजता और गहनता के कारण हमेशा से प्रभावित करती रही हैं.
    इतनी संतुलित और उत्तम समीक्षा ने उन्हें व्यापक बना दिया है.
    एक बेहतरीन समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार.

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  15. 'उजला आसमां' वाकई में सुंदर कविताओं का एक उत्कृष्ठ संग्रह है!...संगीताजी की रचनात्मकता इसमें साफ झलकती है!...डॉ. रमेश मोहन झा ने समीक्षा बहुत ही उत्कॄष्ठ तरीके से प्रस्तुत की है!...संगीताजी एवं रमेशजी को ढेरों बधाइयां!

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  16. बहुत सुन्दर समीक्षा! बढ़िया पोस्ट!

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  17. आदरणीय झा जी ने समीक्षा नहीं वरन समीक्षा की कुंजी प्रस्तुत की है। नीर-क्षीर ग्वेषना से संकलित कविताओं के भाव सहज ही प्रस्फ़ुटित होते हैं। पुस्तक पढ़ने का अवसर मिला तो और बातें होंगी। फिलहाल यह अवश्य कहना चाहूँगा कि इस एक आलेख से इस ब्लोग की साहित्यिक गरिमा इतनी बढ़ गयी है, जिसका सिर्फ़ अंदाज ही लगा सकते हैं। समीक्षक और कवयित्री को हृदय से नमन। झा सर, अबके कलकत्ता आऊंगा तो आपके चरण-स्पर्श जरूर करुंगा। धन्यवाद।

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  18. उत्तम समीक्षा !
    मेरी नयी पोस्ट पर भी आपका स्वागत है : Blind Devotion - अज्ञान

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  19. बहुत सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत की है. हर कविता उल्लेखनीय है. पढ़ कर लगा की लेखनी ने किसी भी विषय को छोड़ा नहीं है. वह अछूते विषय भी जिन्हें किसी ने सोचा भी नहीं था. गांधारी से प्रश्नकरने वाले अभी तक कितने मिले हैं.

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  20. संगीता जी बहुत संवेदनशील कवियत्री हैं ! उनकी रचनाएं सीधे मर्मस्थल पर दस्तक देती हैं ! इस पुस्तक को पढ़ने की अभिलाषा तो पहले से ही थी आपकी उत्तम समीक्षा ने इस अधीरता को और तीव्र किया है ! सुन्दर समीक्षा के लिये आपको साधुवाद देना चाहूँगी !

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  21. काव्य संकलन की रचनाओं की भाव-भूमि एवं गुण-दोषों को रेखांकित करती अच्छी समीक्षा।

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  22. सरल सी समीक्षा संगीता दी की पुस्तक की.. मैं साक्षी रहा हूँ विमोचन का.. एक विस्तृत समीक्षा मैं भी लिखने जा रहा हूँ.. ज़रा फिट हो लूं तब!!

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  23. संगीता जी के काव्य संसार से सुपरिचित कराने का आभार।

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  24. बेहद संतुलित पोस्ट। डॉ झा ने काव्य संग्रह की कम शब्दों में बड़ी निष्पक्षता के साथ वजनदार समीक्षा प्रस्तुत की है। उनके प्रति आभार,

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आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।