रविवार, 21 मार्च 2010

काव्यशास्त्र : भाग 7


आचार्य भट्टोद्भट

--आचार्य परशुराम राय

आचार्य भट्टोद्भट एक कश्मीरी ब्राह्मण थे। आचार्य दण्डी के ये परवर्ती आचार्य हैं। ये कश्मीर के राजा जयादित्य की राजसभा के सभापति थे। इनका काल आठवीं शताब्दी का अन्तिम तथा नवीं शताब्दी का प्रारंभिक भाग माना जाता है।

आचार्य उद्भट के तीन ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। तीन ग्रंथों में केवल काव्यशास्त्र विषयक ग्रंथ काव्यालंकार सारसग्रंह ही मिलता है। दूसरा ग्रंथ भामहविवरण है, जो आचार्य भामह के काव्यलंकार पर टीका है। इसके अतिरिक्त आचार्य भरत के नाट्यशास्त्र पर इन्होंने एक टीका भी लिखी थी। क्योंकि शार्ङ्गदेव ने अपने संगीतरत्नाकर नामक ग्रंथ में नाट्यशास्त्र व्याख्याताओं में इनके नाम का भी उल्लेख किया हैः

व्याख्यातारो भारतीये लोल्लटोद्भटशङ्कुकाः।

भट्टाभिनवगुप्तश्च श्रीमत्कीर्तिधरोऽपर।

तीसरा ग्रंथ कुमारसंभव नामक काव्य है। इसी नाम से महाकवि कालिदास द्वारा विरचित ग्रंथ भी है। दोनों की कथावस्तु एक है, लेकिन ग्रंथ अलग-अलग हैं।

काव्यालंकार सार गंग्रह में कुल 79 कारिकाएँ हैं और 41 अलंकारों के लक्षण दिए हैं। पूरा ग्रंथ छः वर्गों विभक्त है। इस ग्रंथ में उदाहरण के रुप में आचार्य उद्भट ने अपने काव्य ग्रंथ कुमारसम्भव से ही लिए हैं।

यहाँ उल्लेखनीय है कि पुनरुक्तवदाभास, काव्यलिंग, छेकानुप्रास, दृष्टांत और संकर ये पाँच अलंकार काव्यालंकार सारसंग्रह में ही मिलते हैं। इनके पूर्ववर्ती आचार्य भामह और दण्डी के ग्रंथों में नहीं मिलते।

उत्प्रेक्षावयव, उपमा-रूपक और यमक अलंकारों को आचार्य भामह और दण्डी उत्प्रेक्षा के अन्तर्गत मानते हैं, किन्तु उद्भट इससे सहमत नहीं हैं। इसी प्रकार आचार्यच दण्डी ने अपने ग्रंथ काव्यादर्श में लेश, सूक्ष्म तथा हेतु अलंकारों की भी चर्चा की है, जबकि आचार्य भामह उनका निषेध करते हैं और आचार्य उद्भट ने तो इनका उल्लेख ही नहीं किया है।

इसके अतिरिक्त रसवत्, प्रेय, ऊर्जस्वि, समाहित और श्लिष्ट अलंकारों के निरूपण भामह और दण्डी के ग्रंथों में मिलते तो हैं, लेकिन उनके लक्षण (परिभाषा) स्पष्ट नहीं हैं। इन अलंकारों के स्पष्ट लक्षण आचार्य उद्भट के काव्यालंकार सार-सग्रंह में ही मिलते हैं और ये तथा पुरुक्तवद्भास आदि पाँच अलंकार काव्यशास्त्र के लिए आचार्य. उद्भट की अनुपम देन हैं।

आचार्य उद्भट के काव्यालंकार सारसग्रंह की दो टीकाएँ मिलती हैं-

प्रतीहारेन्दुराजकृत लघुविवृति और राजनक तिलक की उद्भटविवेक।

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पिछले अंक

|| 1. भूमिका ||, ||2 नाट्यशास्त्र प्रणेता भरतमुनि||, ||3. काव्यशास्त्र के मेधाविरुद्र या मेधावी||, ||4. आचार्य भामह ||, || 5. आचार्य दण्डी ||, || 6. काल–विभाजन ||

19 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय काव्यशास्त्र की परम्परा जितनी महान है, उसे समझने की चेतना भारतीय समाज में पैदा करना बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है। आशा है आपकी यह लेख शृंखला इसे करने में समर्थ होगी।

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  2. भारतीय काव्यशास्त्र को समझाने का चुनौतीपुर्ण कार्य कर आप एक महान कर्य कर रहे हैं। इससे रचनाकार और पाठक को बेहतर समझ में सहायता मिल सकेगी। सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।

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  3. राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  4. भारतीय काव्यशास्त्र की जानकारी राय जी के माध्यम से पढने को मिल रही है. धन्यवाद.

