फ़ुरसत में ...
सोच रहा हूँ क्या हर चीज में एक Good होता ही है?
मेरे दफ़्तर में आज फिर झा साहब आए। सामने की सीट पर बैठते ही सप्ताह भर की रपट सुना गए। उनसे बात कर मुझे भी सप्ताह भर की ताजगी मिल ही जाती है। प्रसंगों में कई बार तो साहित्य की भी चर्चा होती है, पर अधिकतर हम अपने बीते दिनों को ही याद करते हैं।
आज आते ही लगे सुनाने, “जानते हैं मनोज जी! हमारे दफ़्तर में क्या हुआ? हमने एक तख्ती बनवाई थी, उस पर लिखवा दिया ‘कृपया शोर न करें!’ आज जब दफ़्तर आया तो अनुभाग में घुसते ही उस पर नज़र पड़ी … किसी ने उसके नीचे लिख दिया था … ‘नहीं तो हम जाग जाएंगे!’ .. ”
बात करते-करते अचानक उनकी नज़र मेरे टेबुल पर लगे नए डेस्क टॉप पड़ी। उसे देखकर बोले-“वाह, तो अंततोगोत्वा आप अपने अभियान में सफल हो ही गए।”
मैंने कहा – “अगर सच्ची लगन से कोशिश की जाए तो सफलता तो मिलती ही है ... लेकिन झा जी संघर्ष थोड़ा लंबा रहा।”
दरअसल बात कंप्यूटर के मिलने की है। सरकारी कार्यालयों में कोई नई चीज लेना बहुत ही टेढ़ी खीर है। एक पेंसिल-पेन भी अपने मन का खरीदना हो तो पचासों नियम-क़ानून की बाधा पार करनी पड़ती है। यहां तो बात कंप्यूटर की थी। मैं बाबा आदम के जमाने का कंप्यूटर लेने को तैयार नहीं था और हमारा परचेज़ विभाग अपनी लाचारियां गिनाए जा रहा था। अनेकों ज़द्दो-ज़हद, आरोप-प्रत्यारोप, आवश्यकता और काम, आदि की दुहाई देने के बाद मामला खिसका और क़रीब डेढ़-दो साल की हील-हुज्जत के बाद पी.सी. महाशय मेरे टेबुल पर विराजमान हुए! यह मेरे लिए तो थी ही, झा जी के लिए भी प्रसन्नता की बात थी।
हमने इस खुशी में मुँह मीठा करने का मन बनाया। उस सरकारी दफ्तर में जहां फाइलें भी रूखी-सूखी हो, मुंह मीठा चाय से ही करनी पड़ती है। चाय की चुस्की लेते झा जी की नज़र मेरे टेबुल पर रखे Writing Stand के नीचे दबे काग़ज़ पर पड़ी। कुछ पंक्तियां, जो मुझे अच्छी लग जाती है, उन्हें मैं पन्नों पर उतार कर इसके नीचे दबा देता हूँ, ताकि इस पर मेरी निगाह पड़ती रहे और यह मुझे याद हो जाए। जो लिखा था, झा जी ने पढ़ा,–
“The happiness of your life depends upon the quality of your thoughts.
पढ़ने के बाद झा जी बोले, “बहुत अच्छी सूक्ति है।”
मैंने झाजी को बताया, “आप जो पढ़ रहे हैं वह आधा ही है। बाक़ी का आधा मैंने मोड़ कर छुपा दिया है। पूरी सूक्ति कुछ और है। ... और यह आधा मैंने क्यों छुपाया है, वह पहले सुन लीजिए। ...
जब से यह कंप्यूटर आया तब से ‘र’- ‘ट’ करके मैंने कुछ टाइप करना सीख लिया। जब भी मुझे समय मिलता इस पर टाइप करने लगता। यह देख मेरे राजभाषा अनुभाग वाले, शर्मा जी, जो अनुवादक हैं, एक दिन मेरे ऑफिस में घुस आए। मुझे तन्मयता से टाइप करते देख कहने लगे, “अरे सर जी ! आप के ऑफिस में कंप्यूटर और आप इस पर हिंदी टाइप भी करने लगे। यह तो बहुत अच्छी बात है। कंप्यूटर के लिए बधाई ! .. और टाइपिंग सीख लेने के लिए मुबारकबाद !!”
