सोमवार, 11 जुलाई 2011

जन्मगाथा गीत की

श्यामनारायण मिश्र के नवगीत-19

जन्मगाथा गीत की

बांस का जंगल जला,

फिर बांसुरी ने गीत गाए।

तुम कहां हो

गीत की यह जन्मगाथा मन सुनाए।

 

तीर्थ से लौटी नहीं है

श्वांस पश्चाताप की,

दूर तक फैली हुई  

पगडंडियां है पाप की,

पोर गिन-गिन उंगलियां   

           डाकिन चबाए।

 

अस्थियां इतिहास की   

कलश देहरी पर धरा है।

और आंगन में अधूरे

कत्ल का शोणित भरा है।

कौन?  आंखों   के   दिए    में  

आग   भर के

           प्रेत को फिर से जगाए।

21 टिप्‍पणियां:

  1. "अस्थियां इतिहास की

    कलश देहरी पर धरा है।

    और आंगन में अधूरे

    कत्ल का शोणित भरा है।

    कौन? आंखों के दिए में

    आग भर के

    प्रेत को फिर से जगाए"

    प्रथम से आखिरी पन्क्ति तक बेहतरीन। इस नवगीत में छुपी पीड़ा अन्तरतम तक पहुँची।

    नमन !

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  2. सुन्दर कृति पढवाने के लिए
    आपका हृदय से आभार ||

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  3. बहुत ही सुन्दर | बांसुरी के भीतर जो परफेक्ट सर्फेस है - वही परफेक्ट सुरों को जन्म देता है - और यह किसी बिग बैंग का नतीजा नहीं हो सकता | यह एक सोची समझी रचना है - किसी परम सत्ता की - संगीत के सृजन के लिए ... मानव को गीत संगीत देने के लिए |

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  4. कौन? आंखों के दिए में

    आग भर कर
    प्रेत को फिर से जगाए।

    सार्थक प्रश्न करता नवगीत ... सुन्दर प्रस्तुति

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  5. अस्थियां इतिहास की

    कलश देहरी पर धरा है।

    और आंगन में अधूरे

    कत्ल का शोणित भरा है।

    कौन? आंखों के दिए में

    आग भर के

    प्रेत को फिर से जगाए।......


    इन पंक्तियों में आग है... क्रांति है.. बहुत सुंदर

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  6. कुछ भयावहता के साथ ,नये बोध जगा कर गीत मन को बाँधता है और विचलित भी करता है !

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  7. ओह.... !
    गीत की जन्मगाथा सृष्टी-चक्र को स्पष्ट करती है। सृजन का सवेरा विनाश की रात्री के बाद ही आती है।

    मिश्रजी के एक-एक शब्द में लालित्य की भागीरथी बहती है।

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  8. अद्भुत शब्द और भाव गूथें हैं आपने अपनी इस रचना में बधाई स्वीकारें


    नीरज

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  9. कौन? आंखों के दिए में

    आग भर कर
    प्रेत को फिर से जगाए।
    वाह ..बहुत ही सुन्दर गीत.

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  10. मिश्र जी के नवगीत के शब्द चकित करते हैं और भाव चमत्कृत!! अंतिम पंक्तियों तक आते हुए अवाक रह जाता है पाठक!!
    आभार मनोज जी!!

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  11. बहुत ही सुन्दर नवगीत!
    गुनगुनाने में मजा आ रहा है!

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  12. इस गीत में जीवन का आह्वाहन है...

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  13. बांस का जंगल जला फिर बांसुरी ने गीत गाये -इतनी सुन्दर मोहक मनभावन भी कोई रचना हो सकती है एक शाश्वत नाद सी ,यकीन नहीं आता .स्याम नारायण मिश्र तो फिर मिश्र हैं .

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  14. अस्थियां इतिहास की

    कलश देहरी पर धरा है।

    और आंगन में अधूरे

    कत्ल का शोणित भरा है।

    कौन? आंखों के दिए में

    आग भर के

    प्रेत को फिर से जगाए।

    इतिहास का वर्तमान पर प्रभाव इससे अधिक स्पष्ट नहीं व्यक्त हो सकता है।

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  15. कोमल भावों का सुन्दर नवगीत...

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  16. कौन?आंखों के दिए में
    आग भर के
    प्रेत को फिर से जगाए।.....
    मिश्र जी एक बहुत ही भावन्वित, सारसज्जित कविता...
    दिल से बधाई....

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