फ़ुरसत में …. भगवान का ब्याह!
-- करण समस्तीपुरी
नमस्कार !
हेंह.... ! अब जा के फुर्सत मिली। अब क्या बताऊँ... घर-समाज में लगन हो तो फुर्सत कहाँ....? और उ में भी विदेहराज के घर जानकी का विवाह। अवध के राजकुमार श्री राम से। शायद विश्व की सबसे पहली अंतर-राष्ट्रीय बारात। तैय्यारी का स्तर आप समझ सकते हैं।
महीनों से पसीना पोछने की भी फुर्सत नहीं थी। खैर सब कुशल-मंगल संपन्न हो गया। सब कुछ अनुपम। अद्वितीय। अभूतपूर्व। जो नहीं आ सके वो तो बस इसे 'मिस' ही करेंगे। मैं तो काम-काज में व्यस्त था। सब कुछ देख नहीं पाया। किन्तु वो जो एक आये थे 'तुलसी बाबा' उन्होंने बड़ा ही जीवंत वर्णन किया है.... वो क्या कहते हैं लाइव कमेंटरी।
हाँ मित्रों !
कल राम-जानकी विवाह पंचमी थी। गोस्वामी जी ने इस प्रसंग का बड़ा ही सरस आंचलिक चित्रण किया है। मैं तो जब-जब पढता हूँ नोस्टालजिक हो जाता हूँ। लगता है कि अपने ही घर आँगन में लौकिक विधि-विधानपूर्वक परिणयोत्सव हो रहा है। आईये आज आपके साथ सीता-राम विवाह की झांकी का आनंद लेते हैं।
विदेह राज के दरबार में धनुष यज्ञ हो रहा है। सभी भूप-महीप, महाभट धनुष भंग कर सीता के वरण की आकांक्षा लिए, धनुष तक जाते हैं और मुँह लटकाए चले आते हैं। टूटना तो दूर "भूप सहस दस एकही बारा" मिल कर भी धनुष को हिला तक नहीं सके। 'वीर-विहीन मही मैं जानी'- जनक का पश्चाताप। लक्ष्मण का प्रतिवाद। फिर गुरु की आज्ञा से राम धनुष की ओर बढ़ते हैं। नर-नारी वृन्द की उत्कट अभिलाषा – राम धनुष को तोड़ें और सीता से विवाह करें। सीता तो फुलवारी से ही सुध-बुध खो चुकी है। माँ गिरिजा से 'मन जाहि राच्यों मिलहिं सो वर' का आशीष भी ले चुकी है। किन्तु परिणय मार्ग में बाधक, 'शिव-धनु'। कितनी सुघर आंचलिकता है.... अपनी मनोकामना पुराने के लिए आज भी युवती-महिलायें देवी-देवताओं की चिरौरी करती हैं। जानकी जी भी कर रही हैं। अराध रही हैं सबको कि राम धनुष को तोड़ने में सफल हों। सबसे पहले प्रथमपूज्य को।
'गणनायक बरदायक देवा। आजू लगे किन्हीऊँ तुअ सेवा।'
बालकाण्ड | दोहा-246| चौपाई-4
वैदेही तो निष्प्राण शिव-धनु को भी गोहरा रही हैं।
'सकल सभा के मति भै भोरी। अब मोहि शम्भू चाप गति तोरी॥
निज जड़ता लोगन पर डारी। होहि हरुअ रघुपतिहि निहारी॥'
बालकाण्ड | दोहा-257| चौपाई-3-4
धनुष-भंग हुआ। सीता राम विवाह की तैय्यारी है। दशरथ को न्योत गया। बारात प्रस्थान। बछड़े को दूध पिलाती गाय, जल भर कलश लाती महिलायें, लोबा और दही-मछली देख कर यात्रा का यात्रा का सगुन किया जा रहा है। आज भी उत्तरी भारत (ख़ास कर मिथिलांचल) में दही-मछली के दर्शन से ही यात्रा का उत्तम योग बनता है।
'चारा चाषु बाम दिसि लेई। मनहुँ सकल मंगल कहि देई॥
दाहिन काग सुखेत सुहाबा। नकुल दरस सब काहूँ पावा॥
सानुकूल बह त्रिबिध बयारी। सघट सबाल आव बार नारी॥
लोवा फिर-फिर दरस देखावा। सुरभि सन्मुख सिसुहि पिआवा॥
सनमुख आएऊ दाढ़ी और मीना। कर पुस्तक दुई विप्र प्रवीण॥'
बालकाण्ड | दोहा-302| चौपाई-4
सरातियों द्वारा बारातियों के अगवानी की प्रथा नयी नहीं है। यह तो विदेहराज ने भी किया था। देखिये, अवधी बराती की कैसे अगवानी करते हैं मैथिल सराती।