मैंने कहा – “अरे शर्माजी, खड़े क्यों हैं, बैठिए ना। चाय पीकर जाइएगा।”
चाय की चुस्कियों के बीच शर्मा जी बोले “सर जी! आप ने बड़ी अच्छी टाइपिंग सीख ली है।”
मैं ‘हें - हें’ कर हंसते हुए अपनी तारीफ को स्वीकार कर लिया।
शर्मा जी आगे बढ़े, बातों में …
“आप तो ना सर जी, अब से जो भी लेटर कहीं भेजना हो, उसे यहीं पर टाइप कर लेना। इससे एक तो आपकी प्रैक्टिस हो जाएगी। दूसरे आपको लिखना नहीं पड़ेगा। पहले जो आप लिखकर ड्राफ्ट देते थे, उसे आपकी खराब हैंडराइटिंग के कारण हम ठीक से पढ़ नहीं पाते थे। और फिर उन अशुद्धियों का, आपको ही संशोधन करना पड़ता था। इसलिए जब आप पूरी तरह से टाइप करके देंगे तो करेक्शन करने की झंझट भी नहीं होगी, यह तीसरा फ़ायदा है।
“.... सो सर जी आप मुकम्मल ड्राफ्ट यही बना लेना, हम पेन ड्राइव में कापी कर ले जाएंगे, प्रिंट आउट लेकर फिर आपसे साइन करा कर, Letter Post कर दिया करेंगे।”
मैं शर्मा जी की चालाकी और ढीठाई पर हतप्रभ था। शर्मा जी ने तो चाय पी और खिसक लिए।
मेरी बात सुन, झाजी बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी पर काबू कर पाए और बोले – “आपके अनुवादक की बात में दम तो था। तीन तीन दम।”
मैंने कहा, “झा जी! इसीलिए इस कागज पर लिखा आधा भाग मैंने उसी दिन मोड़ दिया। पढि़ए पूरा क्या था?”
झा जी ने पढ़ा,
“The happiness of your life depends upon the quality of your thoughts.
But the quality of your thoughts depends upon the people you have in your life.”
झाजी पढ़ने के बाद गंभीर हुए और एक प्रसिद्ध टीवी सीरियल का डायलोग मार दिए – “हर चीज में एक Good होता है, मनोज जी। अब जब आप मुझे यह सूक्ति पढ़ा रहे हैं तो एक मैं भी बोल ही दूँ कि –
“If one negative photo can create unlimited nos. of Positive prints.
Why don’t we look at our negative experience in life and have some thing positive out of it.”
झा जी तो मुझे यह सूक्ति थमा कर चले गए और मैं अपने अनुवादक द्वारा दिए गए सलाह में से आज फ़ुरसत में बैठे-बैठे Good तो ज़रूर ढूंढ़ रहा हूं, लेकिन इस Good के ढ़ूंढ़ने में अपने डिपार्टमेंट को एक निकम्मा और कामचोर अनुवादक दे रहा हूँ।
बहुत-बहुत बधाई ||
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति |
क्या बोले ??
वाह-भाई वाह--
लेकिन सूक्तियां वाकई सूक्तियां ही हैं |
हमारे अगल -बगल भिन्न भिन्न प्रकार के जीव हैं,
उनका असर उनके स्वभाव के
अनुसार हम पर पड़ता ही है ||
बहुत-बहुत बधाई ||
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति |
क्या बोले ??
वाह-भाई वाह--
The happiness of your life depends upon the quality of your thoughts.
जवाब देंहटाएंBahut khoobsoorat post,aabhar
आपका पोस्ट- "सोच रहा हूं क्या हर चीज में Good होता है!'को अच्छी तरह पढा एवं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि आपका यह कथन सही है। जीवन में कभी-कभी हम जिन्हे बेकार समझ लेते हैं वो काम की निकल जाती है। यह तो हम हैं, हमारी सोच है जो हमें कहीं-कही इस सोच को एक पृथक रूप प्रदान कर जाती ह। भगवती चरण वर्मा जी के शब्दों मे- "संसार में अच्छा या बुरा पाप एवं पुण्य कुछ भी नही है,यह मनुष्य की दृष्टिकोण की विषमता का नाम है।"
जवाब देंहटाएंTHERE IS NOTHING GOOD OR BAD IN THIS WORLD BUT THINKING MAKES IT SO.
