नवगीत
समय के देवता!
श्यामनारायण मिश्र
समय के देवता!
थोड़ा रुको,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
तुम्हारे पुण्य-चरणों की
महकती धूल में
आस्था के बीज बोना चाहता हूं।
उम्र भर दौड़ा थका-हारा,
विजन में श्लथ पड़ा हूं।
विचारों के चके उखड़े,
धुरे टूटे,
औंधा रथ पड़ा हूं।
आंसुओं से अंजुरी भर-भर,
तुम्हारे चरण धोना चाहता हूं।
धन-ऋण हुए लघुत्तम
गुणनफल शून्य ही रहा।
धधक कर आग अंतस
हो रहे ठंडे, आंख से
बस धुंआ बहा।
तुम्हारे छोर पर क्षितिज पर,
अस्तित्व खोना चाहता हूं।
नव बिम्बों से सुसज्जित सुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंबधाई |
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावों की अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर नवगीत ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
बहुत प्यारा नवगीत पढ़वाया आपने.
जवाब देंहटाएं"समय के देवता!
जवाब देंहटाएंथोड़ा रुको,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
तुम्हारे पुण्य-चरणों की
महकती धूल में
आस्था के बीज बोना चाहता हूं।"
अगर मैं यह कहूँ कि इन चार पंक्तियों में महाकव्य की गरिमा है तो अतिशयोक्ति नहीं समझनी चाहिये।
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 07 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 53 ..चर्चा मंच 566
सुन्दर बिम्ब प्रयोजन.
जवाब देंहटाएंआस्था के बीज बोना चाहता हूं।
जवाब देंहटाएंकवि हृदय से यही अपेक्षा रहती है|
सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंआज तो एक अलग ही ओज दिख रहा है इस नवगीत में!!
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत
जवाब देंहटाएंsunder abhivyakti.
जवाब देंहटाएंधन-ऋण हुए लघुत्तम
जवाब देंहटाएंगुणनफल शून्य ही रहा।
धधक कर आग अंतस
हो रहे ठंडे, आंख से
बस धुंआ बहा।.....
"समय के देवता!
थोड़ा रुको,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।.....
बहुत अच्छा नवगीत
आस्था के बीज बोना चाहता हूँ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत...
सादर...
bahut badiyaa anootha geet.badhaai sweeekaren.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन नवगीत्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंनए बिम्बों से सजी बेहतरीन रचना ...
जवाब देंहटाएंउम्र भर दौड़ा थका-हारा,
जवाब देंहटाएंविजन में श्लथ पड़ा हूं।
विचारों के चके उखड़े,
धुरे टूटे,
औंधा रथ पड़ा हूं।
आंसुओं से अंजुरी भर-भर,
तुम्हारे चरण धोना चाहता हूं।
bemisaal
समय के देवता!
जवाब देंहटाएंथोड़ा रुको,
मैं तुम्हारे साथ होना चाहता हूं।
तुम्हारे पुण्य-चरणों की
महकती धूल में
आस्था के बीज बोना चाहता हूं।
समय से वार्तालाप बहुत ही सुखद और जिज्ञासा पूर्ण है. एक दार्शनिक का का कथन याद आ रहा है,- 'हां सही है समय को जनता हूँ लेकिन यदि कोई इसके बारे में पूछे तो मै यही कहूँगा कि मैं नहीं जानता'. आप ने तो वार्तालाप भी कर लिया और दो टूक प्रश्न भी पूछ लिया. बधाई .बहुत बहुत बधाई ..सुन्दर, बहुत सुन्दर नवगीत. महाभारत का शीर्षक वाक्य याद आ रहा है -" मै समय ..हूँ..."
बहुत सुन्दर नवगीत ...
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव और
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द संयोजन...
सुंदर नवगीत के लियें आपको बधाई..
सच कहा आपने, समय के साथ की गयी गणितीय तुलनायें निष्प्रभावी हैं।
जवाब देंहटाएंकल 17/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर नवगीत .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना..
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