रविवार, 7 मार्च 2010

काव्यशास्त्र : भाग 5

आचार्य दण्डी

--आ.परशुराम राय

आचार्य दण्डी महाकवि भारवि के प्रपौत्र हैं। इसका उल्लेख उन्होंने अपने ग्रंथ अवन्तिसुन्दरीकथा में किया है। आचार्य दण्डी का काल आठवीं विक्रम शताब्दी में विद्वानों ने तय किया है। आचार्य भामह के बाद काव्यशास्त्र पर जिनका ग्रंथ उपलब्ध है, वे हैं आचार्य दण्डी।

आचार्य दण्डी के तीन ग्रंथ माने जाते हैं, जैसा कि शार्ङ्गधरपद्धति में राजशेखर के एक श्लोक का उल्लेख मिलता है, जिसमें बताया गया है कि तीन अग्नि, तीन वेद, तीन देव और तीन गुणों के समान आचार्य दण्डी के तीन प्रबंध (ग्रंथ) तीन लोकों में प्रसिद्ध हैं:

त्रयोऽग्नयस्त्रयो वेदा त्रयो देवास्त्रयो गुणाः।

त्रयोदण्डिप्रबंधाश्च त्रिषुलोकेषु विश्रुताः ।।

दशकुमारचरित काव्यादर्श और अवन्तिसुन्दरीकथा इन तीन ग्रंथों की रचना आचार्य दण्डी ने की, ऐसा लगभग सभी विद्वान मानते हैं। अवन्तिसुन्दरीकथा के विषय में लोगों को अभी (बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में) जानकारी मिली है, अन्यथा इनके तीसरे ग्रंथ के विषय में केवल अटकलें लगायी जा रही थीं। तीसरे ग्रंथ (अवन्तिसुन्दरीकथा) की पाण्डुलिपि मद्रास (अब चेन्नैई) के राजकीय हस्तलिखित ग्रंथालय में मिली जिसमें स्वयं आचार्य दण्डी ने अपने को महाकवि भारवि का प्रपौत्र बताया है। कुछ विद्वान दशकुमारचरित को इनका ग्रंथ नहीं मानते क्योंकि अपने ग्रंथ काव्यादर्श में वे दोषयुक्त काव्य के प्रति बड़े कठोर हैं:-

तदल्पंमपि नोपेक्ष्यं काव्ये दुष्टं कथञ्चन।

स्याद्वपुः सुन्दरमपि श्वित्रेणैकेन दुर्भगम्।।

अर्थात् थोड़ा सा भी दोष काव्य के सौन्दर्य को उसी तरह नष्ट कर देता है, जैसे चरक के एक दाग से शरीर (मुख) की सुन्दरता नष्ट हो जाती है।

वैसे हर रचनाकार की यही इच्छा होती है कि उसकी रचना निर्दोष हो, लेकिन यह रचना धर्म का आदर्श है। यथार्थ रुप में बिल्कुल निर्दोष रचना करना लगभग असम्भव है, यह कटु सत्य है।

वैद्य रोगी को पथ्य अवश्य बताता है, लेकिन स्वयं वह सदा पथ्य का सेवन नहीं करता। वैसे ही, यदि आचार्य दण्डी काव्य का निरुपण कर रहे हैं, तो कभी भी दोषयुक्त काव्य को उत्तम काव्य नहीं कह सकते और दशकुमारचरितम् उनका आरभिक काव्य है। जैसे ऋतुसंहार महाकवि कालिदास की अन्य रचनाओं की तरह प्रौढ़ नहीं है, क्योंकि वह उनकी आरम्भिक रचना है। अतएव केवल उपर्युक्त तथ्य के आधार पर यह कहना सर्वथा गलत होगा कि दशकुमारचरितम् दण्डी की रचना नहीं है।