धन्यवाद।
अंग्रेजी की दोनों सूक्तियों और लेखक के उपसंहार की तिपाई पर सधी विचार-पूरक रचना प्रशंसनीय है।
जवाब देंहटाएं“The happiness of your life depends upon the quality of your thoughts.
जवाब देंहटाएंBut the quality of your thoughts depends upon the people you have in your life.”
उक्त दोनों कोटेशनस बहुत काम के हैं और याद रखने लायक हैं. मैंने नोट कर लिए हैं.आभार.
मैंने देखा की आप अपने लेख/दृष्टान्त/लघुकथा आदि के ज़रिये कोई न कोई ऐसी remarkable बात ज़रूर कह जाते हैं जो समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में सहायक हो.वास्तव में यही साहित्य भी है.पुनः आभार.
ऋणात्मक लोगों से घिरे रहकर धनात्मक सोच रखना एक चुनौती है क्योंकि दिमाग के न्यूक्लिउस में ऋणात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रान का प्रवाह तीव्र हो सकता है. सुक्ति के बहाने बढ़िया चिंतन और आपको नए ज़माने के संगणक के लिए बधाई .
जवाब देंहटाएंवाह! क्या बात है.
जवाब देंहटाएंGood ही Good दिखाई पड़ने लगे सब जगह तो क्या बात है.
मेरी तो आपको 'Good morning'मनोज जी.
Why don’t we look at our negative experience in life and have some thing positive out of it.
जवाब देंहटाएंवाह ..
दोनों सूक्तियां संदेशपरक हैं.मैं तो एक लंबे अरसे से अपने साथ घटित हर निगेटिव में से अपने लिए पोजिटिव छांट कर लाभ उठा लेता हूँ जिससे निगेटिव करने वाले हतप्रभ रह जाते हैं.
जवाब देंहटाएंबढ़िया पोस्ट।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजो होता है अच्छा ही होता है
जवाब देंहटाएंकार्यालयों में कार्य कैसे होता है उसकी बढ़िया तस्वीर दे दी है आपने. कंप्यूटर की बधाई. एक और विडंबना भी है. अधिकारी अंग्रेज़ी में टाइप करे तो अधिकारी. यदि हिंदी में टाइप करने लगे तो 'हिंदी टाइपिस्ट' की छवि अर्जित करता है.
जवाब देंहटाएंवाह-वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जनाब!
good से बेहतर तो Nice होता है!
जिसे सुमन जी ने अभी तक नहीं छोड़ा है!
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मैं भी सोच रहा हूँ कि इसी Good को अपना तकिया कलाम बना लूँ और सभी के यहाँ जाकर अपनी हाजिरी दर्ज करा आऊँ!
vary good bhaijee......
जवाब देंहटाएंpranam.
दिलचस्प...रोचक...विचारपूर्ण लेख...
जवाब देंहटाएंध्यान देकर बातों को पकड़ा जाय तो ,हर दिन और पल कुछ न कुछ गुड जरूर सिखा जाता है...
जवाब देंहटाएंजैसे आपकी आपबीती, हमें प्रेरणा दे गयी...
हर चीज में सचमुच का गुड होता है।
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट है किन्तु भूषणजी की राय से पूर्णत: सहमत हूँ।
जवाब देंहटाएंअधिकारी अंग्रेज़ी में टाइप करे तो अधिकारी. यदि हिंदी में टाइप करने लगे तो 'हिंदी टाइपिस्ट' की छवि अर्जित करता है..........
बेहतरीन प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंGood Good Good... Good Post... aur beech beech me Quotation be kafi prabhaavi.. sundar post
जवाब देंहटाएंबढ़िया और रोचक प्रसंग.
जवाब देंहटाएंझा जी की बात में दम है...
जवाब देंहटाएंगुड है जी। बचा के अंग्रेजी ठेली है किस्तों में। आप पूरे बापू आशाराम हो लिये इस पोस्ट में। क्या समझाया है! :)
जवाब देंहटाएंGOOD GOOD GOOD..
जवाब देंहटाएंaapke fursat ke kshano ka hamne bhi bahut aanand liya aur is bahane aapke office ki visit bhi ho gayi. quotations bahut hi acchhi aur gyan-vardhak seekh deti hui hain iske liye dhanywad jarur kahungi.
