लघुकथा
बड़ा अपराधी
सत्येन्द्र झा
दो व्यक्ति कारागार के एक ही कोठरी में बंद थे। साथ रहते-रहते परिचय बढ़ा। फिर शुरू हुई आपस की राम कहानी। एक ने कहा, "भाई! क्या कहूं ? लोभ जो न करा दे। पता नहीं.... वो कैसा अशुभ मुहूर्त था जब लोभ के वशीभूत हमने अपनी ही पुत्रवधू की हत्या कर दी। जहर दे कर मार डाला हम ने उस अबला को..... । शायद यही मेरा प्रायश्चित हो।" फिर डबडबा आयी आँखों को पोछ कर बोला, "लेकिन आप यहाँ कैसे.... ?
"मैं बाप होने का प्रायश्चित कर रहा हूँ।" दूसरे ने कहा, "मेरी बड़ी इच्छा थी कि बुढापे में एकलौते बेटे के साथ रहूँ। शहर आ गया। मगर बहू को अपने सजे घर में गंवार बूढा गंवारा नहीं था। बेटे-बहू में ठन गयी। मेरे रहने से झगड़ा बढ़ता ही गया। एक रात बहू ने जहर खा कर अपने प्राण दे दिये। बहू के पिता ने दहेज़ हत्या के आरोप में मुझे अपने बेटे के घर के बदले आजीवन इस काल-कोठरी में पहुंचा दिया।" दूसरे व्यक्ति की आँखें शून्य में गडी़ थी।
पहले व्यक्ति ने कहा, "भाई ! बुरा मत मानना... ! मगर आप तो मुझ से भी बड़े अपराधी निकले.... !"
बहुत सुंदर लघुकथा, शायद पहले व्यक्ति का आकलन ठीक ही है. सुंदर पृस्तुति. मनोज जी सतेन्द्र जी दोनों को आभार.
जवाब देंहटाएंपता नहीं कौन है बड़ा अपराधी, मुझे तो लगता है अपराधी तो मानसिकता ही है।
जवाब देंहटाएंगागर में सागर-
जवाब देंहटाएंसामाजिक कुरीतियों और कु-परम्पराओं पर प्रकाश डालती लघुकथा !
जवाब देंहटाएं... sandeshprad laghukathaa ... behatreen !!
जवाब देंहटाएंदूसरा भाग समझ नहीं आया साहब; टिप्पणियाँ देख कर लगता है की शायाद सिर्फ हमें ही समझ नहीं आया ! क्या इसका मतलब ये है की बूढ़े को परिपक्व्यता का परिचय देते हुए अलग हो जाना चाहिए था ? या फिर उसने अपने अनुभव से समस्या को सुलझाने की कोशिश नहीं की ? दोनों स्तिथि में 'बड़ा अपराधी' वाली बात तो हमें अतिश्योक्ति ही लगी.. कोई और पहलू हो तो आप समझा दें, तो बेहतर ....
जवाब देंहटाएंशायद दूसरे का अपराध यही था कि वो निर्दोश था। और ये अपराध तो सब से बडा अपराध माना जाता है तभी निर्दोश सजा पाते हैं और दोशी छूट जाते हैं। अच्छी लगी लघुकथा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi lagi yah chhoti si kahani ...
जवाब देंहटाएंकभी कभी अपराधी न होना भी सबसे बड़ा अपराध होता है ! समाज की यही तो विडम्बना है !
जवाब देंहटाएंसुन्दर लघु कथा !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
पहले व्यक्ति ने कहा, "भाई ! बुरा मत मानना... ! मगर आप तो मुझ से भी बड़े अपराधी निकले....
जवाब देंहटाएंयह बत क्यों कही गयी ? दहेज माँगने का आरोप था ..माँगा तो नहीं था ? यदि माँगा था तब तो बड़े अपराधी होने कि बात सही है ....
यह लघु कथा कुछ उलझा सी गयी ..
दूसरे का अपराध यह था कि वह बहू की इच्छा के विपरीत अपने बेटे के साथ रहना चाहता था.
जवाब देंहटाएंअच्छी लघु कथा. धन्यवाद !
निर्मला जी से सहमत !
जवाब देंहटाएंअच्छी लघुकथा.
जवाब देंहटाएंपूरे समाज का खाका कींच दिया है इस लघुकथा ने... सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंबड़ा अपराध यही कि समय के अनुरूप अपने को परिवर्तित नहीं कर सका। लेकिन कथा समापन से पूर्व कुछ अंतराल छोड़ती है। शायद इसीलिए पाठकों को कुछ अस्पष्ट सी लगी है।
जवाब देंहटाएंआभार,
मनोज जी, बहुत ही विचारणीय लघुकथा. मेरे ख्याल से दोसरे का अपराध इसलिए बड़ा हो जाता है की वह समय के बदले रूप को जान बूझकर भी समझाना नहीं चाहा और उसके हिसाब से खुद को बदल ना सका. .......मगर इसके पीछे उसकी भी मजबूरी रही होगी बुढ़ापे मे पुत्र को बेचारा छोड़कर कहाँ जाता. सबसे बड़ा अपराधी तो वक्त है....
जवाब देंहटाएंBahut hi sundar laghukatha,akhri mein kiya gaya vyagya badi der se samajh aaya.... :D...good one.
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लघुकथा...
जवाब देंहटाएंविकट स्थिति है...यह हाल सब और फैला पड़ा है...इसका हल क्या होगा, पता नहीं...
लघुकथा के माध्यम से समाज का खाका खींच दिया ……………कहीं कोई सच मे दोषी होता है तो कोई निर्दोष होते हुये भी दोषी करार दे दिया जाता है सिर्फ़ अपनी ईमानदारी और सच्चरित्रता के कारण्………शायद ये भी एक बहुत बडा दोष ही है ना।
जवाब देंहटाएंदूसरा बड़ा अपराधी क्यों? प्रवीण जी से सहमत असली अपराधी तो मानसिकता है .
जवाब देंहटाएंकुछ उलझाव है..करण जी के स्पष्ट करने पर भी उलझा हूँ!
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी यह लघुकथा !!
जवाब देंहटाएंहालात कैसे भी हों,मरती स्त्री ही है!
जवाब देंहटाएंअब क्या कहे, यह दुनिया हे यहां कोन क्या हे कोई नही जानता. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवृद्धावस्था भारत में उत्तरोत्तर कुटुम्ब में नहीं वृद्धाश्रम में कटने लगेगी। सामाजिक परिवर्तन इस तरह के हो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंछोटे शहरों में भी वृद्धों की प्रोफेशनल केयरिंग जरूरी होती जा रही है।
सोचने को बाध्य करती कथा।
इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
जवाब देंहटाएंआकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
गागर में सागर । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
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