बस तुम नहीं हो!
उठ रही है गंध कूलों से।
घाटियों में
दूर तक फैली हुई है चांदनी
बस तुम नहीं हो।
गांव के पीछे
पलाशों के घने वन में
गूंजते हैं बोल वंशी के रसीले।
आग के
आदिम-अरुण आलोक में
नाचते हैं मुक्त कोलों के कबीले।
कंठ में
ठहरी हुई है चिर प्रणय
की रागिणी
बस तुम नहीं हो।
किस जनम की
प्रणयगंधी याद में रोते
झर रहे हैं गंधशाली फूल महुओं के।
सेज से
भुजबंध के ढीले नियंत्रण तोड़कर
जंगलों में आ गए हैं वृन्द वधुओं के।
समय के गतिशील नद में
नाव सी रुक गई है यामिनी
बस तुम नहीं हो।
बस तुम नहीं हो :-)
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ..आभार
जवाब देंहटाएंअद्भुत भाव बहाती पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंमिश्र जी का एक और बेहतरीन नवगीत। आभार,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ....
जवाब देंहटाएंbhawpoorn......sunder.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंआभार !
प्राकृतिक कार्यकलापों को मिश्र जी एक नया रूप प्रदान कर देते हैं। सुन्दर नवगीत।
जवाब देंहटाएंअद्भुत भाव बहाती पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंगज़ब! यह कविता इतनी सुन्दर है कि खुद भी कविता करने का मन होने लगा है।
जवाब देंहटाएंबहुत संक्रामक है यह काव्य भाव!
इनकी रचना हमेशा मुग्ध करती है!! इनकी रचनाओं का काल क्या रहा होगा??
जवाब देंहटाएं@ सलिल भाई
जवाब देंहटाएंनव्वे के दशक में मैं इनसे मिला था। तब तक उनके तीनों संकलन प्रकाशित हो चुके थे। निश्चित रूप से बच्चन जी के समय में इन्होंने बहुत कुछ लिख डाला था। उनके एक संकलन पर बच्चन जी की भी प्रतिक्रिया है। कह सकते हैं कि लेट सेवेन्टीज़ से अर्ली नाइन्टीज़ के बीच में।
प्रकृति की मादक रमणीयता में अपने अभाव खटक और और तीव्र हो उठती है - मनोरम अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबेहद संवेदनशील रचना...
जवाब देंहटाएंगीत बहुत अच्छा है।
जवाब देंहटाएंkavi ne apne manobhaavo ka prakarti ke sath sunder sanyonjan kiya hai.
जवाब देंहटाएंaabhar is rachna ko padhane ke liye.
बेहतरीन ...मनमोहक अभिव्यक्ति लिए है रचना ......
जवाब देंहटाएंबस, लाजवाब...मुग्धकारी....वाह...
जवाब देंहटाएंऔर तो क्या कहूँ...???
सुन्दर नवगीत!
जवाब देंहटाएंविरह और पर्कृति-सौंदर्य का सुंदर समन्वय.शब्द शिल्प अतुलनीय.
जवाब देंहटाएंकालजयी रचना पढवाने के लिए आपका आभार ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !!
नवगीत में छंद निर्वाह के बावज़ूद ताज़गी को कायम रखना अद्भुत है अद्भुत।
जवाब देंहटाएंअध्बुध नवगीत है ... प्रेम की उन्मुक्त हिलोयें उठाता गीत है ये ...
जवाब देंहटाएंsab hai bas tum nahi...sundar
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर नवगीत...
जवाब देंहटाएंवाह!! अद्भुत....
सादर...
मनोरम भावों को कलमबद्ध किया है आपने !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना !
प्रस्तुत कहानी पर अपनी महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ ।
भावना
गीत बहुत अच्छा है.......
जवाब देंहटाएंकंठ में
जवाब देंहटाएंठहरी हुई है चिर प्रणय
की रागिणी
बस तुम नहीं हो।
tum nahin..bas ! tum nahin....!!
कंठ में
जवाब देंहटाएंठहरी हुई है चिर प्रणय
की रागिणी
बस तुम नहीं हो।
गीत बहुत ही अच्छा है ...बे मिशल बहुत बहुत आभार
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