-- सत्येन्द्र झा
उसकी हत्या की सनसनी खबर पूरे शहर में फैल गयी थी। पुलिस हत्यारे की तलाश में जुटी हुई थी लेकिन चार महीने तक सघन खोज-बीन के बावजूद अपराधी पकड़ में नहीं आ सका।
आक्रोशित लोगों ने शहर में चक्का जाम कर दिया। मिडिया को भी एक सनसनीखेज खबर मिल गयी। पुलिस कप्तान का रातो-रात तबादला हो गया। नए पुलिस कप्तान से लोगों की उम्मीदें कुछ बड़ी थी।
नए कप्तान साहब ने कार्य भार संभाला। अधीनस्थ अधिकारी ने मृतक के सभी दुश्मनों की सूची साहब के सामने हाज़िर कर दिया। एसपी साहब गुस्सा गए, "आप लोग निहायत ही समयखोर हैं। अगर इसे दुश्मनों ने मारा होता तो आज तक पकड़ा नहीं जाता क्या.... ? फटाफट इसके सभी दोस्तों की सूची बना कर तफ्तीश शुरू कीजिये।"
सच में, उस के सबसे करीबी दोस्तों में से एक आज उसकी हत्या के अभियोग में जेल में बंद है। सुनने में तो यहाँ तक आया है कि पिछले साल उसने अपनी एक किडनी देकर अपने दोस्त की जान बचाई थी।
(मूल कथा मैथिली में 'अहीं कें कहै छी' में संकलित 'जाति-अजाति' से हिंदी में केशव कर्ण द्वारा अनुदित।)
aisa bhee hota hai.........
जवाब देंहटाएंkaliyug hai sabhee kuch sambnav hai.......
आज पराए लोगों से डर नही लगता है जितना अपनों से। शोचनीय पोस्ट।
जवाब देंहटाएंविचित्र जगत है, करे कोई, भरे कोई।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी से सहमत ... बढ़िया लघुकथा !
जवाब देंहटाएंयह लघुकथा इस दौर की सबसे बड़ी सच्चाई है !
जवाब देंहटाएंलेखक, अनुवादक और प्रकाशक सभी बधाई के पात्र हैं !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आदरणीय मनोज जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
प्रवीण जी ने सही कहा है ....शुक्रिया
वाह साहब, ऐसी खबर तो अखबार में भी नहीं पढ़ी ... कमाल की अतिश्योक्ति ;)
जवाब देंहटाएंसत्येन्द्र झा जी की लघुकथाओं का अनुवाद काफी दिनों से पढ़ रहा हूँ.. अच्छा होता उनके बारे में भी थोड़ी जानकारी दी जाती.. भीतर तक झकझोर देने वाली लघुकथा है यह.... पुलिस के चरित्र का निर्धारण करती लघुकथा...
जवाब देंहटाएंइस युग में कुछ भी संभव है।
जवाब देंहटाएंमन को झकझोरती हुई लघुकथा। यहाँ अगर दोस्ती संदेह के घेरे मेँ है तो तो पुलिस की कार्यप्रणाली और भी।
जवाब देंहटाएंहमारे समाज के विकृत यथार्थ को चित्रित करती शानदार रचना।
जवाब देंहटाएं---------
आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
दर्दनाक सच्चाई को बयाँ करती लघुकथा। कडवा सच्।
जवाब देंहटाएंmanoj ji ek gana hai
जवाब देंहटाएंjo bil kul sarthak hai
dost dost na raha ,
pyar pyar na raha.
एक शब्द........
जवाब देंहटाएंदर्दनाक............
हमें तो दोस्तों ने लूटा..... दुश्मनों में कहाँ दम था.
पुलिस वाले अपनी नाकामी छिपाने के लिए कुछ भी कर डालते हैं;वैसी ही न्याय -व्यवस्था भी तो है.
जवाब देंहटाएं... gambheer va bhaavpoorn lekhan !!!
जवाब देंहटाएंअत्यंत दुखद...
जवाब देंहटाएंऐसा भी होता है?...!!!
यह पुलिस की नहीं,न्याय व्यवस्था की विफलता मालूम पड़ती है।
जवाब देंहटाएंक्या कहें इस देश की न्याय व्यवस्था को ....
जवाब देंहटाएंकिसी का कोई भरोसा नहीं ...
जवाब देंहटाएंप्रशासनिक ढाँचे पर अच्छा व्यंग्य है।
जवाब देंहटाएंदुश्मन अपने ही बनते हैं ...अच्छी लघुकथा
जवाब देंहटाएंपुलिस ने किसी को तो अंदर करना ही था, वरना इन पुलिसऒ की नाक ना कट जाती. हे राम..... धन्यवाद
जवाब देंहटाएंलघुकथाओं की इस श्रृंखला में एक बेहतरीन कथा... मुझे खुद का कहा हुआ एक शेर याद आ गया:
जवाब देंहटाएंजिन गवाहों ने दिलाई है सज़ा,
दोस्त! उनमें तेरा बयान भी था!
बहुत सुन्दर रही आपकी पोस्ट!
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच पर इस पोस्ट को चर्चा मं सम्मिलित किया गया है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/376.html