मंगलवार, 27 जुलाई 2010

याद तेरी आई … ! मनोज कुमार

 

सावन शुरु हो गया है। इस मौसम में बादल, बिजली, फुहार-बौछार, धूप-छांव की आंख मिचौनी, इन सब को देख कर मुझे कुछ खास दिन, कुछ खास लोग बरबस याद आ जाते हैं। सावन में  नदी, तालाब, पोखर, हरियाली, सब, बहुत-बहुत भरा-पूरा होता है, और जब सब कुछ बहुत-बहुत और भरा-पूरा होता है, तब अगर किसी चीज़ की कमी हो जाती है, तो वह कमी काफ़ी सालती है, काफ़ी खलती है। सब कुछ भींगा-भींगा-सा होता है, … मन भी। नयन भी! यानी वियोग, बिछोह, विरह, अन्य मौसम की तुलना में सावन में, काफी बढ़ा-बढ़ा-सा लगता है।

समय हर चीज़ का अंतिम पैमाना है। समय के तीनों खण्डों में, वर्तमान सदा परिवर्तनशील होता है। अतीत तो परिवर्तनहीन है, स्थाई है। और भविष्य अज्ञात! चूंकि सुख-शांति एक परिवर्तनरहित अवस्था से संबंधित है, इसलिए सदा परिवर्तित होते रहने वाला वर्तमान कष्टमय होता है। परिवर्तनहीन अतीत की यादें क्या हमेशा मधुर होती हैं? आइए इस पर थोड़ा विचार कर लें।

जिसे हम वर्तमान के रूप में जानते हैं, वह वास्तविक रूप से एक निरंतर गतिशील वर्तमान है। इस तरह वर्तमान न केवल अतीत के एक खण्ड को ही समाहित किए होता है बल्कि इसमें अज्ञात भविष्य के कुछ अंशों का भी समावेश होते रहता है, जो परवर्ती चरण में स्वयं को अतीत में परिवर्तित कर लेता है। परिणामस्वरूप यह (वर्तमान) अनिश्चितता, सुख-शांति और कष्टों का मिश्रण है। कई बार, या यह कहूं कि अधिकांशतः, हमारा सृजन, हमारी रचनाएं, खास कर कविताएं, जो हमारा तात्कालिक वर्तमान है, उन भावानाओं (अनिश्चितता, सुख-शांति और कष्ट) को प्रतिबिंबित करते हैं। कुछ संबंध तत्कालिक वर्तमान की तरह अनिश्चितता, सुख-शांति और कष्टों से भरा होता है। इसके बावज़ूद भी, अन्य सभी संबंधों को छोड़कर, जिन्होंने हमें प्रसन्न या हमारी भावनाओं को चोट पहूंचाया हो, ये अनिश्चितता, सुख-शांति और कष्टों वाले संबंध की स्मृति, यादें अधिक मधुर होती हैं। ऐसी स्मृति को संजो कर रखने का अलग आनंद है।

सावन के इस मौसम में इसी तरह की स्मृति बार-बार मन में छा रही है, आ रही है। पेश है एक कविता ……

J0341554 याद तेरी आई

 

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मनोज कुमार

PH03205I फिर फिर धूप खिली आंगन में

बगिया लहराई,

सावन के इस मौसम में

फिर याद तेरी आई।

देख देख हरियाली

अंखियां तुझ पे भरमाई,

सावन के इस मौसम में

फिर याद तेरी आई।

कंपन हैं होठों पर लेकिन,

गीतों के अब बोल नहीं,

शून्य व्योम में करे मौन मन

किससे वह बतकही।

बिजली में मुस्कान तुम्हारी

बादल में परछाई।

सावन के इस मौसम में

फिर याद तेरी आई।

मौसम में फिर रूप तुम्हारा

सिमट-सिमट कर आया।

बूंद-बूंद भारी होता मन

दर्द बहुत गहराया।

सुरभि तुम्हारी तिरे चतुर्दिक्

परसे पुरवाई।

सावन के इस मौसम में

फिर याद तेरी आई।

 द्वारे सजी रंगोली

रह-रह मुझसे करे ठिठोली,

बूंदे डोल रही हैं

बैठी पत्तों की डोली।

मधुर मिलन की मनोकामना,

मन में फिर इठलाई।

सावन के इस मौसम में

फिर याद तेरी आई।

सूरज को फिर गहन लगा

फिर दिल में बढा अंधेरा,

दोपहरी में मध्य निशा ने

डाल रखा है डेरा।

तेरी रूप रोशनी मांगे,

मन का सौदाई।

सावन के इस मौसम में

फिर याद तेरी आई।

*** ***

38 टिप्‍पणियां:

  1. सावन में सारी चीजें बढ़ चढकर प्रतीत होती हैं, बड़े सुन्दर तरीक् से आपने बताया कविता के माध्यम से।

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  2. सुन्दर रुमानियत भरी हुई मनोरम रचना ...
    सावन कि बात ही कुछ और है ... ये मौसम तो पत्थर को भी पिघला दे

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  3. फागुन अऊर सावन… ई दुनो महीना का बर्नन जेतना कीजिए कम है.. अऊर सावन में बिरह का दुःख से बड़ा कोनो दुःख नहीं है...उसपर आपका बर्नन… कोई बिरही प्रेमी या बिरहिनी नायिका के मन का हूक है!!
    मनोज जी… ई कबिता सब कहाँ लुकवले रहते हैं...