'भरे सुधा सम सब पकवाने। नाना भांति न जाहीं बखाने॥
दधि-चिउरा उपहार अपारा। भरि-भरि कांवर चले कहार॥'
बालकाण्ड | दोहा-304| चौपाई-3
बलिहारी जाऊं इस पुनीत परम्परा की। मिथिलांचल में आज भी स्वागत भोज त्रिगुणात्मिका (सत, रज, तम) प्रकृति चूरा-दही-चीनी' से ही किया जाता है। जनवासे पर बाराती को विश्राम दिया जाता है। फिर 'गुरुहि पूछनिज कुलविधि राजा' विवाह की तैय्यारी में लगे। विवाह के घर में 'नेग' आम बात है। जनक-आँगन में भी नाई, खवास, भाट, नट सबको नेग मिल रहा है। लगन के घर में जाने से पहले 'नेग' की तैय्यारी जरूरी है।
'नाऊ बारी भाट नट राम निछावर पाई।
बालकाण्ड | दोहा-319|
अब कन्यादान की बारी है। जनक के बाम भाग में सुनयना हैं। विदेह राज जमाता का पद-प्रच्छालन करते हैं।
'जनक बाम दिसि सोह सुनयना। हिमगिरी संग बनी जिमी मायना॥
बरु विलोकी दम्पति अनुरागे। पाय पुनीत पखारन लागे॥'
बालकाण्ड | दोहा-323| चौपाई-4
फिर पाणि-ग्रहण । वर के हाथ में कन्या का हाथ।
'बर कुंअरि करतल जोरि साखोचारु दोउ कुलगुरु करैं।'
'करि होम विधिवत गाँठ जोरी होन लागीं भांवरी।'
बालकाण्ड | दोहा-323| छंद- 1-4
फिर अग्नि के सात फेरे। कहानी फ़िल्मी नहीं है मेरे दोस्त। शादी मिथिलांचल में हो रही है। यहाँ फेरों के वक़्त वर-कन्या द्वारा धान का लावा छीटने की प्रथा है।
'कुंअरु कुंअरि कल भांवरि देहीं। सादर नयन लाभु सब लेहीं॥'
बालकाण्ड | दोहा-324| चौपाई-1
फिर अग्नि-वेदी पर ही 'राम से सिर सिंदूर देहीं'। फिर अवर्णनीय दहेज़।
'कहि न जाई कछु दाइज भूरी। रहा कनक मणि मंडपु पूरी॥'
बालकाण्ड | दोहा-324| चौपाई-3
विवाह संपन्न। अब होगा वर-दुल्हन का कोहबर - सुहाग कक्ष गमन। गंगा के पूर्वी दोआब में आज भी यह प्रथा जीवित है। विवाहोपरांत वर-दुल्हन को सुहाग कक्ष में सखी सहेलियां मंगल गान करती हुई ले जाती हैं। मिथिलांचल में विधि-व्यवहार का नेतृत्व करने वाली सुहागन महिला को सुआसिन कहा जाता है। सुआसिन राम-जानकी को कोहबर ले जाती हैं। वहाँ होती है, एक दूजे को 'खीर-खिलाई' की रस्म - लहकौरी। इस खीर में वर-कन्या का एक बूँद लहू मिला होता है। ऐसा कहा जाता है कि इसके खाने से परस्पर प्रीती बढ़ती है। लहू मिश्रित कौर (निवाला) के कारण इसे लहकौरी कहा जाता है। स्थानीय नारी के रूप धरी गौरी राम को लहकौरी का विध समझाती हैं और सरस्वती सीता को।
'कोहबरहि आने कुंअर कुंअरि सुआसिनिन्ह सुख पाए कै।
अति प्रीती लौकिक रीति लागीं करन मंगल गईं कै ।।
लहकौरी गौरी सिखाव रामहि सीय सन सारद कहैं ।
रनिवासु हास विलास रस बस जन्म को फल सब लहैं ।।'
बालकाण्ड | दोहा-326| छंद-2
फिर ज्योनार हुआ, मंगल गालियों के साथ। मिथिलानी अवधवासियों को सरस मीठी गाली के साथ षडरस का आनंद दे रही हैं। गाली भी सांकेतिक नहीं..... समधियाने के स्त्री-पुरुषों के नाम लेकर खुल्लम-खुल्ला .... 'ऐसन स्वाद न मिलिहैं कैकेई के तरकारी में ! खीर परोसल थारी में!!' आईये मिथिलांचल बारात में तभी इस 'अनिर्वचनीय' सुख की अनुभूति हो सकती है। बाराती भी गालियों का मधुर रसपान करते नहीं अघाते !