दूसरा तर्क दिया जाता है कि दशकुमारचरितम् की शैली बहुत क्लिष्ट और समासबहुल है। वहीं काव्यादर्श की शैली सरल और समाम रहित है। अतएव यह (दशकुमारचरितम्) उनकी रचना नहीं हो सकती। किन्तु ऐसे विचारक यह भूल जाते हैं कि काव्यादर्श पद्यशैली में लिखा काव्यशास्त्र का ग्रंथ है, जबकि दशकुमारचरितम् गद्यशैली में लिखा कथाकाव्य है। आचार्य दण्डी स्वयं काव्यादर्श में समासबहुल ओज को गद्य का जीवन मानते हैं:

ओजः समासभूयस्वमेतद्गद्यस्य जीवितम्।

अतएव दशकुमारचरितम्, काव्यदर्श और अवन्तिसुन्दरीकथा तीनों ग्रंथ निर्वाद रुप से आचार्य दण्डी के ही हैं।

दण्डी केवल काव्यशास्त्र के आचार्य ही नहीं, एक महाकवि भी हैं। किसी कवि ने तो बाल्मीकि और व्यास के बाद तीसरे महाकवि के रूप में इन्हें याद किया हैः

जाते जगति बाल्मीकौ कविरित्यभिधाऽभवत्।

कवी इती ततो व्यासे कवयस्तवयि दण्डिनि।।

इसमें दो राय नहीं कि यह अतिशयोक्ति है, लेकिन इससे इतना सत्य अवश्य निकलता है कि दण्डी महाकवि के रुप में भी प्रसिद्ध हैं। वैसे भी, महाकवि दण्डी अपने पदलालित्य के लिए जाते हैं, महाकवि कालिदास उपमा के लिए, महाकवि भारवि अर्थगौरव के लिए और महाकवि माघ तीनों के लिएः

उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।

दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः।।

उपर्युक्त विवरणों से यह स्पष्ट है कि आचार्य दण्डी का काव्यशास्त्र का ग्रंथ काव्यादर्श कितना महत्वपूर्ण है। काव्यादर्श में तीन परिच्छेद है। लेकिन प्रोफेसर रंगाचार्य द्वारा सम्पादित ग्रंथ में दोषनिरूपण को अलग करके चौथा परिच्छेद बनाया गया है।

काव्यादर्श का दक्षिणी भारत में अधिक प्रभाव होने के कारण (कन्नड़ भाषा में काव्यशास्त्र पर लिखे ग्रंथों में काव्यादर्श का प्रभाव दिखाई पड़ता है) तथा स्वयं इनके द्वारा दक्षिणात्यों की प्रशंसा करने के कारण आचार्य दण्डी को लोग दक्षिणी भारत का मानते हैं।

काव्यादर्श पर कई टीकाएँ लिखी गयी हैं। टीकाकारों में प्रेमचन्द्र तर्कवागीश, तरुणवाचस्पति, महामहोपाध्याय हरिनाथ, कृष्णकिंकर तर्कवागीश, वादिङ्घल और मल्लिनाथ मुख्य हैं। इससे स्पष्ट है कि काव्यादर्श काफी लोकप्रिय ग्रंथ रहा है।

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पिछले अंक

|| 1. भूमिका ||, ||2 नाट्यशास्त्र प्रणेता भरतमुनि||, ||3. काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी||, ||4. आचार्य भामह ||

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है। आपकी चेष्टाएं झिलमिला उठीं हैं। आपकी ईमानदारी व प्रयासों की जितनी भी तारीफ की जाए कम है।

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  2. काव्यशास्त्र पर यह लेख अच्छा लगा . साहित्य का छात्र होने के नाते ऐसे लेख मुझे पसन्द आते है.

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  3. काव्यशास्त्र के समबन्ध में राय जी का यह आलेख ग्यान्वर्धक है.

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  4. काव्यशास्त्र पर ये लेख बहुत ही बढ़िया और ज्ञानवर्धक रहा! धन्यवाद!

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