आज मैं अपने गुरु तुल्य स्व. श्री श्यामनारायण मिश्र जी का एक नव गीत पेश कर रहा हूं। यह उनके काव्य संग्रह ‘प्रणयगंधी याद में’ से लिया गया है। उनके द्वारा रचित ६०० से भी अधिक नवगीतों में से मुझे यह गीत बहुत प्रिय रहा है और उनके मुख से इसे कई बार सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
गिरते मूल्य के इस कठिन दौर में, जब व्यक्ति के जीवन में भाषा, वर्ण-विषमता, संकीर्ण साम्प्रदायिकता और अर्थ संग्रह की पैशाचिक-लिप्सा ने लोगों में आतंक, मृत्युभय और परस्पर अविश्वास की भावना को बद्धमूल किया है, और जब व्यक्ति के जीवन के समस्त रस-निर्झर सूख-से जाते हैं, तब मिश्र जी की लेखनी से ‘प्यास औंधे मुँह पड़ी है घाट पर’ जैसे नवगीत निकलते हैं। इस नवगीत को पढने के बाद संपादक कन्हैया लाल नन्दन ने मिश्र जी को पत्र लिख कर कहा था,
“‘प्यास औंधे मुँह पड़ी है घाट पर’ शीर्षक देखकर डाक में सबसे पहले आपका यह गीत पढा। मैं अपने पूरे मन से इस गीत रचना के लिए बधाई देता हूं। आपके इस प्यारे गीत को लौटाना संपादन कर्म का गुनाह समझूंगा।”
प्यास औंधे मुँह पड़ी है घाट पर
शान्ति केशतदल-कमल तोड़े गये
सभ्यता की इस पुरानी झील से।लोग जो
ख़ुश्बू गये थे खोजने
लौटकर आये नहीं तहसील से।
चलो उल्टे पाँव भागें
यह नगर रंगीन अजगर है।होम होने के लिये
आये जहां हम
यज्ञ की वेदी नहीं बारूद का घर है।रोशनी के जश्न की
ज़िद में हुए वंचित
द्वार पर लटकी हुई कंदील से।
हवा-आंधी बहुत देखी
धूल है बस धूल है, बादल नहीं।प्यास औंधे मुँह पड़ी है घाट पर
इस कुंए में बूंद भर भी जल नहीं।दूध की
अंतिम नदी का पता जिसको था,
मर गया वह हंस लड़कर चील से।
उफ्, समाज का नंगा सत्य। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत। भावों का मर्म हृदय के अंतस तक पहुंचता है।
जवाब देंहटाएंआभार,
मिश्र जी की यह बहुत सशक्त रचना है। यह गीत मन को झकझोरता है।
जवाब देंहटाएंप्रवाह प्रांजलता और अर्थ गरिमा की द़ष्टि से सर्वोत्तम नवगीतों में से एक गीत। सरल सुबोध शब्दों का प्रयोग कर सुन्दर और भावपूर्ण गीत की रचना करना मिश्र जी की सामर्त्य है।
जवाब देंहटाएंआभार।
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंमिश्र जी बिम्बों का अभिनव प्रयोग कर गीत को बहुत ही आकर्षक रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनकी सामर्थ्य स्तुत्य है।
जवाब देंहटाएंआभार,
`होम होने के लिये आये जहां हम
जवाब देंहटाएंयज्ञ की वेदी नहीं बारूद का घर है।`
प्रस्तुत नव गीत मानव मन की अकुलाहट का स्पंदन है !
बहुत अच्छी प्रस्तुति !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत सुन्दर गीत ...
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय मिश्रजी के नवगीत हृदय में हूक उठाते हैं. बार-बार मेरा मन कचोटता है कि अवसर के बावजूद उनका सानीध्य नहीं मिल सका.... उस कचोट में मैं उनकी ही पंक्ति इंगित करता हूँ,
जवाब देंहटाएं"दूध की
अंतिम नदी का पता जिसको था,
मर गया वह हंस लड़कर चील से।"
काश ! उनसे काव्य की क्षीर-सरिता का पता जान पाता.... !!!!
bahut achchi lagi.
जवाब देंहटाएंगीत में हकीकत की बात बहुत कम देखने को मिली है.. सुन्दर नवगीत.. काश यह परंपरा आगे बढ़ पाती..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, सार्थक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत .
जवाब देंहटाएंमर गया वह हंस लड़कर चील से
जवाब देंहटाएंमान्यवर श्याम नारायण जी सादर नमस्कार| आला दर्जे की इस रचना को शत शत नमन|
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जवाब देंहटाएंचलो उल्टे पाँव भागें
जवाब देंहटाएंयह नगर रंगीन अजगर है।
होम होने के लिये
आये जहां हम
यज्ञ की वेदी नहीं बारूद का घर है।
बहुत कड़वा सच
बारूद के इक ढेर पर बैठी हैं दुनिया