शिवस्वरोदय – 49
आचार्य परशुराम राय
इन श्लोकों में भी कुछ पिछले अंकों की भाँति ही नीचे के प्रथम दो श्लोकों में प्रश्न का उत्तर जानने की युक्ति बतायी गयी है। शेष तीन श्लोकों में कार्य में सफलता प्राप्त करने के कुछ तरीके बताए गए हैं।
समझने की सुविधा को ध्यान में रखते हुए नीचे के प्रथम दो श्लोकों को एक साथ लिया जा रहा है-
निमित्ततः प्रमादाद्वा यदा न ज्ञायतेSनिलः।
पृच्छाकाले तदा कुर्यादिदं यत्नेन बुद्धिमान्।।265।।
निश्चलं धरणं कृत्वा पुष्पं हस्तान्निपातयेत्।
पूर्णाङ्गे पुष्पपतनं शून्यं वा तत्परं भवेत्।।266।।
अन्वय –
भावार्थ – यदि किन्हीं कारणों से प्रश्न पूछने के समय यदि स्वर-योगी सक्रिय स्वर का निर्णय न कर पाये, तो सही उत्तर देने के लिए वह निश्चल हो बैठ जाय और ऊपर की ओर एक फूल उछाले। यदि फूल प्रश्नकर्त्ता के पास उसके सामने गिरे, तो शुभ होता है। पर यदि फूल प्रश्नकर्त्ता के दूर गिरे या उसके पीछे जाकर गिरे, तो अशुभ समझना चाहिए।
English Translation – In case, due to any reason a Swar Yogi is unable to decide about the active breath at the time of answering a question, he should quietly sit and make his body still and through a flower upward. If the flower falls in front the questioner nearby, the answer is positive. But if it falls away from him or in his back side, the answer is negative.
तिष्ठन्नुपविशंश्चापि प्राणमाकर्षयन्निजम्।
मनोभङ्गमकुर्वाणः सर्वकार्येषु जीवति।।267।।
अन्वय – तिष्ठन् उपविशन् च अपि मनोभङ्गम् अकुर्वाणः निजं प्राणं आकर्षयन् सर्वकार्येषु जीवति।
भावार्थ – खड़े होकर अथवा बैठकर अपने प्राण (श्वास) को एकाग्र चित्त होकर अन्दर खींचते हुए यदि कोई व्यक्ति जो कार्य करता है उसमें उसे अवश्य सफलता मिलती है।
English Translation – If a person with concentration, either by sitting or standing, starts a work while breathing in, he gets success.
न कालो विविधं घोरं न शस्त्रं न च पन्नगः।
न शत्रु व्याधिचौराद्याः शून्यस्थानाशितुं क्षमाः।।268।।
अन्वय – यह श्लोक अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – यदि कोई व्यक्ति सुषुम्ना के प्रवाहकाल में ध्यानमग्न हो, तो न कोई शस्त्र, न कोई समर्थ शत्रु और न ही कोई सर्प उसे मार सकता है।
English Translation – If a person is absorbed in meditation during the flow of breath simultaneously through both the nostrils, his enemy, whoever it may, cannot kill him, no weapon can kill him and none of snakes too.
जीवेनस्थापयेद्वायु जीवेनारम्भयेत्पुनः।
जीवेन क्रीडते नित्यं द्युते जयति सर्वदा।।269।।
अन्वय – यह श्लोक भी अन्वित क्रम में है।
भावार्थ – यदि कोई व्यक्ति सक्रिय स्वर से श्वास अन्दर ले और अन्दर लेते हुए कोई कार्य प्रारम्भ करे तथा जूआ खेलने बैठे और सक्रिय स्वर से लम्बी साँस ले, तो वह सफल होता है।
English Translation – If a person breathes in through the active side and starts work while breathing in, and gambles by deep breathing in, he always gets success.
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sundar
जवाब देंहटाएंदुर्लभ एवं ज्ञानवर्धक जानकारी !
जवाब देंहटाएंआभार !
दुर्लभ एवं ज्ञानवर्धक जानकारी !
जवाब देंहटाएंआभार !
खड़े होकर अथवा बैठकर अपने प्राण (श्वास) को एकाग्र चित्त होकर अन्दर खींचते हुए यदि कोई व्यक्ति जो कार्य करता है उसमें उसे अवश्य सफलता मिलती है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी....
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल ..शनिवार(२-०७-११)को नयी-पुराणी हलचल पर ..!!आयें और ..अपने विचारों से अवगत कराएं ...!!
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट का इंतज़ार रहता है...
जवाब देंहटाएंदुर्लभ जानकारी।
जवाब देंहटाएंअत्युपयोगी
जवाब देंहटाएंdurlabh aur upyogi jaankaari.bahut bahut dhanyawaad aapdo.
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी।
जवाब देंहटाएंआभार,