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  5. वाकई काव्यशास्त्र पर अच्छी जानकारी.

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  6. एक बहुत ही ज्ञानवर्धक रचना.
    धन्यवाद

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  7. विश्व कविता दिवस पर एक सार्थक प्रस्तुति।

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  8. धन्यवाद यह बताने के लिये कि कुमारसम्भव के नाम से आचार्य उद्भट का भी ग्रंथ है।

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  9. pahle to rangbirangee post dekh aankhen chaundhiyaan gayeen.. lekin padhkar laga ki kafi gyaanvardhak post hai.. Abhar

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  10. अच्छी जानकारी मिल रही है। इसे निरंतर बनाए रखें।

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  11. बेहतरीन जानकारी..नित ज्ञानवर्धन !!

    ______________
    ''शब्द-सृजन की ओर" पर- गौरैया कहाँ से आयेगी

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  12. राय साहब, कल ही रात हमने फोन पर लंबी बातचीत की जिससे मुझे काव्‍याध्‍ययन और समीक्षातत्‍व संबंधी कई बातों की 'ऑंच' पर चर्चा करते हुए जानकारी प्राप्‍त हुई.
    श्री अनुनाद सिंह और मनोज कुमार जी ने बहुत सही लिखा है. वास्‍तव में आज न केवल काव्‍य बल्‍कि सभी विधाओं का ढंग से पठन-पाठन खत्‍म हो गया है. '20-20' और एस एम एस का ज़माना है.
    हमें पता है कि आपके पास न कंप्‍यूटर की सुविधा है और न नेट की. लेकिन, आपने जिस अनुशासन और प्रतिबद्धता के साथ भारतीय काव्‍यशास्‍त्र से परिचित कराने का कार्य हाथ में लिया है वह साधुवाद् का हकदार तो है ही और हमारे लिए भी पढते समय आत्‍म-गौरव का विषय है.
    कॉलेज, यूनिवर्सिटी में हमने भी पढ़ा लेकिन वह परीक्षा पास करने वाली पढ़ाई थी. इसीलिए आज फिर से यह पढ़कर लगता है कि पात्रता तो शायद अब आ रही है. परीक्षाएं लाइसेंस होती हैं आगे ढंग से पढ़ने के लिए. अत: हमें इनका बोध और महत्‍व समझ में आ रहा है.

    संस्‍कृत की परम्‍परागत पढ़ाई जारी नहीं रखने का नुकसान भी हमेशा महसूस होता रहा है.

    संस्‍कृत साहित्‍य का जो आनंद आपने उठाया है और जो आपकी प्रतिबद्धता व लेखन है उसके लिए जगजीत सिंह जी की गज़ल का एक शेर है उद्धृत करता हूँ ...
    'होश वालों को ख़बर क्‍या, बेखुदी क्‍या चीज़ है,

    इश्‍क़ कीजै और समझिये, ज़िन्‍दगी क्‍या चीज़ है..


    होमनिधि शर्मा

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  13. मैं अब कुछ न कहूँगा............. ! श्री होमनिधि शर्मा जी के पीछे मैं भी आपकी कक्षा में बैठ रहा हूँ !!! बहुत मजा आ रहा है !!!! आहा...... !

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  14. करण जी कुछ कह दीजिए। आप तो कक्षा में आगे बैठने वालों में से हैं।

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  15. एक बहुत ही ज्ञानवर्धक रचना.
    धन्यवाद

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  16. काव्यशास्त्र के विभिन्न पक्षों पर अपका यह विस्तृत आलेख हमारा ज्ञानवर्धन तो करता ही है साथ ही अच्छी जानकारी भी मिल रही है।

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