जवाब देंहटाएंanuwadak jaise log hamare aas-pas sab jageh mil jayenge...is me good ye hai ki ye log hame samaj ke har tarah ke logo aur acchhayi aur burayi ka samna karna sikhate hain.
is anuvadak ko line par lane ke rasta yahi ho sakta hai ki use apne office me bula kar key board use thama kar us se dhero correspondence karvayi jaye, itni ki 2-4 din me vo pareshan ho jaye aur agli baar se apni seat par hi ye kam niptane ki soch kayam kare. aur aapko is problem se chhutkara mil jaye.
:):):)
be happy/b relax.
बिल्कुल सही लिखा है,आपके लेखन में जो संदेश मिलते है वह जाने अन्जाने बहुत काम के होते है यदि उन्हे ध्यान से परखा जाये तो ।
जवाब देंहटाएंक्या खूब कही है।
जवाब देंहटाएंसच कह रहे हैं मनोज जी आप, हर चीज में एक good होता है। बस दृष्टि होनी चाहिए उसे पढ़ने की। एक घटना जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया और मुझ पर व्यापक प्रभाव डाला -
मेरे एक मित्र हैं। एक बार हम लोग एक प्राईवेट कम्पनी के लिए काम कर रहे थे। कुछ और लोग भी जोड़े गए, आलेख तैयार करने के लिए। अन्तिम रूप देते समय उनमें से एक महाशय का लेखन निहायत रद्दी निकला, तनिक भी प्रयोग लायक नहीं। उसकी लागत कई हजार रुपए आई थी। शायद कोई और होता तो व्यावसायिक शर्तों के चलते भुगतान में कटौती अवश्य करता क्योंकि वह कार्य एक अन्य व्यक्ति से करवाना पड़ा और उसके लिए दुबारा भुगतान भी करना पड़ा था। बहुत सी बातें हुईं। परन्तु मेरे मित्र के शब्द थे "हरीश जी, मैं भी अभी इस क्षेत्र में नया हूँ। मुझसे भी कुछ गलतियाँ हो रही होंगी और इस गलत काम से मैंने बहुत कुछ सीखा है। ये मेरी learning cost है और जिससे मैंने कुछ सीखा है उसका भुगतान कैसे रोक सकता हूँ।" उनके इन शब्दों ने मुझे प्रभावित किया और उनके प्रति मेरा आदर और बढ़ गया।
जानदार पोस्ट,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपको नया कम्प्यूटर मुबारक हो !
जवाब देंहटाएंक्या आप इस पर हमारी यह नई पोस्ट खोलकर देख सकते हैं ?
शुक्रिया !
समलैंगिकता और बलात्कार की घटनाएं क्यों अंजाम देते हैं जवान ? Rape
फुर्सत के क्षणों में विचार पूर्ण पोस्ट .. नकारात्मक विचारों से सकारात्मक विचार रखना एक दुरूह कार्य है ..
जवाब देंहटाएंसचमुच बहुत रोचक सफ़र रहा फुर्सत के पलों का। नए पी. सी. की बधाई। इसी तरह के कुछ सरकारी कर्मियों की मानसिकता वजह से सभी बदनाम होते हैं। कुछ ऐसे लोगों के चलते ही उन पर निर्भर न रहकर लोग अपना काम खुद ही करना प्रेफर करते हैं। कुल मिलाकर फुर्सत का सदोपयोग रहा।
जवाब देंहटाएं- नीलम अंशु
अच्छी संदेशात्मक पोस्ट |बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक आलेख ,.....
जवाब देंहटाएंbahut achchi sandeshatamak post.badh aai aapko.
जवाब देंहटाएंhappy friendship day
/ ब्लोगर्स मीट वीकली (३) में सभी ब्लोगर्स को एक ही मंच पर जोड़ने का प्रयास किया गया है / आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/ हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ कोब्लॉगर्स मीट वीकली (3) Happy Friendship Day में आप आमंत्रित हैं /
शर्मा जी जैसे ढीठ लोग हर जगह मिल जाते है.
जवाब देंहटाएंकई बार good ढूँढने के बजाय ऐसे लोगों को good सुनाना भी पड़ता है. जो ऐसे लोगों कि सेह्त के लिये good होत है.
सूक्तियों को सही जगह और सही समय परिस्थिति मे अगर समझ कर उपयोग न किया जाये तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है.