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  4. सावन के इस मौसम में
    फिर याद तेरी आई।
    मनोरम रचना और सुन्दर चित्र
    क्या खूब

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  5. चला बिहारी जी की बातें दो टूक सत्य है. सावन का विरह महाकवि कालिदास से "मेघदूतम्" लिखवा देता है तो तुलसी से "घन घमंड नभ गर्जत घोरा.... !" कविता पढ़ के ऐसी हूक उठी है कि अपनी लिखी एक शायरी मारे बिना नहीं रह सकता,
    "सावन की बरसात क़यामत होती है !
    काली-काली रात क़यामत होती है !!
    सावन से बावस्ता कुछ भी मत पूछो,
    सावन की हर बात क़यामत होती है !!"

    बहुत सुन्दर, सुमधुर, सरस रचना... बिलकुल सावन की तरह ! चित्रों से सजीव वर्णन और प्रत्यक्ष हो गए हैं !! धन्यवाद !!!

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  6. fir teri yaad aaye...

    ab aapki yaad aati hi rahegi sir ...

    aap is yaad ke adhikaari hai..aur mai yahi chahta hu ki mere post ke visitors bhi aapko yaad kare...
    meri ye vinti hai ki aap yaha pe register ho aur niranter apni post vaha dale...
    sirf tipni nai rachna bhi chahiye...

    aap sabhi ke sahyog ke ummid me..
    Anand
    www.kavyalok.com

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  7. मधुर गीत ...सुन्दर प्रतिबिम्ब ....और इस पर लिखी भूमिका सब कुछ मिला कर एक बेमिसाल रचना.....

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  8. आपकी यह रचना बुधवार २८-७-२०१९ को चर्चा मंच पर ली गयी है....आभार

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  9. इनकी कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है।

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  10. सुन्दर चित्र ! बेहतरीन। लाजवाब।

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  11. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  12. कित्ता सुन्दर गीत है...और प्यारे-प्यारे चित्र भी.
    ________________________
    'पाखी की दुनिया ' में बारिश और रेनकोट...Rain-Rain go away..

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  13. बहुत खूब
    बेमिसाल रचना और सुन्दर चित्र
    लाजवाब।

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  14. बेहद सुन्दर और भीगी भीगी कविता।

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  15. मधुर गीत ...सुन्दर प्रतिबिम्ब ....और इस पर लिखी भूमिका सब कुछ मिला कर एक बेमिसाल रचना.!

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  16. आपकी याद ने हमें भी तारीफ करने पर मजबूर कर दिया। बहुत सुंदर कविता कही है आपने। बधाई।
    --------
    सावन आया, तरह-तरह के साँप ही नहीं पाँच फन वाला नाग भी लाया।

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  17. सुन्दर रुमानियत भरी हुई मनोरम रचना .!

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  18. सुंदर अभिव्यक्ति
    आपने कहीं तुझ के साथ तेरी लिया तो कहीं तुम्हारी के साथ तेरी लिया ...वो फ्लो नहीं बनने दे रहा.

    सुंदर चित्र चयन कविता को पूरकता प्रदान कर रहा है.

    कुछ बुरा लगा हो तो क्षमा चाहूंगी.

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  19. बहुत ही सुन्दर रचना.आभार.

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  20. आपकी अच्छी कवितओ मे से एक.धन्यवाद और ऐसी ही रचनाओं की प्रतीक्शा रहेगी.

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  21. @ प्रवीण पाण्डेय जी
    आपका आभार जो आपने काविता की आत्मा को पकड़ा।

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  22. @ Indranil Bhattacharjee ........."सैल" जी
    अपने सही कहा कि ये मौसम तो पत्थर को भी पिघला दे!

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  23. @ अजय कुमार जी
    बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  24. @ चला बिहारी ब्लॉगर बनने जी
    ठीके कहते हैं कि ई बिरही प्रेमी या बिरहिनी नायिका के मन का हूक है!!
    अब हूक है तो लुकाइए के ही त रखना होगा न।

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  25. @ M VERMA जी
    हौसला आफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया।

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  26. @ महेन्द्र मिश्र जी
    @ हास्यफुहार जी
    @ राजभाषा हिंदी
    @ Akshita (Pakhi)
    @ डॉ. हरदीप सँधू
    आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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  27. @ करण समस्तीपुरी जी
    आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है।

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  28. @ संगीता स्वरुप ( गीत ) जी
    आपके जैसे महान कवयित्री के दो शब्द और चर्चा मंच पर सम्मान देना एक प्रेरणा से कम नहीं है।

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  29. @ Anand जी
    आपने कविता पसंद की और काव्यलोक पर प्रस्तुति देने लायक मुझ अकिंचन को समझा, मेरा सौभाग्य।

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  30. @ वन्दना जी
    @ प्रेम सरोवर जी
    @ महफूज़ अली जी
    @ Parashuram Rai जी
    @ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
    आप सबों का आभार!

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  31. @ अनामिका जी
    आपने हमरी रचना को पसंद किया और प्रतिक्रिया स्वरूप जो मर्गदर्शन किया उसके लिए हम आपके आभारी हैं।
    हमने इस बक्से के ऊपर ही लिखा है "आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।" फिर आपकी प्रतिक्रिया में बुरा मानने वाली कोई बात ही नहीं है। आगे से कविता के प्रवाह का पूरा-पूरा ध्यान रखूंगा।

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  32. @ जुगल किशोर जी
    @ बूझो तो जानें जी
    @ शमीम जी
    @ Mithilesh dubey जी
    आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

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आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।