सोमवार, 21 नवंबर 2011

बस तुम नहीं हो!

बस तुम नहीं हो!

clip_image001

clip_image002clip_image006चू रहा मकरंद फूलों से,

उठ रही है गंध कूलों से।

घाटियों में

दूर तक फैली हुई है चांदनी

बस तुम नहीं हो।

 

गांव के पीछे

पलाशों के घने वन में

गूंजते हैं बोल वंशी के रसीले।

आग के

आदिम-अरुण आलोक में

नाचते हैं मुक्त कोलों के कबीले।

कंठ में

ठहरी हुई है चिर प्रणय

की रागिणी

बस तुम नहीं हो।

 

किस जनम की

प्रणयगंधी याद में रोते

झर रहे हैं गंधशाली फूल महुओं के।

सेज से

भुजबंध के ढीले नियंत्रण तोड़कर

जंगलों में आ गए हैं वृन्द वधुओं के।

समय के गतिशील नद में

नाव सी रुक गई है यामिनी

बस तुम नहीं हो।

33 टिप्‍पणियां:

  1. मिश्र जी का एक और बेहतरीन नवगीत। आभार,

    जवाब देंहटाएं
  2. प्राकृतिक कार्यकलापों को मिश्र जी एक नया रूप प्रदान कर देते हैं। सुन्दर नवगीत।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....

    जवाब देंहटाएं
  4. गज़ब! यह कविता इतनी सुन्दर है कि खुद भी कविता करने का मन होने लगा है।
    बहुत संक्रामक है यह काव्य भाव!

    जवाब देंहटाएं
  5. इनकी रचना हमेशा मुग्ध करती है!! इनकी रचनाओं का काल क्या रहा होगा??

    जवाब देंहटाएं
  6. @ सलिल भाई
    नव्वे के दशक में मैं इनसे मिला था। तब तक उनके तीनों संकलन प्रकाशित हो चुके थे। निश्चित रूप से बच्चन जी के समय में इन्होंने बहुत कुछ लिख डाला था। उनके एक संकलन पर बच्चन जी की भी प्रतिक्रिया है। कह सकते हैं कि लेट सेवेन्टीज़ से अर्ली नाइन्टीज़ के बीच में।

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रकृति की मादक रमणीयता में अपने अभाव खटक और और तीव्र हो उठती है - मनोरम अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
  8. kavi ne apne manobhaavo ka prakarti ke sath sunder sanyonjan kiya hai.

    aabhar is rachna ko padhane ke liye.

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन ...मनमोहक अभिव्यक्ति लिए है रचना ......

    जवाब देंहटाएं
  10. बस, लाजवाब...मुग्धकारी....वाह...

    और तो क्या कहूँ...???

    जवाब देंहटाएं
  11. विरह और पर्कृति-सौंदर्य का सुंदर समन्वय.शब्द शिल्प अतुलनीय.

    जवाब देंहटाएं
  12. कालजयी रचना पढवाने के लिए आपका आभार ....
    शुभकामनायें आपको !!

    जवाब देंहटाएं
  13. नवगीत में छंद निर्वाह के बावज़ूद ताज़गी को कायम रखना अद्भुत है अद्भुत।

    जवाब देंहटाएं
  14. अध्बुध नवगीत है ... प्रेम की उन्मुक्त हिलोयें उठाता गीत है ये ...

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत सुन्दर नवगीत...
    वाह!! अद्भुत....
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  16. मनोरम भावों को कलमबद्ध किया है आपने !
    सुन्दर रचना !

    प्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।

    भावना

    जवाब देंहटाएं
  17. कंठ में

    ठहरी हुई है चिर प्रणय

    की रागिणी

    बस तुम नहीं हो।

    tum nahin..bas ! tum nahin....!!

    जवाब देंहटाएं
  18. कंठ में

    ठहरी हुई है चिर प्रणय

    की रागिणी

    बस तुम नहीं हो।

    गीत बहुत ही अच्छा है ...बे मिशल बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं

आपका मूल्यांकन – हमारा पथ-प्रदर्शक होंगा।