‘पंच कवल करि जेवन लागे । गारि गान सुनि अति अनुरागे॥
जेंवत देहि मधुर धुनी गारी। लै-लै नाम पुरुष और नारी॥'
बालकाण्ड | दोहा - 326| चौपाई – 2-3
मिथिला की तो पहचान ही है, 'पग-पग पोखर, माछ, मखान, सरस बोल मुस्की मुख पान !' भोजनोपरांत राजा जनक समधी-समाज को पान दे कर पूजते हैं। तब जा कर समधी महराज जनवासा का रास्ता देखते हैं ।
'देई पान पूजे जनक दसरथु सहित समाज।
जनवासेहि गवाने मुदित सकल भूप सिरताज॥'
बालकाण्ड | दोहा - 329|
अब तो बेटी की विदाई की हृदयभेदी बेला है। मगर बेटी विदाई की तैय्यारी तो करनी होगी। अब फुर्सत में से फुर्सत दीजिये। फिर कभी फुर्सत मिली तो मिलेंगे अवधपुर में।
जय-जय सियाराम !!
मंगल भवन अमंगलहारी.
जवाब देंहटाएं... bahut sundar ... prasanshaneey post !!!
जवाब देंहटाएंachchi jankaari
जवाब देंहटाएंपूजा या नमाज़ कायम करो .....
जिसकी पूजा
या नमाज़ सच्ची
तो उसकी
जिंदगी अच्छी ,
जिसकी जिंदगी अच्छी
उसकी म़ोत अच्छी
जिसकी म़ोत अच्छी
उसकी आखेरत अच्छी
जिसकी आखेरत अच्छी
उसकी जन्नत पक्की
तो जनाब इसके लियें
करो पूजा या नमाज़ सच्ची ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
करन बाबू! बैंकेट हॉल में घण्टों में सम्पन्न होने वाले विवाह के युग में आपने एक खी हुई परम्परा याद दिला दी.. हमारे यहाँ तो विवाह भी हफ्तों तक फैला रहता था और महीनों तक चलता था. सुंदर प्रस्तुति रामचरित मानस से..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। राम जानकी विवाह को मानस चौपाइयों के उद्धरणों के साथ सजीव सा बनाकर प्रस्तुत किया है आपने। आपको धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपौराणिक संदर्भ की रोचक प्रस्तुति से फुरसत में भी आकर्षक बन गया है। आभार,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसीता और राम के विवाह प्रसंग को बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत किया है ..लह्कौरी---- इसके बारे में पहली बार जाना ...आभार
जवाब देंहटाएंजय-जय सियाराम !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर पोस्ट....
