ग़ज़ल
बातें उनकी रही अनकही
मन की बात कही न उनसे बस मन में ही छिपाए रहे.
द्वार कभी न आए वो मेरे, हम पलकें ही बिछाए रहे.
उनकी आँखें रहीं उनींदी, देखता कैसे ख़्वाब कोई
सामने जब आए हम उनके, हमसे नज़रें बचाए रहे.
बंद हैं सारे दर औ दरीचे, बंद है यह मन का आँगन,
झाँकें कैसे दिल में वो पलकों की चिलमन गिराए रहे.
उनके नैनों के सागर में डूबने की इक हसरत थी
दगा दे गई किस्मत वे नज़रों के द्वार लगाए रहे.
बातें उनकी रही अनकही, कैसे समझे भला ‘मनोज’,
कभी न की इज़हारे मोहब्बत हसरते दिल की दबाए रहे.
झांके कैसे दिल में वो पलकों की चिलमन गिराए रहे ...
जवाब देंहटाएंशिकवे शिकायतों से सजी खूबसूरत ग़ज़ल !
मनोज जी,
जवाब देंहटाएंआपके गजल के आधार पर मैंने भी एक गीत लिखा है। इसे देखकर मन यही कहता है कि आपके गजल से मनोज को निकाल कर प्रेम लिख दे तो मेरा काम हो जाएगा। वाकई शीतकाल में ऐसे भाव आपके मन में कैसे आ गए।
खैर,एक बात कहना चाहता हूं-इस क्षेत्र में हम कमजोर होते हैं और अंत में-
मोहब्बत सब की महफिल में शमां बनकर नही जलती।
लिखने के लिए मेरे पास कोई विशेषण नही है। बहुत सुंदर।
अपने एहसासों को खूबसूरत शब्द दिये हैं आपने,बधाई ।
जवाब देंहटाएंबातें उनकी रही अनकही, कैसे समझे भला ‘मनोज’,
जवाब देंहटाएंकभी न की इज़हारे मोहब्बत हसरते दिल की दबाए रहे.
वाह क्या भाव हैं ... प्यारी शिकायतों से सजी ग़ज़ल ...
Bhav poorn abhivykti.
जवाब देंहटाएंउनके नैनों के सागर में डूबने की इक हसरत थी
जवाब देंहटाएंदगा दे गई किस्मत वे नज़रों के द्वार लगाए रहे.
.... bahut khoob ... behatreen gajal !!!
मनोज जी ,
जवाब देंहटाएंबंद हैं सारे दर औ दरीचे, बंद है यह मन का आँगन,
झाँकें कैसे दिल में वो पलकों की चिलमन गिराए रहे.
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ग़ज़ल के रूप में अच्छी भावाव्यक्ति है
जवाब देंहटाएंवाह...वाह.... इरशाद !
जवाब देंहटाएंबातें उनकी रही अनकही, कैसे समझे भला ‘मनोज’,
जवाब देंहटाएंकभी न की इज़हारे मोहब्बत हसरते दिल की दबाए रहे.
waah
बहुत ही सुन्दर गज़ल.
जवाब देंहटाएंआभार
उनकी आँखें रहीं उनींदी, देखता कैसे ख़्वाब कोई
जवाब देंहटाएंसामने जब आए हम उनके, हमसे नज़रें बचाए रहे.
वाह वाह वाह ...क्या बात कह दी.
बंद हैं सारे दर औ दरीचे, बंद है यह मन का आँगन,
झाँकें कैसे दिल में वो पलकों की चिलमन गिराए रहे
उफ़ ये तो नाइंसाफी है उनकी ...
बहुत ही उम्दा गज़ल हुई है ...बहुत बढ़िया.
bahut hi khoobsurat...
जवाब देंहटाएंintzaar ka bhi apna hi maza hota hai...
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
अनकही बातों को अच्छी तरह कहती है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंअनकही बातों को गज़ल अच्छी तरह कहती है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंआपके शब्दों ने आज तो हृदय पिघला दिया।
जवाब देंहटाएंवाह साहब, ग़ज़ल तो जोरदार बना दी, लम्बे बहर की इतनी सधी हुई हिंदी ग़ज़ल तो किसी के ब्लॉग में पहली बार ही पढ़ी है, रूमानियत में भी क्या सादगी भरे ख़याल बाँधे है .... ;)
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये ...
मनोज बाबू, ये तो पहले प्यार की अनुभूति की प्रकटन है. अब तो ऐसे ख्याल, ख्याल में भी नहीं आते!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल!!
सुन्दर व भाव पूर्ण गज़ल....बधाई
जवाब देंहटाएंमनोज जी सुंदर रचना के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमनोज जी,
जवाब देंहटाएंगज़ल का कौन सा शेर पकडूँ और कौन सा छोडूँ……………हर शेर पर आह निकलती है……………कितनी खूबसूरती से शिकायत की है कि वो शिकायत भी नही लगती बस मोहब्बत की ताबीर लगती है।
आपकी इस सुन्दर और सशक्त रचना की चर्चा
जवाब देंहटाएंआज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
http://charchamanch.uchcharan.com/2010/12/375.html
जाड़े में गर्मी का अहसास कराती प्यारी-सी रूमानी ग़ज़ल सुन्दर है मनोज जी.इस शेर का अलग मज़ा है:-
जवाब देंहटाएंउनके नैनों के सागर में डूबने की इक हसरत थी
दगा दे गई किस्मत वे नज़रों के द्वार लगाए रहे.
सुन्दरता से कोमल एहसास पिरोये है गज़ल...
जवाब देंहटाएंसादर!
उनकी आँखें रहीं उनींदी, देखता कैसे ख़्वाब कोई
जवाब देंहटाएंसामने जब आए हम उनके, हमसे नज़रें बचाए रहे.
मनोज जी ... ये तो हसीनों की मासूम अदा है ...
जो इनकी अदा न हो तो इत्नेर लाजवाब शेर कहाँ से निकलें ...
महिला ब्लॉगर तो खूब भड़ास निकालती हैं। पुरुष बेचारा मन की मन ही में रखता है।
जवाब देंहटाएंबंद हैं सारे दर औ दरीचे, बंद है यह मन का आँगन,
जवाब देंहटाएंझाँकें कैसे दिल में वो पलकों की चिलमन गिराए रहे । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"
रूमानी भावनाओं से सजी संवरी बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएं...शुभकामनाएं।
वाह ..क्या बात है ....किस ज़माने के भाव ला कर गज़ल कही है ?
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..