शनिवार, 3 जुलाई 2010

तेरी अनुकंपा से

तेरी अनुकंपा से

12012010004 ---मनोज कुमार

ज़िन्दगी में हमारी चाहत बहुत कुछ-न-कुछ पाने की होती है। हम कुछ पाते हैं कुछ नहीं भी पाते। जो नहीं मिलता उससे मन में असंतोष उपजता है। हमें अपने है और नहीं है के बीच एक संतुलन बिठाने की जरूरत है। यानि संतोष और असंतोष के बीच संतुलन। इससे हमारी जिंदगी के बीच फर्क पड़ेगा। सबसे पहले हमारे पास जो है, उसके लिए संतोष का भाव होना चाहिए, और जो नहीं उसके लिए कोशिश होनी चाहिए । सिर्फ असंतुष्‍ट रहने का कोई मतलब नहीं है।

हां हमें हमारे प्रयसों के बीच बहुत से कठिन परीक्षा की घड़ियों से भी गुज़रना पड़ता है। जब संसार प्रचण्‍ड तूफान का रूप धारण कर ले, तब सर्वोत्‍तम आश्रय स्‍थल ईश्‍वर की गोद ही है। यदि भरसक प्रयत्‍न करने पर भी सफलता नहीं मिलती तो परमात्‍मा पर छोड़ दें। परमात्‍मा में असीम शक्ति है, अगर आपके मन पर कोई बोझ है तो उसे परमात्‍मा को दे दो। क्योंकि वह एक दरवाजा बन्द करने से पहले दूसरा खोल देता है। यदि आप नित्‍य प्रात: मन के संकल्‍पों को समेटने व ईश्‍वर का स्‍मरण करने में कुछ समय लगायेंगे तो इसका दिन भर जादू जैसा असर रहेगा। आज का मानव देहधारियों के प्रेम में मतवाला हो चुका है लेकिन एक परमात्‍मा के प्रेम में मतवाला होना ही बुद्धिमत्‍ता है। चाहे गुरू पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य ररवनी चाहिए। क्योंकि बिना श्रद्धा के सब बातें व्यर्थ होती हैं। उसने जो भी दिया है, जितना भी दिया है, हमारी योग्यता और आवश्यकता से अधिक दिया है।

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31 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कहा आप ने, अगर सभी ऎसा सोचे तो सभी कितने सुखी हो जाये. धन्यवाद

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  2. बहुत सुन्दर शब्दों के संयोजन से एक सुन्दर प्रस्तुति...कविता के साथ भूमिका भी अत्यंत शांति प्रदान करने वाली....

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  3. बढ़िया शब्दों से पिरोई रचना .....

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  4. कहते हैंना ...संतोषी सदा सुखी ...
    बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

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  5. बहुत सुन्दर पोस्ट. संतोष संतोष ही की सबसे ज्यादा जरुरत है जो नहीं है.हाँ एक लाइन याद आ रही है इसे पढ़ कर..

    बुद्धं शरणं गच्छामी.......

    और उसके बाद आपकी कविता लबो पर आ जाये तो वाह क्या बात हो.

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  6. एक आध्यात्मिक भूमिका के उपरांत, एक सात्विक रचना पढने को मिली... असीम शांति का अनुभव हुआ... आपकी कविता के विषय में कुछ कहना मेरे लिए धृष्टता होगी, और इसे अतिशयोक्ति न मानें तो सूरज को दिया दिखाने वाली बात… मेरे जैसे नास्तिक व्यक्ति के मन में भी एक सर्वशक्तिमान के अस्तित्व का बोध पैदा कर दिया आपने. साधुवाद!

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  7. हमको नहीं लगता है कि इस से बेहतर ईश्वर का कोई आभार प्रकट कर सकता है... मनोज जी ई कविता पढने के बाद महसूस हुआ कि उसका निबास कहाँ कहाँ है, बल्कि ई कहिए कि कहाँ नहीं है!

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  8. बढ़िया शब्दों से पिरोई रचना ...!

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  9. सन्‍तुष्‍टता और खुशी साथ-साथ रहते हैं। इन गुणों से
    दूसरे आपकी ओर स्‍वत: आकर्षित होंगे।
    बहुत सुन्दर रचना!

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  10. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति| संतोष संतोष ही की सबसे ज्यादा जरुरत है! सर्वशक्तिमान के अस्तित्व का बोध पैदा कर दिया आपने!

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  11. सभी परिस्थितियों में सन्‍तुलन बनाये रखना प्रसन्‍नता की चाबी है। हमको नहीं लगता है कि इस से बेहतर ईश्वर का कोई आभार प्रकट कर सकता है!

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  12. कविता अत्यंत शांति प्रदान करने वाली!

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  13. हमको नहीं लगता है कि इस से बेहतर ईश्वर का कोई आभार प्रकट कर सकता है!

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  14. आशा की त्रिवेणी में नहायी आपकी यह कविता ।

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  15. bahut accha sandesh diya aapne.........
    aabhar.
    jab aae santosh dhan

    sub dhan dhoori samaan .

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  16. शब्द नए मिलने लगे
    गीतों को अर्थ मिला
    मनोज जी , कविता प्रभावित कर गयी
    बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ

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  17. सुन्‍दर कविता. धन्‍यवाद.

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  18. गहन भाव लिए हुए सुन्दर प्रस्तुति.

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  19. बहुत अमुपान .. सुंदर लिखा है ... सब की सोच ऐसी हो जाए तो स्वर्ग पृथ्वी पर आ जाए ...

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  20. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ... अनमोल भावनाएं !

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  21. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ... अनमोल भावनाएं !

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  22. अहहाहा...आनंद की फुहारों से मन भिगो गयी आपकी रचना...बधाई..
    नीरज

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  23. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी (कोई पुरानी या नयी ) प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच

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