जवाब देंहटाएंकरन जी अपना वियाह याद आ गया.. हफ्ते तक चलने वाला मिथिलांचल का विवाह आज भले ही अव्यवहारिक लगता हो लेकिन मुझे तो बहुत वैज्ञानिक लगा... साथ ही आने वाले दाम्पत्य जीवन की तैयारी हो जाती है वहीँ से... एक लोक पर्व सा है आज भी मिथिलांचल में विवाह.. बहुत सजीव चित्रण किया है आपने. आज भी मिथिलांचल के लोकगीतों में राम सीता जीवित हैं.. और मिथिला का हर दूल्हा राम और हर दुल्हन सीता मानी जाती है..
जवाब देंहटाएंकरन जी,
जवाब देंहटाएंआज भी बहुत सारी वैवाहिक परम्पराएं राम सिया के विवाह -प्रसंग में वर्णित मांगलिक सन्दर्भों से जुडी हैं !
आपने तो पूरा प्रसंग ही सजीव कर दिया !
धन्यवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
ब्याहपंचमी पर सुंदर लेख .. पढना अच्छा लगा !!
जवाब देंहटाएंsabhi paathakon ka main hriday se aabhaaree hoon. kuchh takniki kathinaaiyon ke kaaran roman lipi me likhna pad raha hai. is aalekh par main aapsabke sneh se abhibhoot hoon. aap logon ko raam;jaanki vivaah panchami kee anant shubh kaamanaayen.
जवाब देंहटाएंwaah
जवाब देंहटाएंरामकथा हर रूप सुहावा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी,विवरण पढ कर एक बार तो ऎसा लग जेसे हम भी वहां मोजूद हे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति। आज का दिन तो राम मय हो गया। भई, फुरसत में भी सीरियस होकर चुपके से संस्कारों और रीति-रिवाजों की बात धीरे से सुना - समझा गए।
जवाब देंहटाएंक्या कहने !
आभार,
आज तो आनंद आ गया प्रभो !!
जवाब देंहटाएंआपका आभार मनोज भाई !
हरि अनंत हरि कथा अनंता,
जवाब देंहटाएंकहही सुनही हर विधि सब संता।
करन भाई,
एगो बात लिखत बानी- पसंद आई तब जवाव दीजिएगा।
जब हम आईला बाहर से घरवा,
खोल के बईठीला आपन इंटरनेटवा,
मन के झंडु बाम कर जाला,
तोहार नीमन व्लागवा-
लागल रह भाई जी,हमरा पास तोहरा खातीर कौनो विशेषण नईखे एहीसे मौन बानी- हरदम खुश रह बचवा राम जी बनवले रहस।
शानदार अंदाज में सुंदर प्रस्तुति ,धन्य हो गया ।
जवाब देंहटाएंहरि अनंत हरि कथा अनंता,
जवाब देंहटाएंकहही सुनही हर विधि सब संता।
करन भाई,
एगो बात लिखत बानी- पसंद आई तब जवाव दीजिएगा।
जब हम आईला बाहर से घरवा,
खोल के बईठीला आपन इंटरनेटवा,
मन के झंडु बाम कर जाला,
तोहार नीमन व्लागवा-
लागल रह भाई जी,हमरा पास तोहरा खातीर कौनो विशेषण नईखे एहीसे मौन बानी- हरदम खुश रह बचवा राम जी बनवले रहस।
राम विवाह प्रसंग की बहुत ही रोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवाह! मन आनन्दित हुआ....अति सुन्दर प्रसंग!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ..बहुत कुछ नया जाना .
जवाब देंहटाएंइस ह्रदय हारी वर्णन ने रोम रोम में रोमांच भर दिया...
जवाब देंहटाएंमन आनंद पूरित हो गया..
कोटिशः आभार इस मनोहारी पोस्ट के लिए..
यात्रा में मत्स्य दर्शन की जो मान्यता है, व्यवहारिक अर्थ में उसका तात्पर्य यह नहीं है कि मरे हुए मछली को घर से निकलने के पूर्व सामने टांग दिया जाय और यात्रा को शुभ मान लिया जाय...वस्तुतः यह तो यह इंगित करता है कि जो क्षेत्र जलाशयों से पूर्ण रहा करेंगे,स्वाभाविक ही वहां मछलियाँ होंगी और जल तथा मीन से भरे क्षेत्र निश्चित ही धन धान्य से परिपूर्ण समृद्ध होंगे.