श्यामनारायण मिश्र के नवगीत-19
जन्मगाथा गीत की
बांस का जंगल जला,
फिर बांसुरी ने गीत गाए।
तुम कहां हो
गीत की यह जन्मगाथा मन सुनाए।
तीर्थ से लौटी नहीं है
श्वांस पश्चाताप की,
दूर तक फैली हुई
पगडंडियां है पाप की,
पोर गिन-गिन उंगलियां
डाकिन चबाए।
अस्थियां इतिहास की
कलश देहरी पर धरा है।
और आंगन में अधूरे
कत्ल का शोणित भरा है।
कौन? आंखों के दिए में
आग भर के
प्रेत को फिर से जगाए।
"अस्थियां इतिहास की
जवाब देंहटाएंकलश देहरी पर धरा है।
और आंगन में अधूरे
कत्ल का शोणित भरा है।
कौन? आंखों के दिए में
आग भर के
प्रेत को फिर से जगाए"
प्रथम से आखिरी पन्क्ति तक बेहतरीन। इस नवगीत में छुपी पीड़ा अन्तरतम तक पहुँची।
नमन !
सुन्दर कृति पढवाने के लिए
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार ||
बहुत ही सुन्दर | बांसुरी के भीतर जो परफेक्ट सर्फेस है - वही परफेक्ट सुरों को जन्म देता है - और यह किसी बिग बैंग का नतीजा नहीं हो सकता | यह एक सोची समझी रचना है - किसी परम सत्ता की - संगीत के सृजन के लिए ... मानव को गीत संगीत देने के लिए |
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत !
जवाब देंहटाएंकौन? आंखों के दिए में
जवाब देंहटाएंआग भर कर
प्रेत को फिर से जगाए।
सार्थक प्रश्न करता नवगीत ... सुन्दर प्रस्तुति
अस्थियां इतिहास की
जवाब देंहटाएंकलश देहरी पर धरा है।
और आंगन में अधूरे
कत्ल का शोणित भरा है।
कौन? आंखों के दिए में
आग भर के
प्रेत को फिर से जगाए।......
इन पंक्तियों में आग है... क्रांति है.. बहुत सुंदर
कुछ भयावहता के साथ ,नये बोध जगा कर गीत मन को बाँधता है और विचलित भी करता है !
जवाब देंहटाएंओह.... !
जवाब देंहटाएंगीत की जन्मगाथा सृष्टी-चक्र को स्पष्ट करती है। सृजन का सवेरा विनाश की रात्री के बाद ही आती है।
मिश्रजी के एक-एक शब्द में लालित्य की भागीरथी बहती है।
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंbehtreen rachna bahut bahut pasand aai.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअद्भुत शब्द और भाव गूथें हैं आपने अपनी इस रचना में बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंनीरज
कौन? आंखों के दिए में
जवाब देंहटाएंआग भर कर
प्रेत को फिर से जगाए।
वाह ..बहुत ही सुन्दर गीत.
अद्भुत सुन्दर कृति
जवाब देंहटाएंमिश्र जी के नवगीत के शब्द चकित करते हैं और भाव चमत्कृत!! अंतिम पंक्तियों तक आते हुए अवाक रह जाता है पाठक!!
जवाब देंहटाएंआभार मनोज जी!!
बहुत ही सुन्दर नवगीत!
जवाब देंहटाएंगुनगुनाने में मजा आ रहा है!
इस गीत में जीवन का आह्वाहन है...
जवाब देंहटाएंबांस का जंगल जला फिर बांसुरी ने गीत गाये -इतनी सुन्दर मोहक मनभावन भी कोई रचना हो सकती है एक शाश्वत नाद सी ,यकीन नहीं आता .स्याम नारायण मिश्र तो फिर मिश्र हैं .
जवाब देंहटाएंअस्थियां इतिहास की
जवाब देंहटाएंकलश देहरी पर धरा है।
और आंगन में अधूरे
कत्ल का शोणित भरा है।
कौन? आंखों के दिए में
आग भर के
प्रेत को फिर से जगाए।
इतिहास का वर्तमान पर प्रभाव इससे अधिक स्पष्ट नहीं व्यक्त हो सकता है।
कोमल भावों का सुन्दर नवगीत...
जवाब देंहटाएंकौन?आंखों के दिए में
जवाब देंहटाएंआग भर के
प्रेत को फिर से जगाए।.....
मिश्र जी एक बहुत ही भावन्वित, सारसज्जित कविता...
दिल से बधाई....